Tuesday, 9 May 2017

100 - कांधलोत[कांधल] राठौड़

कांधलोत[कांधल] राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खांपें - कांधलोत[कांधल] राठौड़

कांधलोत[कांधल] राठौड़ -  रणमलजी [रिडमलजी] के पुत्र रावत कांधलजी के वंसज कांधलोत[कांधल] राठौड़ कहलाये हैं। रावत कांधलजी; राव चूण्डाजी के पोते और राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे।  कांधलोत [कांधल] के ठिकाने गांव रावतसर, बीसासर, बिलमु, सिकरोड़ी आदि थे। जब मेवाड़ के महाराणा मोकलजी  राव कांधलजी के रिश्ते में फूफा लगते थे। बीकानेर राज्य का नवोदय तो कांधल की तलवार की देन ही था। दिली के सुल्तान बहलोल लोदी के सेनापति सारंग खां को जिस कुशलता के साथ कांधल ने धूल चटाई वह अविस्मरणीय है राव बीका की हर सफलता में चाहे वह जाटों के दमन में हो अथवा भाटियों की चुनौतियों का जवाब देने में हो, कांधल के शौर्य और बहुबल का ही कमाल था। कांधल ने राव जोधा व राव बीका दोनों की यशो-कीर्ति बढ़ाने में भरपूर सहयोग दिया। राजस्थान के पश्चिम में जैसलमेर, जालौर और पूर्व में हरियाणा के हांसी, हिसार, धमौरा, भट्टू और फतियाबाद, दक्षिण में मेवाड़ की सीमा पर गोड़वाड़ और उत्तर में भटनेर तक अनेक युद्ध क्षेत्रों में कांधल ने खून और पसीना बहाया था। निरन्तर 62 वर्ष तक शक्ति एवं शौर्य के प्रतीक के रूप में मृत्यु का व्रत धारण कर शेरों की तरह कांधल लड़ा और एक वीर राजपूत की तरह ही युद्ध भूमि में वीर गति को प्राप्त हुआ।
कांधलोत[कांधल] राठौड़ों की मुख्य सात शाखाएं व उप शाखाएं हैं –
01 - रायमलोत कांधल राठौड़ - बाघसिंह के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं। रायमलजी की शादी माना झाला पुत्री  हीरादेकँवर के साथ हुयी थी। रायमलजी;राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
रायमलोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
रायमलजी - बाघसिंह - कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - रावतोत कांधल राठौड़ -  राव कांधलजी के दूसरे पुत्र राजसिंह के वंसज रावतोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं।राजसिंह;राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पोते और राव राजा चड़ाजी [राव छाडा जी] के पड़ पोते थे।
रावतोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राजसिंह  - कांधलजी -  रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज। 
03 - परवतोत कांधल राठौड़ - रावत कांधल के पुत्र परवतजी के वंशज परवतोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं। इनका भी ठीकाना बिल्ल्यु गांव तहसील सरदारशहर जिला चूरू राजस्थान था। 
परवतजी;राव रिडमल जी [राव रणमल जी] के पोते और राव राजा चड़ाजी [राव छाडा जी] के पड़ पोते थे।  इनका ठीकाना बिल्ल्यु गांव तहसील सरदारशहर जिला चूरू राजस्थान था।
परवतोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
परवतजी - कांधलजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - राघोदासोत (राघव्दासोत) कांधल राठौड़ - उदयसिंह के पुत्र के राघवदासजी के वंशज राघोदासोत (राघव्दासोत) कांधल राठौड़ भी कहलाये हैं।
राघवदासजी;राजसिंह के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।राघोदासोत [राघव्दासोत] कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राघवदासजी - उदयसिंह - राजसिंह - कांधलजी -  रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05 - गोपालदासोत कांधल राठौड़ - राव कांधलजी के दूसरे पुत्र राजसिंह के पुत्र गोपालदासजी के वंशज गोपालदासोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं। गोपालदासजी; राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
गोपालदासोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
गोपालदासजी - राजसिंह - कांधलजी -  रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।  
06 - साईंदासोत कांधल राठौड़ - खेतसी के पुत्र साईं दासजी के वंसज साईंदासोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं। साईं दासजी; अडक मलजी के पोते और रावत कांधल जी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गाँव सांवलसर ,सिकरोड़ी ,साहवा ,तारानगर ,रेडी ,साहरण आदी।
साईंदासोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
साईं दासजी - खेतसी - अडक मलजी - कांधलजी -  रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07 - लालसीहोत कांधल राठौड़ - दोलतसिह के पुत्र लालसिंह[भादरा] के वंशज लालसीहोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं। लालसिंह[भादरा];हरीसिह के पोते और आसकरणजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गाँव झाडसर कांधलान, झाडसर, झांझणी आदी।
लालसीहोत कांधल राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
लालसिंह - दौलतसिंह -  हरीसिह - आसकरणजी - जयमलजी - साईं दासजी - खेतसी - अडक मलजी - कांधलजी -  रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज। 
कांधलोत[कांधल] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
रावत कांधल जी - राव रिडमल जी (राव रणमल जी) - राव राजा चड़ा जी (राव छाडा जी) - राव वीरम देवजी - राव सलखा जी - राव तिडा जी - राव छाडा जी - राव जलमसी जी (राव जालण जी) - राव कनक पाल जी - राव रायपाल जी - राव धुहड जी - राव आस्थान जी - राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार कांधलोत[कांधल] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है- 
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
    01 - नयांअकेलीदेवी
    02 - गोसललदेवी
    03 - कुमारदेवी
    04 - वसंतादेवी

गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - 
 जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया। 

[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।] 
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।] 

कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
       01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
       02 –वरदायीसेनजी - 
कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।  

       03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम] 
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ] 
गूगलदेवजी के दो पुत्र हुए- 
        01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला] 
        02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा, 
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी। 
  • राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
02 - राजा कृष्णदेव - राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम]
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान समय में अलीराजपुर भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में सिथत एक जिला है।]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है] 
 
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।। 

राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी 
पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -

        01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी 
                संवत 1272-1292)]
        02 - 
 राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या  
                वाजन  राठौड़ कहलाये हैं। 
        03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले 
               गए और वंहा के पहले राव बनें। 
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
     01 - राव दूहड़जी
     02 - राव धांधलजी
     03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
     04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
     05 - राव जैतमालजी
     06 - राव आसलजी
     07 - राव चाचिगजी
     08 - राव जोपसिंहजी
12 -  राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -            
        01 - राव रायपालजी -                                 [रायपालोत राठौड़ ]
        02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी]              [- 
के वंसज खेतपालोत राठौड़]
        03 - राव बेहड़जी [बेहरजी]                           [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
        04 - राव पीथड़जी                                        [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
        05 - राव जुगलजी [जुगैलजी]                       [- के वंसज जोगवत राठौड़]
        06 - राव डालूजी                                        [---------------------]
        07 - राव बेगरजी                                        [- 
के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
        08 - उनड़जी                                             [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
        09 - सिशपलजी                                         [- के वंसज सीरवी राठौड़] 
        10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान]     [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-         
        01 - कानपालजी                    -
        02 – केलणजी                       -
        03 – थांथीजी                       - [थांथी राठौड़]
        04 - सुंडाजी                         - [सुंडा राठौड़ ]
        05– लाखणजी                      - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        06 - डांगीजी                         - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
        07 - मोहणजी                       - [मुहणोत राठौड़]
        08 - जांझणजी                      - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
        09 - जोगोजी                        - [जोगावत राठौड़]
        10 - महीपालजी [मापाजी]      - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
        11 - शिवराजजी                    - [शिवराजोत राठौड़]
        12 - लूकाजी                         - [लूका राठौड़ ]
        13 - हथुड़जी                         - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        14 - रांदोंजी [रंधौजी]             - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        15 - राजोजी [राजगजी]          - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -   
        01 - राव जालणसीजी
        02 - राव भीमकरण
        03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए - 
        01 - राव छाडाजी        
        02 - राव भाखरसिंह  
        03 - राव डूंगरसिंह  
16 - राव छाडाजी  - राव छाडाजी  [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए - 
        01 - राव तीड़ाजी 
        02 - राव खोखरजी 
        03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
        04 - राव सिहमलजी  
        05 - राव रुद्रपालजी  
        06 - राव खीपसजी 
        07 - राव कान्हड़जी - 
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक  पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं।  
                                    राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।  
                             राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
         01 - रावल मल्लीनाथजी   - [मालानी के संस्थापक]
         02 - राव जैतमलजी         - [गढ़ सिवाना]
         03 - राव विरमजी [बीरमजी] 
         04 - राव सोहड़जी           - के वंसज सोहड़ राठौड़
19 - राव विरमजी [बीरमजी] [1374-1383] - राव वीरामजी के पांच पुत्र थे -
         01 - राव चुण्डाजी
         02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
                    

                 देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर, 
                 देचू, सोमेसर] 
         03 - जैसिंघजी [जयसिंहजी] - जैसिंघजी के वंसज जयसिहोत[जैसिंघोत] राठौड़
         04 - बीजाजी - बीजावत राठौड़
         05 - गोगादेवजी - गोगादेवजी के वंसज गोगादे राठौड़ [केतु , तेना, सेखाला]
20 - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] के पुत्र राव चूण्डाजी थे। राव चूण्डाजी;राव सलखाजी के पोते और  राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे। मंडोर जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर है। मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। मंडोर  दुर्ग  783 ई0 तक परिहार  शासकों के अधिकार में रहा। इसके बाद नाड़ोल के चौहान  शासक रामपाल ने मंडोर  दुर्ग  पर अधिकार कर लिया था। 1227 ई0 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतनिश ने मंडोर  पर अधिकार कर लिया। यद्यपि परिहार  शासकों ने तुरकी   आक्रांताओं का डट कर सामना किया पर अंतत: मंडोर  तुर्कों के हाथ चला गया। लेकिन तुरकी  आक्रमणकारी मंडोर को लम्बे समय तक अपने अधिकार में नही रख सके एंव दुर्ग  पर पुन: प्रतिहारों का अधिकार हो गया। 1294 ई0 में फिरोज खिलजी ने परिहारों को पराजित कर मंडोर  दुर्ग पर  अधिकार कर लिया, परंतु 1395 ई0 में परिहारों की इंदा शाखा ने दुर्ग  पर पुन: अधिकार कर लिया और मंडोर गढ़ परिहार राजाओं का होगया ।  सन् 1395 में चुंडाजी राठौड़  की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला था तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौड़  शासकों का राज हो गया था। राव चूण्डाजी [1394 -1423] ने मंडोर पर राठौड़ राज कायम किया था। राव चूण्डाजी एक महत्वाकांक्षी शासक था। उन्होंने आस-पास के कई प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 1396 ई0 में गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने मंडोर पर आक्रमण किया। एक वर्ष के निरंत्तर घेरे के उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अधिकार करने में सफलता नही मिली और उसे विवश होकर घेरा उठाना पड़ा। 1453 ई0 में राव जोधाजी ने मंडोर के शासक बनें उन्होंने  मरवाड़ की राजधानी मंडोर  से स्थानान्तरित करके जोधपुर  बनायीं जिसके  कारण मंडोर  दुर्ग  धीरे-धीरे वीरान होकर खंडहर में तब्दील हो गया। राव विरमजी [बीरमजी] के छोटे पुत्र राव चुंडाजी थे। राव वीरम देव जी की मृत्यु होने के बाद राव चुंडाजी की माता मांगलियानी इन्हें लेकर अपने धर्म भाई आल्हो जी बारठ के पास कालाऊ गाँव में लेकर आगई वहीं राव चुंडा जी का पालन पोसण हुआ तथा आल्हा जी ने इन्हें युद्ध कला में निपुण किया था।  राव चुंडाजी बड़े होने पर मल्लीनाथ जी के पास आगये तब इन्हें सलेडी गाँव की जागीर मिली। राव चुंडाजी ने अपनी शक्ति बढाई तथा नागोर के पास चुंडासर गाँव बसाया और इसे अपना शक्ति केंद्र बना कर पहले मण्डोर को विजय  किया और मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद नागोर के नवाब जलालखां खोखर पर हमला कर उसे मार कर नागोर पर अधिकार करलिया फिर फलोदी पर अधिकार करलिया और वहां  शासन करने लगे। जब केलन भाटी ने मुल्तान के नवाब फिरोज से फोज की सहायता लेकर  राव चुंडा को परास्त करने की सोची मगर यह उसके बस की बात नहीं thee अतः धोखे से राव चुंडा को संधि के लिये बुलाया तथा राव चुंडा पर हमला कर दिया राव चुंडा तथा उनके साथी नागोर की रक्षा करते हुए गोगालाव नामक स्थान पर विक्रम सम्वत 1475 बैसाख बदी1 (15मार्च1423) को वीरगति को प्राप्त हुए। राव चुंडाजी के साथ राणी समंदरकंवर सांखली सती हुई। 
        01 - राव रिड़मलजी  
        02 - राव कानाजी  [1423-1424] - के वंसज कानावत राठौड़ 
        03 - राव सताजी  [1424-1427] - के वंसज सतावत राठौड़ 
        04 - राव अरड़कमलजी  - के वंसज अरड़कमलोत राठौड़
        05 - राव अर्जनजी   - के वंसज अरजनोत राठौड़
        06 - राव बिजाजी    - के वंसज बीजावत राठौड़ 
        07 - राव हरचनदेवी  - के वंसज हरचंदजी राठौड़ 
        08 - राव लूम्बेजी   -  के वंसज लुम्बावत राठौड़ 
        09 - राव भीमजी   -  के वंसज भीमौत राठौड़ 
        10 - राव सेसमलजी  - के वंसज  सेसमालोत राठौड़ 
        11 - राव रणधीरजी   - के वंसज रणधीरोत राठौड़ 
        12 - राव पूनांजी   - के वंसज पुनावत राठौड़  [खुदीयास ,जूंडा ]
        13 - राव शिवराजजी   - के वंसज सीवराजोत  राठौड़ 
        14 – राव रामाजी [रामदेवजी]  
        15 - राजकुमारी  हंसादेवी - राजकुमारी  हंसादेवी की शादी उदयपुर, राजस्थान [मेवाड़] के  
               सिसोदिया महाराणा लखासिंह [लाखाजी] के साथ हुयी थी। लखासिंह [लाखाजी] मेवाड़ के   
               तीसरे महाराणा थे। जो क्षेत्रसिंह के बेटे और हमीरसिंह के पोते थे।
21 - राव रिड़मलजी [1427-1438] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पुत्र राव रणमलजी [राव रिङमालजी] के वंसज रिड़मलोत राठौड़ [रिड़मालोत] राठौड़ कहलाये। राव रणमलजी [राव रिङमालजी];राव विरमजी [बीरमजी] के पोते और राव सलखाजी के पड़पोते थे। [1427-1438] के चौबीस पुत्र थे-
         01 - राव अखैराजजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अखैराजजी के वंसज बागड़ी [बगड़ी]  
                  राठौड़ कहलाये हैं।
         02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
         03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये  
                 हैं। इनके रावतसर , बीसासर , बिलमु , सिकरोड़ी आदि ठिकाने थे।
         04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
                 चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
         05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।  
                [रानीसगांव, आउवा ]
         06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी  
                 जैतमालोत राठौड़ कहलाये हैं।
         09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका  
                अलाय [बीकानेर में] ठिकाना था ।
         10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।  
                इनका चोटिला, आउ, करनू, बरजानसर,बूंगड़ी आदि ठिकाने थे।
         11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये  
                हैं। इनके मूंजासर, चाखु, भेड़, उदातठिकाने थे।
         12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।  
               इनके ठिकाने मूडी, काननों, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुर, कीतनोद, चांदसमा,  
               मुड़ाडो, जाजोलाई आदि थे।
         13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये  
                हैं।
         14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।  
               इनका अलाय मुख्य ठिकाना था।
         15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये  
                हैं। इनके मुख्य ठीकाने [हरखावत], [नाथूसर]आदि थे।
         16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़   
               कहलाये हैं। जो बीकानेर ठीकाने से सम्बन्ध रखतें हैं।
         17 - वेराजी - राव रणमलजी के पुत्र राव वेराजी के वंसज वेरावत राठौड़ राठौड़ कहलाये  
                 हैं।
         18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]  
               कहलाये हैं।
         19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़  
               कहलाये हैं।
         20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - रावत कांधलजी - रणमलजी [रिडमलजी] के पुत्र रावत कांधलजी के वंसज कांधलोत[कांधल] राठौड़ कहलाये हैं। रावत कांधलजी; राव चूण्डाजी के पोते और राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे। कांधलोत [कांधल] के ठिकाने गांव रावतसर, बीसासर, बिलमु, सिकरोड़ी आदि थे। रावत कांधलजी का जन्म राव सीहाजी की 13वी पीढ़ी में हुवा था। जब मेवाड़ के महाराणा मोकलजी राव कांधलजी के रिश्ते में फूफा लगते थे। बीकानेर राज्य का नवोदय तो कांधल की तलवार की देन ही था। दिली के सुल्तान बहलोल लोदी के सेनापति सारंग खां को जिस कुशलता के साथ कांधल ने धूल चटाई वह अविस्मरणीय है राव बीका की हर सफलता में चाहे वह जाटों के दमन में हो अथवा भाटियों की चुनौतियों का जवाब देने में हो, कांधल के शौर्य और बहुबल का ही कमाल था। कांधल ने राव जोधा व राव बीका दोनों की यशो-कीर्ति बढ़ाने में भरपूर सहयोग दिया। राजस्थान के पश्चिम में जैसलमेर, जालौर और पूर्व में हरियाणा के हांसी, हिसार, धमौरा, भट्टू और फतियाबाद, दक्षिण में मेवाड़ की सीमा पर गोड़वाड़ और उत्तर में भटनेर तक अनेक युद्ध क्षेत्रों में कांधल ने खून और पसीना बहाया था। निरन्तर 62 वर्ष तक शक्ति एवं शौर्य के प्रतीक के रूप में मृत्यु का व्रत धारण कर शेरों की तरह कांधल लड़ा और एक वीर राजपूत की तरह ही युद्ध भूमि में वीर गति को प्राप्त हुआ।रावत कांधलजी - रावत कांधलजी का जन्म विक्रम सम्वत 1473 में हुआ था। राव कांधलजी अपने दादा व पिता की तरह बहुत ही पराक्रमी थे राव कांधल जी ने अपने जीवन का पहला युद्ध बारह बरस की अवस्था में लड़ा और विजय प्राप्त की राव कांधल जी ने अपने जीवन में 52 युद्ध लड़े तथा सभी में विजय श्री हासिल की थी । 
दोहा -
जय हो रावत कांधल जी महाराज,
तीन और सत्तर वर्ष लिन्या वीर सुभट।
बारह बरसा थामली खड़ग वीर रजवठ ।।
राव कांधलजी की माँ करनीजी में अगाध श्रधा थी, जिसके कारण माँ करणीजी का भी राव कांधलजी के प्रति अत्यधिक स्नेह था और माँ करणीजी राव कांधल जी को अपना भतीजा मानती थी। राव कांधलजी ने जोधपुर राज्य बनाने से लेकर बीकानेर राज्य स्थापित करने में अपना जीवन न्योछावर कर दिया जिसे राठौड़ो के इतिहास में कभी भी नही भुलाया जासकता है।
राजपूतों के छतीस राजवंशो में से श्रेष्ठ कुल सूर्य वंशी राठौड़ को माना गया है। सूर्य वंशी राठौड़ो ने अपनी श्रेष्ठता हमेशा सिद्ध की है, इसी कारण इन्हें रण बंका राठौड़ कहा गया है।
दोहा -
"ब्रज्देसा चन्दन बड़ा मरु पहाडा मोड़।
गरुड खंडा लंका गढ़ा राजकुला राठौड़ ।।
बल हट बंका देवड़ा करतब बंका गोड।
हाडा बांका गाढ़ में तो रण बंका राठौड़ ।। 
बीकानेर राज्य की  स्थापना और राव जोधाजी से मिलने के बाद कांधलजी अपने पुत्रो तथा पोत्रो को लेकर साहवा आगये और राठौड़  राज्य को और ज्यादा विस्तार व सुदृढ़ बनाने के लिए उन्होंने साहवा, शेरडा, राजासर आदि पर आधिपत्य कर लिया। वहा की वीर जाट जातियों ने जिनमे बेनीवाल, सहारण तथा सिहाग उनके साथ हो गये। नोहर के जोईया सरदार को पराजित कर नोहर पर अधिकार कर लिया। ओटू के मीर पठान को मारकर किले पर अधिकार कर लिया। कांधल जी ने हांसी, हिसार, फतेहवाद, सिरसा, बुडाक, भादरा और भट्टू तक अपना अधिकार कर लिया। उनकी बढती हुई ताकत को देखकर दिल्ली का बादशाह घबरा गया और सारंगखां भी अपनी हार का बदला लेना चाहता था। इसलिए उसने अपनी सेना देकर सारंगखां को कांधल जी को रोकने भेजा। इस समय कांधल जी झांसल में डेरा किये हुए थे उनके साथ गिने चुने ही योद्धा थे। सारंगखा ने घात लगाकर हमला बोल दिया रावत कांधल जी ने अपने आदमियों के साथ मुकाबला किया। घमासान लड़ाई हुई रावत कांधल ने अपना घोड़ा दोडाकर सारंग खा के हाथी पर कुदाया तभी घोड़े का तंग टूट गया कांधल जी अपने घोड़े का तंग ठीक करने लगे तभी सारंगखा ने हमला किया हिसार के सूबेदार सारंग खां के साथ हुये युद्ध में झांसल के पास छतरीया वाली ढाणी के युद्ध में विक्रम सम्वत 1546 पोषबदी 5 को वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध की साक्षी रही यह पावन धरा साहवा, जिस पर अंतिम युद्ध कांधलजी  व सारंगखां के मध्य हुआ। लेकिन  कांधलजी मरते मरते कई तुर्को को यमलोक पहुंचा गये यह घटना पोषकृष्ण 5 विक्रम सम्वत 1546 को हुई समय कांधल जी के साथ उनके पुत्र राजसी, निम्बाजी  
सूराजी ही थे। राजसीजी अपने पिता रावत कांधलजी की की पाग लेकर साहवा आये। जहां राणी देवडी जी पाग के साथ सती होगई जहा साहवा में ढाब पर अब भव्य मन्दिर बनाया गया है और कांधल जी की अस्ट धातु की अश्वारोही विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। लोग कांधल जी व राणी देवडी जी की पूजा करते है।  हरवर्ष इनके वंशज पोष कृष्ण 5 को रावत कांधल जी का बलिदान दिवस के रूप में मनाते है। इस कुल ने बार - बार ऐसे शूरवीरो को जन्म दिया है। जिन्होने अपनी वीरता त्याग बलिदान तथा अपने वचनों की खातिर अपने प्राण न्योछावर कर इस राठौड़ कुल का मान बढ़ाया है।
जोधाजी के सगे भाई - पिता रणमलजी के चितोड़ में मारे जाने पर राठौड़ों को विपतियों का सामना करना पड़ा । उन विपति भरे दिनों में कांधलजी ने अपने भाई जोधपुर का साथ देकर राठोड़ राज्य की पुनः स्थापना की थी। राव कांधल जी, राव रूपा जी, राव मांडल जी, राव नथु जी और राव नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे। रावत कांधल जी अपने भाई जोधाजी के एक बोल पर अपने भतीजे बीका को लेकर नया राज बनाने चल पड़े । एकबार की बात है कि, दशहरे के अवसर पर जब कांधलजी अपने भतीजे बीका से कोई बात कर रहे थे तब जोधाजी ने मोका देख ताना मारा था की, आज तो चाचा भतीजा ऐसे बात कर रहे हैं जैसे नया राज दबाएंगे तब कांधल जी ने कहा की अब नया राज्य बनाकर ही आपके दर्शन करूंगा और भतीजे बीका को लेकर कुछ आदमियों को साथ लेकर नये राज्य की और अग्रसर हुए तथा कड़े सन्घर्ष के बाद नये राज्य बीकानेर की सथापना की तथा भतीजे बीका का राज तिलक किया और खुद उमराव रहें। धन्य है रावत कांधलजी जैसे वीरों को जिसके त्याग व् बलिदान को इतिहास कभी भूल नही पायेगा।
कहा जाता है कि, रावत कांधल जी जोधपुर राज्य बनने के बाद भी अपने भाई राव जोधा का राजकार्य चलाने में बहुत सहयोग कर रहे थे। उस समय फतेहपुर व द्रोणपुर पर फतेहखान का अधिकार था। फतेहखान वहां की जनता पर बहुत अत्याचार करता था जिसके कारण फतेहपुर व द्रोणपुर की जनता उसके अत्याचार से दुखी थी, ऐसे में उन्हें आशा किरण सिर्फ राठौड़ों में दिखाई दी और  फतेहपुर व द्रोणपुर के लोगों नें मारवाड़ जाकर राठौड़ों से फतेह खान से मुक्ति दिलाने की अर्ज की । रावत कांधल उनकी करुणा सुनकर द्रविड़ हो उठे और राव जोधा से फतेह खान पर आक्रमण की आज्ञा ले अपने सैनिको सहित फतेपुर की तरफ प्रस्थान किया। उधर फतेह खान नें भी राठौड़ों के डर से दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी से सहायता मांगी । बहलोल लोदी ने अपने सेनापति बहुगुणा को सेना देकर भेजा। दोनों तरफ से सेना भीड़ गई भयंकर मार काट मची। तभी रावत कांधल ने प्रबल आक्रमण किया और शत्रु सेना को काटते हुए बहुगुणा तक आ पहुंचे रावत कांधल ने भरपूर वेग से एक हाथ से तलवार का जोरदार वार किया जिससे एक ही वार में बहुगुणा के दो टुकड़े होकर उसका सिर धड़ से दूर जा गिरा और विजय श्री राठौड़ों के साथ रही। बहुगुणा की माँ कांधलजी के पास आई और बहुगुणा का धड लेजाने देने की प्रार्थना की तब कांधल जी ने उसे लेजाने दिया। तथा वहा की सम्पति पर अधिकार करने के बाद द्रोणपुर पर भी अधिकार कर लिया था। तथा वहा का स्वामी खुद न बनकर बीदाजी जो जोधा जी के पुत्र तथा बीकाजी के छोटे भाई को वहां का स्वामी बनाया। कांधलजी को रावत की उपाधी [पदवी] थी जो राव जोधाजी द्वारा प्रदान की गयी थी। इस प्रकार रावत कांधल जी ने अपने भाई व भतीजो को राज्य बनाने में पूरा सहयोग किया। जय हो रावत कांधल जी।
बहुगुणा के साथ इस युद्ध का एक दोहा साक्षि इस प्रकार है-
कांधल रिडमल राव रो दियो खेत विवराय।
शीश कटयो बहुगुण लड़ो बहुगुण दियो दिखाय।।
रावत कांधल जी के चौदह पुत्र तथा दो पुत्रिया थी। पुत्रो के नाम इसप्रकार है -
22  (01) - बाघसिंह (बाघजी) - राव कांधलजी के बड़े पुत्र बाघसिंह [बाघजी]थे। इनके ठिकाने 
           चाचिवाद, मेलूसर व धान्धू थे। 
           बाघसिंह के तीन पुत्र थे -
23 -    01- बणीरजी  - राव बणीरजी, अपने दादाजी राव कांधलजी की मौत के बाद रावतसर    
                                  के दूसरे रावत बनें, लेकिन उनके चाचा रावत लखदीरसिंह ने उन से  
                                  रावतसर की गद्दी हड़प ली  और राव बणीरजी को पलायन करने के लिए 
                                  मजबूर किया गया, बाद में राव बणीरजी अपनी 1500 के आसपास 
                                  घांघू ठिकाने की स्थापना की। बाघजी के पुत्र बणीरजी से बनीरोत कांध 
                                  राठोड़ों  की उत्पति हुयी। लूणकरण जी द्वारा ददरेवा पर अधिकार के 
                                  समय बणीर उनकी सेना में शामिल थे।  जैसलमेर पर जब लूणकरण ने 
                                  चढ़ाई की तब भी बणीर साथ में था। जैतसिंह बीकानेर के समय   
                                  वि.सं.1791 में कामरां ने जब बीकानेर पर चढ़ाई की तब use हटाने में 
                                  बणीर का पूरा सहयोग था। जयमल मेड़तिया की राव कल्याणमल ने 
                                  मालदेव के विरुद्ध सहायता की तब भी बणीर बीकानेर की सेना के साथ 
                                  थे । 
23 -     02 - नारायणदासजी - [ठिकाना धमोरा]
23 -     03 - रायमलजी - बाघसिंह के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत कांधल राठौड़।  
            रायमलोत कांधल राठौड़ - बाघसिंह के पुत्र रायमलजी के वंशज रायमलोत कांधल राठौड़ 
            कहलाये हैं। रायमलजी की शादी माना झाला पुत्री  हीरादेकँवर के साथ हुयी थी। 
            रायमलजी;राव कांधलजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे। 
            रायमलजी के वंशज रोहतक [हरियाणा] के पास डमाणा गाँव में बसते है।
22  (02) - राजसिंह - राव कांधलजी के दूसरे पुत्र राजसिंह थे। कांधलजी को रावत की उपाधी  
              [पदवी] थी जो राव जोधाजी द्वारा प्रदान की गयी थी।।राव कांधल जी मृत्यु के बाद   
              उनके बड़े पुत्र बाघसिंह की शीघ्र म्रत्यु हो गयी थी तथा बाघसिंह (बाघ) के पुत्र बणीरजी  
              बहुत छोटी उम्र के थे। कांधल जी को जो, जोरावत की उपाधी थी वह उपाधी [पदवी] 
              उनके पुत्र राजसी के पास रही इसके कारण राजसी के वंसज रावत या रावतोत 
              कहलाये। राजसिंह को बीकानेर के चार रियासत ठिकानों में से एक ठिकाना राजासर 
              मिला जिसे वर्तमान में रावतसर के नाम से जनजाता है। राजासर के अलावा जेत्तपुर भी  
              इनका ठिकाना था।
              रावतोत कांधल राठौड़ -  राव कांधलजी के दूसरे पुत्र राजसिंह के वंसज रावतोत कांधल  
              राठौड़ कहलाये हैं।राजसिंह;राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पोते और राव राजा  
              चड़ाजी [राव छाडा जी] के पड़ पोते थे।  
              राजसिंह के पुत्र हुए - 
              01 - उदयसिंह - उदयसिंह के दो पुत्र हुए 
                     01- राघवदास [राधोदास]- रावतसर के राघवदास के वंशज राघव्दासोत भी 
                       कहलाये हैं । इनके बीकानेर रियासत में बिसरासर (इकोलड़ी ताजीम) व्  
                       घांघूसर [सादी ताजीम]के ठिकाने थे ।
                       राघोदासोत (राघव्दासोत) कांधल राठौड़ - उदयसिंह के पुत्र के राघवदासजी के            
                       वंशज राघोदासोत (राघव्दासोत) कांधल राठौड़ भी कहलाये हैं।  
                       राघवदासजी;राजसिंह के पोते और राव कांधलजी के पड़ पोते थे।
                       राघवदास [राधोदास]  के बाद क्रमश: 
                       " जगतसिह
                       " राजसिह
                       " लखधिर सिह
                       " चतर सिह
                       " आनंद सिह
                       " जयसिह
                       " हिम्त्सिह
                       " विजय सिह
                       " नार सिह
                       " जोरावर सिह
                       " रण जीत सिह
                       " हुकम सिह
                       " मान सिह
                       " तेज सिह
                       " घनस्याम सिह 
                       " बलभद्र सिह  रावतसर गद्धी पर रहे। 
                         तेजसिंह की राणी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत राजस्थान की जानी मानी विदुषी है।  
                         ये राजस्थान विधानसभा की सदस्य भी रही है।
                     02 - जगतसिंह - अकबर के समय गुजरात पर आक्रमण के समय वीरगति पायी 
                                              थी
              02 - किशनसिंह - राजसिंह रावतसर के पुत्र के किशनसिंह को कल्याणमल 
                     [बीकानेर] ने  जैतपुर (दोलड़ी ताजीम ) का ठिकाना दिया। गजसिंह के समय 
                     उनके बड़े भाई अमरसिंह जोधपुर की सेना को बीकानेर पर चढ़ा लाये । उस समय 
                     जैतपुर के स्वामी स्वरूपसिंह ने बरछे के वार से जोधपुर सेना के सेना नायक 
                     रतनचन्द्र भंडारी को मार डाला । यहाँ के स्वामी सरदारसिंह ने सूरतगढ़ बसाने के  
                     समय भट्टियों का दमन किया तथा सुरक्षा के लिए फतहगढ़ का निर्माण 
                     करवाया। इन ठिकानो के अलावा [इकोलड़ी ताजीम] महेल [सादी ताजीम] 
                    कालासर आदी रावतोंतो के ठिकाने थे।               
             03 - गोपालदास - राजसिंह के पुत्र गोपालदास के वंशज गोपालदासोत कांधल
             04 - मनोहरदास - राजसिंह के पुत्र मनोहरदास के वंशज  " 
                                   " चन्द्र सेन
                                   " देवसिह
                                   " अर्जन सिह
                                   " सुर सिह
                                   " स्वरूप सिह
                                   " सरदार सिह
                                   " ईस्वर सिह
                                   " कान्ह सिह
                                   " मूल सिह
                                   " माधो सिह
                                   " रुप सिह
22  (03) - अरिडकमलजी - रावत कांधल जी के तीसरे पुत्र थे। अरिडकमलजी को साहवा 
        ठिकाना मिला था बाद में उन्होंने  भटनेर व भादरण को अपना ठिकाना बनाया।  
        अरिडकमल जी के 6पुत्र थे। जिनके नाम इसप्रकार से है।
              01 - खेतसिह - ठीकाना साहवा भटनेर भादरा
              02 - सुलतान जी - भटनेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
              03 - देवीदास जी - भटनेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
              04 - सोरठ जी - भटनेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
              05 - शिवराम जी - भटनेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
              06 - नानक जी - इनका ठीकाना गुनुदी व् तनोदिया(ग्वालियर)
23 - (01) - खेतसी - खेतसी अडक मलजी के बड़े पुत्र थे। कांधलजी के पुत्र अरड़कमल को 
         साहवा का ठिकाना मिला था। अरड़कमल ने भटनेर जीता, कमरा ने जब भटनेर पर 
         आक्रमण किया उस समय भटनेर का किला अरड़कमल के पुत्र खेतसी के अधिकार में था। 
         कामरा ने खेतसी को अधीनता स्वीकार करने हेतु कहलवाया लेकिन खेतसी ने अधीनता 
         स्वीकार न की और मुगलों को  युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध शुरू हुआ , मुगल जब किले पर 
         चढ़ने का प्रयतन करने लगे तो वीर राजपूत की तरह खेतसी नंगी तलवार लिए किले बहार 
         आकर शत्रु दल पर टूट पड़ा और राजपूती शोर्य के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ । इसके बाद 
         कामरा बीकानेर पर आक्रमण करने बढ़ा।बीकानेर के साथ युद्ध में खेतसी के पुत्र साईंदास 
         कामरा के विरुद्ध लड़े ।
24 - साईं दासजी - साईं दासजी के वंसज साईंदासोत कांधल राठौड़ कहलाये हैं । साईं दासजी   
         खेतसी के पुत्र थे। साईं दासजी ने अपने पिता खेतसी के साथ कई युधों में भाग लिया। 
         बीकानेर की तरफ से अपने पिता के साथ सांगा कछवाह की सहायता को गये और विजयी 
         हुए। जब कामरान के साथ हुए भटनेर के युद्ध में इनके पिता खेतसी मारे गये उस समय ये 
         साहवा में थे। फिर कामरान ने बीकानेर पर आक्रमण कर वहा भी अधिकार कर लिया तब 
         महाराजा जेतसी ने देशनोक में शरण ली और अपने खास योद्धाओं को वहा इकट्ठा किया 
         तब साहवा से साईं दास जी, चुरू से बणीर जी, सांगा जी देवीदास जी रतनसिंह जी आदि 
         109 चुनें हुए वीरों के साथ करणी जी का आशीर्वाद लेकर कामरान पर आक्रमण किया रात्री 
         के समय हुए राठौड़ो के प्रबल आक्रमण को यवन झेल नही सके और भाग खड़े हुए। भागते 
         समय कामरान का क्षत्र (मुकुट) गिर गया था जिसे उठा ने की उसकी हिम्मत नही हुई 
         कामरान डर कर भाग गया विजय राठौड़ो की हुई। बीकानेर पर फिर से राठौड़ो का 
         अधिकार हो गया। विक्रम सम्वत 1597 में मालदेव (चुरू) ने बीकानेर पर हमला किया 
         तब जेतसी, साहवा में  साईं दासजी के यहाँ डेरे में रूके हुए थे लेकिन रात्री में जेतसी किसी   
         कारण से बीकानेर चले गये यह बात अन्य सरदारों में फुट गई तब सभी सरदार अपने  
         स्थानों को लोट गये। जब जेतसी वापिस लोटे तो सिर्फ 150 आदमी बचे थे, जो मालदेव 
         [चुरू]का मुकाबला नही कर सके ओर जेतसी मारे गए। इस युद्ध में साईं दासजी ने बीकानेर 
         की मदद की। कांधल जी ने सिरसा भट्टू फ्तेहावाद तक का क्षेत्र जीता था उसी क्षेत्र में दडबा 
         हलका पड़ता था जहां के स्वामी भीला बेनीवाल ने काफी आंतक मचा रखा था, भीला 
         बेनीवाल को साईं दासजी ने मारकर इस क्षेत्र पर फिर से अधिकार कर लिया। तब भीला 
         बेनीवाल की माता जो काफी समझदार थी ने साईं दासजी के साथ समझौता करके धर्मेला 
         करवा दिया जो साईं दासोत कांधलों व बेनिवालो में आज भी कायम है। साईं दास जी युद्ध    
         में मारे गए लेकिन मरते -मरते भी अपने हाथ में मौजूद लोटे से 18 दुश्मनों को यमलोक 
         पहुंचा के गये। 
         साईंदास के वंशज क्रमश जयमल ,आसकरण ,हरिसिंह ,दौलतसिंह ,व् लालसिंह को  
        जोरावरसिंह ने बीकानेर ने भादरा की जागीरी दी  
         लालसिंह अपने समय के स्वाभिमानी तथा वीर राजपूत थे  बीकानेर नरेश के वे विद्रोह हो 
         गए थे। बीकानेर के लिए सिरदर्द बन गए तब जोरावरसिंह ने जयपुर की सहायता ली तो 
         शार्दुलसिंह शेखावत ने लाल सिंह को पकड़कर नाहरगढ़ में रखा  
         सवाई जयसिंह की म्रत्यु के बाद उन्हें जोधपुर राजा ने छुड़ाया  बाद में बड़ी मुश्किल से   
         बीकानेर राजा गजसिंह ने उन्हें अपराध क्षमा कर भादरा ठिकाना छीन लिया 
         महाराज सरदारसिंह ने उनके वंशज बाघसिंह को माणकरासर की जागीर दी 
         लालसिंह के वंशज लालसीहोत कन्ध्ल भी कहलाते है , उनके वंशज कांधलान , झाडसर ,   
         झांझणी आदी इनके गाँवो के ठिकाने है 
         लालसिहोत के अतिरिक्त साईंदासोतो के वंशज सांवलसर ,सिकरोड़ी ,साहवा ,तारानगर   
         ,रेडी ,साहरण आदी इनके गाँवो के ठिकाने है 
         कांधल के पुत्र अरड़कमल के वंशजों में मालवा जिला साजापुर में गुणन्दी तथा तन्नोड़ीया   
         ठिकाने थे |कन्ध्ल के पुत्र पूरनमल के वंशज ये बिल्लू चुरू में है |
         साईं दासजी के सात पुत्र हुए जो इस प्रकार थे -    
25 -      01 जयमलजी - [ठिकाना साहवा]
25 -      02 कान सिंहजी -  [कान्ह जी] (ठिकाना (गुणा) गढ़ाणा तथा गाज्वास)
25 -      03 ठाकुरजी - [नि:संतान]
25 -      04 खंगारसिंहजी - ठिकाना [सिकरोड़ी] साईं दासजी के चोथे पुत्र का नाम खंगार सिह 
                  था। इन्होने अपने बाहुबल से ठिकाना सिकरोड़ी कायम किया। इतिहास के अनुसार 
                  गणना करने पर इनका समय 1690 के आसपास आता है। 
                  खंगार सिहजी के के चार पुत्र थे। जो इसप्रकार है।
25 -           01 - गोकुलदास जी - ठिकाना सिकरोड़ी गोकुलदास जी भी वीर पुरुष थे। पिता के 
                          बाद ठिकाना सिकरोड़ी के पाटवी हुए। इनके पुत्र  केसवदास( केसोदास)जी 
                          हुए। 
26 -                   केसोदासजी - ये वीर और साहसी पुरुष थे। अपने पिता के बाद सिकरोड़ी के 
                          ठाकुर  हुए। इन्होने अपने चाचा आसकरण जी कांधलोत ठिकाना साहवा के  
                          साथ मिलकर तथा भटनेर के जोइयों को साथ लेकर सिरसा के स्वामी राय  
                          जल्लू तथा उसके आदमियों को मारकर उनके 12 गावों पर अधिकार कर  
                          लिया था जिसकी शिकायत वहा के मुजारो ने बादशाह जहांगीर से की। जिस  
                          पर जहांगीर ने बीकानेर महाराजा को इस बारे में खत लिखा। तब महाराजा के  
                          कहने पर इन्होने वहा से अपना अधिकार छोड़ दिया। इनके बारे में ज्यादा  
                          जानकारी उपलब्ध नही होसकी है। इनके पुत्र दुर्जन शाल जी हुए। 
27-                   दुर्जनशालजी - अपने पिता के बाद पाटवी हुए। इनके समय में कई अन्य  
                          जातीय गाव में आकर बसी। इन्होने दो शादिया की एक मोहिलाणी जी तथा  
                          दूसरी भटियाणी जी। इनके दो पुत्र हुए।
                              01 - इन्द्रभान जी
                              02 - भाप सिहजी
28 -                   इन्द्रभान जी - ये दुरजन साल जी के बड़े पुत्र थे। अपने पिता के बाद पाटवी   
                          हुए। इनके दो पुत्र हुए।
                               01- रतन सिहजी
                               02 - चतर सिहजी
29 -                   रतन सिहजी - पिता के बाद पाटवी हुए। इनके तीन पुत्र थे।
                               01 - मुणसिहजी 
                               02  - भोपालसिहजी 
                               03 - हरिसिहजी
30 -                   मुण सिहजी - ये रतनसिह जी के बड़े बेटे थे अत अपने पिता के उतराधिकारी  
                          हुए। इनके एक पुत्र सवाई सिहजी हुए।
31 -                   सवाई सिहजी - सवाई सिहजी अपने पिता ठाकुर मुण सिहजी के बाद ठाकुर 
                          की पदवी बेठे। इनके दो पुत्र हुए।
                               01 - बुधसिहजी 
                               02  - हुकम सिहजी
32 -                  हुकम सिहजी - ये ठाकुर सवाई सिहजी के पुत्र थे। अपने पिता के ठाकुर हुए। 
                         इनके पुत्र खंगसिह जी हुए।
33 -                  खंग सिहजी - अपने पिता के उतराधिकारी हुए। ये रियासत काल में जेलर के  
                         पद पर थे। जब ये पद पर थे उसी समय की बात है सिकरोड़ी में चोधरियो व 
                         राजपूतों में किसी बात को लेकर झगड़ा होगया तब काफी मारकाट हुई जिसकी 
                         शिकायत जाटो ने बीकानेर महाराजा की तब सभी राजपूतो को सैनिक 
                         गिरफ्तार करके राजगढ लेगये तब इन्होने आकर बीकानेर बात करके सभी को 
                         छुटा कर लाये। इन्हें बीकानेर राजमाता ने दो तलवारे सम्मान स्वरूप भेंट की। 
                         इन्हें दोनों हाथों में सोने के कड़े थे। इनको अंग्रेज सरकार का तमगा मिला जो 
                         मेरे पास है। खंगसिहजी एकदम शांत तथा धार्मिक व बच्चो से प्रेम करने वाले 
                         पुरुष थे। बच्चे उनका इंतजार करते थे की दादोसा मिठाई लायेंगे। ये बच्चो के 
                         लियेरोजाना भादरा से मिठाई लाते थे। 
                         खंगसिहजी के दो पुत्र हुए।
34 -                       01 - भीम सिहजी 
34 -                       02 - भरत सिह जी
                         भीम सिहजी - ये बड़े थे। आप पटवारी से भर्ती होकर RAS सहायक कलेक्टर  
                         एवं दण्डाधिकारी (नाजम) रहे। समाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर भाग 
                         लेते थे। आप रावत श्री कांधल संस्थान के सक्रिय कार्यकर्ता रहें तथा संस्थान मे 
                         सराहनीय योगदान दिया ।इनकी मृत्यु 13 जुलाई1990 में हुई।
                         भीम सिहजी के चार पुत्र हुए तथा तीन पुत्रियां हुई -
35 -                  01 - विजय सिह जी- इनकी शादी ढाणी बाढाण ठिकाना मुल्कप्रिया शेखावत  
                         मोहन कँवर से हुई।ये प्रधानाध्यक् से सेवानिवृत्त है वर्तमान में इनका हनुमान  
                         गढ़ में महाराणा प्रताप मेमोरियल स्कुल है ।इनके दो पुत्र कुंवर राजेन्द्र सिह व 
                         कुंवर महेंद्र सिह।
                         02 - दोलत सिहजी - इनकी शादी ठिकाना इस्माईल पुर की शेखावत पुष्पा  
                         कँवर से  हुई है। ये EO नगर पालिका भादरा से सेवानिवृत्त हुए है। दोलत   
                         सिहजी के पुत्र महिपालसिह
                         03 - लूण सिहजी - इनकी शादी ठिकाना टीटणवाड की शेखावत मेना कँवर से  
                         हुई  तथा दो पुत्र कुंवर पवन सिह व कुंवर शक्ति सिह।
                         04 - सुमेर कँवर - बाईसा सुमेर कँवर की शादी ठिकाना बगड़ के हरिसिंहजी  
                         शेखावत के साथ हुयी । 
                         05 - शकुन्तला कँवर - बाईसा शकुन्तला कँवर की शादी ठिकाना बगड़ के    
                         विजेन्द्रसिंहजी शेखावत के साथ हुयी। 
                         06 - मोहन कँवर - बाईसा मोहन कँवर की शादी महावीरसिंहजी शेखावत  
                         ठिकाना कारंगा बड़ा के साथ हुयी। 
                         07 - अजय सिह जी - इनकी शादी ठिकाना इस्माईलपुर के ठाकुर श्री  
                          लालसिंह जी शेखावत तहसीलदार की पुत्रीअजीत कँवर से हुई है।आप भादरा  
                          से श्री राजपूत करणी सेना के तहसील अध्यक्ष है तथा सामाजिक नेता व रावत 
                         श्री कांधल संस्थान के सदस्य और श्री करणी मन्दिर सिकरोडी के व्यवस्थापक  
                          है। सिकरोडी में करणी मन्दिर बनाने में आपका योगदान अतुलनीय है तथा  
                         अत्यंत ही धार्मिक दयाभावी तथा शूरवीर निडर इंसान है और साहित्य तथा  
                         इतिहास  पर अच्छी पकड़ रखते है। इनके दो पुत्र व एक पुत्री हुयी -
                              01 - अभिमन्यु सिह 
                              02 - अर्जुन सिह 
                              03 - खुशबू कँवर[पुत्री]  
25 -          02  - नत्थू सिहजी - खंगार सिहजी के पुत्र  [निसंतान]
25 -          03 - किसन जी - खंगार सिहजी के पुत्र [निसंतान] 
25 -          04 - जसवंत सिहजी -खंगार सिहजी के पुत्र  जसवंत सिहजी के वंशज भट्टू तथा  
                         सिरसा में बसते है।
25 -      05 खींव जी - साईं दासजी के पुत्र (नि:संतान)
25 -      06 जालन जी - साईं दासजी के पुत्र (नि:संतान)
25 -      07 लक्ष्मण जी - साईं दासजी के पुत्र (नि:संतान)  
25 -      01 जयमलजी- साईं दासजी के पुत्र थे, जयमल जी चार पुत्र हुए-
                  01 - आसकरण जी साहवा
                  02 - मनोहरदास :- बे ओलाद
                  03 - अचलदास:- " "
                  04 - लिछ्म्न्दास:- " " तीनो भाई गुजरात के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
26 -     आसकरण - आसकरणजी नौ के पुत्र हुए 
            01 - हरिसिह - साहवा
            02 - जगदेव 
            03 - स्गत्जी
            04 - किसनजी
            05 - सवल्दास
            06 - रतन सिह
            07 - जेतसी
            08 - भोपाल जी येसातो भाई गुजरात के युद्ध में काम आये।
            09 - सहस मलजी:-सावल सर प्तरोड़ा
27 -     हरीसिह - हरीसिह के पुत्र हुए दौलतसिह - 
28 -     दौलतसिह - दौलतसिह के चार पुत्र हुए -
            01 - किरत सिह
            02 - कुशल सिह - साहवा रेडी सारण
            03 - जसवंत सिह
            04 - लालसिह - भादरा
            05 सावत सिह - महलिया डुंगराणा
29 -     लालसिह - लालसिह के सात पुत्र हुए -
            01 - अमर सिह भादरा
            02 - भादर सिह
            03 - विजय सिह
            04 - अनोप सिह पिथ्रासर
            05 - गुमान सिह पिथ्रासर
            06 - रामसिह झाड्सर
            07 - मोहन सिह झाड्सर
30 -     अमर सिह - अमर सिह के संतान नहीं होने के कारण चेनसिह झाड्सर के पुत्र  प्रतापसिह  
            को गोद लिया था  प्रताप सिह
            01 - रण जीत सिह - धुवाला
            02 - चान सिह - धुवाला
            03 - बाघ सिह - मानकसर 
            04 - हमीर सिह - मालासर
22  (04) -  रावत लखदीरसिंह - रावत लखदीरसिंह बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थे रावतसर के  
                   तीसरे रावत, अपने पिता की मृत्यु पर, उसने अपने भतीजे राव बणीरजी से  
                   रावतार के गद्दी को छीन लिया था क्योंकि, राव बणीरजी अपने दादाजी की मृत्यु के 
                   बाद छोटी उम्र में ही रावतसर के दूसरे राव बनें थे । रावत लखदीरसिंह के एक पुत्री  
                   छतरकंवर हुयी थी जो खंडेला [छोटा पाना] के राजा फतेहसिंह कछावा  
                   [गिरधरदासोत शेखावत]के पुत्र धीरजसिंह को ब्याही थी।   
22  (05) - पंचायणजी -  पंचायणजी  बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थे इनको ठीकाना कोहीना 
                  मिला था लेकिन अब इनके वंश का पता नही है।
22  (06) - सुजाणजी - सुजाणजी बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनको मेहरी का ठीकाना मिला  
                  था अब इनके वंश के बारे में जानकारी नही है।
22  (07) - सुरोंजी [सूराजी] - सुरोंजी [सूराजी] बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनको ठीकाना 
                  बरजागसर मिला था इनके वंशज लुन्कर्ण सर के पास गाव में बताते है।
22  (08) - पूर्णमलजी - पूर्णमलजी बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनका ठीकाना बिल्ल्यु था। 
22  (09) - पर्वतजी - बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेकांधल के पुत्र परवत के वंशज परवतोत 
                  कांधल इनका भी ठीकाना बिल्ल्यु था। 
22  (10) - नीमोजी [निम्बाजी] - नीमोजी [निम्बाजी] बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनका 
                  ठीकाना गडाना था।
22  (11) - खीवाजी - खीवाजी बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनका ठीकाना परस्नेऊ था। ये 
                  तथा इनके भाई सुरोजी महान योद्धा थे इन्होने राजू खोखर के साथ भयंकर युद्ध 
                  किया था। इनके वंश का भी पता नही है।
22  (12) - पीथोजी - पीथोजी बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थेइनकी जानकारी नही।
22  (13) - जगजीत - जगजीत बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थे
22  (14) - अभ्यजित - अभ्यजित बाघसिंह [बाघजी] के पुत्र थे
15 - बाईसा नाम..........की शादी द्रोणपुर[छापर] के राणा मेघसिंह के साथ हुयी थी।
16 - बाईसा नाम..........

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावासतहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थानपिन - 331304 ]
।।इति।।

2 comments:

  1. शानदार इतिहास की जानकारी।

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  2. Jorawat rathore ki history batao hukam

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