Monday, 19 October 2015

56 - पोकरणा राठौड़

पोकरणा राठौड़ 
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खांपें - पोकरणा राठौड़
पोकरणा राठौड़ - रावल मल्लीनाथजी के पुत्र जगपालजी के वंसज पोकरणा राठौड़ कहलाते हैं। जो पोकरण गांव के नाम से प्रसिद्ध हुए यानि पोकरण गांव में रहने से यह नाम पड़ा ।
राव जगपालजी; राव सलखाजी के पोते और राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे।
पोकरणा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव जगपालजी - रावल मल्लीनाथजी - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - राव कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज ।
ख्यात अनुसार पोकरणा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 

01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
    01 - नयांअकेलीदेवी
    02 - गोसललदेवी
    03 - कुमारदेवी
    04 - वसंतादेवी

गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - 
 जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया। 

[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।] 
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।] 

कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
       01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
       02 –वरदायीसेनजी - 
कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।  

       03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम] 
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ] 
गूगलदेवजी के दो पुत्र हुए- 
        01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला] 
        02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा, 
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी। 
  • राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
02 - राजा कृष्णदेव - राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम]
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान समय में अलीराजपुर भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में सिथत एक जिला है।]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है] 
 
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।। 

राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी 
पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -

        01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी 
                संवत 1272-1292)]
        02 - 
 राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या  
                वाजन  राठौड़ कहलाये हैं। 
        03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले 
               गए और वंहा के पहले राव बनें। 
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
     01 - राव दूहड़जी
     02 - राव धांधलजी
     03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
     04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
     05 - राव जैतमालजी
     06 - राव आसलजी
     07 - राव चाचिगजी
     08 - राव जोपसिंहजी
12 -  राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -            
        01 - राव रायपालजी -                                 [रायपालोत राठौड़ ]
        02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी]              [- 
के वंसज खेतपालोत राठौड़]
        03 - राव बेहड़जी [बेहरजी]                           [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
        04 - राव पीथड़जी                                        [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
        05 - राव जुगलजी [जुगैलजी]                       [- के वंसज जोगवत राठौड़]
        06 - राव डालूजी                                        [---------------------]
        07 - राव बेगरजी                                        [- 
के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
        08 - उनड़जी                                             [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
        09 - सिशपलजी                                         [- के वंसज सीरवी राठौड़] 
        10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान]     [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-         
        01 - कानपालजी                    -
        02 – केलणजी                       -
        03 – थांथीजी                       - [थांथी राठौड़]
        04 - सुंडाजी                         - [सुंडा राठौड़ ]
        05– लाखणजी                      - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        06 - डांगीजी                         - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
        07 - मोहणजी                       - [मुहणोत राठौड़]
        08 - जांझणजी                      - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
        09 - जोगोजी                        - [जोगावत राठौड़]
        10 - महीपालजी [मापाजी]      - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
        11 - शिवराजजी                    - [शिवराजोत राठौड़]
        12 - लूकाजी                         - [लूका राठौड़ ]
        13 - हथुड़जी                         - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        14 - रांदोंजी [रंधौजी]             - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        15 - राजोजी [राजगजी]          - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -   
         01 - राव जालणसीजी
         02 - राव भीमकरण
         03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए - 
        01 - राव छाडाजी        
        02 - राव भाखरसिंह  
        03 - राव डूंगरसिंह  
16 - राव छाडाजी  - राव छाडाजी  [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए - 
         01 - राव तीड़ाजी 
         02 - राव खोखरजी 
         03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
         04 - राव सिहमलजी  
         05 - राव रुद्रपालजी  
         06 - राव खीपसजी 
         07 - राव कान्हड़जी - 
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक  पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं। राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
         01 - रावल मल्लीनाथजी   - [मालानी के संस्थापक]
         02 - राव जैतमलजी         - [गढ़ सिवाना]
         03 - राव विरमजी 
         04 - राव सोहड़जी           - के वंसज सोहड़ राठौड़
 19 - रावल मल्लीनाथजी - मालानी के संस्थापक रावल मल्लीनाथजी राव सलखाजी के पुत्र थे,रावल  
          मल्लीनाथजी के नौ पुत्र थे -
          01 - जगमालजी       
          02 - जगपालजी       
- पोकरणा राठौड़ [साकड़ो,लूणो,खुह्ड़ो,चौक,शुदी,जलिवाड़ी]
          03 - कूँपाजी            - कोटड़ियां राठौड़
          04 - मेहाजी            - फलसूंडिया राठौड़ [फलसूंड]
          05 - चंडरावजी        -
          06 – अडवालजी      - कुसमलिया राठौड़
          07 - उदैसीजी          - फलसूंडिया राठौड़ [फलसूंड]
          08 - अरड़कमलजी   - बहडमेरा [बाड़मेरा] राठौड़ [बाड़मेर, चौहटन]
          09 – हरभूजी           -
20 - जगपालजी  रावल मल्लीनाथजी के पुत्र जगपालजी के वंसज पोकरणा राठौड़ कहलाते हैं। जो पोकरण गांव के नाम से प्रसिद्ध हुए यानि पोकरण गांव में रहने से यह नाम पड़ा ।
राव जगपालजी; राव सलखाजी के पोते और राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे।
पोकरण गढ़

पोकरण का संक्षिप्त इतिहास - पोकरण [पोखरण] भारत देश के राज्य राजस्थान के जिले जैसलमेर का प्रमुख कस्बा है जो  जैसलमेर से 110 किलोमीटर दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर है । पोकरण जोधपुर से 80 कि.मी. दूर स्थित है। पोकरण में लाल पत्थरों से निर्मित सुन्दर दुर्ग है। इसका निर्माण सन 1550 में राव मालदेवजी ने कराया था।  पोखरण से तीन किलोमीटर दूर सातलमेर स्थित है जिसे पोखरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं। इस सातलमेर नामक राज्य की स्थापना राव जोधा के पुत्र सातलजी ने  की थी जो फलौदी के पास है । यह स्थल बाबा रामदेव के गुरूकुल के रूप में भी विख्यात हैं। रामदेवजी ने बाल्यावस्था में ही सातलमेर में तांत्रिक भैरव का वध कर उसका आतंक समाप्त किया था। किंवदन्तियों के अनुसार पुष्करणा ब्राह्मण के आदि पुरुष पोकर ऋषि की कर्मस्थली होने के कारण यह स्थान पोकरण कहलाया। रियासती काल में पोकरण जैसलमेर और मारवाड़ राज्यों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण विवाद का बिन्दु बना। कालान्तर में 1728 ई. में यह मारवाड़ राज्य के प्रधान की पट्टाशुदा जागीर होने से चर्चित रहा। लगभग 100 गांवों का यह पोकरण पट्टा प्रशासनिक शब्दावली में ‘ठिकाणा’ नाम से जाना जाता था।

15 वीं शताब्दी में रावल मल्लिनाथ ने  पोकरण और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। कालान्तर में अजमालजी तंवर और उसके पुत्र रामदेवजी ने रावल मल्लिनाथ की आज्ञा से पोकरण को पुनः बसाया। राव मल्लिनाथ के पौत्र हम्मीर-जगपालोत की रामदेवजी की भतीजी और वीरमदेव की पुत्री से विवाह के उपलक्ष्य में पोकरण दहेज में दिया गया। रामदेवजी पोकरण से कुछ दूर रूणिचा या रामदेवरा में जा बसे। पोकरण में हम्मीर के वंशज पोकरणा राठौड़ कहलाए। पोकरणा राठौड़ों और जैसलमेर के भाटियों में पोकरण के अधिकार को लेकर निरंतर संघर्ष चलता रहा। इसी बीच मण्डोर के शासक राव सातल के पुत्र नरा (नरसिंह) ने मौका देखकर पोकरण पर अधिकार कर लिया। नरा (नरसिंह) ने  पोकरण के समीप सातलमेर में नया किला बनवाया। पोकरण के राठौड़ों ने तब राव खींवा के नेतृत्व में संगठन बनाकर आक्रमण कर दिया। इस संघर्ष में राव नरा वीरगति को प्राप्त हुआ। तदुपरान्त राव सूजा ने पुत्र की हत्या का प्रतिशोध लेने हेतु फौज भेजकर पोकरणा राठौड़ों को वहां से खदेड़ दिया। 16 वीं शताब्दी के प्रारंभ में राव खींवा के पुत्र लूंका ने महेवा के स्वकुलीय राठौड़ों की सहायता से पोकरण पर आक्रमण किया। पोकरण सातलमेर के शासक राव गोविन्द ने उसे आधा राज्य देकर समझौता कर लिया। 1550 ई. में राव मालदेव ने सेना भेजकर राव गोविन्द के पुत्र जैतमाल को पराजित कर कैद कर लिया और पोकरण-सातलमेर को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में ले लिया। उसने सातलमेर का गढ़ नष्ट करके पोकरण के किले का पुनर्निर्माण करवाया और पुलिस चैकी की स्थापना की। उसके उत्तराधिकारी राव चन्द्रसेन की बादशाह अकबर की सेना से हार हुई। राव चन्द्रसेन के निम्नलिखित व्यक्ति इस आक्रमण में मारे गए -
01.  चैहान रामौ  
02. पंवार नारायण
03. सोहड़ राजघर  
04. सोहड रतनौ
05. भाटी सूरजमल  
06. सोहड़ देदो ।
07. राठौड़ किशनदास को गंभीर चोटे लगी। 
राव चन्द्रसेन ने मण्डोर का दुर्ग त्याग कर पीपलण के पहाड़ों में शरण ली। राव मालदेव के उत्तराधिकारी राव चन्द्रसेन ने मुगल बादशाह की अधीनता स्वीकार नहीं की। अतः मुगल बादशाह अकबर की शाही फौजो ने जोधपुर पर घेर डाला (1565 ई) । करीब आठ माह संघर्ष करने के पश्चातृ दुर्ग में संचित सामग्री तथा जल का अभाव हो गया। फलस्वरूप ई सन् 2 दिसंबर 1565 (वि.सं. 1622) को राव चन्द्रसेन ने रात्रि में गढ़ छोड़कर पहले भाद्राजूण और फिर सिवाना के समीप पीपलण के पर्वतों में रहने चला गया। पोकरण में उसने योग्य अधिकारियें की नियुक्ति की-
01. चैहान रामो झांझणोत
02. पंवार अखावत नराइण
03. खींवसी अखावत
04. कानड़दास जोगावत
05. सोहड़ राजधर सिंहावत
06. भाटी सूरजमल केल्हण
07. पेराड़ राजो उधरास ।
इस दौरान जैसलमेर महारावल हरराज ने पोकरण पर अधिकार करने का प्रयास किया। असफल रहने पर उसने एक लाख फदियों में पोकरण गिरवी रखने की पेशकश की। राव चन्द्रेसन ने इसकी स्वीकृति दे दी क्योंकि उसे धन की आवश्यकता थी। तदनन्तर 74 वर्षों तक पोकरण पर जैसलमेर के भाटियों का अधिकार रहा। महाराजा जसवन्तसिंह ने बादशाह शाहजहां की आज्ञा से सेना भेजकर पोकरण पर पुनः अधिकार कर लिया। सात वर्ष पश्चात् महारावल सबलसिंह ने पोकरण पर अधिकार कर लिया। महाराजा जसवंतसिंह प्रथम ने मुहता नैणसी के नेतृत्व में एक सेना भेजकर पोकरण पुनः हस्तगत कर लिया तथा उसने आगे बढ़कर आसणीकोट तक लूटमार की। बीकानेर महाराज कर्णसिंह की मध्यस्थता में दोनो पक्षों में संधि सम्पन्न हुई। महाराजा जसवंतसिंह प्रथम की मृत्यु के बाद महारावल अमरसिंह ने पोकरण पर अधिकार करने के प्रयास पुनः प्रारंभ किए। वह औरंगजेब से पोकरण-सातलमेर और फलौदी का पट्टा लिखवाने में असफल रहा। इसी दौरान जोधपुर दुर्ग पर शाही आक्रमण के समय कुंवर राजसिंह के मारे जाने से उसकी पोकरण-फलौदी के प्रति रूचि समाप्त हो गई। उसने मारवाड़ के राठौड़ों से कटुता दूर करने के लिए अपनी पुत्री का विवाह महाराजा अजीतसिंह से कर दिया। जोधपुर रियासत द्वारा चम्पावतों को पोकरण का पट्टा दिए जाने के पश्चात् से ठाकुर भवानीसिंह तक का इतिहास ठा.महासिंह - महाराजा अजीतसिंह ने 1707-1708 ई. में ठा. महासिंह चाम्पावत को पोकरण का पट्टा प्रदान किया गया, किन्तु कुछ समय बाद चन्द्रसेन नरावत को पुनः पोकरण का पट्टा बहाल कर दिया गया। 1724 ई. में महाराजा अजीतसिंह की मृत्यु हो गई। उत्तराधिकारी महाराजा अभयसिंह उस समय दिल्ली में था। उसके जोधपुर पहुंचने के 7-8 माह तक महासिंह ने जोधपुर का उचित प्रबंध किया। 1725 ई. में उसे प्रधानगी इनायत हुई। महाराजा अभयसिंह के अनुजों- आनन्दसिंह, रायसिंह और किशोरसिंह ने राज्य प्राप्ति के उद्देश्य से बिलाड़ा और सोजत में विद्रोह कर दिया। ठा. महासिंह के नेतृत्व में भेजी गई सेना ने इन्हें खदेड दिया। 

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावासतहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थानपिन - 331304 ]
।।इति।।

7 comments:

  1. पोकरणा राठौड़ो के 24 गावो के क्या नाम है

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  2. 1 Luna Raoji
    2 Sankara
    3 Khuhda
    4 Sanawara
    5 Chowk
    6 Sardar Singh ki Dhani ( Bhiniyana )
    7 Guddi
    8 Padroda
    9 Jemla
    10 Modardi
    11 Khelana
    12 Chandani
    13 Maheshon Ki Dhani
    14 Luna Kalla
    15 Balad
    16 Rajmathai
    17 Bandhewa
    18 Jaliwado
    19 Dhoolkot
    20 Madwa
    21

    Total 28 gaon Hai jinme se Bhikhodai Barathon ko Diya, Jhabra purohiton ko Diya aur Dantal Jhaloda Bhatiyon ko Diya Dahej me.

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  3. Hukam सोहड़ राठौड ka बताइए इतिहास इतिहास

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  4. श्री बालीनाथ जी कोन थे

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