डांगी या डागिया राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - डांगी या डागिया राठौड़ डांगी या डागिया राठौड़ - राव रायपालजी के पुत्र डांगीजी के वंशज डांगी या डागिया राठौड़ कहलाये हैं । डांगीजी राव दूहड़जी के पोते और राव अस्थानजी के पड़ पोते थे।
डांगीजी के वंशज ढोली कहलाये हैं। डांगी जी के पास किसी प्रकार कि भूमी नहीँ थी व इन्होनें डूमन या ढोली जाती कि एक लङकी [जो राजदरबार में नृतकी थी] से शादी कि तत्तसन्तान डांगी या ढोली कहलाये हैं।
[स्पष्टीकरण - यहाँ स्पष्ट कर देता हूँ कि ङाँगी से ढोली जाती नही बनी ढोली जाती तो अन्य जातीयोँ की तरह पिढी दर पिढी चली आ रही है। कहीँ ढोली तो कही नगारसी पुकारा जाता था क्योकि ये लोग ढोल और नगाङे के साथ गाने बजाने का काम करते थे। मगर डाँगी ने किसी कारण वंश ढोली जाती की लङकी से शादी कि थी। जिससे आगे का वंश राजपूत न रहकर ढोली वंश बन गया। व डागी के वंशज राजपूतो से अलग हो गये मगर ईनके रिश्ते नाते जाने-अनजाने मे जिन राजपूत या राजपूतोँ से निकली जातीयोँ मेँ हुये वही नख बन गयी। जिस प्रकार डागी के किसी वंशज ने सोनगरा या चौहान कि लङकी से शादी की तो उसकी सन्नताने माँ कि नख का प्रयोग हुआ और बाद मे वही से उन की नख या खांप शुरू हो गयी। राजस्थान मे जहाँ जहाँ राठौङ राजपूत फैला वैसे वैसे ढोली जाती भी ईनके आस पास आबाद होती गयी।जो सिलसिला आज तक कायम है।]
डांगी या डागिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-
डांगीजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज ।
ख्यात अनुसार डांगी या डागिया राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा,
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी।
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
- राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र।
- राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी
संवत 1272-1292)]
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
वाजन राठौड़ कहलाये हैं।
03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी ] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले
गए और वंहा के पहले राव बनें।
11 - राव अस्थानजी - [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वीसंवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
01 - राव दूहड़जी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
12 - राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
03 - राव बेहड़जी [बेहरजी] [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
04 - राव पीथड़जी [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
05 - राव जुगलजी [जुगैलजी] [- के वंसज जोगवत राठौड़]
06 - राव डालूजी [---------------------]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
08 - उनड़जी [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
09 - सिशपलजी [- के वंसज सीरवी राठौड़]
10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान] [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-
01 - कानपालजी -
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [
डांगी
या
डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
डांगीजी के वंशज ढोली कहलाये हैं। डांगी जी के पास किसी प्रकार कि भूमी नहीँ थी व इन्होनें डूमन या ढोली जाती कि एक लङकी [जो राजदरबार में नृतकी थी] से शादी कि तत्तसन्तान डांगी या ढोली कहलाये हैं।
[स्पष्टीकरण - यहाँ स्पष्ट कर देता हूँ कि ङाँगी से ढोली जाती नही बनी ढोली जाती तो अन्य जातीयोँ की तरह पिढी दर पिढी चली आ रही है। कहीँ ढोली तो कही नगारसी पुकारा जाता था क्योकि ये लोग ढोल और नगाङे के साथ गाने बजाने का काम करते थे। मगर डाँगी ने किसी कारण वंश ढोली जाती की लङकी से शादी कि थी। जिससे आगे का वंश राजपूत न रहकर ढोली वंश बन गया। व डागी के वंशज राजपूतो से अलग हो गये मगर ईनके रिश्ते नाते जाने-अनजाने मे जिन राजपूत या राजपूतोँ से निकली जातीयोँ मेँ हुये वही नख बन गयी। जिस प्रकार डागी के किसी वंशज ने सोनगरा या चौहान कि लङकी से शादी की तो उसकी सन्नताने माँ कि नख का प्रयोग हुआ और बाद मे वही से उन की नख या खांप शुरू हो गयी। राजस्थान मे जहाँ जहाँ राठौङ राजपूत फैला वैसे वैसे ढोली जाती भी ईनके आस पास आबाद होती गयी।जो सिलसिला आज तक कायम है।]
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[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
Shri Maan ati prasanta hui aap nai kaafi Himmat Juta k Dangi ji ko kam sai kam rajput you maana ...parantu yadi aap lekhak hai historian hai tou itihas ko chupa nai sai kuch nahe ho ga sampurn itihas Jaan nai k liye Rajparivaar or randhawl ka vanish parichay padhe ...or kam sai kam apne bhaiyon ka dholi kah k apman na kare Rana Ji...Muglon k rajputana mai vivah sambandh k baad pada Damami Jodhpur mehrangadh ki itihas shakha dekhai ..dhanyvaad
ReplyDeleteRandhawal 100% shudh Rajparivaar k sadsyon ko banaya jaata tha Jo ki itihaas mai sanrakshit h ...aap haridwaar ki vanshavali mai dekh saktai hai..maharaja dhiraaj shahpura..Mewar darbar v kuch samay purv adarniy svargiy Shri Bhenro singh ji Shekhawat sahb nai pushkar shatriy maha sammelan mai 100% shudh rajput bataya hai mai ra udeahy ki c bhi tarha sai kuch sidh kar nai ka nahe h par ap Raj Damai ko dholi kah k samast rajputon ka apman na kare..Jai mata ji
ReplyDeleteVartmaan mai any Jaatiyan Jo bhi aap ko dhol Baja ti hui Nazar Aati hai us sai Raj Damai ya Randhawal ka koi Sarokar v Lena dena nahe h ....Kai pichdi jaatiyan apni rozi roti k liye Gali Gali ghumti h dhool ja bajati h WO ghumantu v pichdi jaatiyan h ..Randhawal or rajdamai ji Rajparivaar v Raj kary ka hissa Thai Jo sirf Yoodh k andar kaam aatai Thai. Vartmaan mai Kai parivaaron nai ab is ko vyavsay k roop mai Adhunik Roop sai karliya hai v samaan v Utkrishth ucchkoti ka Jeevan yaapan kar rahai h
ReplyDeleteकुछ भी लिखने के साथ उसका साबित करने का इतिहास भी बताओ कोन दूमं लड़की थी क्या नाम था कहां की थी मेहरानगढ़ मुजियाम मै सारा इतिहास पड़ा है आप करनी सिंह जी सै या Dr Mahendra Singh ji Tanwar sai sampark kar k शुद्धकरण करें. चन्दा भाटी जैसलमेर ले गया था राव डांगी को जिस को चहाद जी राठौर छुड़वा के लाए थे ओर डांगी जी को वहां दमामी बना दिया था 9 खुंटी मारवाड़ के धनी के लड़के को आप ने भिखारी बताया है ये समस्त राठौड़ राजपूतों का अपमान है आप इस को ठीक करे या अपने बूढ़े बुजुर्गों सै थोड़ा इतिहास का पता करो
ReplyDeleteसही है
Deleteये ठीक वैसा है जे सै प्रताप सिंह खिंची पीपा जी बन गए
ReplyDeleteजंभोजी पंवार बिश्नोई बन गए ओर राणा पुंजा जी मेवाड़ मै भील बन गए
जम्भैश्वर जम्भोजी तो अवतार थे
ReplyDeleteजांभोजी पंवार राजपूत के घर पैदा हुए थे मुक्ति धाम मुकाम मै इतिहास पढ़ो
Deleteपैप जी आप ने दमामी राजपूतों को ढोली बता दिया क्या बात हैं कोन से राजपूत हो आप लगता तो नही है माना ढोली कोई भी हों सकता हैं 36 कोम मै से जो ढोल बजाए वो ढोली पर राजपूत दमामी कभी ढोली नही हो ता वो राजा महाराजा के परिवार से हों ते है कोई सड़क छाप नही और आज जो इन राजदमामियो की हालत है वो राजपूताना की ही देन है ...अच्छी स्वामिभक्ति का सिला मिला है कृपया यदि शुद्ध राजपुत हो तो सुधार करो अपनी त्रुटि मैं और माफी मांगो ये समस्त राजपूताना का अपमान है नही तो कभी हमारे गांव मै संपर्क करो आप को पता चल जाए गा रण धवल राजपुत कोन हो ते है....लक्ष्य राज सिंह सोलंकी बड़ी आंतरोलि
ReplyDeleteबिल्कुल हुक्म सही बात है अगर यह राजपुत होते तो राजदमामी एक राजपुत जाति है यह जो समाज की दुर्दशा बनी हुई है यह राजपुतों कि ही देन है
Deleteहम खुद राज दमामी है जो एक राजपुत परिवार से ताल्लुक रखते हैं मेरी गोत्र दहिया है जो महाराज पदमराज दहिया ठिकाना पर्वतसर के परिवार से ताल्लुक रखते हैं महाराजा पद्मराज जो खुद केवाई माता के उपासक बन कर राजदमामी बने थे में उनका वंशज हु
ReplyDeleteहोकम नम्बर मिल सकता है
Deleteढोली जात कहा से उत्पन्न हुई और कैसे
ReplyDeleteकर लियो ब्याह डांगी सू, उताय्रो कर्जो माथे सू ।
ReplyDeleteजद तलवार निकली म्यान सू, धवलो डरग्यो मैना सू।।
______________________________________________
क्या आप जानते है ?
मारवाड़ नरेश राव रायपालजी के पांचवे पुत्र राव डांगी को जब जैसलमेर नरेश राव चाचकदेव जी अपहरण कर लेजाते है। तो जैसलमेर में राव डांगी का विवाह किसके साथ होता है।
राजपरिजन परिचय ग्रंथ के अनुसार मैना भाटी जो कि जैसलमेर नरेश राव चाचकदेव जी के रणधवल मोडाजी भाटी की पुत्री से । अब प्रश्न ये है कि आखिर मैंना भाटी ने विवाह किया क्यों ?
दंतकथा अनुसार राव डांगी का विवाह पहले से ही किशनगढ़ राज परिवार में हो चुका होता है। लेकिन फिर भी मैना भाटी ने विवाह स्वीकार किया ।
इसका उत्तर राव सोहनजी गढ़मंगा की पोथी में मिलता है। वास्तविकता ये है कि राव रायपालजी ने चांदाजी भाटी को कैद कर चारण कन्या से विवाह करा दिया था। और चांदा भाटी मोड़ाजी भाटी का पुत्र था। अर्थात मैना भाटी का भाई था। इसबात का बदला लेने के लिए मैना भाटी ने राव डांगी राठौड़ से विवाह किया।
मैना भाटी ( महाराजा केहरजी भाटी के वंशजों में से एक थी ) अपने भाई और पिता के भांति शस्त्र विद्या में कौशल थी। जब मारवाड़ नरेश राव छाड़ाजी के समय राव डांगी अपनी पत्नी मैना भाटी के साथ मारवाड़ पुनः लोटे, तब पूरे राजकीय ठाठ बाठ व संस्कारो के साथ मैना भाटी का गृह प्रवेश हुआ। और राव डांगी को सभा मे बुलाकर रणधवल की पदवी दी गई। इन्हें बुन्देलखण्ड में नटुआ ग्राम जागीर स्वरूप सोपा गया । इनके वंशज डांगी राठौड़ कहलाये। नटुआ में आज भी डांगी राठोड़ो का राज्य चलता है।
धूहड़ सूत रायपाल , तास सूत पंचम डांगी ।
ReplyDeleteचंद सूरज दे साख , तदे एक बाचा मांगी ।।
होय वंश राठौड़ , तिको कोई पलटे मोसूं ।
अचल गत्रढ़्ढ मरजाद , अरज हूं दाखू तोसूं ।।
कर परनाम तिलक कर , सवा लाख धन सोंपियो ।
थिर राख बात छांड़ान्त्रपत,पोलपात कर थर्पियों ।।
________________________________________
भावार्थ :-
जैसलमेर नरेश चाचकदेवजी ने चांदा भाटी का प्रतिशोध लेने के लिये राव रायपालजी के छठे पुत्र डांगी को पकड़ मंगाया और उसका विवाह जैसलमेर नरेश के रणधवल की लड़की मैना बब्बी भाटी से करवाया । इसके बाद अपना पोलपात बना लिया । काफी दिनों तक डांगी जैसलमेर में रहा फिर संवत 1327 में राव छाड़ाजी मारवाड़ कि गद्दी पर बैठते ही जैसलमेर पर चढ़ाई की और डांगी को छुड़ा लाये । फिर मेहवे में आकर डांगीजी को अपने राठौड़ कुल का पोलपात रहने को आग्रह किया । डांगीजी ने भी परिस्तिथि देख दमामी राजपूत बन गये । डांगीजी को छत्रपुर (बुंदेलखंड) में नटुआ ग्राम जागीर में दिया गया जो राजगढ़ के समीप है जहाँ आज भी इनके वंशज राजा की भांति रहते है ।
{ संदर्भ :- सेन्सर्स रिपोर्ट मारवाड़ पृष्ठ संख्या 365) और मारवाड़ का मूल इतिहास पृष्ठ संख्या 75 लेखक पंडित रामकर्ण आसोप, तथा बीकानेर का इतिहास लेखक कुंवर कन्हैयाजूदेव ऑफ़ चरखारी स्टेट }
प्रतिशोध उत्पन्न :-
एक समय माऊलजी नामक चारण (बरसड़ा खांप का) की पुत्री झुंमा ने प्रतिज्ञा की कि "मैं चारण जाति में विवाह नहीं करूंगी" । इस प्रण में उसकी आयु काफी बड़ गई , कई राजपूतों के गले पड़ी मगर किसी ने शादी नहीं की ।
जब मारवाड़ में रायपालजी के समय दुर्भिक्ष पड़ा तो कई ब्राह्मणों ने काल का मुख्य कारण इस कन्या का विवाह नहीं होना ही निश्चित किया । यह अफवाह राव रायपालजी के कान तक पहुँची । उन्ही दिनों अकस्मात चांदा भाटी (बुद्ध शाखा से - जैसलमेर का) जो कि मारवाड़ में डाका (लुटमार करना) मारा करता था, पकड़ा गया । तब राव रायपालजी ने झुंमा का विवाह उस चांदा भाटी को तंग कर अर्थात् रोहड़ कर दिया , जिसकी संतान रोहड़िया चारण है (देखो - सेंसर्स रिपोर्ट मारवाड़ सन् 1891 पृष्ठ संख्या 365)
निवारण :- राव राजपालजी ने चांदा भाटी को रोहड़ कर चारण कन्या के साथ विवाह किया था । इस बेजा हरकत से इसकी आत्मा को बड़ा दुःख हुआ । जैसलमेर से जब डांगी को छुड़ाकर राव छाड़ाजी ले आये , तो चांदा भी अवसर पाकर पुन: जैसलमेर भाग गया और अपने स्वामी राव चाचकदेवजी को जातिच्युक्त नहीं करने का आग्रह किया , मगर अन्य भाई सहमत नहीं हुये । अंत में राव चाचकदेव जी ने इनको अपना रणधवल बना लिया, इनका दूसरा विवाह राजघराने में करवाया गया फिर यह दमामी समाज में प्रविष्ट हो गये । यह धर्म से डिग अर्थात् बाहर होगये थे इसी कारण इनको भी डिगा (भाटी) नाम से दमामी समाज ने और अन्य जनता ने संबोधित किया । इन्ही चांदा भाटी से दो अलग अलग शाखा चली रोहड़िया चारण एवं डिगा दमामी।
वैसे तो भाटियों का खास रणधवल डग्गा नामक महारावल देवराज सिंह के समय बनाया गया, मगर चांदा भाटी कि नस्ल भी उसी में मिल गई जो चन्दावत डिगा कहलाती है । बब्बी भी इसी की प्रशाखा है जो बब्बी (नकारा) बजाने से हुई । इनकी संतान अजमेरा में श्रीचन्दोत कहलाती है । तथा रायपाल के पांचवें पुत्र मोहनसिंह का विवाह जैसलमेर में हुआ था इनकी संतान मुहणोत ओसवाल है।
संदर्भ :- राजस्थानी जातियों की खोज एवं सेंसर्स रिपोर्ट मारवाड़ सन् 1891 पृष्ठ संख्या 365 , मारवाड़ का मूल इतिहास पृष्ठ संख्या 75 लेखक पंडित रामकर्ण आसोप।
पेंटिंग :- रणधवल राजपुताना इंस्टाग्राम & फेसबुक ।
आप कहाँ से है आपका नम्बर मिल सकता है क्या
DeletePratapgarh arnod moheda
Delete9672272749l
पेंप सिंह आप ने केवल गूगल ज्ञान दिखा कर राजपूती को लजाया है डांगी जी जो 1 महाराजा के पुत्र थे उन को भूमि हीन बता कर समस्त राठौड़ कूल का अपमान किया है, कोई अंधा भी बता दे गा गूंगा बोल दे गा की राजा महाराजा के कई a सी संताने हो जा ती थी उन को दासी पुत्र कहा जा ता था , यदि आप राजपूत हो तो समझ गए हो गै ...ढोली नही कहा जा ता था कुछ ओछी जातियों ने राणा जिन की उपाधि थी और दमामी राजपूत कहे जा ते थे उन को बदनाम किया और उन की दुर्दशा के भी आप जे से लोग जिम्मेदार हो राजपरिवार के बलिदानी खून को आप ने मनोरंजन का साधन बना डाला और पूर्वजों का बलिदान को लाजाया वाह सा वाह .... चाटुकारों ने इतिहास मैं तोड़ मरोड़ कर खुद को आज भगवान बना डाला और ठाकर बने घूम रहे है ईश्वर सद्बुद्धि दे आप जे से लोगो को
ReplyDeleteहोकम सही कहा है मेरे पास पुराना इतिहास है जो राजाओ दुवारा लिका गया हैकि दमामी जाती भी राजपूत ही है कोई अलग नही है लेकिन ये तो जो मूर्क लोग है जो फालतू की अकवाह फेला रहे है नही तो मेरे पास आकर देखो में दिखाता हु
Deleteआप के संपर्क न दीजिए कहां बिराजना आप का
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद इतिहास को आगे लाना चाहिए
Sagar vidisha ke dangi thakuro ka itihas he kya
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