चम्पावत राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खांपें - चम्पावत राठौड़चम्पावत राठौड़ - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव चांपाजी [चाँपोजी] के वंसज चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। राव चांपाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और राव वीरम देवजी के पड़ पोते थे। राव चाँपाजी [चाँपोजी] का जन्म रानी अखेरकंवर की कोख से हुवा था। राव चांपा जी राव रिडमल जी के पुत्र और राव जोधा जी के भाई थे। राव जोधाजी ने कापरड़ा और बनाड़ ठिकाना भाई बंट में चांपाजी को दिया था।
राव चाँपाजी के आठ पुत्र थे –
01 - शंकरदासजी
02 - राव भैरवदासजी
03 - सगतसिंह -
04 - रतनसिंह
05 - पंचायणजी
06 - भोजराजजी
07 - जगमालजी
08 - बनवीरजी
चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव चांपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज ।
ख्यात अनुसार चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
19 - राव विरमजी [बीरमजी] [1374-1383] - राव वीरामजी के पांच पुत्र थे -
01 - राव चुण्डाजी
02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर,
ख्यात अनुसार चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा,
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी।
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
- राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र।
- राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी
संवत 1272-1292)]
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
वाजन राठौड़ कहलाये हैं।
03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले
गए और वंहा के पहले राव बनें।
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
01 - राव दूहड़जी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
12 - राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
03 - राव बेहड़जी [बेहरजी] [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
04 - राव पीथड़जी [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
05 - राव जुगलजी [जुगैलजी] [- के वंसज जोगवत राठौड़]
06 - राव डालूजी [---------------------]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
08 - उनड़जी [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
09 - सिशपलजी [- के वंसज सीरवी राठौड़]
10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान] [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-
01 - कानपालजी -
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -
01 - राव जालणसीजी
02 - राव भीमकरण
03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए -
01 - राव छाडाजी
02 - राव भाखरसिंह
03 - राव डूंगरसिंह
16 - राव छाडाजी - राव छाडाजी [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए -
01 - राव तीड़ाजी
02 - राव खोखरजी
03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
04 - राव सिहमलजी
05 - राव रुद्रपालजी
06 - राव खीपसजी
07 - राव कान्हड़जी -
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं।
राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।
राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
01 - रावल मल्लीनाथजी - [मालानी के संस्थापक]
02 - राव जैतमलजी - [गढ़ सिवाना]
03 - राव विरमजी [बीरमजी]
04 - राव सोहड़जी - के वंसज सोहड़ राठौड़
01 - राव चुण्डाजी
02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर,
देचू, सोमेसर]
03 - जैसिंघजी [जयसिंहजी] - जैसिंघजी के वंसज जयसिहोत[जैसिंघोत] राठौड़
04 - बीजाजी - बीजावत राठौड़
05 - गोगादेवजी - गोगादेवजी के वंसज गोगादे राठौड़ [केतु , तेना, सेखाला]
20 - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] के पुत्र राव चूण्डाजी थे। राव चूण्डाजी;राव सलखाजी के पोते और राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे। मंडोर जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर है। मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। मंडोर दुर्ग 783 ई0 तक परिहार शासकों के अधिकार में रहा। इसके बाद नाड़ोल के चौहान शासक रामपाल ने मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। 1227 ई0 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतनिश ने मंडोर पर अधिकार कर लिया। यद्यपि परिहार शासकों ने तुरकी आक्रांताओं का डट कर सामना किया पर अंतत: मंडोर तुर्कों के हाथ चला गया। लेकिन तुरकी आक्रमणकारी मंडोर को लम्बे समय तक अपने अधिकार में नही रख सके एंव दुर्ग पर पुन: प्रतिहारों का अधिकार हो गया। 1294 ई0 में फिरोज खिलजी ने परिहारों को पराजित कर मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया, परंतु 1395 ई0 में परिहारों की इंदा शाखा ने दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया और मंडोर गढ़ परिहार राजाओं का होगया । सन् 1395 में चुंडाजी राठौड़ की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला था तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौड़ शासकों का राज हो गया था। राव चूण्डाजी [1394 -1423] ने मंडोर पर राठौड़ राज कायम किया था। राव चूण्डाजी एक महत्वाकांक्षी शासक था। उन्होंने आस-पास के कई प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 1396 ई0 में गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने मंडोर पर आक्रमण किया। एक वर्ष के निरंत्तर घेरे के उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अधिकार करने में सफलता नही मिली और उसे विवश होकर घेरा उठाना पड़ा। 1453 ई0 में राव जोधाजी ने मंडोर के शासक बनें उन्होंने मरवाड़ की राजधानी मंडोर से स्थानान्तरित करके जोधपुर बनायीं जिसके कारण मंडोर दुर्ग धीरे-धीरे वीरान होकर खंडहर में तब्दील हो गया। राव विरमजी [बीरमजी] के छोटे पुत्र राव चुंडाजी थे। राव वीरम देव जी की मृत्यु होने के बाद राव चुंडाजी की माता मांगलियानी इन्हें लेकर अपने धर्म भाई आल्हो जी बारठ के पास कालाऊ गाँव में लेकर आगई वहीं राव चुंडा जी का पालन पोसण हुआ तथा आल्हा जी ने इन्हें युद्ध कला में निपुण किया था। राव चुंडाजी बड़े होने पर मल्लीनाथ जी के पास आगये तब इन्हें सलेडी गाँव की जागीर मिली। राव चुंडाजी ने अपनी शक्ति बढाई तथा नागोर के पास चुंडासर गाँव बसाया और इसे अपना शक्ति केंद्र बना कर पहले मण्डोर को विजय किया और मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद नागोर के नवाब जलालखां खोखर पर हमला कर उसे मार कर नागोर पर अधिकार करलिया फिर फलोदी पर अधिकार करलिया और वहां शासन करने लगे। जब केलन भाटी ने मुल्तान के नवाब फिरोज से फोज की सहायता लेकर राव चुंडा को परास्त करने की सोची मगर यह उसके बस की बात नहीं thee अतः धोखे से राव चुंडा को संधि के लिये बुलाया तथा राव चुंडा पर हमला कर दिया राव चुंडा तथा उनके साथी नागोर की रक्षा करते हुए गोगालाव नामक स्थान पर विक्रम सम्वत 1475 बैसाख बदी1 (15मार्च1423) को वीरगति को प्राप्त हुए। राव चुंडाजी के साथ राणी समंदरकंवर सांखली सती हुई।
01 - राव रिड़मलजी
02 - राव कानाजी [1423-1424] - के वंसज कानावत राठौड़
03 - राव सताजी [1424-1427] - के वंसज सतावत राठौड़
04 - राव अरड़कमलजी - के वंसज अरड़कमलोत राठौड़
05 - राव अर्जनजी - के वंसज अरजनोत राठौड़
06 - राव बिजाजी - के वंसज बीजावत राठौड़
07 - राव हरचनदेवी - के वंसज हरचंदजी राठौड़
08 - राव लूम्बेजी - के वंसज लुम्बावत राठौड़
09 - राव भीमजी - के वंसज भीमौत राठौड़
10 - राव सेसमलजी - के वंसज सेसमालोत राठौड़
11 - राव रणधीरजी - के वंसज रणधीरोत राठौड़
12 - राव पूनांजी - के वंसज पुनावत राठौड़ [खुदीयास ,जूंडा ]
13 - राव शिवराजजी - के वंसज सीवराजोत राठौड़
14 – राव रामाजी [रामदेवजी]
15 - राजकुमारी हंसादेवी - राजकुमारी हंसादेवी की शादी उदयपुर, राजस्थान [मेवाड़] के
सिसोदिया महाराणा लखासिंह [लाखाजी] के साथ हुयी थी। लखासिंह [लाखाजी] मेवाड़ के
तीसरे महाराणा थे। जो क्षेत्रसिंह के बेटे और हमीरसिंह के पोते थे।
21 - राव रिड़मलजी [1427-1438] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पुत्र राव रणमलजी [राव रिङमालजी] के वंसज रिड़मलोत राठौड़ [रिड़मालोत] राठौड़ कहलाये। राव रणमलजी [राव रिङमालजी];राव विरमजी [बीरमजी] के पोते और राव सलखाजी के पड़पोते थे। [1427-1438] के चौबीस पुत्र थे-
01 - राव अखैराजजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अखैराजजी के वंसज बागड़ी [बगड़ी]
राठौड़ कहलाये हैं।
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके रावतसर , बीसासर , बिलमु , सिकरोड़ी आदि ठिकाने थे।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
[रानीसगांव, आउवा ]
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
कहलाये हैं।
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
कहलाये हैं।
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
जैतमालोत राठौड़ कहलाये हैं।
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
अलाय [बीकानेर में] ठिकाना था ।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका चोटिला, आउ, करनू, बरजानसर,बूंगड़ी आदि ठिकाने थे।
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मूंजासर, चाखु, भेड़, उदातठिकाने थे।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनके ठिकाने मूडी, काननों, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुर, कीतनोद, चांदसमा,
मुड़ाडो, जाजोलाई आदि थे।
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका अलाय मुख्य ठिकाना था।
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मुख्य ठीकाने [हरखावत], [नाथूसर]आदि थे।
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
कहलाये हैं। जो बीकानेर ठीकाने से सम्बन्ध रखतें हैं।
17 - वेराजी - राव रणमलजी के पुत्र राव वेराजी के वंसज वेरावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं।
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
कहलाये हैं।
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
कहलाये हैं।
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
कहलाये हैं।
22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - राव चांपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव चांपाजी [चाँपोजी] के वंसज चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। राव चांपाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और राव वीरम देवजी के पड़ पोते थे। राव चाँपाजी [चाँपोजी] का जन्म रानी अखेरकंवर की कोख से हुवा था। राव चांपा जी राव रिडमल जी के पुत्र और राव जोधा जी के भाई थे। राव जोधाजी ने कापरड़ा और बनाड़ ठिकाना भाई बंट में चांपाजी को दिया था। राव जोधाजी के संकट के दिनों में चांपाजी अपने भाई जोधाजी के साथ रहे थे तथा सिसोदीयों से मंडोर को छुटवाने में भी जोधा के साथ डटे रहे। कापरड़ा को जीतने के लिए चांपाजी ने जमकर युद्ध किया था और युद्ध में वे घायल हो गए थे। वि.सं.1522 में चांपाजी ने सुल्तान महमूद खिलजी के साथ युद्ध में जबरदस्त वीरता प्रदशित की। जब सीधलो के साथ वि.सं.1536 में मणीयारी के पास युद्ध हुआ, इस युद्ध में चांपाजी वीरगति को प्राप्त हुए। चांपावत राठोड़ों की मारवाड़ में महत्वपूरण भूमिका रही है। राज कायदे के तहत राव रणमल, राव जोधा, सूजा, गांगा, मालदेव और उदयसिंहजी के वंशज जो सब राजा के साथ भाईचारे यानी बराबरी का हक उनको मातहत करार देकर दरबार में दायें बायें तरफ बैठने का नियम चलाया । दाहिनी तरफ राव रणमल की संतान में से आउवा के चांपावतों को ओैर बांयी तरफ राव जोधाजी के वंशजों में से रींया के मेड़तियों का अव्वल नम्बर मुकर्रर किया । राजाजी की ढाल और तलवार रखने का काम खीची चैहानों को और चंवर करने का कार्य धांधल राठौड़ों को सौंपा । उस समय का प्रबंध आज तक चला आता है । समय-समय पर चम्पवातों ने अनेक युद्धों में भाग लेकर राजपूती शोर्य का परिचय दिया है। 22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
इनके मारवाड़ में काफी ताजीमी ठिकाने थे, जयपुर राज्य में गीजगढ़,नायला ,गोनेर ,और कानूता मेवाड़ में कथरिया ,मालोल व् गोरड़ीयो ,तथा कोटा में सारथल, ग्वालियर राज्य में वागली तथा ईडर राज्य में टिटोई ,चांदनी व मोई चांपावतों के ठिकाने थे। बल्लूजी चांपावत की विरता के गीत गए जातें हैं ।
राव चाँपाजी के पुत्र सगतसिंह के वंशज सगतसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाते है।
जोधपुर परगना में ठिकाना दास्तणीय इनकी जागीरी में था।
23 - सगतसिंह - सगतसिंह;रणमलजी [राव रिङमालजी] के पोते और रावचूण्डाजी [चुंडाजी] के पड़ पोते थे।
सगतसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
सगतसिंह - राव चांपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
राव चाँपाजी के आठ पुत्र थे –
01 - शंकरदासजी
02 - राव भैरवदासजी - [इनको उप नाम राव भैरूदास, भैरोंसिंह के नाम से भी से भी जाना
जाता है]
03 - सगतसिंह - चांपाजी के पुत्र सगतसिंह के वंशज सगतसिंहोत चांपावत कहलाते है।
जोधपुर परगने का दास्तणीय इनकी जागीरी में था।
04 - रतनसिंह
05 - पंचायणजी
06 - भोजराजजी
07 - जगमालजी
08 - बनवीरजी
राव चाँपाजी के पुत्रों, पोतों और पड़ पोतों से चांपावत राठौड़ों की 15 मुख्य उप शाखाएँ निकली हैं जो इस प्रकार है -
01 - सगतसिंहोत चांपावत राठौड़ -: राव चाँपाजी के पुत्र सगतसिंह के वंशज सगतसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाते है।
जोधपुर परगना में ठिकाना दास्तणीय इनकी जागीरी में था।
23 - सगतसिंह - सगतसिंह;रणमलजी [राव रिङमालजी] के पोते और रावचूण्डाजी [चुंडाजी] के पड़ पोते थे।
सगतसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
सगतसिंह - राव चांपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - जगमालोत चांपावत राठौड़ -:
जैसाजी के पुत्र जगमालजी के वंशज जगमालोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
जगमालजी - जगमालजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी के पड़ पोते थे।राव जैसाजी के पुत्र राव जगमालजी के वंशज जगमालोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
जगमालजी - जगमालजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी के पड़ पोते थे।राव जैसाजी के पुत्र राव जगमालजी के वंशज जगमालोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
जगमालोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
जगमालजी - जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - राव चांपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार जगमालोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पुत्र
राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव भैरवदासजी के
ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव जगमालजी - जगमालजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी के पड़ पोते थे।राव जैसाजी के पुत्र राव जगमालजी के वंशज जगमालोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
03 - हरभानोत चांपावत राठौड़ -:
जेतमालजी के पुत्र हरभाणजी के वंशज हरभानोत चांपावत राठौड़ कहलाये है।
हरभाणजी - हरभाणजी;राव जैसाजी के पोते और राव भैरवदासजी के पड़ पोते थे। जोधपुर परगने में मालगढ़ दो गाँवो का ठिकाना था। नवध [मेड़ता] व साकणीयों [सोजत] भी इनके ठिकाने थे।
हरभाणजी - हरभाणजी;राव जैसाजी के पोते और राव भैरवदासजी के पड़ पोते थे। जोधपुर परगने में मालगढ़ दो गाँवो का ठिकाना था। नवध [मेड़ता] व साकणीयों [सोजत] भी इनके ठिकाने थे।
हरभानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
हरभाणजी - जेतमालजी - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार हरभानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
ख्यात अनुसार हरभानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पुत्र
राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव भैरवदासजी के
ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव जेतमालजी - राव जैसाजी के पुत्र राव जेतमालजी थे ।
26 - हरभाणजी - राव जेतमालजी के पुत्र हरभाणजी के वंसज हरभानोत चांपावत राठौड़
25 - राव जेतमालजी - राव जैसाजी के पुत्र राव जेतमालजी थे ।
26 - हरभाणजी - राव जेतमालजी के पुत्र हरभाणजी के वंसज हरभानोत चांपावत राठौड़
कहलाये हैं। हरभाणजी; राव जैसाजी के पोते और राव भैरवदासजी के पड़ पोते थे।जोधपुर परगना में ठिकाना मालगढ़ था जिसमे दो गाँव थे। नवध [मेड़ता] व साकणीयों [सोजत] भी इनके ठिकाने थे।
04 - आईदानोत चांपावत राठौड़ -:
दलपतसिंह के दूसरे पुत्र आईदानजी के वंशज आईदानोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। आईदानजी - आईदानजी;गोपालदासजी के पोते और राव माण्डलजी [मांडणजी] के पड़ पोते
थे। इनके ठिकानें आडवा (सोजत ) इनका 14 गाँवो का मुख्या ठिकाना था। बीठोरों बड़ो [2गाँव] बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों [2गाँव] ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे। आईदानजी का जन्म 1618 में हुवा और ये 1662 काकनी के ठाकुर बने।
आईदानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
आईदानजी - दलपतसिंह [प्रथम] - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार आईदानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
04 - आईदानोत चांपावत राठौड़ -:
दलपतसिंह के दूसरे पुत्र आईदानजी के वंशज आईदानोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। आईदानजी - आईदानजी;गोपालदासजी के पोते और राव माण्डलजी [मांडणजी] के पड़ पोते
थे। इनके ठिकानें आडवा (सोजत ) इनका 14 गाँवो का मुख्या ठिकाना था। बीठोरों बड़ो [2गाँव] बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों [2गाँव] ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे। आईदानजी का जन्म 1618 में हुवा और ये 1662 काकनी के ठाकुर बने।
आईदानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
आईदानजी - दलपतसिंह [प्रथम] - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार आईदानोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी , सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं। गोपालदासजी के आठ पुत्र हुए-
01 - विठलदासजी
02 - दलपतसिंह
03 - भोपतजी [भूपतजी]
04 - बालूजी -
05 - राघवदासजी
06 - हरिदासजी
07 - हाथीसिंह
08 – खेतसिंह
27 - दलपतसिंह - दलपतसिंह [प्रथम] का जन्म 1596, में रांसीगांव के राव
गोपालदासजी [दासपन] के सबसे छोटे पुत्र के रूप में हुवा । दलपतसिंह रोहट के
पहले ठाकुर थे। दलपतसिंह को रोहट की जागीर 84 गांवों सहित मारवाड़ के
महाराजा गजसिंह से प्राप्त हुयी थी। दलपतसिंह ने अपने जीवनकाल के दौरान 84
से भी ज्यादा लड़ाइयों में भाग लिया था।दलपतसिंह की सात शादियां हुयी थी-
पहली शादी लवेरा के सुरतानसिंह भाटी की पुत्री जैसाकांवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी सोजत के हुलां प्रतापसिंह की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी कालक के महेशदासजी खंगारोत की पुत्री पूरकंवर के साथ हुयी थी।
चौथी शादी मकराना के मुकुन्ददासजी चौहान की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी थी।
पांचवीं शादी बड़गाव के प्रतापसिंह देवड़ा की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी थी।
छठी शादी सलारी के मानसिंह सोढा की पुत्री हसतीकंवर के साथ हुयी थी।
सातवीं शादी बावड़ी के भोपालसिंह भाटी की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
सातवीं शादी बावड़ी के भोपालसिंह भाटी की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
दलपतसिंह की मृत्यु 1665 में रोहट गांव में ही हुयी थी।
दलपतसिंह [प्रथम] के तीन पुत्र हुए-
01 - कल्याणदासजी
02 - आईदानजी [दूसरे पुत्र]
03 - सार्दुलसिंह
28 - आईदानजी - दलपतसिंह के दूसरे पुत्र आईदानजी के वंशज आईदानोत चांपावत राठौड़
कहलाये हैं। आईदानजी;गोपालदासजी के पोते और राव माण्डलजी [मांडणजी] के पड़ पोते
थे। इनके ठिकानें आडवा (सोजत ) इनका 14 गाँवो का मुख्या ठिकाना था। बीठोरों बड़ो
[2गाँव] बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों
[2गाँव] ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी
एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे। आईदानजी का जन्म 1618 में हुवा और ये 1662 काकनी
के ठाकुर बने।
आईदानजी की पांच शादियां हुयी थी-
28 - आईदानजी - दलपतसिंह के दूसरे पुत्र आईदानजी के वंशज आईदानोत चांपावत राठौड़
कहलाये हैं। आईदानजी;गोपालदासजी के पोते और राव माण्डलजी [मांडणजी] के पड़ पोते
थे। इनके ठिकानें आडवा (सोजत ) इनका 14 गाँवो का मुख्या ठिकाना था। बीठोरों बड़ो
[2गाँव] बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों
[2गाँव] ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी
एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे। आईदानजी का जन्म 1618 में हुवा और ये 1662 काकनी
के ठाकुर बने।
आईदानजी की पांच शादियां हुयी थी-
पहली शादी सलारी के राव बलुजी चौहान की पुत्री सहजकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी की हरिसिंह शेखावत की पुत्री ताजकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी प्रयागदासजी भाटी की पुत्री कासकंवर के साथ हुयी थी।
चौथी शादी लवेरा के राहुनाथजी की पुत्री फलककंवर के साथ हुयी थी।
पांचवीं शादी लवेरा के रघुनाथदासजी भाटी की पुत्री हीरकंवरके साथ हुयी थी।
इनके ठिकानें आडवा (सोजत ) इनका 14 गाँवो का मुख्या ठिकाना था । बीठोरों बड़ो [2
गाँव], बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों
[2गाँव], ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी
एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे ।
आईदानजी के आठ पुत्र हुए थे -
गाँव], बामसीण [2गाँव ], जाणीवानो [3गाँव],आहोर [जालोर 6 गाँवो] सथलाणों
[2गाँव], ढारी [2 गाँव] भैसवाडो जालोर [8 गाँव] जोधण [2 गाँव ] इनके अलावा भी
एक-एक गाँव के कई ठिकाने थे ।
आईदानजी के आठ पुत्र हुए थे -
01 - सुजानसिंह - [ सुजानसिंह का जन्म चौहान रानी सहजकंवर की कोख से]
सुजानसिंह के वंसज खारड़ा [खारदा], सिराणा, खेजड़ली और राजोद में रहते
हैं । सुजानसिंह 1674 में ख़ैबर की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए। सुजानसिंह के दो
पुत्र हुए-
पुत्र हुए-
01 - मुकुन्ददासजी
02 - रघुनाथदासजी
02 - सबलसिंह
03 - सांवलदासजी - सांवलदासजी की दिल्ली में 1678 में मृत्यु।
04 - सगतसिंह - चौथे पुत्र [ सगतसिंह का जन्म भाटी रानी हीरकंवर की कोख
से]
05 - रामसिंह - रामसिंह की दिल्ली में1679 में मृत्यु।
06 - तेजसिंह - [ तेजसिंह का जन्म भाटी रानी हीरकंवर की कोख से] तेजसिंह के वंसज
आउवा , बीथोड़ा , दिवंदी, बामसीन, बातो, जानिवारा, हर्जी [2 गांव], लाम्बिआ,
बादसो और भीवालिया आदि में रहतें है । तेजसिंह 1706 में दुनदा की लड़ाई में
वीरगति को प्राप्त हुए ।
आउवा , बीथोड़ा , दिवंदी, बामसीन, बातो, जानिवारा, हर्जी [2 गांव], लाम्बिआ,
बादसो और भीवालिया आदि में रहतें है । तेजसिंह 1706 में दुनदा की लड़ाई में
वीरगति को प्राप्त हुए ।
07 - भानसिंह
08 - जगन्नाथसिंह - [ जगन्नाथसिंह का जन्म भाटी रानी हीरकंवर की कोख से] इनके
ठिकानें10 गावों का ठिकाना आहोर [जिला जालोर में,प्राचीन राज्य जोधपुर]
05-विठलदासोत चांपावत राठौड़ -
ठिकानें10 गावों का ठिकाना आहोर [जिला जालोर में,प्राचीन राज्य जोधपुर]
05-विठलदासोत चांपावत राठौड़ -
गोपालदासजी के पुत्र विठलदासजी के वंसज विठलदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये है।
विठलदासजी - गोपालदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पद पोते थे। विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों के ठिकाने गांव जालोर परगना में ठिकाना दासपा [जोधपुर] में12गाँवो का ठिकाना।
विठलदासजी - गोपालदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पद पोते थे। विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों के ठिकाने गांव जालोर परगना में ठिकाना दासपा [जोधपुर] में12गाँवो का ठिकाना।
गोढवाड परगना में ठिकाना खीवाडा में 8 गाँवो का ठिकाना।
ठिकाना पोखरण [जोधपुर] में 110 गाँवो का ठिकाना ।
सोजत परगना में ठिकाना दूदोड में 4 गाँवो का ठिकाना ।
जालोर परगना में ठिकाना बाकरा 6 गाँवो का ठिकाना ।
जोधपुर परगना में ठिकाना रणसिंघगाँव 4 गाँवो का ठिकाना ।
ठिकाना हरिया डाणा 2 गाँवो का ठिकाना ।
फलोदी परगना में ठिकाना पीलवा [जोधपुर]पीलवा 4 गाँवो का ठिकाना ।
जयपुर राज्य मेंचंपावतों के गीजगढ़ ,गोनेर ,काणुता और नायला चार ठिकाने थे ।
चंपावतों के गीजगढ़ ,गोनेर ,कानोता [7गाँव] और नायला चार ठिकाने थे ।
इसके अलावा एक एक गांव वाले अन्य कई ठिकाने समादियो, बाघावास, सिरानो, सांठा, नोसर भी थे।
विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
विठलदासजी - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी , सुखबासनी, दाहोली
मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं। गोपालदासजी के आठ पुत्र हुए-
01 - विठलदासजी
02 - दलपतसिंह
03 - भोपतजी [भूपतजी]
04 - बालूजी -
05 - राघवदासजी
06 - हरिदासजी
07 - हाथीसिंह
08 – खेतसिंह
27- विठलदासजी - विठलदासजी की सात शादियां हुयी थी, जिसमें भीण्डर के भानजी
शक्तावत [शक्तिसिंगहोत] की पुत्री जामकंवर के साथ , सोजत के हलां राव दूदाजी की पुत्री
उदयकांवर के साथ, विठलदासजी 1658 में धौलपुर की लड़ाई में वीगति को प्राप्त हुए।
विठलदासजी1606 में रांसीगांव के राव बने बाद में1627 में रिन्सी के राव बने थे।
विठलदासजी के पन्दरह पुत्र थे जिसमें से पांच का कोई वंस नहीं चला बाकि दस का विवरण
मिलता है जो इस प्रकार है -
01 - पृथ्वीराजसिंह - [रानी उदयकांवर की कोख से जन्म] [4 गांव काठिकाना रिन्सी]
पृथ्वीराजसिंह काजन्म 1614 में हुवा था। पृथ्वीराजसिंह का पुत्र हुवा धनराजसिंह।
धनराजसिंह के तीन रानियों से छह पुत्र हुए थे -इन छह पुत्रों में से केवल दो पुत्र
अमरसिंह और अनोपसिंह का वंस आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - अमरसिंह - अमरसिंह के तीन रानियों से दस पुत्र हुए जिसमें से पांच का वंस
आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - मोखमसिंह - ठिकाना रिन्सी
02 - सूरजमलजी - जोधपुर के फलोदी परगना में नोसर गांव
03 - सूरतसिंह - जोधपुर के महाराजा बखतसिंह हरियधाना मिला
04 - शेरसिंह - के वंसज रातड़िया गांव में।
05 - बाघसिंह - के वंसज दिनोद गांव में।
02 - अनोपसिंह - अनोपसिंह के वंसज दिनोद और बामनोई में ।
02 - लखधीरजी - के वंसज खिंवाड़ा, दुदोर, समुजा और बासनी मुहसा में।
03 - जोगीदासजी - जोगीदासजी के वंसज दासपां, पोखरण गीजगढ में ।
04 - अजबसिंह - अजबसिंह के वंसज अजबसिंघोत बाकरा [13 गांव की जागीर]
जागीर, विट्ठलदासोत की उप शाखा
05 - देवीदासजी - देवीदासजी के वंसज पीलवा [4 गांव का ठिकाना], सांठा ,
कानोता [7 गांव का ठिकाना] और नायला में।
06 - जोधसिंह - जोधसिंह के वंसज खेजड़ली गांव में।
07 - शिवदानसिंह - शिवदानसिंह के वंसज सामरिया गांव में।
08 - सोनगजी - सोनगजी के वंसज चारदानी गांव में।
09 - भीवराजी - भीवराजी के वंसज भावी गांव में।
10 - अस्थानजी - अस्थानजी के वंसज सरेचा गांव में।
गोपालदासजी के पुत्र विठलदासजी के वंसज विठलदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये है। गोपालदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पद पोते थे।
06 - रायमलोत चांपावत राठौड़ -:
भीमराजजी के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
रायमलजी - रायमलजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी - [चाँपोजी] के पड़ पोते थे। रायमलोत चांपावत राठोड़ों का एक गांव का ठिकाना जोधपुर परगना में सिणला था।
रायमलोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
रायमलजी - भीमराजजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - रावचूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार रायमलोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
12 - बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ -:
राव गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली, बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे।
बल्लूदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
बालूजी - राव गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार बल्लूदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी, सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं।
राव गोपालदासजी की सात शादियां हुयी थी
पहली शादी संग्रामसिंह भाटी [जसवंतसिंघोत] की पुत्री रुक्मणकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी रामसिंह देवड़ा [बनेसिंगहोत] की पुत्री शार्दूलकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी बूंदी के राव भोजराजजी हाडा की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी जिस से
भोपत और राघवदास का जन्म हुवा था।
चौथी शादी नाडोल के भाकरसिंह सोनगरा [रायसिंघोत] की पुत्री हीरकंवर
पांचवीं शादी फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री विजयकंवर के साथ
हुयी थी,जिस से हरिदास , हाथीसिंह , खेतसिंह का जन्म हुवा था।
छठी शादी जोजावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी
थी,इसके एक पुत्र हुवा ।
सातवीं शादी बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री महाकंवर के
साथ हुयी थी।
राव गोपालदासजी के पांच पुत्री और ग्यारह पुत्र हुए जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु युवा
अवस्थ में ही हो गयी थी-
राव गोपालदासजी के पांच पुत्रियां और ग्यारह पुत्र थे -
01 - राव भोपतजी
02 - राघवदासजी - राघवदासजी का जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत1588 को राव
गोपालदासजी की तीसरी रानी जसकंवर की कोख से हुवा था जो राव भोजराजजी
हाडा की पुत्री थी। राघवदासजी मांडल की लड़ाई में किले के द्वार को तोड़ने के लिए
हाथी के सामने आगये और 18 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
03 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं।
04 - बल्लुजी - बल्लुजी का जन्म जेठ सुदी 5 सम्वत1591 को गोपालदासजी की सातवीं
रानी महाकंवर की कोख से हुवा था जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी
[मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव हरसोलाव में रहते हैं।
05 - हाथीसिंह - हाथीसिंह का जन्म आसोज बड़ी 12 सम्वत1594 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी।गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत
चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली,
बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत
राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है।
06 - विठलदासजी - विठलदासजी का जन्म चैत्र बड़ी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी
की सातवीं रानी महाकंवर की कोख से हुवा था, जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी
भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव, रिंसी, पोखरण, दासपां, गीजगढ़
आदि में रहतें हैं।
07 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।
08 - दलपतसिंह - गोपालदासजी के सबसे छोटे पुत्र दलपतसिंह थे,इनका जन्म कार्तिक
सुदी 15 सम्वत1596 को गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख से हुवा था
जो जावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की की पुत्री थी। इनके वंसज ठिकाना
रोहेट, आउवा आदि में रहतें हैं।
09 - रायमल - युवा अवस्था में मृत्यु
10 - रतनसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
11 - केसरीसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
12 - राजकुमारी दीपकंवर
13 - राजकुमारी चांदकँवर - [जन्म गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख
से]साथ हुवा था।
14 - राजकुमारी द्रौपदीकांवर - [जन्म गोपालदासजी की सातवीं रानी महाकंवर की कोख
से] साथ हुवा था।
15 - राजकुमारी धापकंवर
16 - राजकुमारी बनेकांवर
ठिकाना पोखरण [जोधपुर] में 110 गाँवो का ठिकाना ।
सोजत परगना में ठिकाना दूदोड में 4 गाँवो का ठिकाना ।
जालोर परगना में ठिकाना बाकरा 6 गाँवो का ठिकाना ।
जोधपुर परगना में ठिकाना रणसिंघगाँव 4 गाँवो का ठिकाना ।
ठिकाना हरिया डाणा 2 गाँवो का ठिकाना ।
फलोदी परगना में ठिकाना पीलवा [जोधपुर]पीलवा 4 गाँवो का ठिकाना ।
जयपुर राज्य मेंचंपावतों के गीजगढ़ ,गोनेर ,काणुता और नायला चार ठिकाने थे ।
चंपावतों के गीजगढ़ ,गोनेर ,कानोता [7गाँव] और नायला चार ठिकाने थे ।
इसके अलावा एक एक गांव वाले अन्य कई ठिकाने समादियो, बाघावास, सिरानो, सांठा, नोसर भी थे।
विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
विठलदासजी - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार विठलदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी , सुखबासनी, दाहोली
मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं। गोपालदासजी के आठ पुत्र हुए-
01 - विठलदासजी
02 - दलपतसिंह
03 - भोपतजी [भूपतजी]
04 - बालूजी -
05 - राघवदासजी
06 - हरिदासजी
07 - हाथीसिंह
08 – खेतसिंह
27- विठलदासजी - विठलदासजी की सात शादियां हुयी थी, जिसमें भीण्डर के भानजी
शक्तावत [शक्तिसिंगहोत] की पुत्री जामकंवर के साथ , सोजत के हलां राव दूदाजी की पुत्री
उदयकांवर के साथ, विठलदासजी 1658 में धौलपुर की लड़ाई में वीगति को प्राप्त हुए।
विठलदासजी1606 में रांसीगांव के राव बने बाद में1627 में रिन्सी के राव बने थे।
विठलदासजी के पन्दरह पुत्र थे जिसमें से पांच का कोई वंस नहीं चला बाकि दस का विवरण
मिलता है जो इस प्रकार है -
01 - पृथ्वीराजसिंह - [रानी उदयकांवर की कोख से जन्म] [4 गांव काठिकाना रिन्सी]
पृथ्वीराजसिंह काजन्म 1614 में हुवा था। पृथ्वीराजसिंह का पुत्र हुवा धनराजसिंह।
धनराजसिंह के तीन रानियों से छह पुत्र हुए थे -इन छह पुत्रों में से केवल दो पुत्र
अमरसिंह और अनोपसिंह का वंस आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - अमरसिंह - अमरसिंह के तीन रानियों से दस पुत्र हुए जिसमें से पांच का वंस
आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - मोखमसिंह - ठिकाना रिन्सी
02 - सूरजमलजी - जोधपुर के फलोदी परगना में नोसर गांव
03 - सूरतसिंह - जोधपुर के महाराजा बखतसिंह हरियधाना मिला
04 - शेरसिंह - के वंसज रातड़िया गांव में।
05 - बाघसिंह - के वंसज दिनोद गांव में।
02 - अनोपसिंह - अनोपसिंह के वंसज दिनोद और बामनोई में ।
02 - लखधीरजी - के वंसज खिंवाड़ा, दुदोर, समुजा और बासनी मुहसा में।
03 - जोगीदासजी - जोगीदासजी के वंसज दासपां, पोखरण गीजगढ में ।
04 - अजबसिंह - अजबसिंह के वंसज अजबसिंघोत बाकरा [13 गांव की जागीर]
जागीर, विट्ठलदासोत की उप शाखा
05 - देवीदासजी - देवीदासजी के वंसज पीलवा [4 गांव का ठिकाना], सांठा ,
कानोता [7 गांव का ठिकाना] और नायला में।
06 - जोधसिंह - जोधसिंह के वंसज खेजड़ली गांव में।
07 - शिवदानसिंह - शिवदानसिंह के वंसज सामरिया गांव में।
08 - सोनगजी - सोनगजी के वंसज चारदानी गांव में।
09 - भीवराजी - भीवराजी के वंसज भावी गांव में।
10 - अस्थानजी - अस्थानजी के वंसज सरेचा गांव में।
गोपालदासजी के पुत्र विठलदासजी के वंसज विठलदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये है। गोपालदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पद पोते थे।
06 - रायमलोत चांपावत राठौड़ -:
भीमराजजी के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
रायमलजी - रायमलजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी - [चाँपोजी] के पड़ पोते थे। रायमलोत चांपावत राठोड़ों का एक गांव का ठिकाना जोधपुर परगना में सिणला था।
रायमलोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
रायमलजी - भीमराजजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - रावचूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार रायमलोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
25 - राव भैरवदासजी - [1466-1520] - राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पुत्र राव
भैरवदासजी थे। भैरवदासजी ठिकाना कापरड़ा के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन
का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी – [रणसिंघगाँव 1520-1541]
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - भीमराजजी - राव भैरवदासजी के पुत्र भीमराजजी जन्म 1483 में हुवा था।
भीमराजजी को ठिकाना बिनासर मिला था। भीमराजजी के पुत्र हुए रायमलजी।
25 - रायमलजी - भीमराजजी के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।
रायमलजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी - [चाँपोजी] के पड़ पोते थे।
रायमलजी; राव भैरवदासजी के पोते और राव चाँपाजी - [चाँपोजी] के पड़ पोते थे।
07 - रामसिंहोत चांपावत राठौड़ -:
राव भैरवदासजी [कापरड़ा] के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह - रामसिंह; राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पोते और रणमलजी [राव रिङमालजी] के पड़ पोते थे।
रामसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
रामसिंह - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - रावचूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार रामसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी कापरड़ा [1466-1520] - राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पुत्र राव
भैरवदासजी थे। भैरवदासजी ठिकाना कापरड़ा के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का
ब्यौरा इस प्रकार हैं -
भैरवदासजी थे। भैरवदासजी ठिकाना कापरड़ा के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का
ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी – [रणसिंघगाँव 1520-1541]
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 -रामसिंह - राव भैरवदासजी [कापरड़ा] के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह; राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पोते और रणमलजी [राव रिङमालजी] के पड़ पोते थे। रामसिंह का जन्म 1485 ई. में हुवा था तथा रामसिंह ठिकाना लोद्राऊ मिला जिसमे दो गांव थे। रामसिंह ने 1561 में मेड़ता के युद्ध में वीरगति पायी। इनके ठिकाने गांव जालोर परगना में देवकी ,चोराऊ,थलवाड ,मोदरा, मांकणी, लोद्राऊ,लुहर ,सकराणी, जेरसीण खामपुर थे।राव भैरवदासजी रामसिंहोत चांपावत राठौड़ [कापरड़ा] के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह; राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पोते और रणमलजी [राव रिङमालजी] के पड़ पोते थे। रामसिंह के पुत्र हुए छत्रसिंह ।
25 - छत्रसिंह - छत्रसिंह के दो पुत्र हुए -
01 - कल्याणदासजी
02 - भगवानदासजी
08 - अजबसिंघोत चांपावत राठौड़ -:
विठलदासजी के पुत्र अजबसिंह के वंसज अजबसिंघोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। विठलदासोत चांपावत राठौड़ की उप शाखा अजबसिंघोत चांपावत राठौड़ है।अजबसिंह;गोपालदासजी के पोते और मांडणजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव जागीर बाकरा था जिसमें 13 गांव थे।
अजबसिंघोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
अजबसिंह - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार अजबसिंघोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी , सुखबासनी, दाहोली
मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं। गोपालदासजी के आठ पुत्र हुए-
01 - विठलदासजी
02 - दलपतसिंह
03 - भोपतजी [भूपतजी]
04 - बालूजी -
05 - राघवदासजी
06 - हरिदासजी
07 - हाथीसिंह
08 – खेतसिंह
27- विठलदासजी - विठलदासजी की सात शादियां हुयी थी, जिसमें भीण्डर के भानजी शक्तावत [शक्तिसिंगहोत] की पुत्री जामकंवर के साथ , सोजत के हलां राव दूदाजी की पुत्री
उदयकांवर के साथ, विठलदासजी 1658 में धौलपुर की लड़ाई में वीगति को प्राप्त हुए।
विठलदासजी1606 में रांसीगांव के राव बने बाद में1627 में रिन्सी के राव बने थे।
विठलदासजी के पन्दरह पुत्र थे जिसमें से पांच का कोई वंस नहीं चला बाकि दस का विवरण
मिलता है जो इस प्रकार है -
01 - पृथ्वीराजसिंह - [रानी उदयकांवर की कोख से जन्म] [4 गांव काठिकाना रिन्सी]
पृथ्वीराजसिंह काजन्म 1614 में हुवा था। पृथ्वीराजसिंह का पुत्र हुवा धनराजसिंह।
धनराजसिंह के तीन रानियों से छह पुत्र हुए थे -इन छह पुत्रों में से केवल दो पुत्र
अमरसिंह और अनोपसिंह का वंस आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - अमरसिंह - अमरसिंह के तीन रानियों से दस पुत्र हुए जिसमें से पांच का वंस
आगे बढ़ा जिसका विवरण इसप्रकार है -
01 - मोखमसिंह - ठिकाना रिन्सी
02 - सूरजमलजी - जोधपुर के फलोदी परगना में नोसर गांव
03 - सूरतसिंह - जोधपुर के महाराजा बखतसिंह हरियधाना मिला
04 - शेरसिंह - के वंसज रातड़िया गांव में।
05 - बाघसिंह - के वंसज दिनोद गांव में।
02 - अनोपसिंह - अनोपसिंह के वंसज दिनोद और बामनोई में ।
02 - लखधीरजी - के वंसज खिंवाड़ा, दुदोर, समुजा और बासनी मुहसा में।
03 - जोगीदासजी - जोगीदासजी के वंसज दासपां, पोखरण गीजगढ में ।
04 - अजबसिंह - अजबसिंह के वंसज अजबसिंघोत बाकरा [13 गांव की जागीर] जागीर,
विट्ठलदासोत की उप शाखा
05 - देवीदासजी - देवीदासजी के वंसज पीलवा [4 गांव का ठिकाना], सांठा , कानोता [7 गांव का ठिकाना] और नायला में।
06 - जोधसिंह - जोधसिंह के वंसज खेजड़ली गांव में।
07 - शिवदानसिंह - शिवदानसिंह के वंसज सामरिया गांव में।
08 - सोनगजी - सोनगजी के वंसज चारदानी गांव में।
09 - भीवराजी - भीवराजी के वंसज भावी गांव में।
10 - अस्थानजी - अस्थानजी के वंसज सरेचा गांव में।
28 - अजबसिंह - [1658 से 1681] अजबसिंह के वंसज
अजबसिंघोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। विठलदासोत चांपावत राठौड़ की उप शाखा अजबसिंघोत चांपावत राठौड़ है।अजबसिंह;गोपालदासजी के पोते और मांडणजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव जागीर बाकरा था जिसमें 13 गांव थे। अजबसिंह का जन्म लगभग 1620 के आसपास हुवा बताया जाता है। अजबसिंह को जोधपुर सेना का प्रमुख नियुक्त किया गया था। अजबसिंह मुगल सेना के साथ बहादुरी से लड़ते हुए पाली जिले के डीगारना गांव के 1681 में पास वीरगति को प्राप्त हुए। अजबसिंह की दो शादियां हुयी थी -
पहली शादी प्रतापगढ़ के राघोदासजी सिसोदिया [गोविन्ददासोत] की पुत्री चांदकँवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी लवेरा के रघुनाथदासजी भाटी [सुरतानोत] की पुत्री किशनकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी लवेरा के रघुनाथदासजी भाटी [सुरतानोत] की पुत्री किशनकंवर के साथ हुयी थी।
अजबसिंह के दो पुत्र हुए सगतसिंह उर्फ शक्तिसिंह और अनोपसिंह -
01 - सगतसिंह उर्फ शक्तिसिंह - [जन्म सिसोदिया रानी चांदकँवर की कोख से] सगतसिंह उर्फ
शक्तिसिंह को अपने पिता की गद्दी बाकरा 1681 में मिली थी। जोधपुर के महाराजा
अजित सिंह ने ,अपने पिता की अच्छी सेवा करने के लिए इनाम के तौर पर 1711 में
सगतसिंह को अपनी सेवा में दुबारा रखा और उनके वंसज लम्बे समय तक महाराजा
अजित सिंह की से करते रहे । सगतसिंह के तीन पुत्र हुए -
01 - लालसिंह - सगतसिंह के पुत्र हुए लालसिंह
लालसिंह के पुत्र हुए नाथूसिंह
नाथूसिंह के पुत्र हुए मोहकमसिंह
मोहकमसिंह - मोहकमसिंह जोधपुर के महाराजा मानसिंह के पक्ष में
लड़ते हुए 1803 में जालोर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
मोहकमसिंह के दो पुत्र हुए-
01 - जवानसिंह
02 - फतेह सिंह
जवानसिंह - जवानसिंह को जोधपुर के महाराजा मान सिंह ने जोलोर
02 - फतेह सिंह
जवानसिंह - जवानसिंह को जोधपुर के महाराजा मान सिंह ने जोलोर
परगना प्राचीन राज्य जोधपुर में एक गांव का ठिकाना पुनासर और
साथ में 5000 रुपये दिए थे। जवानसिंह के दो पुत्र हुए-
01 - चतरसिंह - ठिकाना पूनासर .
02 - सोभागसिंह
02 - सोभागसिंह
फतेह सिंह - फतेहसिंह को को जोधपुर के महाराजा मान सिंह ने
नागौर परगना, जोधपुर में दो गांवों का ठिकाना खोबरा और साथ में
4000 रुपये दिए थे। फतेहसिंह के दो पुत्र हुए-
01 - पहाड़सिंह - [ठिकाना खोबरा]
02 - दलपतसिंह - दलपतसिंह के एक पुत्री हुयी उनादेकंवर ,
02 - दलपतसिंह - दलपतसिंह के एक पुत्री हुयी उनादेकंवर ,
जिसकी शादी संखवास के शंभूदानजी चौहान के साथ हुयी थी।
उनादेकंवर 1817 में सती हो गयी जिन को सती के रूप में
पूजा की जाती है।
02 - कुशलसिंह
03 - कीरतसिंह
02 - अनोपसिंह - [जन्म भाटी रानी किशनकंवर की कोख से] अनोपसिंह को ठिकाना बाट [Bata ]मिला था।
09 - गोयंददासोत चांपावत राठौड़ -:
नेतसिंह के पुत्र गोविंददासजी के वंसज गोयंददासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। गोविंददासजी; कल्याणदासजी के पोते और छत्रसिंह के पड़ पोते थे।गोड़वाड परगना में इनका ठिकाना खुडालो [2गाँव], भेटवाड़ा [2गाँव], आदि थे।
गोयंददासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
गोविंददासजी - नेतसिंह - कल्याणदासजी - छत्रसिंह - रामसिंह - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार गोयंददासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी कापरड़ा [1466-1520] - राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पुत्र राव
भैरवदासजी थे। भैरवदासजी ठिकाना कापरड़ा के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का
ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी – [रणसिंघगाँव 1520-1541]
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 -रामसिंह - राव भैरवदासजी [कापरड़ा] के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह; राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पोते और रणमलजी [राव रिङमालजी] के पड़ पोते थे। रामसिंह का जन्म 1485 ई. में हुवा था तथा रामसिंह ठिकाना लोद्राऊ मिला जिसमे दो गांव थे। रामसिंह ने 1561 में मेड़ता के युद्ध में वीरगति पायी। इनके ठिकाने गांव जालोर परगना में देवकी ,चोराऊ,थलवाड ,मोदरा, मांकणी, लोद्राऊ,लुहर ,सकराणी, जेरसीण खामपुर थे।राव भैरवदासजी रामसिंहोत चांपावत राठौड़ [कापरड़ा] के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह; राव चाँपाजी [चाँपोजी] के पोते और रणमलजी [राव रिङमालजी] के पड़ पोते थे। रामसिंह के पुत्र हुए छत्रसिंह ।
25 - छत्रसिंह - छत्रसिंह के दो पुत्र हुए -
01 - कल्याणदासजी
02 - भगवानदासजी
26 - कल्याणदासजी - छत्रसिंह के पुत्र कल्याणदासजी को 1605,में ठिकाना लोद्राऊ मिला था। कल्याणदासजी लोद्राऊ के ठाकुर बने। 1605 में, मांडवी के युद्ध में वीरगति पायी।
27 - नेतसिंह - कल्याणदासजी के पुत्र नेतसिंह थे। नेतसिंह की मृत्यु1624 में हाजीपुर में हुयी थी। नेतसिंह के दो पुत्र पुत्र हुए –
01 - गोविंददासजी
02 - सुजानसिंह
28 - गोविंददासजी - गोविंददासजी के वंसज गोयंददासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने खुडालो [2 गाँव ]भेटवाड़ा [2 गाँव ] गोड़वाड परगने के ठिकाने थे। नेतसिंह के पुत्र गोविंददासजी के दो पुत्र हुए-
01- गोकुलदासजी
02 - मोहकमसिंह -
29 - गोकुलदासजी - [ठिकाना [लोद्राऊ -1624] गोविंददासजी के पुत्र गोकुलदासजी थे। जब मारवाड़ दिल्ली के बादशाह के अधीन था तब लोद्राऊ की जागीर को बादशाह नेजब्त कर लिया था। बाद में 1707 में जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह से जालोर परगना में एक गांव की जागीर देवकी [Deoki] और साथ में एक हजार रुपये मिले थे। गोकुलदासजी के दो पुत्र हुए-
01 - देवीसिंह
02 - अनोपसिंह
30 - देवीसिंह -गोकुलदासजी के पुत्र देवीसिंह के पुत्र हुए जासकरणसिंह;
जासकरणसिंह के पुत्र हुए आईदानसिंह;
आईदानसिंह के पुत्र हुए धनराजसिंह;
धनराजसिंह के पुत्र हुए हिन्दुसिंह ;
हिन्दुसिंह के पुत्र हुए रामसिंह;
रामसिंह के पुत्र हुए सार्दुलसिंह;
30 - अनोपसिंह -गोकुलदासजी के पुत्र अनोपसिंह के पुत्र हुए हरीकिशनसिंह;
हरीकिशनसिंह के पुत्र हुए जवानसिंह;
जवानसिंह के पुत्र हुए दुर्जनसिंह;
10 - किलाणदासोत चांपावत राठौड़ -:
दलपतजी के पुत्र किलाणदासजी के वंशज किलाणदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव जोधपुर परगना में भालेलाव एक गाँव का ठिकाना था।आईदानोत चांपावत राठौड़ के पुरूसा आईदानजी और किलाणदासोत चांपावत राठौड़ के पुरूसा किलाणदासजी सेज भाई थे ।
किलाणदासोत चांपावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
किलाणदासजी - दलपतसिंह [प्रथम] - गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार किलाणदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी , सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं। गोपालदासजी के आठ पुत्र हुए-
01 - विठलदासजी
02 - दलपतसिंह
03 - भोपतजी [भूपतजी]
04 - बालूजी -
05 - राघवदासजी
06 - हरिदासजी
07 - हाथीसिंह
08 – खेतसिंह
27 - दलपतसिंह - दलपतसिंह [प्रथम] का जन्म 1596, में रांसीगांव के राव
गोपालदासजी [दासपन] के सबसे छोटे पुत्र के रूप में हुवा । दलपतसिंह रोहट के
पहले ठाकुर थे। दलपतसिंह को रोहट की जागीर 84 गांवों सहित मारवाड़ के
महाराजा गजसिंह से प्राप्त हुयी थी। दलपतसिंह ने अपने जीवनकाल के दौरान 84
से भी ज्यादा लड़ाइयों में भाग लिया था।दलपतसिंह की सात शादियां हुयी थी-
पहली शादी लवेरा के सुरतानसिंह भाटी की पुत्री जैसाकांवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी सोजत के हुलां प्रतापसिंह की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी कालक के महेशदासजी खंगारोत की पुत्री पूरकंवर के साथ हुयी थी।
चौथी शादी मकराना के मुकुन्ददासजी चौहान की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी थी।
पांचवीं शादी बड़गाव के प्रतापसिंह देवड़ा की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी थी।
छठी शादी सलारी के मानसिंह सोढा की पुत्री हसतीकंवर के साथ हुयी थी।
सातवीं शादी बावड़ी के भोपालसिंह भाटी की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
सातवीं शादी बावड़ी के भोपालसिंह भाटी की पुत्री रतनकंवर के साथ हुयी थी।
दलपतसिंह की मृत्यु 1665 में रोहट गांव में ही हुयी थी।
दलपतसिंह [प्रथम] के तीन पुत्र हुए-
01 - कल्याणदासजी
02 - आईदानजी [दूसरे पुत्र]
03 - सार्दुलसिंह
आईदानजी [दूसरे पुत्र] - दलपतसिंह, के पुत्र आईदानसिंह के वंसज आडणोत
चांपावत राठौड़, कहलाये है। इनके ठिकाने गांव आऊवा[14गाँव], सोजत परगना
[जोधपुर], बांटो, लाम्बिया, रोहेट , बिटोरा, आहो, भैसवाड़ा, कांकाणी, बामसीन]
सार्दुलसिंह - दलपतसिंह के तीसरे पुत्र सार्दुलसिंह थे।
28 - कल्याणदासजी - दलपतजी के पुत्र किलाणदासजी के वंशज किलाणदासोत चांपावत
राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव जोधपुर परगना में भालेलाव एक गाँव का ठिकाना था।
11 - भोपतोत चांपावत राठौड़ -:
राव गोपालदासजी के पुत्र भोपतजी [भूपतजी] के वंशज भोपतोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। भोपतजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पद पोते थे। इनके ठिकाने गांव खाटू बड़ी, पीरोजपुरो [फिरोजपुर], रामड़ावास , ईदीया,चुटीसरो ,एवाद डाभ ,पालोट जाखेडो,अड़वड़,आगूतो,सुनारी ,मंडाग़णा ,वाटेलो ,ओरीठ ,बरनेल ,चाउ ,रामड़ाबास खुर्द, दुजार,,कान्याडो आदी एक - एक गाँव के ठिकाने थे।
भोपतोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
भोपतजी [भूपतजी] - राव गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार भोपतोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी, सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं।
राव गोपालदासजी की सात शादियां हुयी थी
पहली शादी संग्रामसिंह भाटी [जसवंतसिंघोत] की पुत्री रुक्मणकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी रामसिंह देवड़ा [बनेसिंगहोत] की पुत्री शार्दूलकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी बूंदी के राव भोजराजजी हाडा की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी जिस से
भोपत और राघवदास का जन्म हुवा था।
चौथी शादी नाडोल के भाकरसिंह सोनगरा [रायसिंघोत] की पुत्री हीरकंवर
पांचवीं शादी फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री विजयकंवर के साथ
हुयी थी,जिस से हरिदास , हाथीसिंह , खेतसिंह का जन्म हुवा था।
छठी शादी जोजावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी
थी,इसके एक पुत्र हुवा ।
सातवीं शादी बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री महाकंवर के
साथ हुयी थी।
राव गोपालदासजी के पांच पुत्री और ग्यारह पुत्र हुए जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु युवा
अवस्थ में ही हो गयी थी-
राव गोपालदासजी के पांच पुत्रियां और ग्यारह पुत्र थे -
01 - राव भोपतजी
02 - राघवदासजी - राघवदासजी का जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत1588 को राव
गोपालदासजी की तीसरी रानी जसकंवर की कोख से हुवा था जो राव भोजराजजी
हाडा की पुत्री थी। राघवदासजी मांडल की लड़ाई में किले के द्वार को तोड़ने के लिए
हाथी के सामने आगये और 18 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
03 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं।
04 - बल्लुजी - बल्लुजी का जन्म जेठ सुदी 5 सम्वत1591 को गोपालदासजी की सातवीं
रानी महाकंवर की कोख से हुवा था जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी
[मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव हरसोलाव में रहते हैं।
05 - हाथीसिंह - हाथीसिंह का जन्म आसोज बड़ी 12 सम्वत1594 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी।गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत
चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली,
बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत
राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है।
06 - विठलदासजी - विठलदासजी का जन्म चैत्र बड़ी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी
की सातवीं रानी महाकंवर की कोख से हुवा था, जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी
भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव, रिंसी, पोखरण, दासपां, गीजगढ़
आदि में रहतें हैं।
07 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।
08 - दलपतसिंह - गोपालदासजी के सबसे छोटे पुत्र दलपतसिंह थे,इनका जन्म कार्तिक
सुदी 15 सम्वत1596 को गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख से हुवा था
जो जावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की की पुत्री थी। इनके वंसज ठिकाना
रोहेट, आउवा आदि में रहतें हैं।
09 - रायमल - युवा अवस्था में मृत्यु
10 - रतनसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
11 - केसरीसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
12 - राजकुमारी दीपकंवर
13 - राजकुमारी चांदकँवर - [जन्म गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख
से]साथ हुवा था।
14 - राजकुमारी द्रौपदीकांवर - [जन्म गोपालदासजी की सातवीं रानी महाकंवर की कोख
से] साथ हुवा था।
15 - राजकुमारी धापकंवर
16 - राजकुमारी बनेकांवर
27 - राव भोपतजी - राव भोपतजी खाटू बड़ी के राव थे। राव भोपतजी का जन्म मंगसिर सुदी 15 पूर्णिमा सम्वत 1583 को [1640 ई.] को हुवा था। राव भोपतजी की छह शादियां हुयी थी। जिनमें -
पहली शादी राजसिंह की पुत्री प्रतापकंवर [बोदीजी] के साथ हुयी थी थी।
दूसरी शादी ठिकाना राखी [जोधपुर] के शिवसिंह चौहान [महीकरणोत] की पुत्री रुक्मणीकँवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी ठिकाना रामपुरा के भैरवदासजी भाटी [दुर्जनसिंघोत] की पुत्री प्रभाकंवर के साथ हुयी थी।
चौथी शादी लावरी कल्याणसिंह सौलंकी [ईसरीसिंघोत] की पुत्री मैनाकँवर के साथ हुयी थी।
पांचवीं शादी ठिकाना जाब के सांवतसिंह चौहान [बालुओत] की पुत्री चन्द्रकंवर के साथ हुयी थी।
छठी शादी ठिकाना दांतरे के भानसिंह देवड़ा [सबरावत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी थी। इन के ठिकाने गांव खाटू [बड़ी खाटू], फ़िरोज़पुर, रामड़ावास, इंडिया, अरवाद, अगुतो आदि। राव भोपतजी 1624 में हाजीपुर की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए।
राव भोपतजी के एक पुत्री और नौ पुत्र थे -
01 - अखेराजजी - अखेराजजी का जन्म राव भोपतजी की पहली रानी बोदीजी प्रतापकंवर की कोख से हुवा था। अखेराजजी "मतीरे की राड़" [मतीरे की लड़ाई] के दौरान 1642 में वीरगति को प्राप्त हुये थे। बात उस समय की है कि, जब बीकानेर रियासत का सीलवा गांव ओैर नागौर रियासत का जाखणियां गांव जो की एक दूसरे के सिवँजोड़ [समानांतर] स्थित थे। यह दोनों गांव नागौर रियासत और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा थी। बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी। एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी। उस पर एक मतीरा [तरबूज] लग गया। एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है। उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में “मतीरे की राड़” के नाम से जाना जाता है। नागौर और बीकानेर की रियासतों के मध्य ‘मतीरे’ को लेकर झगड़ा हो गया और यह झगड़ा युद्ध में तब्दील हो गया। इस युद्ध में नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया जबकि बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था। उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह थे। बीकानेर के विरुद्ध राव अमरसिंह के पक्ष में "मतीरे की राड़" [मतीरे की लड़ाई] में लड़ते हुए अखेराजजी 1642 में वीरगति को प्राप्त हुये थे।
02 - शेषमालजी - शेषमालजी का जन्म राव भोपतजी कि दूसरी चौहानजी रानी रुक्मणीकँवर कि कोख से हुवा था।
03 - सांवलदासजी - सांवलदासजी का जन्म राव भोपतजी कि तीसरी भटियाणी रानी प्रभाकंवर कि कोख से हुवा था।
04 - श्यामदासजी - श्यामदासजी का जन्म राव भोपतजी कि तीसरी भटियाणी रानी प्रभाकंवर कि कोख से हुवा था।
05 - शंकरदासजी - शंकरदासजी का जन्म राव भोपतजी कि तीसरी भटियाणी रानी प्रभाकंवर कि कोख से हुवा था।
06 - राजसिंह - राजसिंह का जन्म राव भोपतजी कि चौथी सोलंकी रानी मैनाकँवर कि कोख से हुवा था।
07 - करणसिंह - करणसिंह का जन्म राव भोपतजी कि पांचवीं चौहान रानी चन्द्रकंवर कि कोख से हुवा था।
08 - भीमसिंह - भीमसिंह का जन्म राव भोपतजी कि छठी देवडीजी रानी हीरकंवर कि कोख से हुवा था।
09 - सुजाकँवर [पुत्री] - सुजाकँवर का जन्म राव भोपतजी कि दूसरी चौहानजी रानी रुक्मणीकँवर कि कोख से हुवा था।
10 - राव साहिबजी [साहिबखानजी] - साहिबजी [साहिबखानजी] का जन्म राव भोपतजी की दूसरी रानी चौहानजी की कोख से हुवा था। राव साहिबजी [साहिबखानजी] खुद तो जोधपुर के महाराजा गजसिंह की सेना में थे और उनके पुत्र नागौर के राव अमर सिंह के प्रमुख 'सरदार' बन गए थे । पुत्र बाद में राव साहिबजी [साहिबखानजी] अपने पिता की मृत्यु के बाद खाटू [बड़ी खाटू] की गद्दी पर बैठे। राव साहिबजी [साहिबखानजी] की
पहली शादी विक्रम सम्वत 1680 को मूंडरू के राजा हृदयराम हरिराम शेखावत [रायसलोत] की पुत्री सोनेकांवर के साथ हुवा था।
दूसरी शादी रिंधा के राव गोयन्ददासजी भाटी [तेजमलोत-कछारसिंघोत] की पुत्री
रामकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी रिंधा के कानसिंह भाटी [जैतसिंगहोत] की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी।
जिस समय जोधपुर के महाराजा गज सिंह के ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह राठौड़ की आगरा के दुर्ग में हत्या हुयी थी, अमरसिंह राठौड़ के शव को कौन हिन्दू शेर आगरा के किले से उठाकर लाये?
यह प्रश्न उस समय हर देशभक्त के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन चुका था। पूरे हिंदू समाज की प्रतिष्ठा को मुगल बादशाह शाहजहाँ ने एक प्रकार से चुनौती दी थी कि जिसकी मां ने दूध पिलाया हो वह आये और अपने देश-धर्म के रक्षक अमरसिंह राठौड़ के शव को ले जाए। बादशाह की इस चुनौती में अहंकार भी था और हिंदू समाज के प्रति तिरस्कार का भाव भी था।
अमरसिंह राठौड़ का शव दुर्ग के भीतर रखा था, मुख्य द्वार पर और किले की दीवारों पर सुरक्षा व्यवस्था इतनी कड़ी थी कि दुर्ग में कोई पक्षी भी पर नही मार सकता था। इसलिए हिंदू समाज में अपने शूरवीर के शव को लेकर बड़ी बेचैनी थी, और सभी को यह लग रहा था कि चाहे जो हो जाए-पर मां के स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा हर स्थिति परिस्थिति में होनी चाहिए। जब राव साहिबजी [साहिबखानजी] अपने चाचा बल्लूजी चम्पावत के साथ मिलकर 500 सैनिक सहित अमरसिंह राठौड़ के शव को मुगलों के कड़े पहरे में से निकालकर लाने में सफल हुए मगर मुगलों के साथ लड़ाई में राव साहिबजी [साहिबखानजी] श्रावण सुदी 3 विक्रम सम्वत 1700, शुक्रवार [1644 ई.] वीरगति को प्राप्त हुए। बल्लूजी चम्पावत 500 सैनिक सहित अमरसिंह राठौड़ के शव के साथ स्वयं भी सुरक्षित नागौर पहुँच गए।
राव साहिबजी [साहिबखानजी] के छह पुत्र थे -
01 - दलपतसिंह - दलपतसिंह का जन्म पहली रानी सोनेकांवर शेखावतजी की कोख से
हुवा था।अमरसिंह राठौड़ की हत्या के समय दलपतसिंह अपने पिता और दो चाचा
सहित 1644 ई. में 50 सैनिकों के साथ आगरा के किले में वीरगति को प्राप्त हुये।
02 - राव शिवसिंह - राव शिवसिंह का जन्म दूसरी रानी भाटीयाणीजी रामकंवर की कोख
से हुवा था।
03 - पात्ताजी [प्रताप सिंह] - पात्ताजी [प्रताप सिंह] का जन्म पहली रानी सोनेकांवर
शेखावतजी की कोख से हुवा था। औरंगजेब और दारा शिकोह [शाहजहाँ का पुत्र] के
बिच हुए धर्मात [उज्जैन के पास ] के युद्ध में पात्ताजी [प्रताप सिंह] ने जोधपुर नरेश
जसवंत सिंह का साथ दिया था,जिसे में वे 33 साल की उम्र में ही विक्रम सम्वत
1715 [1658 ई.] को इस युद्ध में अपने पुत्र भोजराजजी सहित वीरगति को प्राप्त
हुए।उस समय भोजराजजी मात्र 13 वर्ष के थे।इस युद्ध में जोधपुर नरेश जसवंत सिंह
शाहजहाँ की तरफ से औरंगजेब के विरुद्ध लड़े थे।
04 - शंकरदासजी - शंकरदासजी का जन्म दूसरी रानी भाटीयाणीजी रामकंवर की कोख से
हुवा था।
05 - श्यामसिंह - श्यामसिंह का जन्म तीसरी रानी भाटीयाणीजी जसकंवर की कोख से
हुवा था।
06 - माधोसिंह - माधोसिंह का जन्म तीसरी रानी भाटीयाणीजी जसकंवर की कोख से हुवा
था।
राव साहिबजी [साहिबखानजी] के पुत्र राव शिवसिंह के बाद के वंसज -
राव शिवसिंह के बाद खाटू [खाटू बड़ी] का पीढ़ी क्रम इसप्रकार है -
राव रामसिंह
राव रूपसिंह
राव कनकसिंह
राव बादरसिंह
राव धीरजसिंह
राव हुकुमसिंह
राव दुर्जनसिंह
राव जोधसिंह
राव बिशनसिंह
ठाकुर अभयसिंह12 - बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ -:
राव गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली, बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे।
बल्लूदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
बालूजी - राव गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार बल्लूदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी, सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं।
राव गोपालदासजी की सात शादियां हुयी थी
पहली शादी संग्रामसिंह भाटी [जसवंतसिंघोत] की पुत्री रुक्मणकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी रामसिंह देवड़ा [बनेसिंगहोत] की पुत्री शार्दूलकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी बूंदी के राव भोजराजजी हाडा की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी जिस से
भोपत और राघवदास का जन्म हुवा था।
चौथी शादी नाडोल के भाकरसिंह सोनगरा [रायसिंघोत] की पुत्री हीरकंवर
पांचवीं शादी फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री विजयकंवर के साथ
हुयी थी,जिस से हरिदास , हाथीसिंह , खेतसिंह का जन्म हुवा था।
छठी शादी जोजावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी
थी,इसके एक पुत्र हुवा ।
सातवीं शादी बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री महाकंवर के
साथ हुयी थी।
राव गोपालदासजी के पांच पुत्री और ग्यारह पुत्र हुए जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु युवा
अवस्थ में ही हो गयी थी-
राव गोपालदासजी के पांच पुत्रियां और ग्यारह पुत्र थे -
01 - राव भोपतजी
02 - राघवदासजी - राघवदासजी का जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत1588 को राव
गोपालदासजी की तीसरी रानी जसकंवर की कोख से हुवा था जो राव भोजराजजी
हाडा की पुत्री थी। राघवदासजी मांडल की लड़ाई में किले के द्वार को तोड़ने के लिए
हाथी के सामने आगये और 18 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
03 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं।
04 - बल्लुजी - बल्लुजी का जन्म जेठ सुदी 5 सम्वत1591 को गोपालदासजी की सातवीं
रानी महाकंवर की कोख से हुवा था जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी
[मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव हरसोलाव में रहते हैं।
05 - हाथीसिंह - हाथीसिंह का जन्म आसोज बड़ी 12 सम्वत1594 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी।गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत
चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली,
बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत
राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है।
06 - विठलदासजी - विठलदासजी का जन्म चैत्र बड़ी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी
की सातवीं रानी महाकंवर की कोख से हुवा था, जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी
भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव, रिंसी, पोखरण, दासपां, गीजगढ़
आदि में रहतें हैं।
07 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।
08 - दलपतसिंह - गोपालदासजी के सबसे छोटे पुत्र दलपतसिंह थे,इनका जन्म कार्तिक
सुदी 15 सम्वत1596 को गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख से हुवा था
जो जावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की की पुत्री थी। इनके वंसज ठिकाना
रोहेट, आउवा आदि में रहतें हैं।
09 - रायमल - युवा अवस्था में मृत्यु
10 - रतनसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
11 - केसरीसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
12 - राजकुमारी दीपकंवर
13 - राजकुमारी चांदकँवर - [जन्म गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख
से]साथ हुवा था।
14 - राजकुमारी द्रौपदीकांवर - [जन्म गोपालदासजी की सातवीं रानी महाकंवर की कोख
से] साथ हुवा था।
15 - राजकुमारी धापकंवर
16 - राजकुमारी बनेकांवर
27 - राव बालूजी [1591-1644] - मारवाड़ में ठिकाना हरसोलाव के बुलूजी चंपावतउस समय के सबसे निडर योद्धा माने जाते थे। राव बालूजी एक निर्विवाद चरित्र वाले योद्धा थे। उनके ह्रदय में वीरता और आत्मसम्मान की दोनों धाराओं का संगम था।
बालूजी ने अपने जीवन में 34 लड़ाइयां लड़ी लेकिन उन में एक बात खास थी की वे अकेले ही दुश्मन को धूल चटा देते थे जिसके कारण इतिहास ने राव बालूजी को महान वीरों की पात्रता में शामिल कर स्थायी स्वाभिमानी का उच्च स्थान भी दिया उनकी इस बहादुरी का प्रमाण एक चमत्कार के रूप में जुलाई 1644 में आगरा के किले में देखने को मिला,जिस समय जोधपुर के महाराजा गज सिंह के ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह राठौड़ की हत्या हुयी थी, अमरसिंह राठौड़ के शव को इस हिन्दू शेर ने मुगल बादशाह शाहजहाँ से युद्ध करके आगरा के किले से किस प्रकार शव को उठाकर नागौर ले आये थे ? यह अद्वितीय घटना 26 जुलाई, 1644 को हुई थी। आगरा किले में बुलूजी चंपावत द्वारा दिखाए गए अपने चमत्कारी वीरता की सराहना के द्वारा, उन्होंने निर्विवाद रूप से एक अमर स्थान अर्जित किया और इतिहास के इतिहास में एक अनमोल प्रतिष्ठा अर्जित की। राजपूत वंस के इतिहास में सबसे महान योद्धा में से एक-एक से आने वाले ऐसे शाही और बहादुर वंश का हिस्सा बनने पर पुरे राजपूत वंस को गर्व है।
बुलूजी के पुत्र हुए नहरसिंह [ठिकाना बाजेकां ढींगसरा]
**ठिकाना गांव ढींगसरा [तहसील भट्टू कलां और जिला फतेहाबाद हरियाणा,,भट्टू कलां से 7.2 कि.मी.दूर, फतेहाबाद से 11.9 कि.मी.दूर, सिरसा से 34.6 कि.मी.दूर]
**ठिकाना गांव बाजेकां [तहसील और जिला सिरसा हरियाणा,,सिरसा से 8 किलोमीटर ]
की दुरी ढींगसरा गांव हरियाणा]
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बल्लूजी चाम्पावत |
बुलूजी के पुत्र हुए नहरसिंह [ठिकाना बाजेकां ढींगसरा]
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Thika Bajekan & Dhingsara Logo |
**ठिकाना गांव ढींगसरा [तहसील भट्टू कलां और जिला फतेहाबाद हरियाणा,,भट्टू कलां से 7.2 कि.मी.दूर, फतेहाबाद से 11.9 कि.मी.दूर, सिरसा से 34.6 कि.मी.दूर]
**ठिकाना गांव बाजेकां [तहसील और जिला सिरसा हरियाणा,,सिरसा से 8 किलोमीटर ]
की दुरी ढींगसरा गांव हरियाणा]
ठिकाना बाजेकां ढींगसरा परिवार के वंशजों का पिढीकरम इसप्रकार है -
नहरसिंह के तीन पुत्र हुए-
01 - सूरतसिंह
02 - तखतसिंह
03 - पृथ्वीसिंह
सूरतसिंह - नहरसिंह के पुत्र सूरतसिंह के चार पुत्र हुए -
01 - हमीरसिंह
02 - चंदरसिंह
03 - गोपालसिंह
04 - गोविंदसिंह
तखतसिंह - नहरसिंह के पुत्र तखतसिंह के दो पुत्र हुए -
01 - अगरसिंह - अगरसिंह के दो पुत्र हुए साधूसिंह और दौलतसिंह , साधूसिंह के पुत्र हुए
महावीरसिंह, महावीरसिंह के चार पुत्र हुए घनश्यामसिंह, कुशलसिंह,
लोकमनसिंह और संग्रामसिंह। घनश्यामसिंह के दो पुत्र हुए प्रभाकरसिंह
और युदुराजसिंह। कुशलसिंह के दो पुत्र हुए देवेंद्रसिंह और शैलेन्द्रसिंह।
महावीरसिंह, महावीरसिंह के चार पुत्र हुए घनश्यामसिंह, कुशलसिंह,
लोकमनसिंह और संग्रामसिंह। घनश्यामसिंह के दो पुत्र हुए प्रभाकरसिंह
और युदुराजसिंह। कुशलसिंह के दो पुत्र हुए देवेंद्रसिंह और शैलेन्द्रसिंह।
02 - नन्दलालसिंह
पृथ्वीसिंह - नहरसिंह के पुत्र पृथ्वीसिंह के दो पुत्र हुए -
01 - गणपतसिंह - गणपतसिंह के पुत्र हुए माधोसिंह, माधोसिंह के तीन पुत्र हुए रूपसिंह,
जांगजीतसिंह और नरेन्द्रसिंह। रूपसिंह के दो पुत्र हुए यतिन्दरसिंह और
योगिन्दरसिंह। जांगजीतसिंह के तीन पुत्र हुए वीरेंदरसिंह व करणसिंह और
दिवाकरसिंह, दिवाकरसिंह के पुत्र हुए लक्ष्यराजसिंह । नरेन्द्रसिंह के दो पुत्र
हुए अनिरूद्धसिंह और अश्विनीसिंह। अनिरूद्धसिंह के पुत्र हुवा कीर्तिसिंह।
जांगजीतसिंह और नरेन्द्रसिंह। रूपसिंह के दो पुत्र हुए यतिन्दरसिंह और
योगिन्दरसिंह। जांगजीतसिंह के तीन पुत्र हुए वीरेंदरसिंह व करणसिंह और
दिवाकरसिंह, दिवाकरसिंह के पुत्र हुए लक्ष्यराजसिंह । नरेन्द्रसिंह के दो पुत्र
हुए अनिरूद्धसिंह और अश्विनीसिंह। अनिरूद्धसिंह के पुत्र हुवा कीर्तिसिंह।
02 - बनेसिंह - बनेसिंह के तीन पुत्र हुए -
01 - बिजयसिंह
02 - बहादुरसिंह
03 - सुमेरसिंह
बिजयसिंह - बनेसिंह के पुत्र बिजयसिंह के चार पुत्र हुए उम्मेदसिंह,
भीमसिंह, छगनसिंह , तेजसिंह।
बहादुरसिंह - बनेसिंह के पुत्र बहादुरसिंह के तीन पुत्र हुए धर्मेन्देरसिंघ,
युधिष्ठिरसिंह और भूपेंद्रसिंह।
सुमेरसिंह - बनेसिंह के पुत्र सुमेरसिंह के दो पुत्र हुए कमलसिंह और
देवराजसिंह। कमलसिंह का पुत्र हुवा ध्रुवसिंह तथा
देवराजसिंह का पुत्र हुवा राहुलसिंह।
13 - हरिदासोत चांपावत राठौड़ -:
गोपालदासजी के पुत्र हरिदासजी के वंशज हरिदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।हरिदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनका गांव मेड़ता परगने में ठिकाना गंठिया और दिदिया एक-एक गाँव का ठिकाना था।
हरिदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
हरिदासजी - राव गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार हरिदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी, सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं।
राव गोपालदासजी की सात शादियां हुयी थी
पहली शादी संग्रामसिंह भाटी [जसवंतसिंघोत] की पुत्री रुक्मणकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी रामसिंह देवड़ा [बनेसिंगहोत] की पुत्री शार्दूलकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी बूंदी के राव भोजराजजी हाडा की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी जिस से
भोपत और राघवदास का जन्म हुवा था।
चौथी शादी नाडोल के भाकरसिंह सोनगरा [रायसिंघोत] की पुत्री हीरकंवर
पांचवीं शादी फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री विजयकंवर के साथ
हुयी थी,जिस से हरिदास , हाथीसिंह , खेतसिंह का जन्म हुवा था।
छठी शादी जोजावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी
थी,इसके एक पुत्र हुवा ।
सातवीं शादी बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री महाकंवर के
साथ हुयी थी।
राव गोपालदासजी के पांच पुत्री और ग्यारह पुत्र हुए जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु युवा
अवस्थ में ही हो गयी थी-
राव गोपालदासजी के पांच पुत्रियां और ग्यारह पुत्र थे -
01 - राव भोपतजी
02 - राघवदासजी - राघवदासजी का जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत1588 को राव
गोपालदासजी की तीसरी रानी जसकंवर की कोख से हुवा था जो राव भोजराजजी
हाडा की पुत्री थी। राघवदासजी मांडल की लड़ाई में किले के द्वार को तोड़ने के लिए
हाथी के सामने आगये और 18 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
03 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं।
04 - बल्लुजी - बल्लुजी का जन्म जेठ सुदी 5 सम्वत1591 को गोपालदासजी की सातवीं
रानी महाकंवर की कोख से हुवा था जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी
[मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव हरसोलाव में रहते हैं।
05 - हाथीसिंह - हाथीसिंह का जन्म आसोज बड़ी 12 सम्वत1594 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी।गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत
चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली,
बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत
राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है।
06 - विठलदासजी - विठलदासजी का जन्म चैत्र बड़ी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी
की सातवीं रानी महाकंवर की कोख से हुवा था, जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी
भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव, रिंसी, पोखरण, दासपां, गीजगढ़
आदि में रहतें हैं।
07 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।
08 - दलपतसिंह - गोपालदासजी के सबसे छोटे पुत्र दलपतसिंह थे,इनका जन्म कार्तिक
सुदी 15 सम्वत1596 को गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख से हुवा था
जो जावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की की पुत्री थी। इनके वंसज ठिकाना
रोहेट, आउवा आदि में रहतें हैं।
09 - रायमल - युवा अवस्था में मृत्यु
10 - रतनसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
11 - केसरीसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
12 - राजकुमारी दीपकंवर
13 - राजकुमारी चांदकँवर - [जन्म गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख
से]साथ हुवा था।
14 - राजकुमारी द्रौपदीकांवर - [जन्म गोपालदासजी की सातवीं रानी महाकंवर की कोख
से] साथ हुवा था।
15 - राजकुमारी धापकंवर
16 - राजकुमारी बनेकांवर
27 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं। गोपालदासजी के पुत्र हरिदासजी के वंशज हरिदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।हरिदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनका गांव मेड़ता परगने में ठिकाना गंठिया और दिदिया एक-एक गाँव का ठिकाना था।
14 - केसोदासोत चांपावत राठौड़ -:
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं। गोपालदासजी के पुत्र हरिदासजी के वंशज हरिदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं।हरिदासजी;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनका गांव मेड़ता परगने में ठिकाना गंठिया और दिदिया एक-एक गाँव का ठिकाना था।
14 - केसोदासोत चांपावत राठौड़ -:
मांडणजी के पुत्र केसोदासजी के वंशज केसोदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। ठिकाना रणसिंघगाँव केसोदासजी;राव जैसाजी के पोते और राव भैरवदासजी के पड़ पोते थे।
केसोदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
केसोदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार केसोदासोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - केसोदासजी - मांडणजी के पुत्र केसोदासजी के वंशज केसोदासोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। ठिकाना रणसिंघगाँव केसोदासजी;राव जैसाजी के पोते और राव भैरवदासजी के पड़ पोते थे।
15 - खेतसिंहोत चांपावत राठौड़ -:
राव गोपालदासजी के पुत्र खेतसिंह के वंशज खेतसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। खेतसिंह;राव माण्डलजी [मांडणजी] के पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव नगौर परगना में हवतसर और सरासणी तथा मेड़ता परगना में खादी वास एक-एक गाँव केठिकाने थे।
खेतसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -खेतसिंह - राव गोपालदासजी - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव जैसाजी - राव भैरवदासजी - राव चाँपाजी - [चाँपोजी] - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी [मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार खेतसिंहोत चम्पावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
23 - राव भैरवदासजी - [ठिकाना कापरड़ा 1466-1520] राव चाँपाजी [चाँपोजी] के
पुत्र राव भैरवदासजी थे। भैरवदासजी को ठिकाना कापरड़ा मिला था। राव
भैरवदासजी के ग्यारह पुत्र हुए थे जिन में से तीन का ब्यौरा इस प्रकार हैं -
01 - राव जैसाजी
02 - भीमराजजी
03 – रामसिंह
24 - राव जैसाजी – [ठिकाना रणसिंघगाँव 1520-1541] राव जैसाजी के तीन पुत्र थे-
01 - राव जगमालजी
02 - राव जेतमालजी
03 - राव माण्डलजी [मांडणजी] [1541-1579] -
25 - राव माण्डलजी [मांडणजी] - राव माण्डलजी [मांडणजी] के छह पुत्र हुए जिन में से तीन
का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है -
01 – गोपालदासजी
02 – केसोदासजी
03 - रायसिंह
26 - गोपालदासजी - [1579-1607] - मांडणजी के पुत्र गोपालदासजी जिनको ठिकाना
[पाली] मिला था। राव माण्डलजी के वंशज ठिकाने गांव कसारी, सुखबासनी ,
दाहोली मीठी , ततरवा, बिनासर आदि में रहतें हैं।
राव गोपालदासजी की सात शादियां हुयी थी
पहली शादी संग्रामसिंह भाटी [जसवंतसिंघोत] की पुत्री रुक्मणकंवर के साथ हुयी थी।
दूसरी शादी रामसिंह देवड़ा [बनेसिंगहोत] की पुत्री शार्दूलकंवर के साथ हुयी थी।
तीसरी शादी बूंदी के राव भोजराजजी हाडा की पुत्री जसकंवर के साथ हुयी थी जिस से
भोपत और राघवदास का जन्म हुवा था।
चौथी शादी नाडोल के भाकरसिंह सोनगरा [रायसिंघोत] की पुत्री हीरकंवर
पांचवीं शादी फागी के राव दलपतसिंह नरुका [जगन्नाथोत] की पुत्री विजयकंवर के साथ
हुयी थी,जिस से हरिदास , हाथीसिंह , खेतसिंह का जन्म हुवा था।
छठी शादी जोजावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की पुत्री हीरकंवर के साथ हुयी
थी,इसके एक पुत्र हुवा ।
सातवीं शादी बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री महाकंवर के
साथ हुयी थी।
राव गोपालदासजी के पांच पुत्री और ग्यारह पुत्र हुए जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु युवा
अवस्थ में ही हो गयी थी-
राव गोपालदासजी के पांच पुत्रियां और ग्यारह पुत्र थे -
01 - राव भोपतजी
02 - राघवदासजी - राघवदासजी का जन्म कार्तिक सुदी पूर्णिमा सम्वत1588 को राव
गोपालदासजी की तीसरी रानी जसकंवर की कोख से हुवा था जो राव भोजराजजी
हाडा की पुत्री थी। राघवदासजी मांडल की लड़ाई में किले के द्वार को तोड़ने के लिए
हाथी के सामने आगये और 18 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी।
03 - हरिदासजी - हरिदासजी का जन्म फाल्गुन सुदी 15 सम्वत 1589 को गोपालदासजी
की पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव गंठिया में रहते हैं।
04 - बल्लुजी - बल्लुजी का जन्म जेठ सुदी 5 सम्वत1591 को गोपालदासजी की सातवीं
रानी महाकंवर की कोख से हुवा था जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी भाटी
[मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव हरसोलाव में रहते हैं।
05 - हाथीसिंह - हाथीसिंह का जन्म आसोज बड़ी 12 सम्वत1594 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी।गोपालदासजी के पुत्र बालूजी के वंसज बल्लूदासोत
चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव हरसोलाब,धड़िया, धमली, सिणली,
बाजेकां ढींगसरा [14गाँव] आदि थे। बल्लूदासोत चांपावत राठौड़ को बलोत चांपावत
राठौड़ के नाम से भी जाना जाता है।
06 - विठलदासजी - विठलदासजी का जन्म चैत्र बड़ी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी
की सातवीं रानी महाकंवर की कोख से हुवा था, जो बीकमपुर के राव गोविंददासजी
भाटी [मानसिंगहोत] की पुत्री थी। इनके वंसज गांव, रिंसी, पोखरण, दासपां, गीजगढ़
आदि में रहतें हैं।
07 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।
08 - दलपतसिंह - गोपालदासजी के सबसे छोटे पुत्र दलपतसिंह थे,इनका जन्म कार्तिक
सुदी 15 सम्वत1596 को गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख से हुवा था
जो जावर के बाघसिंह सोलंकी [उदयभानोत] की की पुत्री थी। इनके वंसज ठिकाना
रोहेट, आउवा आदि में रहतें हैं।
09 - रायमल - युवा अवस्था में मृत्यु
10 - रतनसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
11 - केसरीसिंह - युवा अवस्था में मृत्यु
12 - राजकुमारी दीपकंवर
13 - राजकुमारी चांदकँवर - [जन्म गोपालदासजी की छठी रानी हीरकंवर की कोख
से]साथ हुवा था।
14 - राजकुमारी द्रौपदीकांवर - [जन्म गोपालदासजी की सातवीं रानी महाकंवर की कोख
से] साथ हुवा था।
15 - राजकुमारी धापकंवर
16 - राजकुमारी बनेकांवर
27 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
27 - खेतसिंह - खेतसिंह का जन्म आसोज सुदी 8 सम्वत1596 को गोपालदासजी की
पांचवीं रानी विजयकंवर की कोख से हुवा था जो फागी के राव दलपतसिंह
नरुका[जगन्नाथोत] की पुत्री थी। इनके वंसज मारवाड़ में हापचार और मध्यप्रदेश
के बागली [बगली] में रहते हैं।राव गोपालदासजी के पुत्र खेतसिंह के वंशज
खेतसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। खेतसिंह;राव माण्डलजी [मांडणजी] के
पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव नगौर परगना में
हवतसर और सरासणी तथा मेड़ता परगना में खादी वास एक-एक गाँव केठिकाने
थे।
खेतसिंहोत चांपावत राठौड़ कहलाये हैं। खेतसिंह;राव माण्डलजी [मांडणजी] के
पोते और राव जैसाजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव नगौर परगना में
हवतसर और सरासणी तथा मेड़ता परगना में खादी वास एक-एक गाँव केठिकाने
थे।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
नरेन्द्र सिंह S/O भीख सिंह जी चम्पावत(गोयंददासोत)
ReplyDeleteहुकम आपसे call बात हो सकती है तो आपके मोबाइल नम्बर दीजिए ।
हुक्म आपने पिढी लिखी है उसके लिए तह दिल से धन्यवाद हुक्म बिढलदासोत चांपावत मे धनराज जी के अमर सिंह जी अमर सिंह जी के पुत्र शेर सिंह जी का ठिकाना रातडिया बताया है जो की लोडता वह गडी चम्पावता है जो रातडिया से 9 किलोमीटर है दक्षिण में है शेर सिंह जी के चार पुत्र है बदन सिंह जी का परिवार लोडता जिला जोधपुर तहसील शेरगढ़ मे है वह चुतर सिंह जी वह रतन सिंह जी का परिवार गडी चम्पावता मे है ओर शिवदान सिंह जी की पिढी आगे चली नहीं आपने रातडिया बताया है वह पिलवा से आए हुए हैं शेर सिंह जी का परिवार देणोक से आया हुआ है
ReplyDeleteजालम सिंह चांपावत गडी चम्पावता तहसील पोकरण जैसलमेर
Deleteबलूजी के वंशज गांव संदोल जिला हिसार हरियाणा में भी हैं जोकि बाजेकां ओर ढींगसरा वालों के काकोसा लगते थे जिनका नाम श्री अमर सिंह जी राठौर था। हुकुम आपके इस लेख में इनका भी नाम बलुजी के वंशज के रूप दर्ज कर लीजिए
ReplyDeleteहुकुम मैं गांव संदोल जिला हिसार हरियाणा में श्री अमर सिंह जी राठौर की सातवीं पीढ़ी में हूं।
ReplyDeleteहुक्म जय माता जी री सा। हुक्म मैं यह जानना चाहता हूँ कि राव रिङमल जी के कितनी रानियां थी व किस रानी से कौन कौन से पुत्रों का जन्म हुआ। जैसे राव रिङमल जी के पुत्र राव चांपा जी का रानी अखेरकंवर की कोख से हुआ। कहीं कहीं यह भी पढने को मिलता है कि 24 भाईयों में से चोंपा जी बगैरा आठ सगे भाई थे। बाकी 16 भाईयों की माताओं का नाम क्या था। हुक्म शंका का निवारण करावें।
ReplyDeleteहुकुम संदोल के बलुजि राठौर के वंशज अमेरिका नाम अमर सिंह नहीं करण सिंह जी राठौर है मै क्षमा चाहूंगा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteवो दासाणिया है ओर आडवा नहीं है आउवा है गलत लिखा है सही करे
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