Saturday, 17 October 2015

3 - भगवान श्री राम से लेकर, राव शेयोजी [राव सिहाजी] कन्नौज [Kannauj] तक का इतिहास

भगवान श्री राम से लेकर, राव शेयोजी [राव सिहाजी] कन्नौज [Kannauj] तक का इतिहास


.........आपने पिछले अध्याय 2 में ब्रह्माजी से लेकर भगवान श्री राम तक का इतिहास पढ़ा अब उससे आगे का अध्याय 3 में पढ़िए भगवान श्री राम से लेकर,  राव शेयोजी [राव सिहाजी] कन्नौज [Kannauj] तक का इतिहास 
66 - दशरथ के चार पुत्र हुये - इस प्रकार भगवान श्री राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, इन चारोँ भाइयों का का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ हुआ था।
               01 - भगवान श्री राम
               02 – भरत
               03 – लक्ष्मण
               04 - शत्रुघ्न 

भरत के दो पुत्र थे -:
               01 - तार्क्ष
               02 - पुष्कर
लक्ष्मण के दो पुत्र थे –:
               01 - चित्रांगद
               02 - चन्द्रकेतु
शत्रुघ्न के क दो पुत्र थे –:
               01 - सुबाहु
               02 - शूरसेन
(मथुरा का नाम पहले शूरसेन था)
श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था।
भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं। इस संबंध में तीन कथाएं हैं:.............................
1 - पहली कथा :- वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।
2 - दूसरी कथा :- लोककथा अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्याप नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
3 - तीसरी कथा :- कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्योंफकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्त राधिकारी नहीं बन सकती थीं।
शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।
एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्यापन नहीं दिया। अपने भक्तए की बेइज्जलती पर गुस्साफए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्नग का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।
राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।
दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ मंद दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। 
लेकिन............
दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्होंतने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया।
तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था।
दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।
कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे। जनता के समक्ष शान्ता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है।
कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्यक में अकाल पड़ने से डरते थे।
कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से। ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता है।
ऋंग ऋषि - ऋंग ऋषि विभण्डक ऋषि तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र व कश्यप ऋषि के पौत्र बताये जाते हैं। । तथा महर्षि कश्यप, ब्रम्हा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे, महर्षि कश्यप ने ब्रम्हा के पुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया। ऋंग ऋषि का विवाह अंगदेश के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ जो कि वास्तव में दशरथ की पुत्री थीं।
अप्सरा उर्वशी - साहित्य और पुराण में उर्वशी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति रही है। स्वर्ग की इस अप्सरा की उत्पत्ति नारायण की जंघा से मानी जाती है। पद्मपुराण के अनुसार इनका जन्म कामदेव के उरु से हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुंदर अप्सरा थी।
67 - भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद राठौड़ वंश क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास - इस प्रकार है -
भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। [भगवान श्री राम का जन्म मनु की चालिसवीँ पिढी मेँ और इकतालिसवीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ।]भगवान श्री राम के दो पुत्र थे –: 
               01 - लव
               02 - कुश

- रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है।
- लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
- राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।
- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने - की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
68 – कुश - भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये।
69 - अतिथि - कुश के पुत्र अतिथि हुये। 
- लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
- राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।
- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे
- भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने - की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई
- देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
70 - अतिथि के पुत्र निषधन हुये।
71 - निषधन के पुत्र नभ हुये।
72 - नभ के पुत्र पुण्डरीक हुये।
73 - पुण्डरीक के पुत्र क्षेमन्धवा हुये।
74 - क्षेमन्धवा के पुत्र देवानीक हुये।
75 - देवानीक के पुत्र अहीनक हुये।
76 - अहीनक से रुरु हुये।
77 - रुरु से पारियात्र हुये।
78 - पारियात्र से दल हुये।
79 - दल से छल हुये।
80 - छल से उक्थ हुये।
81- उक्थ से वज्रनाभ हुये।
82 - वज्रनाभ से गण हुये।
83 - गण से व्युषिताश्व हुये।
84 - व्युषिताश्व से विश्वसह हुये।
85 - विश्वसह से हिरण्यनाभ हुये। 
86 - हिरण्यनाभ से पुष्य हुये।
87 - पुष्य से ध्रुवसंधि हुये।
88 - ध्रुवसंधि से सुदर्शन हुये।
89 - सुदर्शन से अग्रिवर्ण हुये।
90 - अग्रिवर्ण से पद्मवर्ण हुये।
91 - पद्मवर्ण से शीघ्र हुये।
92 - शीघ्र से मरु हुये।
93 - मरु से प्रयुश्रुत हुये।
94 - प्रयुश्रुत से उदावसु हुये।
95- उदावसु से नंदिवर्धन हुये।
96 - नंदिवर्धन से सकेतु हुये।
97 - सकेतु से देवरात हुये।
98 - देवरात से बृहदुक्थ हुये।
99 - बृहदुक्थ से महावीर्य हुये।
100 - महावीर्य से सुधृति हुये।
101 - सुधृति से धृष्टकेतु हुये।
102 - धृष्टकेतु से हर्यव हुये।
103 - हर्यव से मरु हुये।
104 - मरु से प्रतीन्धक हुये।
105 - प्रतीन्धक से कुतिरथ हुये।
106 - कुतिरथ से देवमीढ़ हुये।
107 - देवमीढ़ से विबुध हुये।
108 - विबुध से महाधृति हुये।
109 - महाधृति से कीर्तिरात हुये।
110 - कीर्तिरात से महारोमा हुये।
111 - महारोमा से स्वर्णरोमा हुये।
112 - स्वर्णरोमा से ह्रस्वरोमा हुये।
113 - ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ। 
114 - सीरध्वज
[
ध्यान रहे ........... ये “सीरध्वज” सिता के पिता जनक सीरध्वज से अलग है क्योंकि सीरध्वज नाम से अनेक और व्यक्ति हुए हैं।]
शल्य, माद्रा (मद्रदेश) के राजा जो पांडु के सगे साले और नकुल व सहदेव के मामा थे। परंतु महाभारत में इन्होंने पांडवों का साथ नहीं दिया और कर्ण के सारथी बन गए थे। कर्ण की मृत्यु पर युद्ध के अंतिम दिन इन्होंने कौरव सेना का नेतृत्व किया और उसी दिन युधिष्ठिर के हाथ मारे गए। इनकी बहन माद्री, कुंती की सौत थीं और पांडु के शव के साथ चिता पर जीवित भस्म हो गई थीं।

एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारत काल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व। इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। महाभारत के पश्चात अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सुमित्र हुए। 
सुमित्र के बाद का कोई इतिहास नहीं मिल रहा है मगर राजा राजा कोह्चंद से जो इतिहास मिल रहा है वो इस प्रकार है...........
राठौङ 5वीँ शताब्दी मेँ कनौज आये इससे पहले इनका निवास अयोध्या था। राठौङ वंश का निकास भगवान राम के पुत्र कुश से माना जाता है। जिस समय भारत मेँ बाहरी मुस्लिम आक्रमणकारी आये उस समय भारत मेँ राजपूतों के छह वंश और छतीस कुल का शासन चल रहा था जिस मेँ चार प्रमुख बङे हिन्दू राजपूत राजकुल थे-
     01 - दिल्ली तूअरोँ और चौहान का राज
     02 - कनौज राठौड़ो का राज
     03 - मेवाड़ गुहिलों का राज
     04 - अनहिलवाङ चावङा व सोलंकियो का राज

कनौज और राठौड़ :-
राजा कोह्चंद कनौज - राजा कोह्चंद ने सावण बदी पंचमी सम्वत 875 को कनौज नगर की नीव राखी थी।
राजा कोह्चंद इनके बाद के शासक ………………………..
115 - कोह्चंद
116 - मियाचंद
117 - सोभागचंद प्रथम
118 - दीपचंद
119 - सरेचंद
120 - सामचंद द्वितीय
121 - सोभागचंद
122 - अभेचंद
123 - इन्द्र बाबूजी
124 - करणजी
125 - तुगनाथजी
126 - भारिधजी
127- पुजजी –

राजा श्री पुंज केतरह पुत्र हुए थे -
01 - धर्मविम्भ -राजा श्री पुंज के पुत्र धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से ''दानेसरा'' नाम पड़ा है। (मारवाड़ में)
02 - भनूद - राजा श्री पुंज के पुत्र भनूद के वंसजों ने अभयपुरा नगर को बसाया जिसके कारणइनका नाम ''अभयपुरा'' या ''भनूद का'' नाम पड़ा है।
03 - वीरचन्द्र - राजा श्री पुंज के पुत्र वीरचन्द्र वीरचन्द्र दक्षिण में चला गया था और उसके वंसज ''कपोलिया'' (कुपालच्या) कहलाये है।
04 - विजय - राजा श्री पुंज के पुत्र अमर विजय के, यानि विजय के पुत्र अमर के वंसजों ने कोराह नगर बसाया जिसके कारण ''कोराह'' (कुरा) नाम पड़ा है।
05 - वनोद - राजा श्री पुंज के पुत्र सुजान वनोद का यानि विनोद के पुत्र सुजान वंसज जलखेड़ नामक जगह पर रहने से, जगह के नाम से ''जलखेङिया'' (जालखडिया) कहलाये है।
06 - पद्म - राजा श्री पुंज के पुत्र पद्म ने बोगीलाना नगर पर विजय प्राप्त की जिसके कारण ''बोगीलाना'' नाम पड़ा है।
07 -एहर - राजा श्री पुंज के पुत्र एहर के वंसज एहर [अहरवा या अरवा] कहलाये हैं।
08 - बरदेव - राजा श्री पुंज के पुत्र बरदेव ने पारक नगर बसाया जिस से इन के वंसज ''पारक'' (परेकुश) या ''बरदेवका'' कहलाये हैं।
09 - उग्रप्रभ - राजा श्री पुंज के पुत्र उग्रप्रभ को चंदरपालजी के नाम से भी जाना जाता है, उग्रप्रभ से राठोड़ों की ''चँदेल’’शाखा चली है।
10 - मुक्तमणि - राजा श्री पुंज के पुत्र मुक्तमणिजी बीर (बिरपुरा) नामक जगह पर रहने के कारण इनके वंसज ''बीर'' या ''बिरपुरा'' (बिरपुरा) कहलाये हैं।
11 - भरुत -राजा श्री पुंज के पुत्र भरुत भूरिऔ (जवत्रराय)
12 - अल्लू कुल -राजा श्री पुंज के पुत्र अल्लू कुल ने खैरुदा नगर बसाया जिसके कारण इन के वंसज ''खेरोदिया'' या ''खरुदा'' कहलाये हैं।
13 - चाँद -राजा श्री पुंज के पुत्र चाँदजी नें तारापुर, तेहर और बघलाना तीन नगर बसाये। पहला नगर तारापुर बसाया सो यह नाम पङा। (यह राज्य 1914 मेँ नष्ट हो गया) (किसी कारण वंस ये आधी साखा मानी जाती है)
ऊपर लिखित शाखाओं में से दानेसरा [दानेश्वरा] और चन्देल इन दो शाखाओं के राठौड़ पाए जाते हैं राजा श्री पुंज के दो पुत्रों धर्मविम्भ और उग्रप्रभ के वंसज राठौड़ कहलाये।
राजा श्री पुंजजी की दो रानियों का सामान्य प्रसव नहीं हो सका जिसके चलते पेट चीरक [राठ फाड़कर] जिन दो पुत्रों का जन्म हुवा वे राठा या राठौड़ कहलाये।
अर्थात धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा के राठौड़ कहलाये हैं,और उग्रप्रभके वंसज ‘’चँदेल’’ शाखा के राठौड़ कहलाये हैं।

जिस प्रकार एक शाखा से दूसरी शाखा निकलती रही है ठीक उसी तरह यंहां भी इस प्रकार समझें की राजा जयचंदजी से बहुत पीछे तक, राजा भारिधजी तक का वंश गहरवाल वंश और राजा श्री पुंजजी के पुत्रों से फिर साढ़े बारह शाखाएं आगे चली, जिन में से राजा श्री पुंज के पुत्र धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा] '' कहलाये हैं।औरधर्मविम्भ के पुत्र यशोविग्रहजी हुए थे। यशोविग्रहजी के पुत्र महीचंद्रजी हुए थे। महीचंद्रजी के पुत्र चन्द्रदेवजी हुए थे। चन्द्रदेवजी के पुत्र मदनपालजी उर्फ मदन चन्द्रजी हुए थे। मदनपालजी उर्फ मदन चन्द्रजी के पुत्र गोविन्द्रजी हुए थे।गोविन्द्रजी के पुत्र विजयचन्द्रजी हुए थे। विजयचन्द्रजी के पुत्र राजा जयचन्द जी हुए थे जो कन्नौज में राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक के रूप में जाना जाता है।
128 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
129- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता 
है।  
130 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
131- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव 
था। 
132 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
     01 - नयांअकेलीदेवी
     02 - गोसललदेवी
     03 - कुमारदेवी
     04 - वसंतादेवी

गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
133 - महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
134 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।

[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।] 

कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
       01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
      02 –वरदायीसेनजी - 
कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।  
      03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम] 
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ] 
गूगलदेवजी के दो पुत्र हुए-
    01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
    02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]

01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा, 
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी।
  • राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
02 - राजा कृष्णदेव - राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम]
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान समय में अलीराजपुर भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में सिथत एक जिला है।]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है] 
 

135 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।

136 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा 
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।

राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा ।  
वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं ।
[वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]



Home
peptogawas.com

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।

3 comments:

  1. धन्यवाद हुक्म महत्वपुर्ण जानकारी प्रदान करने हेतु🙏🙏

    ReplyDelete
  2. मान्यवर पेपसिंह राठोर्ड अपने अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई श्री राम पुत्र महाराज कुश के वंशवृक्ष के अंतिम राजा सुमित्र तक का वर्णन किया हैं उसके बाद कुशवंशी सुमित्र के कितने पुत्र थे । कोहचन्द जी किनके लड़के थे इनका वंश कौन था जब कुशवंशी सुमित्र जी के बाद का इतिहास ही नही पता तो कोहचन्द कुश वंश में कैसे माने जाएंगे ।।क्या कुशवंशी के कलियुग में अंतिम राजा सुमित्र के किसी पौत्र परपैत्र सरपौत्र राठौड़ नाम के पुत्र थे जिनके नाम पर राठौड़ वंश का नीव रखा गया ।या राठौड़ लव के वंश थे या भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न पुत्रों के वंशज थे बताने का कष्ट करें ।दिनेश कुमार सिंह कुशवाहा कैमूर बिहार

    ReplyDelete