Saturday, 17 October 2015

4 - राजस्थान में राठौड़ क्षत्रिय राजपूत राजवंश या राजस्थान मेँ राठौड़ वंश का विकास व विस्तार

राजस्थान में राठौड़ क्षत्रिय राजपूत राजवंश
या

राजस्थान मेँ राठौड़ वंश का विकास व विस्तार

कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; 
वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी;
सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] 
सीहाजी [शेओजी] से राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा ।  

राव राजा सीहाजी [शेओजी]- (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
        01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी 

                संवत 1272-1292)]
        02 - राव उजाजी [अज्यरावजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या वाजन  

                राठौड़ कहलाये हैं।
        03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी ] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले 

                गए और वंहा के पहले राव बनें। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौङ दानेश्वरा खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राव सीहा कनौज के शासक जयचंद के प्रपोत्र थे। राव सीहा जी, राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े थे। सेतराम जी के चार राणी थी। राणी सोनेकँवर से सीहा जी का जन्म हुवा था। सर्वप्रथम मारवाड़ में प्रवेश कर मारवाड़ में राठौङ राज्य की स्थापना की ईन उपरलिखित शाखाओँ मेँ से दानेसरा और चंदेल शाखाओँ के राठौङ पाये जाते है । दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया। कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी , राव सिहा के आगमन की सूचना पर पाली नगर के पालीवाल ब्राहमण अपने मुखिया जसोधर के साथ सिहा जी मिलकर पाली नगर को लूटपाट व अत्याचारों से मुक्त करने की प्रार्थना की| अपनी तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद राव सिहा जी ने भाइयों व फलोदी के जगमाल की सहायता से पाली में हो रहे अत्याचारों पर काबू पा लिया एवं वहां शांति व शासन व्यवस्था कायम की, जिससे पाली नगर की व्यापारिक उन्नति होने लगी। 
सिहाँ बड़ा, देव गरुड है साथ ।
बनकर छोडिया कन्नौज में, पाली मारा हाथ ।।

पाली के अलावा भीनमाल के शासक के अत्याचारों की जनता की शिकायत पर जनता को अत्याचारों से मुक्त कराया।
भीनमाल लिधी भडे, सिहे साल बजाय।
दत दीन्हो सत सग्रहियो, ओ जस कठे न जाय।।
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास ।।
राव सीहा जी राठौङ वंश के मूल पुरुष
आठों में सिहाँ बड़ा, देव गरुड़ है साथ ।
बनकर छोडिया कन्नौज में, पाली मारा हाथ ।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।

राव सीहा जी के वीर वंशज अपने शौर्य, वीरता एवं पराक्रम व तलवार के धनी रहे है। मारवाड़ में राव सीहा जी द्वारा राठौड़ साम्राज्य का विस्तार करने में उनके वंशजो में राव धुहड़ जी , राजपाल जी , जालन सिंह जी ,राव छाडा जी , राव तीड़ा जी , खीम करण जी ,राव वीरम दे , राव चुडा जी , राव रिडमल जी , राव जोधा , बीका , बीदा, दूदा , कान्धल , मालदेव का विशेष क्रमबद्ध योगदान रहा है। इनके वंशजों में दुर्गादास व अमर सिंह जैसे इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति हुए। सीहाजी के वंशजो से जो खांपे चली वे निम्न प्रकार है।
महवा के राजा को मार कर उस पर अपना अधिकार कर लिया उसके बाद खेड के गोहिल राजा महेशदास को हरा कर उस पर भी अधिकार कर लिया ।
पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया । अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
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[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।

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