राव सीहाजी से अलग राठौङ वंश शाखाऐं
चूंडाराव जी - चूंडाराव जी अमर कोट के सोढा राणा सोमेश्वर के भांजे थे। चूंडाराव जी के समय मुसलमान ने जोर लगाया की अमर कोट के सोढा हमारे से बेटी व्यवहार करें। तब चूंडाराव जो उस समय अमर कोट में थे । इनकी सहायता से मुसलमान की बारातें बुलाई गयी एवं स्वयं इडर से सेना लेकर पहुंचे सोढों और राठोड़ों ने मिलकर मुसलमानों की बरातों को मार दिया ।
उस समय वीर चूंडाराव को दू:हठ की उपाधि दी गयी थी। अतः चूंडाराव के वंशज दोहठ कहे गए।
01 - दोहठ चूंडाराव के वंशज दोहठ राठौङ कहे गए राठौङ है।
02 - सीहा के वंशज सीहा वंशज राठौङ कहे गए है।
दोहठ राठोड़, अमर कोट, सोरास्ट्र, कच्छ, बनास कांठा, जालोर, बाड़मेर, जेसलमेर, बीकानेर जिलों में कहीं - कहीं निवास करते रहे है।
जैसा कि राजस्थान मेँ राव सिहाजी से ही राठौङ वंश का जन्म और विस्तार हुआ । मगर कुछ अलग-अलग जगह भी राठौङ राजपूत रहते थे जो इसप्रकार है।
01 - गहरवाल - गहरवाल राजपूत राठौड़ो की पुरानी शाखा है। पूर्व मेँ गहरवाल काशी और कनौज के राजा रहेँ हैँ। आज भी इनके बहुत से वंशज हैँ। कांतित ठिकाना रहा है, और है। चंदेला और बूंदेला गहरवाल कि ही शाखा है।
गहरवाङ का मूल स्थान प्राचीन काशी राज्य था। इनका महान पूवर्ज खोरताज देव था जिसकी सातवीँ पिढी मेँ जसौन्दा हुआ। जिसने विँध्यवासनी मेँ महान यज्ञ किया और अपनी सन्तानोँ को बुन्देला पदवी प्रदान की। फिर बुन्देला ने गहरवाल कि पदवी धारण की ईसमेँ कई शाखाँये हैँ - कालंजर, मोहिनी, महोबा, नगरोँ पर अधिकार किया जो बुन्देलखण्ड के मुख्य शहर हैँ।
02 – बूंदेला - बूंदेला गहरवाल राठौङ की एक शाखा है। पंचमसिँह ने विँध्यावासिनि देवी से वरदान पाया उसकी सन्तान बूंदेला कहलायी।
कुछ लोग लिखते हैं कि गहरवाल के "खासवाल" बूंदेला है। जो ठिक नहीँ बहिभाटोँ द्वारा लिखी गयी ख्यात राठौङ वंश के इतिहास मेँ पेज नं.36 पर बहिभाट कि कलम से बिल्कुल साफ-साफ लिखा है और प्राचिन इतिहास छत्रप्रकाश मेँ भी लिखा है कि, एक राजपूत को विश्वासघात यानि दगा करके मारने पर इनको बिरादरी से अलग करदिया था। और अलग किये गये समुह (परिवार) को बांधा कहा जाने लगा।
आगे चलकर चहुँवाण और पंवार व कुछ अन्य राजपूत ईन से शादी-विवाह बेटी व्यवहार करने लगे और ये लोग जहाँ रहने लगे उसका नाम बुंदेलखंण्ड इन्ही के नाम से पङा। चरखारी, अजयगढ, बिजावर, पन्ना, ओरछा, दतिया, समथर, इनके राज्य थे तथा बावनी, सरेला, जेतपुर, टीकागढ, सरीला, और जिगनी इनके ठिकाने रहेँ हैँ।
03 – रेकवार - रेकवार ये राठौड़ो से निकले हैँ पहले गुजरात मेँ रहते थे और गुजरात से 15वीँ शताब्दी मेँ ये लोग अवध मेँ आगये। ये राजपूत भी नीम के पेङ की दाँतून नहीँ करते हैँ। तथा दुआबा के राजपूत कि तरह सम्बन्ध मेँ अभिमान भी करते हैँ।
04 – गढवार - यह गहरवाल कि ही शाखा है।
05 - चंदेल - इनको छतीस कुल राजवंशो मेँ माना जाता है। प्रथवीराज चंदेलो को हराकर हि बुन्देलोँ कि तरफ बढा था। बुन्देला मनवीर का प्रभूत्व काल 1200ई. है। ईसके तेरहवीँ पिढी मेँ मधुकर शाह हुआ जिसने बेतवा तट पर ओरछा नगर बसाया। उस का पुत्र था वीरसिँह देव जो छोटे-छोटे बुन्देला राज्योँ का स्वामी बन गया और पर्याप्त शक्ति अर्जित कर अकबर के मित्र महान इतिहासकार व अर्थशासत्री अबुल फजल को मरवा कर इतिहास मेँ बदनाम भी हुआ।
06 - हतूँडिया राठौङ - हतूँडी (हस्तकुँडी) ग्राम प्राचिन समय के जोधपूर राज्य के गोडवाङ प्रान्त मेँ रहने से हतूँडिया राठौङ कहलाये। इनके कुछ वंशज यहाँ से अलग होकर आबु व उदयपुर के पास रहने लगे उदयपुर व उसके आस पास जनानी, डोढी आदि के राजपूत इसी वंश के हैँ।
07 बड़गुजर - इनका वंस सूर्य है ये रघुवंशी महाराजा रामचंद्रजी के वन्सज हैं राजपुताना [राजस्थान में बड़गुजरों की कोई शाखा नहीं है] उत्तरप्रदेश[युक्तप्रदेश] के बुलन्दशहर जिले में हिन्दू व मुस्लमान दोनों तरह के बड़गुजर रहतें है।शिखरवाल बड़गुजर की ही शाखा है।
बड़गूजरों को पातशाह [बादशाह]से किसी को पातशाह तो किसी को चौधरी की उपाधि मिली हुयी है। इन से कुछ राठौड़ो से अलग होकर मुस्लमान बन गए जो इस प्रकार है -
01 - लालसिंह - लालसिंह के वंसजलालखानी ।
02 - अहमदसिंह- अहमदसिं के वंसज अहमद खानी।
03 - विक्रमसिंह - विक्रमसिं केके वंसज व्रिक्रमखानी ।
04 - कमलसिंह - कमलसिंह के वंसज कमालखानी ।
05 - रायसिंह - रायसिंह के वंसज रायखानी।
06 - खङेरिया - ये खङेरिया गांव में बसावट करने से खङेरिया नाम से जाने जाने लगे।
उस समय वीर चूंडाराव को दू:हठ की उपाधि दी गयी थी। अतः चूंडाराव के वंशज दोहठ कहे गए।
01 - दोहठ चूंडाराव के वंशज दोहठ राठौङ कहे गए राठौङ है।
02 - सीहा के वंशज सीहा वंशज राठौङ कहे गए है।
दोहठ राठोड़, अमर कोट, सोरास्ट्र, कच्छ, बनास कांठा, जालोर, बाड़मेर, जेसलमेर, बीकानेर जिलों में कहीं - कहीं निवास करते रहे है।
जैसा कि राजस्थान मेँ राव सिहाजी से ही राठौङ वंश का जन्म और विस्तार हुआ । मगर कुछ अलग-अलग जगह भी राठौङ राजपूत रहते थे जो इसप्रकार है।
01 - गहरवाल - गहरवाल राजपूत राठौड़ो की पुरानी शाखा है। पूर्व मेँ गहरवाल काशी और कनौज के राजा रहेँ हैँ। आज भी इनके बहुत से वंशज हैँ। कांतित ठिकाना रहा है, और है। चंदेला और बूंदेला गहरवाल कि ही शाखा है।
गहरवाङ का मूल स्थान प्राचीन काशी राज्य था। इनका महान पूवर्ज खोरताज देव था जिसकी सातवीँ पिढी मेँ जसौन्दा हुआ। जिसने विँध्यवासनी मेँ महान यज्ञ किया और अपनी सन्तानोँ को बुन्देला पदवी प्रदान की। फिर बुन्देला ने गहरवाल कि पदवी धारण की ईसमेँ कई शाखाँये हैँ - कालंजर, मोहिनी, महोबा, नगरोँ पर अधिकार किया जो बुन्देलखण्ड के मुख्य शहर हैँ।
02 – बूंदेला - बूंदेला गहरवाल राठौङ की एक शाखा है। पंचमसिँह ने विँध्यावासिनि देवी से वरदान पाया उसकी सन्तान बूंदेला कहलायी।
कुछ लोग लिखते हैं कि गहरवाल के "खासवाल" बूंदेला है। जो ठिक नहीँ बहिभाटोँ द्वारा लिखी गयी ख्यात राठौङ वंश के इतिहास मेँ पेज नं.36 पर बहिभाट कि कलम से बिल्कुल साफ-साफ लिखा है और प्राचिन इतिहास छत्रप्रकाश मेँ भी लिखा है कि, एक राजपूत को विश्वासघात यानि दगा करके मारने पर इनको बिरादरी से अलग करदिया था। और अलग किये गये समुह (परिवार) को बांधा कहा जाने लगा।
आगे चलकर चहुँवाण और पंवार व कुछ अन्य राजपूत ईन से शादी-विवाह बेटी व्यवहार करने लगे और ये लोग जहाँ रहने लगे उसका नाम बुंदेलखंण्ड इन्ही के नाम से पङा। चरखारी, अजयगढ, बिजावर, पन्ना, ओरछा, दतिया, समथर, इनके राज्य थे तथा बावनी, सरेला, जेतपुर, टीकागढ, सरीला, और जिगनी इनके ठिकाने रहेँ हैँ।
03 – रेकवार - रेकवार ये राठौड़ो से निकले हैँ पहले गुजरात मेँ रहते थे और गुजरात से 15वीँ शताब्दी मेँ ये लोग अवध मेँ आगये। ये राजपूत भी नीम के पेङ की दाँतून नहीँ करते हैँ। तथा दुआबा के राजपूत कि तरह सम्बन्ध मेँ अभिमान भी करते हैँ।
04 – गढवार - यह गहरवाल कि ही शाखा है।
05 - चंदेल - इनको छतीस कुल राजवंशो मेँ माना जाता है। प्रथवीराज चंदेलो को हराकर हि बुन्देलोँ कि तरफ बढा था। बुन्देला मनवीर का प्रभूत्व काल 1200ई. है। ईसके तेरहवीँ पिढी मेँ मधुकर शाह हुआ जिसने बेतवा तट पर ओरछा नगर बसाया। उस का पुत्र था वीरसिँह देव जो छोटे-छोटे बुन्देला राज्योँ का स्वामी बन गया और पर्याप्त शक्ति अर्जित कर अकबर के मित्र महान इतिहासकार व अर्थशासत्री अबुल फजल को मरवा कर इतिहास मेँ बदनाम भी हुआ।
06 - हतूँडिया राठौङ - हतूँडी (हस्तकुँडी) ग्राम प्राचिन समय के जोधपूर राज्य के गोडवाङ प्रान्त मेँ रहने से हतूँडिया राठौङ कहलाये। इनके कुछ वंशज यहाँ से अलग होकर आबु व उदयपुर के पास रहने लगे उदयपुर व उसके आस पास जनानी, डोढी आदि के राजपूत इसी वंश के हैँ।
07 बड़गुजर - इनका वंस सूर्य है ये रघुवंशी महाराजा रामचंद्रजी के वन्सज हैं राजपुताना [राजस्थान में बड़गुजरों की कोई शाखा नहीं है] उत्तरप्रदेश[युक्तप्रदेश] के बुलन्दशहर जिले में हिन्दू व मुस्लमान दोनों तरह के बड़गुजर रहतें है।शिखरवाल बड़गुजर की ही शाखा है।
बड़गूजरों को पातशाह [बादशाह]से किसी को पातशाह तो किसी को चौधरी की उपाधि मिली हुयी है। इन से कुछ राठौड़ो से अलग होकर मुस्लमान बन गए जो इस प्रकार है -
01 - लालसिंह - लालसिंह के वंसजलालखानी ।
02 - अहमदसिंह- अहमदसिं के वंसज अहमद खानी।
03 - विक्रमसिंह - विक्रमसिं केके वंसज व्रिक्रमखानी ।
04 - कमलसिंह - कमलसिंह के वंसज कमालखानी ।
05 - रायसिंह - रायसिंह के वंसज रायखानी।
06 - खङेरिया - ये खङेरिया गांव में बसावट करने से खङेरिया नाम से जाने जाने लगे।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
लोगों का मत है | चन्द्र पुत्र बुद्ध ने पिटा के नाम पर ‘चन्द्रवंश’ की स्थापना गंगा यमुना संगम के पास प्रतिष्ठान पुर (झूसी प्रयाग )में स्थापित किया | जिसे च्न्द्रमंडल से जाना गया | सूर्य और चन्द्र मण्डल का संयुक्त क्षेत्र आर्यावर्त के नाम से प्रसिद्द हुआ | च्न्द्रव्न्शियों को ‘इंदु ‘भी कहा गया है | इसी ‘इंदु ‘से ‘इंडिया ‘ भारत कहा जाने लगा |
ReplyDeleteसर आपका नंबर मिलेगा
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