Tuesday, 25 April 2017

99 - जोधा राठौड़

जोधा राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खांपें - जोधा राठौड़

जोधा राठौड़ - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव जोधाजी के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये।राव जोधाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे।राव जोधाजी [जोधपुर] के सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए जिनमें से तीन पुत्र यानि राव बिकाजी, बीदोजी और राव दूदाजी को छोड़कर बाकि तेरह पुत्रों के वंसज जोधा राठौड़ कहलाते हैं। जौधा राठौड़ों की 45 उप शाखाएँ है ।
राव जोधाजी के पुत्रों से आठ [8] मुख्य शाखाएँ वा इसके अलावा सैतालिस [47] उप शाखाएँ
कुलमिलाकर पचपन[55] शाखाएँ निकली है। 

जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज ।
ख्यात अनुसार जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है- 
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
    01 - नयांअकेलीदेवी
    02 - गोसललदेवी
    03 - कुमारदेवी
    04 - वसंतादेवी

गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - 
 जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया। 

[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।] 
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।] 

कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
       01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
       02 –वरदायीसेनजी - 
कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।  

       03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम] 
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ] 
गूगलदेवजी के दो पुत्र हुए- 
        01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला] 
        02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा, 
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी। 
  • राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र। 
  • राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
02 - राजा कृष्णदेव - राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें। 
  • राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक। 
  • राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा] 
  • राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा] 
  • राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा] 
  • राणा बच्छराजदेव 
  • राणा दीपदेव 
  • राणा पहड़देव [प्रथम]
  • राणा उदयदेव 
  • राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में] 
  • राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान समय में अलीराजपुर भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में सिथत एक जिला है।]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है] 
 
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।। 

राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी 
पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -

        01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी 
                संवत 1272-1292)]
        02 - 
 राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या  
                वाजन  राठौड़ कहलाये हैं। 
        03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले 
               गए और वंहा के पहले राव बनें। 
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
     01 - राव दूहड़जी
     02 - राव धांधलजी
     03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
     04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
     05 - राव जैतमालजी
     06 - राव आसलजी
     07 - राव चाचिगजी
     08 - राव जोपसिंहजी
12 -  राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -            
        01 - राव रायपालजी -                                 [रायपालोत राठौड़ ]
        02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी]              [- 
के वंसज खेतपालोत राठौड़]
        03 - राव बेहड़जी [बेहरजी]                           [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
        04 - राव पीथड़जी                                        [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
        05 - राव जुगलजी [जुगैलजी]                       [- के वंसज जोगवत राठौड़]
        06 - राव डालूजी                                        [---------------------]
        07 - राव बेगरजी                                        [- 
के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
        08 - उनड़जी                                             [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
        09 - सिशपलजी                                         [- के वंसज सीरवी राठौड़] 
        10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान]     [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-         
        01 - कानपालजी                    -
        02 – केलणजी                       -
        03 – थांथीजी                       - [थांथी राठौड़]
        04 - सुंडाजी                         - [सुंडा राठौड़ ]
        05– लाखणजी                      - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        06 - डांगीजी                         - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
        07 - मोहणजी                       - [मुहणोत राठौड़]
        08 - जांझणजी                      - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
        09 - जोगोजी                        - [जोगावत राठौड़]
        10 - महीपालजी [मापाजी]      - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
        11 - शिवराजजी                    - [शिवराजोत राठौड़]
        12 - लूकाजी                         - [लूका राठौड़ ]
        13 - हथुड़जी                         - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        14 - रांदोंजी [रंधौजी]             - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
        15 - राजोजी [राजगजी]          - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -   
        01 - राव जालणसीजी
        02 - राव भीमकरण
        03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए - 
        01 - राव छाडाजी        
        02 - राव भाखरसिंह  
        03 - राव डूंगरसिंह  
16 - राव छाडाजी  - राव छाडाजी  [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए - 
        01 - राव तीड़ाजी 
        02 - राव खोखरजी 
        03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
        04 - राव सिहमलजी  
        05 - राव रुद्रपालजी  
        06 - राव खीपसजी 
        07 - राव कान्हड़जी - 
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक  पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं।  
                                    राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।  
                             राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
         01 - रावल मल्लीनाथजी   - [मालानी के संस्थापक]
         02 - राव जैतमलजी         - [गढ़ सिवाना]
         03 - राव विरमजी [बीरमजी] 
         04 - राव सोहड़जी           - के वंसज सोहड़ राठौड़
19 - राव विरमजी [बीरमजी] [1374-1383] - राव वीरामजी के पांच पुत्र थे -
         01 - राव चुण्डाजी
         02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
                    

                 देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर, 
                 देचू, सोमेसर] 
         03 - जैसिंघजी [जयसिंहजी] - जैसिंघजी के वंसज जयसिहोत[जैसिंघोत] राठौड़
         04 - बीजाजी - बीजावत राठौड़
         05 - गोगादेवजी - गोगादेवजी के वंसज गोगादे राठौड़ [केतु , तेना, सेखाला]
20 - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] के पुत्र राव चूण्डाजी थे। राव चूण्डाजी;राव सलखाजी के पोते और  राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे। मंडोर जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर है। मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। मंडोर  दुर्ग  783 ई0 तक परिहार  शासकों के अधिकार में रहा। इसके बाद नाड़ोल के चौहान  शासक रामपाल ने मंडोर  दुर्ग  पर अधिकार कर लिया था। 1227 ई0 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतनिश ने मंडोर  पर अधिकार कर लिया। यद्यपि परिहार  शासकों ने तुरकी   आक्रांताओं का डट कर सामना किया पर अंतत: मंडोर  तुर्कों के हाथ चला गया। लेकिन तुरकी  आक्रमणकारी मंडोर को लम्बे समय तक अपने अधिकार में नही रख सके एंव दुर्ग  पर पुन: प्रतिहारों का अधिकार हो गया। 1294 ई0 में फिरोज खिलजी ने परिहारों को पराजित कर मंडोर  दुर्ग पर  अधिकार कर लिया, परंतु 1395 ई0 में परिहारों की इंदा शाखा ने दुर्ग  पर पुन: अधिकार कर लिया और मंडोर गढ़ परिहार राजाओं का होगया ।  सन् 1395 में चुंडाजी राठौड़  की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला था तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौड़  शासकों का राज हो गया था। राव चूण्डाजी [1394 -1423] ने मंडोर पर राठौड़ राज कायम किया था। राव चूण्डाजी एक महत्वाकांक्षी शासक था। उन्होंने आस-पास के कई प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 1396 ई0 में गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने मंडोर पर आक्रमण किया। एक वर्ष के निरंत्तर घेरे के उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अधिकार करने में सफलता नही मिली और उसे विवश होकर घेरा उठाना पड़ा। 1453 ई0 में राव जोधाजी ने मंडोर के शासक बनें उन्होंने  मरवाड़ की राजधानी मंडोर  से स्थानान्तरित करके जोधपुर  बनायीं जिसके  कारण मंडोर  दुर्ग  धीरे-धीरे वीरान होकर खंडहर में तब्दील हो गया। राव विरमजी [बीरमजी] के छोटे पुत्र राव चुंडाजी थे। राव वीरम देव जी की मृत्यु होने के बाद राव चुंडाजी की माता मांगलियानी इन्हें लेकर अपने धर्म भाई आल्हो जी बारठ के पास कालाऊ गाँव में लेकर आगई वहीं राव चुंडा जी का पालन पोसण हुआ तथा आल्हा जी ने इन्हें युद्ध कला में निपुण किया था।  राव चुंडाजी बड़े होने पर मल्लीनाथ जी के पास आगये तब इन्हें सलेडी गाँव की जागीर मिली। राव चुंडाजी ने अपनी शक्ति बढाई तथा नागोर के पास चुंडासर गाँव बसाया और इसे अपना शक्ति केंद्र बना कर पहले मण्डोर को विजय  किया और मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद नागोर के नवाब जलालखां खोखर पर हमला कर उसे मार कर नागोर पर अधिकार करलिया फिर फलोदी पर अधिकार करलिया और वहां  शासन करने लगे। जब केलन भाटी ने मुल्तान के नवाब फिरोज से फोज की सहायता लेकर  राव चुंडा को परास्त करने की सोची मगर यह उसके बस की बात नहीं thee अतः धोखे से राव चुंडा को संधि के लिये बुलाया तथा राव चुंडा पर हमला कर दिया राव चुंडा तथा उनके साथी नागोर की रक्षा करते हुए गोगालाव नामक स्थान पर विक्रम सम्वत 1475 बैसाख बदी1 (15मार्च1423) को वीरगति को प्राप्त हुए। राव चुंडाजी के साथ राणी समंदरकंवर सांखली सती हुई। 
        01 - राव रिड़मलजी  
        02 - राव कानाजी  [1423-1424] - के वंसज कानावत राठौड़ 
        03 - राव सताजी  [1424-1427] - के वंसज सतावत राठौड़ 
        04 - राव अरड़कमलजी  - के वंसज अरड़कमलोत राठौड़
        05 - राव अर्जनजी   - के वंसज अरजनोत राठौड़
        06 - राव बिजाजी    - के वंसज बीजावत राठौड़ 
        07 - राव हरचनदेवी  - के वंसज हरचंदजी राठौड़ 
        08 - राव लूम्बेजी   -  के वंसज लुम्बावत राठौड़ 
        09 - राव भीमजी   -  के वंसज भीमौत राठौड़ 
        10 - राव सेसमलजी  - के वंसज  सेसमालोत राठौड़ 
        11 - राव रणधीरजी   - के वंसज रणधीरोत राठौड़ 
        12 - राव पूनांजी   - के वंसज पुनावत राठौड़  [खुदीयास ,जूंडा ]
        13 - राव शिवराजजी   - के वंसज सीवराजोत  राठौड़ 
        14 – राव रामाजी [रामदेवजी]  
        15 - राजकुमारी  हंसादेवी - राजकुमारी  हंसादेवी की शादी उदयपुर, राजस्थान [मेवाड़] के  
               सिसोदिया महाराणा लखासिंह [लाखाजी] के साथ हुयी थी। लखासिंह [लाखाजी] मेवाड़ के   
               तीसरे महाराणा थे। जो क्षेत्रसिंह के बेटे और हमीरसिंह के पोते थे।
21 - राव रिड़मलजी [1427-1438] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पुत्र राव रणमलजी [राव रिङमालजी] के वंसज रिड़मलोत राठौड़ [रिड़मालोत] राठौड़ कहलाये। राव रणमलजी [राव रिङमालजी];राव विरमजी [बीरमजी] के पोते और राव सलखाजी के पड़पोते थे। [1427-1438] के चौबीस पुत्र थे-
         01 - राव अखैराजजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अखैराजजी के वंसज बागड़ी [बगड़ी]  
                  राठौड़ कहलाये हैं।
         02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
         03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये  
                 हैं। इनके रावतसर , बीसासर , बिलमु , सिकरोड़ी आदि ठिकाने थे।
         04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
                 चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
         05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।  
                [रानीसगांव, आउवा ]
         06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी  
                 जैतमालोत राठौड़ कहलाये हैं।
         09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका  
                अलाय [बीकानेर में] ठिकाना था ।
         10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।  
                इनका चोटिला, आउ, करनू, बरजानसर,बूंगड़ी आदि ठिकाने थे।
         11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये  
                हैं। इनके मूंजासर, चाखु, भेड़, उदातठिकाने थे।
         12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।  
               इनके ठिकाने मूडी, काननों, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुर, कीतनोद, चांदसमा,  
               मुड़ाडो, जाजोलाई आदि थे।
         13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये  
                हैं।
         14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।  
               इनका अलाय मुख्य ठिकाना था।
         15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये  
                हैं। इनके मुख्य ठीकाने [हरखावत], [नाथूसर]आदि थे।
         16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़   
               कहलाये हैं। जो बीकानेर ठीकाने से सम्बन्ध रखतें हैं।
         17 - वेराजी - राव रणमलजी के पुत्र राव वेराजी के वंसज वेरावत राठौड़ राठौड़ कहलाये  
                 हैं।
         18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]  
               कहलाये हैं।
         19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़  
               कहलाये हैं।
         20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़  
                कहलाये हैं।
         22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
         24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव जोधाजी के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये।राव जोधाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और  राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे।[1453 ई.-1489 ई.] राव जोधाजी का जन्म 1415 में दुङ्लो [Dunlo]गांव में हुवा था। राव जोधाजी नें सोजत  को 1455, और 1459,में दो बार जीता था। राव जोधाजी राव रिड़मालजी के बेटे और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते तथा राव विरमजी के पड़पोते थे। जोधपुर शहर का नाम इन्हीं के नाम पर रखा हुवा है, राव जोधाजी ने अपनी राजधानी जोधपुर को 1459 में बनायीं थी  
राव जोधाजी की मत्यु 1488.में हुयी थी। राव जोधाजी [जोधपुर] की दूसरी जाती में भी शादियां हुयथी मगर जो राजपूत समाज में हुयी वो जालोर के सोनिगरा चौहान खीमा संतावत की बेटी से हुयी थी जिस से राव जोधाजी [जोधपुर] के सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए जिनमें से तीन पुत्र यानि राव बिकाजी, बीदोजी और राव दूदाजी को छोड़कर बाकि तेरह पुत्रों के वंसज जोधा राठौड़ कहलाते हैं। राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़,राव बीदोजी [बीदाजी] के वंसज बीदावत राठौड़ और राव दूदाजी के वंसज मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
राव जोधाजी [जोधपुर] सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए थे -
01 - राव सातलजी - [1489 ई.-1492 ई.] 
02 - राव सुजाजी 
03 - राव नींबाजी 
04 - करमसीजी - करमसोत राठौड़  [खींवसर, पांचोड़ी,नागदी , हलधानी, धणारी, सोयल  , आचीणा,  
                          भोजावास, उमरलाई , चटालियो , उस्तरा, खारी, हरिमो ]  राव मालदेवजी के   
                          देवलोक   होने के बाद जब उनके वंशजो में गद्दी पर बैठने को लेकर आपसी झगड़े में  
                          जुल्मों के कारण दीवान करमसी बिलाड़ा छोड़कर अपने सब आदमियों के साथ  
                          गोड़वाड़ की जारहे थे कि,31मार्च1526 को [आसोज सुद 11 संवत् 1627]  
                          सोजत से दुशमनों ने आकर ढोसी के पास घेर लिया । राव करमसीजी ढोसी के युद्ध  
                          में लड़ कर काम आये............करमसी का बेटा रूहितास जो उस वक्त सिर्फ 11  
                          बरस का था भाग कर गांव सथलोणे में एक सुनार के घर सात महीने तक रहा फिर  
                          जब सभी कैदी छूट करसोजत से बिलाड़े में आये । उन्हें जब पता चला तो रूहितास  
                          को सथलांणे से बुलाया फिर जोधपुर के  मोटा राजा उदयसिंहजी को बादशाह की     
                          तरफ से आईजी के केसर और छत्र के वास्ते मिले 125/रूपये और उन्होंने आधा  
                          जोड़ और एक बेरा भेंट किया । इससे रूहितास की दीवानी खूब चमकी । फिर जब  
                          महाराज श्री सूरसिंघजी पाट बैठे तो उन्होंने भी 125/- जोड़ और बेरे वगैरे भेंट   
                          किये ।
05 - बणवीरजी  - बनविरोत राठौड़
06 - जसवंतसिंह  - जसूत राठौड़ 
07 - कुंम्पाजी पावत  -  कुंम्पापावत राठौड़   
08 - चाँदरावजी  -   
09 - राव बिकाजी  - [1485 ई.-1504 ई.] बिका राठौड़
10 - बीदोजी  - बीदावत राठौड़   [बीदासर , जाखासर ]
11 - जोगाजी - राव जोगाजी के पुत्र हुए राव खंगारजी, खंगारजी के वंसज खंगारोत राठौड़ कहलाये हैं ।    
                     [खारिया, जालसू]
12 - भारमलजी  - भारमलोत राठौड़  [मांगल्या , बड़गरा , खंडवा  -मध्यप्रदेश] 
13 - राव दूदाजी  [1495 ई.-1525 ई.] - मेड़तिया राठौड़
14 - राव वरसिंह [बारसिंह] - वरसिंगहोत राठौड़, राव वरसिंह [बारसिंह] मेड़ता के पहले राव थे। 
15 - शिवराज - शिवराजोत राठौड़
16 - सामंतसिंह -
17 - राजकुमारी बीड़कँवर - बीड़कँवर की शादी  मेवाड़ के महाराणा रायमलसिंह के साथ हुयी जो   
                                     मेवाड़ सातवें महाराणा थे । बीड़कँवर को रानी श्रीनगरदेवी मेवाड़ के नाम  
                                     से भी जाना जाता है 
18 - राजकुमारी बृजकंवर - बृजकंवर  की शादी  मेवाड़ के महाराणा  संग्रामसिंह [प्रथम] के साथ हुयी   
                                    जो  मेवाड़ आठवें महाराणा थे ।
राव जोधाजी के पुत्रों से आठ [8] मुख्य शाखाएँ व इसके अलावा सैतालिस [47] उप शाखाएँ कुलमिलाकर पचपन[55] शाखाएँ निकली है। जो इसप्रकार है -

01 - करमसोत जोधा राठौड़ - राव जोधाजी के पुत्र करमसीजी के वंसज करमसोत राठौड़ कहलाये हैं। इन के ठिकाने गांव खींवसर, पांचौड़ी, नागड़ी, हल्दानी, घणारी, सोयला, आचीणा, भोजवास, उमरलाई, चटालियो, उसतरा,खरी, हरिमो आदि थे।[खींवसर, पांचोड़ी,नागदी , हलधानी, धणारी, सोयल, आचीणा,  भोजावास, उमरलाई , चटालियो , उस्तरा, खारी, हरिमो ]  राव मालदेवजी के देवलोक होने के बाद जब उनके वंशजो में गद्दी पर बैठने को लेकर आपसी झगड़े में जुल्मों के कारण दीवान करमसी बिलाड़ा छोड़कर अपने सब आदमियों के साथ गोड़वाड़ की जारहे थे कि,31मार्च1526 को [आसोज सुद 11 संवत् 1627] सोजत से दुशमनों ने आकर ढोसी के पास घेर लिया । राव करमसीजी ढोसी के युद्ध में लड़ कर काम आये। ...करमसी का बेटा रूहितास जो उस वक्त सिर्फ 11 बरस का था भाग कर गांव सथलोणे में एक सुनार के घर सात महीने तक रहा फिर जब सभी कैदी छूट कर सोजत से बिलाड़े में आये । उन्हें जब पता चला तो रूहितास को सथलांणे से बुलाया फिर जोधपुर के  मोटा राजा उदयसिंहजी को बादशाह की तरफ से आईजी के केसर और छत्र के वास्ते मिले 125/रूपये और उन्होंने आधा जोड़ और एक बेरा भेंट किया । इससे रूहितास की दीवानी खूब चमकी । फिर जब महाराज श्री सूरसिंघजी पाट बैठे तो 
उन्होंने भी 125/- जोड़ और बेरे वगैरे भेंट किये ।...
करमसोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव करमसीजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - बनवीरोत जोधा राठौड़ -  राव जोधाजी के पुत्र  राव बणवीरजी के वंसज बनवीरोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। करमसीजी का जन्म राव जोधाजी की भटियानी राणी की कोख से हुवा था
बनवीरोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव बणवीरजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - जसूत जोधा राठौड़ - राव जोधाजी के पुत्र  राव जसवंतसीजी के वंसज जसूत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
जसूत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव जसवंतसीजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - भारमलोत जोधा राठौड़ - जोधाजी के पुत्र भारमलजी के वंशज भारमलोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । जोधाजी की हूलणी राणी की कोख से भारमलजी का जन्म हुथा, भारमलजी के वंशज झाबुआ [मध्यप्रदेश] राज्य में निवास करते है। भारमलजी को उप नाम बिहारीदासजी के नाम से भी जाना जाता था जिसके कारण भारमलजी के वंशजों को बिहारीदासोत जोधा राठौड़ भी कहा जाता है।
भारमलोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव भारमलजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05 - बरसिंगोत जोधा राठौड़ - राव जोधाजी के पांचवे पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] मेड़ता के पहले राव थे। जोधाजी की सोनगरी राणी के पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] के वंशज बरसिंगोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । बरसिंह अपने भाई राव दुदाजी के साथ मेड़ते रहते थे । दूदाजी से अजमेर के मुसलमानों ने संवत् 1542 में मेड़ता छीन लिया तब बरसिंह व राव दुदाजी दोनों अपने भाई बीकाजी के पास रहने लगे । मालवा के झबुवा में बरसिन्होत जोधा राठौड़ो का राज्य रहा है ।बरसिंहजी, दूदा, सूजा, वरजांग भीमोत - वि.सं. 1548 की चैत्र सुदी 3 [13 मार्च, 1491] को अजमेर के सूबेदार मल्लूखां (मलिक युसुफ) ने मेड़ता की चढ़ाई कर अपनी सेना सहित कोसाना गांव पहुंचा । उस समय गांव की बहुत-सी कन्यायें बस्ती से बाहर तालाब पर गौरी पूजनार्थ गई हुई थी। बरसिंहजी को जब पता चला तो वे मल्लूखां को रोकने के लिए पहिले ही मेड़ता पहुंच चुके थे। कन्याओं पर अत्याचार हुआ सुनकर मुसलमानों पर हमला बोल दिया और कन्याओं को छुड़ाकर साथ में मय ‘घुड़लाखां’ की रूपवती कन्या ‘गिंदोली’को भी ले आये ले आये। परन्तु बरसिंहजी स्वयं इतने घायल हो गये थे कि डेरे पर पहुंचने के बाद उसी रात को उनकी मृत्यु होगयी। राव बरसिंहजी [वरसिंह] के दो पुत्र थे-
            01 - सीहाजी - राव जोधाजी] के पांचवे पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] के पुत्र राव सीहाजी          
                    मेड़ता के दूसरे राव सीहाजी मेड़ता के दूसरे राव थे । तथा इनके वंशजों को झाबुआ  
                    [मध्यप्रदेश] राज्य मिला था। सीहाजी के पुत्र हुए जैसोजी, जैसोजी,के पुत्र हुए  
                     रामदासजी, रामदासजी के पुत्र हुए भीमसिंह [1521],भीमसिंह के पुत्र हुए  
                     केशवदासजी, केशवदासजी को 1548-1607   
             02 - आसकरणजी - राव बरसिंहजी [वरसिंह] के पुत्र राव आसकरण हुए ।
बरसिंगोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव बरसिंहजी [वरसिंह] - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06 - रामावत जोधा राठौड़ - यह शाखा बरसिंगोत जोधा राठौड़ की उप शाखा है। आसकरणजी के पुत्र रामसिंह के वंसज रामावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। रामसिंह;राव बरसिंहजी [वरसिंह]; राव जोधाजी के पांचवे पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] मेड़ता के पोते के और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
रामावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
रामसिंह - राव आसकरणजी - राव बरसिंहजी [वरसिंह] - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
रामावत जोधा राठौड़ का विवरण इस प्रकार है-
राव जोधाजी के पांचवे पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] मेड़ता के पहले राव थे। जोधाजी की सोनगरी राणी के पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] के वंशज बरसिंगोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । बरसिंह अपने भाई राव दुदाजी  के साथ मेड़ते रहते थे । दूदाजी से अजमेर के मुसलमानों ने संवत् 1542 में मेड़ता छीन लिया तब बरसिंह व राव दुदाजी दोनों अपने भाई बीकाजी के पास रहने लगे । मालवा के झबुवा में बरसिन्होत जोधा राठौड़ो का राज्य रहा है । बरसिंहजी, दूदा, सूजा, वरजांग भीमोत - वि.सं. 1548 की चैत्र सुदी 3 [13 मार्च, 1491] को अजमेर के सूबेदार मल्लूखां (मलिक युसुफ) ने मेड़ता की चढ़ाई कर अपनी सेना सहित कोसाना गांव पहुंचा । उस समय गांव की बहुत-सी कन्यायें बस्ती से बाहर तालाब पर गौरी पूजनार्थ गई हुई थी। बरसिंहजी को जब पता चला तो वे मल्लूखां को रोकने के लिए पहिले ही मेड़ता पहुंच चुके थे। कन्याओं पर अत्याचार हुआ सुनकर मुसलमानों पर हमला बोल दिया और कन्याओं को छुड़ाकर साथ में मय ‘घुड़लाखां’ की रूपवती कन्या ‘गिंदोली’को भी ले आये ले आये। परन्तु बरसिंहजी स्वयं इतने घायल हो गये थे कि डेरे पर पहुंचने के बाद उसी रात को उनकी मृत्यु होगयी। राव बरसिंहजी [वरसिंह] के दो पुत्र थे-
     01 - सीहाजी - राव जोधाजी] के पांचवे पुत्र राव बरसिंहजी [वरसिंह] के पुत्र राव सीहाजी मेड़ता के  
         दूसरे राव सीहाजी मेड़ता के दूसरे राव थे । तथा इनके वंशजों को झाबुआ [मध्यप्रदेश]   राज्य  
         मिला था। सीहाजी के पुत्र हुए जैसोजी, जैसोजी,के पुत्र हुए रामदासजी, रामदासजी के  पुत्र हुए        
         भीमसिंह [1521],भीमसिंह के पुत्र हुए केशवदासजी, केशवदासजी को 1548-1607 में  
         झाबुआ [मध्यप्रदेश] का राज्य मिला था।
     02 – आसकरणजी - राव बरसिंहजी [वरसिंह] के पुत्र राव आसकरणजी हुए ।
        आसकरणजी के पुत्र हुए, मालजी [मेड़ता के ठाकुर] 
        मालजी के पुत्र हुए, रामसिंह, रामसिंह की मृत्यु 1631.में हुयी थी।
        रामसिंह - रामसिंह ने बांसवाड़ा की गद्दी के लिए चौहानों और राठौड़ो के बीच युद्ध विक्रमी 
        1688में वीरता तथा वीरगति को प्राप्त हुए । [रामसिंह के तरह पुत्र बताये जाते हैं]  
        रामसिंह के पुत्र हुए, अखैराजजी,
        अखैराजजी को 1671 में कुशलगढ़ की जागीर मिली और वे वहां के ठाकुर बनें।
        अखैराजजी के पुत्र हुए, अजबसिंह।
         अजबसिंह के पुत्र हुए, कीरतसिंह।
         कीरतसिंह के पुत्र हुए, अचलसिंह।
         अचलसिंह के पुत्र हुए, भगवतसिंह।
         भगवतसिंह के तीन पुत्र हुए-
         01- राव जालिमसिंह - राव जालिमसिंह को राव की उपाधि थी जो उदयपुर के महाराणा 
              भीमसिंह ने प्रदान की थी ।
         02 - सालमसिंह - सालमसिंह के एक पुत्र हुवा हमीरसिंह जिनको  उनके चाचाजी राव 
                जालिमसिंह गोद लेलिया।
        03 - सरदारसिंह - सरदारसिंह जागीर हिम्मतगढ़  मिली।
                राव हमीरसिंह [कुशलगढ़] के दो पुत्र हुए-
                01 - राव जोरावरसिंह 
                02 - तखतसिंह - तखतसिंह को जागीर ताम्बेसरा मिली।
                राव जोरावरसिंह - राव जोरावरसिंह की मृत्यु 1891.में हुयी।
                कुशलगढ़ के राव जोरावरसिंह के एक पुत्री और चार पुत्र थे -
                01 - दौलतसिंघ
                02 - उदयसिंह 
                03 - जसवंतसिंह - जसवंतसिंह जन्म1862 में और जसवंतसिंह को जागीर चुडाबर  
                       [रामगढ] मिली।
                04 - दीपसिंह
                05 - नाथकँवर - नाथकँवर कि शादी 1886 में बड़ी सादड़ी के राणा राजा  रायसिंह 
                     [तृतीय] के साथ उन की तीसरी पत्नी के रूप में हुयी। 
                    रामसिंह के तीसरे पुत्र जसवंतसिंह के जयेष्ट पुत्र अमरसिंह को साठ गाँवो सहित खेड़ा 
                    की जागीरी मिली जो रतलाम राज्य में थी । बाद में खेड़ा की जागीरी को अंग्रेजी 
                     सरकार द्वार विक्रमी संवत 1926 में कुशलगढ़ बांसवाडा के नीचे कर दिया ।
                     रामसिंह के पुत्र हुए जसवंतसिंह ,जसवंतसिंह के दो पुत्र हुए -
                     01 - अमरसिंह [ठिकाना गांव खेड़ा]
                     02 - अखेराजसिंह [ठिकाना गांव खेड़ा]
                             अखेराजसिंह के पुत्र हुए,कल्याणदासजी; 

                             कल्याणदासजी के पुत्र हुए, कीर्तिसिंह;
                             कीर्तिसिंह के पुत्र हुए,दलसिंह; 

                             दलसिंह के पुत्र हुए, अचलसिंह;
                             अचलसिंह के पुत्र हुए, भगवतसिंह; 

                             भगवतसिंह के पुत्र हुए राव लालमसिंह;
                             राव लालमसिंह के पुत्र हुए,राव हमीरसिंह ;

                             राव हमीरसिंह के पुत्र हुए राव जोरावरसिंह ;
                             राव जोरावरसिंह के पुत्र हुए,राव उदयसिंह ;
                             राव उदयसिंह के पुत्र हुए राव ब्रजबिहारी सिंह;
                             राव ब्रजबिहारी सिंह के पुत्र हुए,राव हरेन्द्रकुमारसिंह ;
                             राव हरेन्द्रकुमारसिंह के पुत्र हुए राव मानवेन्द्रसिंह [कुशलगढ़]
                             राव मानवेन्द्रसिंह को कुशलगढ़ राज्य [बांसवाड़ा, राजस्थान] मिला था।

07 - कुंम्पापावत जोधा राठौड़ - राव जोधाजी के पुत्र राव कूँपाजी के वंसज कुंम्पापावत जोधा राठौड़  कहलाये हैं।
कुंम्पापावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव कूँपाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - शिवराजोत जोधा राठौड़ - राव जोधाजी के पुत्र राव शिवराज के वंसज शिवराजोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। शिवराजजी का जन्म राव जोधाजी की बघेली राणी की कोख से हुवा था।
शिवराजोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव शिवराजजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09 - बाघावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र बाघाजी के वंसज बाघावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। बाघाजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
सुजाजी के पुत्र बाघाजी के सात पुत्र हुए थे -
                 01 - राव  गंगाजी - गंगावत जोधा राठौड़
                 02 - वीरमजी - [पहाड़पुर, आरण , शिकारपुर]
                 03 - प्रतापसिंहजी - प्रतापसिंहोत जोधा राठौड़
                 04 - भीमजी  -
                 05 - पात्सीजी -  
                 06 - सींगणजी
                 07 – जैतसी
बाघावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - नारावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र नाराजी के वंसज नारावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। नाराजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव भड़ान, बूह आदि थे।
नारावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
नाराजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11 - गांगवत जोधा राठौड़ - बाघाजी के पुत्र राव गंगाजी [1515  ई.-1532  ई.] के वंसज गांगवत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।  राव गंगाजी; राव सुजाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे। राव गंगाजी के छह पुत्र थे -
     01 - राव मालदेवजी 
     02 - मानसिंहजी 
     03 - वैरीसालजी -  [कालीजाल, साली]
     04 - किशनसिंह  - [कालीजाल,साली] के वंसज किशनावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
     05 - सादूलजी
     06 - कानजी
गांगवत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव गंगाजी - बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।  
12 - प्रतापसिंहोत जोधा राठौड़ - राव बाघाजी के पुत्र प्रतापसिंहजी के वंसज प्रतापसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। प्रतापसिंहजी;राव सुजाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
प्रतापसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
प्रतापसिंहजी - बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज। 
13 - शेखावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव सेखाजी [सेखजी] के वंसज शेखावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। इनको सिखावत जोधा राठौड़ भी कहा जाता है, राव सेखाजी [सेखजी];राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
शेखावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव सेखाजी [सेखजी]  - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - देवीदसोत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव देवीदासजी के वंसज देवीदसोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव देवीदासजी; राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
देवीदसोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव देवीदासजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - उदावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव उदाजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव रायपुर, नीमज, रास, ढोली, लाम्बिया, गुढ़वाच, पालासनी आदि थे।
उदावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव उदाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
16 - प्रयागदासोत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव प्रयागदासजी के वंसज प्रयागदासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव प्रयागदासजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
प्रयागदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव प्रयागदासजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
17 - सांगावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव सांगाजी के वंसज सांगावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव सांगाजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
सांगावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव सांगाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
18 - नापावत जोधा राठौड़ - राव सुजाजी के पुत्र राव नापाजी के वंसज नापावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । नापाजी;राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मालजी [रणमल जी] के पड़ पोते थे।
नापावत जोधा राठौड़ों के ठिकाने गांव भडानो, बासुरी, बुडु, कसूबा आदि थे।
नापावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव नापाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
19 – खंगारोत जोधा राठौड़ - राव खंगारजी के वंसज खंगारोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव खंगारजी; राव जोगाजी के पुत्र और राव जोधाजी के पोते थे।
खंगारोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव खंगारजी - राव जोगाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

20 - किशनावत जोधा राठौड़ - राव गंगाजी के पुत्र किशनसिंह के वंसज किशनावत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। किशनसिंह; राव बाघाजी के पोते और राव सुजाजी के पड़ पोते थे।
किशनावत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
किशनसिंह - राव गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
21 - रामोत जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र राव रामजी के वंसज रामोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव रामजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे। राव मालदेवजी के पंद्रह पुत्र थे -
राव रामजी - राव मालदेवजी के पुत्र राव रामजी के वंसज रामोत जोधा
                  राठौड़ कहलाये हैं। राव रामजी के सात पुत्र थे -
                 01 - कारणजी
                 02 - कलाजी
                 03 - केशवदासजी
                 04 - नारायणजी
                 05 - भोपतजी
                 06 - कालूजी
                 07 - पूरणमलजी 


रामोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव रामजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

22 - चन्द्रसेणोत जोधा राठौड़ – मालदेव के पुत्र और राव गंगाजी पोते, राव चन्द्रसेनजी के वंसज चन्द्रसेनोत जोधा कहलाये है। राव चंद्रसेनजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे। राव चन्द्रसेनजी के तीन पुत्र हुए
        01राव रायसिंह  [1582ई.-1583ई.]
        02राव आसकरणजी 
        03राव उग्रसेनजी
चन्द्रसेणोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव चन्द्रसेनजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
23 - रायपालोत जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र राव रायमलजी के वंसज रायपालोत जोधा राठौड़  कहलाये हैं। रायमलजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।
रायपालोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव रायमलजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
24 - भानोत जोधा राठौड़  - राव मालदेवजी के पुत्र राव भानजी के वंसज भानोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। भानजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।
भानोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव भानजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
25 - रतनसिंहोत [मालदेवजी का] जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र राव रतनसिंह के वंसज रतनसिंहोत [रतनोत] जोधा राठौड़ कहलाये हैं। रतनसिंह ;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।इनके ठिकाने गांव भाद्राजून , भांवरी , बाला , बीजाल , भांडेलाव , पराव - बीकानेर में आदि थे।
रतनसिंहोत [मालदेवजी का] जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव रतनसिंह - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
26 - भोजराजोत जोधा राठौड़- राव मालदेवजी के पुत्र राव भोजराजजी  के वंसज भोजराज जोधा राठौड़ कहलाये हैं। भोजराजजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।इनके ठिकाने गांव भागासनी , राबड़िया , लूणओ आदि थे।
भोजराजोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव भोजराजजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
27 - विक्रमादित जोधा राठौड़  - राव मालदेवजी के पुत्र राव विक्रमादित के वंसज विक्रमादित जोधा राठौड़ कहलाये हैं। विक्रमादित;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।
विक्रमादित जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव विक्रमादित - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
28 - गोपालदासोत जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र राव गोपालजी के वंसज गोपालदासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। गोपालजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।
गोपालदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
राव गोपालजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

29 - महेशदासोत जोधा राठौड़  - राव मालदेवजी के पुत्र राव महेशदासजी के वंसज महेशदासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। महेशदासजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे।इनके ठिकाने गांव पाटोदी, केलाना, नेवरी, फलसूण्ड, साई, सीख, नेहवाई, नागणी आदि थे।

महेशदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 


राव महेशदासजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

30 - तिलोकसिंहोत जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र रावतिलोकसिंहजी के वंसज तिलोकसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। तिलोकसिंहजी;राव गंगाजी के पोते और बाघाजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव राबडिया, लुणावा, लूणओ आदि थे।
तिलोकसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव तिलोकसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
31 - केशरिसीहोत जोधा राठौड़ - राव मालदेवजी के पुत्र रायमल, रायमल के पुत्र केशरीसिंह के वंसज केशरिसीहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। इनके ठिकाने गांव लाडणु [6 गाँव] सीगरावट [3 गाँव ] लेहड़ी [5 गाँव ]गोराउ [3 गाँव ] मामडोदा [2गाँव] तूबरो [2 गाँव] सेतो [2 गाँव] सीगरावट [2 गाँव ] खारडीया [2 गाँव ] कुस्बी जाखड़ा ,अंगरोटियों आदी मुख्य ठिकाने थे।
केशरिसीहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
केशरीसिंह - राव रायमलजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
32 - अर्जुनसिहोत जोधा राठौड़ - अर्जुनसिहोत जोधा राठौड़, केशरिसीहोत जोधा राठौड़ की उप शाखा है रायमल के पुत्र केसरी सिंह के पुत्र अर्जुनसिंह से अर्जुनसिहोत जोधा राठौड़ उप शाखा भी निकली है जिन के सीवा, रसीदपूरा , रामदणा , कुसुम्भी , मिढ़ासरी,सावराद, लोढ़सर , खारडीया , मंगलपूरा , मांजरा,तान्याउ , ललासरी, सिकराली , कंग्सिया , कुमास्यो,रताऊ , भंडारी , मोलासर आदि मुख्य ठिकाने थे।
अर्जुनसिहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
अर्जुनसिंह - केशरीसिंह -राव रायमलजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
33 - करमसेनोत जोधा राठौड़ - राव उग्रसेनजी के पुत्र राव करमसेनजी के वंसज करमसेनोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।राव करमसेनजी;राव चन्द्रसेनजी के पोते और मालदेवजी के पड़ पोते थे। राव उग्रसेनजी के तीन पुत्र हुए-
      01 - करमसेन जी [करनसेन] - करमसेनोत जोधा राठौड़
      02 - कल्याणदासजी
      03 - कान्हाजीजी  
      राव करमसेनजी के दो पुत्र हुए -
              01 - राव श्यामसिंह
              02 - गिरधरसिंह - ठिकाना गांव संतोला 
                      राव श्यामसिंह के दो पुत्र हुए-
                     01 - राव उदयभानजी [ठिकाना भिनाय, अजमेर]  राव उदयभानजी के दो पुत्र हुए-
                             01 - राजा केसरीसिंह [ठिकाना भिनाय]
                             02 - राजा सूरजमलजी [बादनवाड़ा]
                     02 - राव अखेराज [देवलिया कल्ला] राव अखेराज के छह पुत्र हुए-
                            01 - नरसिंहदासजी [टांटोटी] 
                            02 - ईश्वरदासजी [देवलिया कला]
                            03 - देवीदासजी [बड़ली]
                            04 - नाहरसिंहजी [देवगांव बघेरा]
                            05 - गजसिंहजी [कैरोट]
                            06 - हरिसिंहजी [जैतपुरा, जड़ाना, कचरिया]
करमसेनोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव करमसेनजी - राव उग्रसेनजी - राव चन्द्रसेनजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
34 - नरहरदासोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र नरहरदासजी के वंसज नरहरदासोत जोधा राठौड़ कह लाये हैं।नरहरदासजी;राव मालदेवजी के पोते और राव बाघाजी के पुत्र राव गंगाजी के पड़ पोते थे। राव सुजाजी के पुत्र राव बाघाजी थे। राज्य नरवर और, कृष्णगढ ठिकाने गांव सोलासर, मोरेर थे।किशनगढ़ [किशनगढ़ को पहले कृष्णगढ या कृष्णगढ राज्य भी कहा जाता था।]
नरहरदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
नरहरदासजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
35 - जगनाथेत जोधा राठौड़ - जगनाथेत जोधा राठौड़; नरहरदासोत जोधा राठौड़ की उप शाखा है। नरहरदासजी के पुत्र जगनाथजी के वंसज जगनाथेत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। जगनाथजी;मोटाराजा उदयसिंहजी के पोते और राव मालदेवजी के पड़ पोते थे। राज्य नरवर  और, कृष्णगढ ठिकाने गांव सोलासर, मोरेर थे। किशनगढ़ [किशनगढ़ को पहले कृष्णगढ या कृष्णगढ राज्य भी कहा जाता था।]
जगनाथेत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
जगनाथजी - नरहरदासजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
36 - भगवानदासोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र भगवानदासजी के वंसज भगवानदासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। भगवानदासजी;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। भगवानदासजी के दो पुत्र हुए -
          01 - गोविंददासजी - भगवानदासोत जोधा राठौड़ की उप शाखा गोयन्ददासोत जोधा राठौड़ है।  
          भगवानदासजी के पुत्र गोयन्ददासजी के वंसजगोयन्ददासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
          गोविंददासजी गोविंदगढ़ [तहसील पीसांगन, जिला अजमेर, राज्य राजस्थान] के संस्थापक थे।
          गोविंदगढ़ एक छोटा सामंती राज्य [istimrari] था जिसके गोविंददासजी पहले  ठाकुर बने।
          इनके ठिकाने गांव छेरवा, बाबरों, बलाडो, खारडी, बुटियास, अचलपुरो, अन्तरोली, बड़ी रोइकइ,
          खातोलाई आदि थे ।
          02 - गोपालदास जी -
भगवानदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
भगवानदासजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

37 -गोयन्ददासोत जोधा राठौड़ - भगवानदासोत जोधा राठौड़ की उप शाखा गोयन्ददासोत जोधा राठौड़ है। भगवानदासजी के पुत्र गोयन्ददासजी के वंसजगोयन्ददासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। गोविंददासजी गोविंदगढ़ [तहसील पीसांगन, जिला अजमेर, राज्य राजस्थान] के संस्थापक थे। गोविंदगढ़ एक छोटा सामंती राज्य [istimrari] था जिसके गोविंददासजी पहले ठाकुर बने। इनके ठिकाने गांव छेरवा, बाबरों, बलाडो, खारडी, बुटियास, अचलपुरो, अन्तरोली, बड़ी रोइकइ, खातोलाई आदि थे ।
गोयन्ददासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
गोयन्ददासजी - भगवानदासजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
38 - भूपतोत जोधा राठौड़ - भूपतोत जोधा राठौड़ - भोपत सिंह मोटा राजा उदय सिंह के चौथे बेटे भोपतसिंह [भूपतसिंह] के वंसज भूपतोत जोधा कहलाये हैं। भोपतसिंह व उनके भाई किशन सिंह ने जोधपुर छोड़दिया था। इन दोनों भाइयों को किशनगढ़ राज्य में [नरैना Naraina, भदूण Bhadoon, पालड़ी Paldi, जाजोता Jajota और मानपुरा Manpura] आदि पांच ठिकाने[गांव] मिले थे। भोपतसिंह नरैना ठिकाने में रहते थे,भोपतसिंह [नरैना] के तीन पुत्र थे -
        01 - रघुनाथसिंहजी
        02 - रामचंद्रसिंहजी
        03 - मुकुंददासजी

                 
रघुनाथसिंहजी - रघुनाथसिंह को ठिकाना गांव भदूण मिला था, इसलिए भोपतजी के  
                                        पुत्र  रागुनाथजी के वंसज भदुना गांव [किशनगढ़ जिला अजमेर,   
                                        राजस्थान] में रहतें हैं, रघुनाथसिंहजी के दो पुत्र हुए -
                                        01 -  मोहसिंह - रघुनाथसिंह के पुत्र मोहसिंह के वंसज मोहनदासोत ,  
                                                मोहसिंह के तीन  पुत्र हुए -
                                                01 - कल्याणसिंह
                                                02 - कालूसिंह
                                                03 -  गोकुल सिंह 
                                                02 – बहादुरसिंह - रघुनाथसिंह के पुत्र                    
                  रामचंद्रसिंहजी - भोपत जी के बड़े बेटे रामचंद्र जी के वंसज बरखेड़ा कलां [तहसील  
                                        आलोट, जिला रतलाम मध्यप्रदेश] में रहतें हैं इनका 24 गांवों का  
                                          ठिकाना है।
                   मुकुंदसिंहजी - भोपत जी के दूसरे बेटे मुकुंददास के वंशजों के ठीकानें  
                                       गोंदिशंकर(गुणदी), खेजड़िया, बजखेड़ी, [मध्यप्रदेश में ] हैं,यहां  
                                       जिसमे से गोंदिशंकर 10गांव का , खेजड़िया 12 गांव का दोहरी  
                                       ताज़ीम के ठिकाने है।
भूपतोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
भोपतसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
39 - जैतसिंहोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र जैतसिंह के वंसज जैतसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। जैतसिंह;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। जीतगढ़ , खैरवा , नोखा इनके ठिकाने गांव थे।
जैतसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
जैतसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

40 - रतनोत [हरिसिंह का] जोधा राठौड़ - हरिसिंह के पुत्र रतनसिंह के वंसज रतनोत [हरिसिंह का] जोधा राठौड़ कहलाये हैं। इनको रतनसिंहोत [हरिसिंह का] जोधा राठौड़ भी कहा जाता है। रतनसिंह;जैतसिंह के पोते और मोटाराजा उदयसिंहजी के पड़ पोते थे। इनके ठिकाने गांव दुगांलि खास, लोहोटो, पठान रो बास आदि थे।
रतनोत [हरिसिंह का] जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
रतनसिंह - हरिसिंह - जैतसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
41 - माधोदासोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र माधोदासजी [माधोसिंह] के वंसज माधोदासोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। मोहनदासजी; राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। [जुनिया, पीसांगन, पारा, गोविंदगढ़, महरु] माधोदासजी के दो पुत्र हुए -
       01 - सुजानसिंह
       02 - केसरसिंह

माधोदासोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
माधोदासजी [माधोसिंह] - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
42 - दलपतसिंहोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के दसवें पुत्र दलपतजी को हुए, जिनके वंसज दलपतसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। दलपतजी;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। दलपतजी को जालोर मिला था,इसलिए जालोर चले गए।
दलपतसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
दलपतजी को को अपने पिता से ठिकान गांव पीसांगन Pisangan [जिला अजमेर, राजस्थान की एक तहसील] मिला था। राव दलपतजी की शादी आमेर के राजा राजा मानसिंह की बहन के साथ हुयी थी, राव दलपतजी के पांच पुत्र थे -
     01 - महेशदासजी
     02 - जसवंतसिंह
     03 - प्रतापसिंघ
     04 - जुझारसिंह
     05 - कुनीरामसिंह

43 - रतनसिंहोत जोधा राठौड़ - दलपतजी के पुत्र रतनसिंह [1632-1658] के वंसज रतनसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। रतनसिंह;  मोटाराजा उदयसिंहजी के पोते और राव मालदेवजी के पड़ पोते थे। रतलाम रियासत [मध्यप्रदेश] के संस्थापक रतनसिंहजी थे। रतनसिंहजी ने मुगल सम्राट् शाहजहाँ के पसंदीदा हाथी को शांत करके पादशाह शाह के दिल में जगह बनाली, रतनसिंहजी ने 1652 में काबुल और कंधार में फारसियों के खिलाफ सम्राट शाहजहाँ के लिए लड़ाई लड़ी, रतनसिंहजी 1658 में रतलाम के पहले राजा बन गए, मुगल सम्राट् शाहजहाँ की मृत्यु की एक झूठी अफवाह ने उनके पुत्रों के बीच सिंहासन के उत्तराधिकार के लिए झगड़ा और हाथापाई होगयी। मुगल सम्राट् शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह [दाराशूकोह], जो अपने पिता के पास रहते थे, ने अपने भाई औरंगजेब के खिलाफ, जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की कमान के तहत राजपूतों और मुसलमानों की एक संयुक्त सेना को भेजी । उस समय मुस्लिम कमांडरों द्वारा असहयोग के परिणामस्वरूप राठौड़ कबीले के प्रमुख महाराजा रतन सिंह को शाही सेना की कमान सौंपी गयी। तब औरंगजेब और मुराद ने दारा के 'धर्मद्रोही' होने का नारा लगाया तब उज्जैन के  पास धर्माट Dharmat [तहसील देपालपुर, जिला इंदौर, मध्यप्रदेश] में युद्ध हुवा उस युद्ध में रतन सिंह के शरीर पर तलवार के 80 घाव लगे जिससे 29, मई 1658 की मृत्यु हो गई। रतन सिंह की शादी उदयपुरवाटी के शासक टोडरमलजी के पुत्र  पुरषोत्तम दासजी [पुरषोत्तमसिंह] जागीर गांव झाझड़ Jhajhar [तहसील नवलगढ़, जिला झुंझुनू, राजस्थान] की पुत्री सुखरूपदेकंवर के साथ हुयी । रतन सिंह के चार पुत्र हुए -
          01 - रामसिंह - रामसिंह [1658 -1682] रतलाम के दूसरे महाराजा थे,जिनकी मृत्यु   
                               1682 में हुयी थी।
          02 - रायसिंह -रायसिंह को ग्राम काछीबड़ौदा जिला धार, [मध्यप्रदेश] की रियासत मिली थी।   
          03 - सकटसिंह - सकटसिंह को मुल्थान [तहसील बदनावर, जीला धार [मध्यप्रदेश] की  
                  रियासत मिली थी।  
          04 - छत्रसालसिंह - महाराजा छत्रसालजी रतलाम के पांचवें राव थे।
रतनसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
रतनसिंह - दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
44 – फतेहसिंहोत [फतेहसिंगोत] जोधा राठौड़ - महेशदासजी के पुत्र फतेहसिंह के वंसज फतेहसिंहोत [फतेहसिंगोत] जोधा राठौड़ कहलाये हैं। महेशदासजी को अपने पिता दलपतजी से सैलाना और सीतामऊ [मध्यप्रदेश] की रियासत मिली,और दिल्ली के बादशाह से तितरोड़ [तितरोड़ - तहसील  सीतामऊ, जिला  मंदसौर [मध्यप्रदेश] और जालोर मारवाड़ राजस्थान की रियासत मिली, महेशदासजी की शादी आमेर मिर्ज़ा राजा मानसिंह [प्रथम] के पुत्र ठिकाना झलाई के झुझारसिंह की पुत्री  कुसुमकंवर के साथ हुयी महेशदासजी की मर्त्यु लाहौर में 1607 को हुई थी । महेशदासजी के चार पुत्र हुए -
            01 - रतनसिंह - रतनसिंह के वंसज रतनसिंहोत कहलाये हैं। रतलाम रियासत [मध्यप्रदेश]  
                                   के संस्थापक - 1632-1658)                 
            02 - फतेहसिंह - फतेहसिंह कोड के 1686 में पहले ठाकुर बने, कोड गांव - जीला धार 
                                   [मध्यप्रदेश] फतेहसिंह के वंसज फतेहसिंहोत [फतेहसिंगोत] जोधा राठौड़  
                                   कहलाये हैं, मध्यप्रदेश के गांव बिदवाल, शेयोगढ़, पचलाना, सरसी'   
                                   उमरकोट आदि के ठाकुर इन्हीं के वंसज हैं। 
            03 - कल्याणदासजी - महेशदासजी के पुत्र के कल्याणदासजी के वंसज कल्याणदामोत जोधा  
                                   कहलाये हैं।जालजियासर, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी Aakodadi, आदि  
                                   इनके ठिकाने गांव थे। Jaaljiyasar, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी  
                                   Aakodadi,आदि इनके ठिकाने गांव थे ।
            04 - रामचंद्रसिंह - रामचंद्रसिंह को सरवन [Sarwan] [सरवन तहसील, जिला रतलाम           
                                   [मध्यप्रदेश] मिला             
                                   फतेहसिंह - फतेहसिंह 1686 में कोड के पहले ठाकुर बने [कोड गांव -  
                                   जीला धार,मध्यप्रदेश] फतेहसिंह के  मध्यप्रदेश के गांव बिदवाल, शेयोगढ़,   
                                   पचलाना, सरसी'  उमरकोट आदि के ठाकुर इन्हीं के वंसज हैं। फतेहसिंह के  
                                   पांच पुत्र हुए
                                   01 - छतरसिंह - छतरसिंह बोरखेड़ा ठिकाने के संस्थापक थे।
                                   02 - अमरसिंह - सिरसी ठिकाना मिला
                                   03 - अनंतसिंह - खेरवास ठिकाना मिला
                                   04 - अक्षयसिंह - इनको पचलाना ठिकाना मिला
                                   05 - हरिसिंह - हरिसिंह के पुत्र हुए इन्द्रसिंह, इन्द्रसिंह ठिकाना गांव   

                                           सरंगि के संस्थापक हरिसिंह थे।
फतेहसिंहोत [फतेहसिंगोत] जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
फतेहसिंह - महेशदासजी - दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
45 - कल्याणदामोत जोधा राठौड़ – महेशदासजी के पुत्र के कल्याणदासजी के वंसज कल्याणदामोत जोधा कहलाये हैं। जालजियासर, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी Aakodadi, आदि इनके ठिकाने गांव थे ।Jaaljiyasar, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी Aakodadi, आदि इनके ठिकाने गांव थे ।
महेशदासजी, महेशदासजी को अपने पिता दलपतजी से सैलाना और सीतामऊ [मध्यप्रदेश] की रियासत मिली,और दिल्ली के बादशाह से तितरोड़ [तितरोड़ - तहसील  सीतामऊ, जिला  मंदसौर [मध्यप्रदेश] और जालोर मारवाड़ राजस्थान की रियासत मिली, महेशदासजी की शादी आमेर मिर्ज़ा राजा मानसिंह [प्रथम] के पुत्र ठिकाना झलाई के झुझारसिंह की पुत्री  कुसुमकंवर के साथ हुयी महेशदासजी की मर्त्यु लाहौर में 1607 को हुई थी । महेशदासजी के चार पुत्र हुए -
     01 - रतनसिंह - रतनसिंह के वंसज रतनसिंहोत कहलाये हैं। रतलाम रियासत  
                            [मध्यप्रदेश] के संस्थापक - 1632-1658)                 
     02 - फतेहसिंह - फतेहसिंह कोड के 1686 में पहले ठाकुर बने, कोड गांव - जीला धार 
                            [मध्यप्रदेश] फतेहसिंह के वंसज फतेहसिंहोत [फतेहसिंगोत] जोधा राठौड़  
                            कहलाये हैं, मध्यप्रदेश के गांव बिदवाल, शेयोगढ़, पचलाना, सरसी'  उमरकोट  
                            आदि के ठाकुर इन्हीं के वंसज हैं। 
     03 - कल्याणदासजी - महेशदासजी के पुत्र के कल्याणदासजी के वंसज कल्याणदामोत जोधा  
                            कहलाये हैं। जालजियासर, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी Aakodadi, आदि इनके 
                            ठिकाने गांव थे। Jaaljiyasar, जोबेबो Jobebo, आकोदड़ी Aakodadi,आदि 
                            इनके ठिकाने गांव थे ।
     04 - रामचंद्रसिंह - रामचंद्रसिंह को सरवन [Sarwan] [सरवन तहसील, जिला रतलाम  
                           [मध्यप्रदेश]  मिला था। 
कल्याणदामोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
कल्याणदासजी - महेशदासजी - दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
46 - अभैराजोत जोधा राठौड़ - महाराज हतिसिंहजी के पुत्र अभयसिंह के वंसज अभैराजोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। अभयसिंह; राजा छत्रसालसिंहजी के पोते तथा रतलाम रियासत के संस्थापक राजा रतनसिंहजी के पड़ पोते थे।
अभैराजोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -
अभयसिंह - हतिसिंहजी - छत्रसालसिंहजी - रतनसिंहजी - दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
47- किशनसिंहोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र किशनगढ़ रियासत के संस्थापक [1909 ई.-1615 ई.] किशनसिंह के वंसज किशनसिंहोत राठौड़ कहलाये हैं। किशनसिंह;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। किशनगढ़ को पहले कृष्णगढ [कृष्णगढ राज्य] भी कहा जाता था। किशनगढ़ रियासत, शहर का नाम किशन सिंह के नाम पर रखा गया किशन सिंह जोधपुर के राजा थे। मुगलों के समय अस्तित्व में आई किशनगढ़ रियासत, राजस्थान की सबसे छोटी रियासत थी। किशनगढ़ के राजा रूपसिंह ने धरमत के मैदान में औरंगजेब के हाथी की रस्सियां काट डाली थीं किंतु औरंगजेब बच गया। किशनसिंह का जन्म 1575 में हुवा,किशनगढ़ के पहले राजा बने [1611-1615]  किशनसिंह मृत्यु 1615 में हुयी थी। किशनसिंह के चार पुत्र हुए -
     01 - सहसमल्जी - सहसमल्जी [1615 -1618] किशनगढ़ के दूसरे राजा बनें। 
     02 - भारमलजी - भारमलजी के पुत्र हुए रूपसिंहजी ने रूपनगढ़ का किला 1649, में बनवाया था।                                
     03 - जगमासिंह - [1618-1628] किशनगढ़ के तीसरे राजा बनें।
     04 - हरिसिंह - [1628-1644] किशनगढ़ के चौथे राजा बनें।

किशनसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 


किशनसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
48 - बाघसिंहोत जोधा राठौड़ - यह शाखा किशनसिंहोत जोधा राठौड़ की उप शाखा है।


बहादुरसिंह के पुत्र बाघसिंह के वंसज बाघसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। बहादुरसिंह; राजसिंह  के पोते और मानसिंह के पड़ पोते थे। पूरा विवरण इस प्रकार है-
किशनगढ़ [अजमेर,राजस्थान]  रियासत के संस्थापक किशनसिं राठौड़ थे जो मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र थे किशनसिंह के चार पुत्र हुए -
       01 - सहसमल्जी - सहसमल्जी [1615 -1618] किशनगढ़ के दूसरे राजा बनें। 
       02 - भारमलजी - भारमलजी के पुत्र हुए रूपसिंहजी ने रूपनगढ़ का किला 1649, में
                               बनवाया था।                                
       03 - जगमासिंह - [1618-1628] किशनगढ़ के तीसरे राजा बनें।
       04 - हरिसिंह - [1628-1644] किशनगढ़ के चौथे राजा बनें।
               भारमलजी - किशनसिंह के पुत्र भारमलजी हुए थे;
               भारमलजी के पुत्र हुए रूपसिंहजी [1658-1706] थे, रूपसिंहजी किशनगढ़ के छटे राजा  
               बने और रूपसिंहजी ने रूपनगढ़ का किला 1649, में बनवाया था।                              
               रूपसिंहजीके पुत्र हुए, मानसिंह [1658-1706];
               मानसिंह के पुत्र हुए, राजसिंह [1709-1748];
               राजसिंह के पांच पुत्र हुए -
               01 - सुखसिंह - इनकी छोटी उम्र में ही मृत्यु होगयी थी इनका वंस नहीं चला  
               02 - फतेहसिंह - फतेहसिंह फतेहगढ़ के ठाकुर बने
               03 - सावंतसिंह 
               04 - बहादुरसिंह - बहादुरसिंह के पुत्र बाघसिंह के वंसजज बाघसिंहोत जोधा राठौड़। 
               05 - वीरसिंह [बीरसिंह,वृजराजसिंह] - वीरसिंह के वंसज वीरसिंगहोत जोधा राठौड़। 
बाघसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
बाघसिंह - बहादुरसिंह - राजसिंह - मानसिंह - रूपसिंहजी - भारमलजी - किशनसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
49 - वीरसिंगहोत जोधा राठौड़ - यह शाखा किशनसिंहोत जोधा राठौड़ की उप शाखा है।
राजसिंह के पुत्र वीरसिंह [बीरसिंह,वृजराजसिंह] के वंसज वीरसिंगहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। वीरसिंह; मानसिंह के पोते और भारमलजी के पुत्र रूपसिंहजी के पड़ पोते थे। 
पूरा विवरण इस प्रकार है-
किशनगढ़ [अजमेर,राजस्थान] रियासत के संस्थापक किशनसिं राठौड़ थे जो मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र थे किशनसिंह के चार पुत्र हुए -
       01 - सहसमल्जी - सहसमल्जी [1615 -1618] किशनगढ़ के दूसरे राजा बनें। 
       02 - भारमलजी - भारमलजी के पुत्र हुए रूपसिंहजी ने रूपनगढ़ का किला 1649, में
                                बनवाया था।                                 
       03 - जगमासिंह - [1618-1628] किशनगढ़ के तीसरे राजा बनें।
       04 - हरिसिंह - [1628-1644] किशनगढ़ के चौथे राजा बनें।
       भारमलजी - किशनसिंह के पुत्र भारमलजी हुए थे;
       भारमलजी के पुत्र हुए रूपसिंहजी [1658-1706] थे, रूपसिंहजी किशनगढ़ के छटे राजा बने    
       और रूपसिंहजी ने रूपनगढ़ का किला 1649, में बनवाया था।                              
       रूपसिंहजी के पुत्र हुए, मानसिंह [1658-1706];
       मानसिंह के पुत्र हुए, राजसिंह [1709-1748];
       राजसिंह के पांच पुत्र हुए -
           01 - सुखसिंह - इनकी छोटी उम्र में ही मृत्यु होगयी थी इनका वंस नहीं चला  
           02 - फतेहसिंह - फतेहसिंह फतेहगढ़ के ठाकुर बने
           03 - सावंतसिंह 
           04 - बहादुरसिंह - बहादुरसिंह के पुत्र बाघसिंह के वंसजज बाघसिंहोत जोधा राठौड़। 
           05 - वीरसिंह [बीरसिंह,वृजराजसिंह] - वीरसिंह के वंसज वीरसिंगहोत जोधा राठौड़। 
                   जोधा राठौड़ों की उप शाखा वीरसिंगहोत जोधा राठौड़ का ठिकाना गांव रलावता - 
                    [तहसील किशनगढ़,जिला अजमेर,राजस्थान] वीरसिंह का जन्म 1738 में हुवा था । 
                    वीरसिंह की शादी सीकर के राव राजा श्री  राजसिंह की पुतरी चांदकँवर चाँद कँवर के 
                    साथ हुयी थी।वीरसिंह को ग्वालियर के महाराजा ने पानीपत की लड़ाई में उनकी  
                    बहादुरी से खुश होकर छह गांव गंगवाना , उत्तरा , मंगरा , मंगरी , सरारा  और आकड़ा  
                    दिए थे। वीरसिंह को उनके भाइयों ने निकल दिया था इसलिए रलावता जागीर उन के  
                    पास रही और वीरसिंह की मृत्यु 1767,में हुयी। वीरसिंह के दो पुत्र हुए -
                        01 - अमरसिंह - अमरसिंह जयपुर के महाराजा के यहां नौकरी करते थे, अमरसिंह
                                              की मृत्यु भी जयपुर में ही हुयी थी। अमरसिंह के दो पुत्र हुए - 
                                                01 - दलपतसिंह
                                                02 - दौलतसिंह  - युवा अवस्था में मौत, इनका वंस नहीं चला 
                        02 - सूरजसिंह - सूरजसिंह की शादी टोडा भीम [जिला करौली, राजस्थान] के 
                                               महाराज मानसिंह के पुत्र महाराज इंदरसिंह की पुत्री सुरेन्दरकँवर  
                                               के साथ हुयी थी। सूरजसिंह के तीन पुत्र हुए-
                                               01 - जसवंतसिंह - जसवंतसिंह को ठिकाना गांव गंगवाना, उत्तरा, 
                                                       मंगरा, मिले जसवंतसिंह के पुत्र हुवा ,दुर्जनसिंह
                                               02 - अर्जुनसिंह - अर्जुनसिंह को गांव जागीर मंगरा [Mangra]  
                                                                       मिला अर्जुनसिंह के दो पुत्र हुए
                                                                       1- जेतसिंह [मंगरा] 
                                                                       2 - बलवंतसिंह [मंगरा]
                                               03 - शेरसिंह - शेरसिंह को गांव जागीर गंगवाना मिला,  
                                                       शेरसिंह की शादी गुडा [भोराजराजजी का शेखावाटी] के  
                                                       पृथ्वीसिंह की पुत्री ज्ञानकँवर के साथ हुयी थी। शेरसिंह  
                                                       का पुत्र हुवा सार्दुलसिंह। सार्दुलसिंह को रलावता मिला  
                                                       था। 
वीरसिंगहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
 वीरसिंह [बीरसिंह,वृजराजसिंह] - राजसिंह - मानसिंह - रूपसिंहजी - भारमलजी - किशनसिंह - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
50 - केसोदोसोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र केसोदासजी [केसरीसिंह] के वंसज केसोदोसोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। केसोदासजी;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। केसोदासजी का असली नाम केसरीसिंह था लेकिन उनको बोलते नाम ''केसो'' के नाम से पुकारते थे। केसोदासजी [केसरीसिंह] नया राज्य बनाने के लिए अजमेर आये और फिर वंहा से पीसांगन [अजमेर जिले में] जहां पर परमार राजपूतों का राज था। केसोदासजी [केसरीसिंह] ने परमार राजपूतों को पीसांगन से निकल दिया और पीसांगन को एक छोटा सामंती राज्य [istimrari] बनाया जिसमे ग्यारह गांव [भीनी, पीसांगन, खारवा, मसूदा, बंदनवार, पारा, कैरोट, जुनियाँ, बाघेरा, तनोटि, और बगसूरी] थे।
केसोदासजी [केसरीसिंह] का पुत्र हुवा सुजनसिंह।
सुजनसिंह -सुजन सिंह, जुनियाँ के ठाकुर थे तथा इन्होने जुनियाँ गांव से गौड़ राजपूतों को और
     मेहरून गांव से सिसोदिया राजपूतों को निकल कर अपने अधीन कर लिया था।
     सुजनसिंह के तीन पुत्र हुए -
     01 - किशनसिंह [जुनियाँ गांव के ठाकुर]
     02 - करणसिंह [मेहरून गांव के ठाकुर]
     03 - झुझारसिंह
     झुझारसिंह - झुझारसिंह पीसांगन [अजमेर जिले में] राज्य इनाम के तौर पर मिला क्योंकि,
     झुझारसिंह ने अपने चाचा की हत्या का बदला लिया था। झुझारसिंह की मृत्यु 1700 में हुयी 
     थी। झुझारसिंह के तीन पुत्र हुए -
           01 - फतेहसिंह
           02 - श्यामसिंह [ठिकाना - पारा]
           03 - देवीसिंह [ठिकाना - सादरा Sadara और गुलगांव Gulgaon ]

केसोदोसोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
केसोदासजी [केसरीसिंह] - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
51 – सकतसिंहोत जोधा राठौड़ - सकतसिंहोत जोधा राठौड़ - मोटाराजा उदयसिंहजी के पुत्र सकतसिंह [सगतसिंह,शक्तिसिंह] के वंसज सकतसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।सकतसिंह;राव मालदेवजी के पोते और राव गंगाजी के पड़ पोते थे। सकतसिंह ने 1590 में खरवा [एक छोटा सामंती राज्य [istimrari] की स्थापना करी थी। खरवा, प्राचीन राज्य कृष्णगढ [किशनगढ़ को पहले कृष्णगढ राज्य के नाम से जानते थे] के अधीन था । इनके ठिकाने गांव खरवा, भवानीखेड़ा, देवगढ़, नासून, रघुनाथपुर आदि थे।
और 1590 में राव सगतसिंह खरवा के प्रथम ठाकुर बनें। 
सगतसिंह के पुत्र, करणसिंह खरवा के द्वितीय ठाकुर बनें।
करणसिंह के पुत्र रुक्मांनदजी,खरवा के तृतीय ठाकुर बनें।
सकतसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
सकतसिंह [सगतसिंह,शक्तिसिंह] - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
52 - पृथ्वीसीहोत जोधा राठौड़ - महाराजा पृथ्वीसिंह [1840-1879] का जन्म 1835 में हुवा और महाराजा पृथ्वीसिंह की शादी शाहपुरा [शाहपुरा तहसील,जिला भीलवाड़ा राजस्थान] के के राजाधिराज अमरसिंह के पुत्र माधोसिंह सिसोदीया [राणावत] शाहपुरा के दसवें राजा राजाधिराज की पुत्री के साथ हुयी थी। पृथ्वीसिंह किशनगढ़ के पंद्रहवें राजा बने। महाराजा पृथ्वीसिंह को फतेहगढ़ राजपरिवार से गोद लिया गया था क्योंकि, किशनगढ़ के चौदहवें महाराजा मोखमसिंह की शादी उदयपुर के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कीककंवर के साथ हुयी थी जिस से महाराजा मोखमसिंह के कोई सन्तान नहीं हुयी थी। महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु 25 दिसम्बर 1879 को हुयी थी। महाराजा पृथ्वीसिंह के वंसज पृथ्वीसीहोत जोधा राठौड़ कहलाये है। दत्तक पुत्र महाराजा पृथ्वी सिंह (1840-1879 ई.) ने गुंदोलाव झील के उत्तरी दिशा में मोखम विलास का निर्माण कराया था। मोखम विलास के अन्दर कुंआ, बावडी व उद्यान सहित मंदिर भी बनवाया था। 
महाराजा पृथ्वीसिंह के चार पुत्रिया और तीन पुत्र हुए -
   01 - सार्दुलसिंह
   02 - जवानसिंह [करखेड़ी - आठ गावों का राज्य]
   03 - रघुनाथसिंह  [ढसूक - छह गावों का राज्य]
पृथ्वीसीहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
पृथ्वीसिंह - फतेहसिंह - रतन सिंह - महेशदासजी - दलपतजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
53 - अमरसिंहोत जोधा राठौड़ -   महाराजा गजसिंहजी [प्रथम]  के पुत्र राव अमरसिंह [1638 ई. -1644ई.] के वंसज अमरसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। राव अमरसिंह को नागौर रियासत मिली थी  अमरसिंह को राव की उपाधी मिली थी इसलिए अमरसिंह के वंशजों को राव की उपाधि रही है और वे राव कहलाते हैं। महाराजा गजसिंहजी [प्रथम] [1619 ई. -1638 ई.] - महाराजा गजसिंहजी [प्रथम] सवाईराजा सूरसिंहजी के बेटे थे। महाराजा गजसिंहजी [प्रथम] के तीन पुत्र हुए-
     01 - राव अमरसिंह [1638 ई. -1644ई.] नागौर, राव अमरसिंह के वंसज अमरसिंहोत जोधा  
             कहलाते हैं। अमरसिंह को राव की उपाधी थी इसलिए अमरसिंह के वंशजों को राव की उपाधि  
             रही है और वे राव कहलाते हैं।
     02 - महाराजा जसवंतसिंह [प्रथम]
     03 - अचलसिंह
     राव अमरसिंह  [1638-1644 ] नागौर - राव अमरसिंह, महाराजा गजसिंहजी [प्रथम] के बेटे  
    और सवाईराजा सूरसिंहजी के पोते तथा मोटाराजा उदयसिंहजी के पड़ पोते थे। राव अमरसिंह के दो  
     पुत्र थे -
         01 - राव रायसिंह - राव रायसिंह के पुत्र हुए राव इंद्रसिंह ।
         02 - राजवी ईश्वरीसिंह - ईश्वरीसिंह को राजवी की उपाधि थी।
राजवी ईश्वरीसिंह - राजवी ईश्वरीसिंह, राव अमरसिंह [नागौर] के पुत्र थे।
राजवी ईश्वरीसिंह के पुत्र हुए,राजवी अनोपसिंह
राजवी अनोपसिंह के पुत्र हुए,राजवी अनाड़सिंह
राजवी अनाड़सिंह के पुत्र हुए,राजवी करणसिंह
राजवी करणसिंह - राजवी करणसिंह दो के पुत्र हुए-
       01 - बख्तावरसिंह - बख्तावरसिंह को ठिकाना ''सेवा'' गांव मिला था।
       02 - बन्नेसिंह
अमरसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
राव अमरसिंह - गजसिंहजी [प्रथम] - सवाईराजा सूरसिंहजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
54 -अजीतसिंगहोत जोधा राठौड़ - महाराजा जसवंतसिंह [प्रथम] के पुत्र अजीतसिंह के वंसज अजीतसिंगहोत जोधा राठौड़ कहलाते हैं। महाराजा अजीतसिंहजी, जसवंतसिंह [प्रथम] के बेटे और गजसिंहजी [प्रथम] पोते तथा सवाईराजा सूरसिंहजी के पड़ पोते थे।
दुर्गादासजी राठौड़, जो मारवाड़ के सेनापति थे ,उन्होंने अजीतसिंहजी को क्रूर सम्राट औरंगजेब से बचाकर सिरोही [प्राचिन सिरोही राज्य] ले गए । अजीतसिंहजी के वंसज अजीतसिंगहोत जोधा कहलाये हैं । ठिकाना जलवाना भी अजीतसिंहजी के वंसजों अजीतसिंगहोत का था। अजीतसिंहजी के सत्रह पुत्र हुए -
     01 - महाराजा अभयसिंह [1724ई.-1749ई.]
     02 - महाराज बखतसिंह [1751ई.-1752 ई.]
     03 - आनन्दसिंह [1728ई.-1742ई.] आनन्दसिंह ने दूसरी बार ईडर राज्य स्थापित। के वंसज  
             आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । ईडर व अहमदनगर इनके राज्य थे  
     04 - किशोरसिंह
     05 - रामसिंह
     06 - राजसिंह
     07 - सुल्तानसिंह
     08 - तेजसिंह
     09 - दौलतसिंह
     10 - जोधसिंह
     11 - सोभागसिंह
     12 - अखैसिंह
     13 - रूपसिंह
     14 - जोरावरसिंह
     15 - मानसिंह
     16 - प्रतापसिंह
     17 - छत्रसिंह [छत्तरसिंह]

अजीतसिंगहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
अजीतसिंह - जसवंतसिंह [प्रथम] - गजसिंहजी [प्रथम] - सवाईराजा सूरसिंहजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

55 - आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ - आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ - महाराजा अजीतसिंहजी के पुत्र आनन्दसिंह [1728ई.-1742ई.] के वंसज आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं। आनन्दसिंह ने दूसरी बार ईडर राज्य स्थापित। ईडर व अहमदनगर इनके राज्य थे। महाराजा अजीतसिंहजी, जसवंतसिंह [प्रथम] के बेटे और गजसिंहजी [प्रथम] पोते तथा राव अमरसिंह [नागौर] के पड़ पोते थे।
दुर्गादासजी राठौड़, जो मारवाड़ के सेनापति थे ,उन्होंने अजीतसिंहजी को क्रूर सम्राट औरंगजेब से बचाकर सिरोही [प्राचिन सिरोही राज्य] ले गए । अजीतसिंहजी के वंसज अजीतसिंगहोत जोधा कहलाये हैं । ठिकाना जलवाना भी अजीतसिंहजी के वंसजों अजीतसिंगहोत का था। अजीतसिंहजी के सत्रह पुत्र हुए -
      01 - महाराजा अभयसिंह [1724ई.-1749ई.]
     02 - महाराज बखतसिंह [1751ई.-1752 ई.]
     03 - आनन्दसिंह [1728ई.-1742ई.] आनन्दसिंह ने दूसरी बार ईडर राज्य स्थापित। के वंसज  
             आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं । ईडर व अहमदनगर इनके राज्य थे  
     04 - किशोरसिंह
     05 - रामसिंह
     06 - राजसिंह
     07 - सुल्तानसिंह
     08 - तेजसिंह
     09 - दौलतसिंह
     10 - जोधसिंह
     11 - सोभागसिंह
     12 - अखैसिंह
     13 - रूपसिंह
     14 - जोरावरसिंह
     15 - मानसिंह
     16 - प्रतापसिंह
     17 - छत्रसिंह [छत्तरसिंह]
आनन्दसिंह [1728 ई.-1742 ई.] - आनन्दसिंह महाराजा अजीतसिंहजी के पुत्र थे। आनन्दसिंह [1728ई.-1742ई.] तक ईडर के चौबीसवें राव राजा बनें। आनन्दसिंहजी को महाराजाधिराज की उपाधि थी। महाराजाधिराज महाराज श्री आनन्दसिंहजी ईडर [1731 ई. -1753 ई.] व राव अमरसिंह  [नागौर] के पुत्र राव रायसिंह उनके रिसते में उनके [रायसिंह के चचेरे भाई आनन्दसिंहजी थे] भाई रायसिंह और पालनपुर[गुजरात] के कुछ घुड़सवार और गडवारा के कोली के साथ, उन्होंने 1731 ई. में  ईडर राज स्थापित किया। आनन्दसिंहजी की दूसरी जाती में भी शादी हुयी थी, मगर राजपूत समाज में पहली शादी 1735 ई.में महाराव श्री चैततरसालसिंह की तीसरी बेटी लाडकंवर के साथ हुयी । रानी रूपांदे आनन्दसिंहजी की तीसरी पत्नी थी जिससे उनका वंस आगे चला, रानी रूपांदे की कोख से 1736 ई.में श्री शिवसिंहजी का जन्म हुवा जो ईडर [1753 ई. -1791ई.] के राव बने । 
आनंदसिंहजी के दो पुत्र हुए-
     01 - किशनसिंह
     02 - शिवसिंह [1742 ई. -1791 ई.]
             शिवसिंह के पांच पुत्र हुए -
              01 - भवानीसिंहजी  [1791-1791 ई.]
              02 - संग्रामसिंहजी [1799 ई.]
              03 - जालिमसिंहजी  -[मोरासा /मोडासा] के पहले राव बनें
              04 - अमीरसिंहजी -  बयाड़
              05 - इन्द्रसिंहजी  [गुजरात चले गए]
                      संग्रामसिंह [1799 - शिवसिंह के पांच पुत्र संग्रामसिंह अहमदनगर] के दो पुत्र हुए -
                     01 - प्रतापसिंह - प्रतापसिंह के पुत्र हुए पृथ्वीसिंहजी 
                     02 - करणसिंह - करणसिंह के पुत्र हुए तख्तसिंह 
आनन्दसिंहोत जोधा राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है - 
आनन्दसिंह - अजीतसिंह - जसवंतसिंह [प्रथम] - गजसिंहजी [प्रथम] - सवाईराजा सूरसिंहजी - मोटाराजा उदयसिंहजी - राव मालदेवजी - गंगाजी - राव बाघाजी - राव सुजाजी - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास 
गाँवपोस्ट - तोगावासतहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थानपिन - 331304 ]
।।इति।।                 

10 comments:

  1. अमरसिहोत राठौड़ो के ठिकाने बताये हुकम

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  2. KHANGAROT JODHA RA THIKHANA BATAO HUKM 🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. Mahesdas Jodha ke age ki vansavali batave sa mahesdasg ke kitne larke etc

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  4. जगनाथेत जोधा के ठिकाने सोलासर एवम मोररा है कृपया शुद्ध करे sa

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  5. अभैराजोत जोधा के बारे में ये जानकारी गलत है

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  6. 38 - भोपतसिंहोत जोधा राठौड़ - भोपतसिहोत/भोपतोत जोधा राठौड़ - राव भोपत सिंह मोटा राजा उदय सिंह के तीसरे बेटे भोपतसिंह के वंशज भोपतोत जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
    राव भोपतजी मोटा राजा उदय सिंह व रानी अपूर्वादेवी सिसोदिया(मेवाड़) के छोटे बेटे थे इनका जन्म सन 1558 के साल फलोदी में हुआ, मोटा राजा ने राव भोपत जी को जैतारण परगना सन 1584 में दिया जिसमे 232 गांव थे ,सन 1598 में राव भोपत जी ने अपने नाम से भुवाल की स्थापना की जो मसूदा की लडाई के बाद सन 1624 में नष्ट हो गया, सन 1604 में मसूदा की लडाई में राव भोपत जी कमधज हुए रावजी के साथ बड़ी रानी रुकमावती देवड़ा सती हुई , ये लडाई मेडतो को बदनौर दिलाने के लिए हुई थी क्योंकि बदनौर का पट्टा अकबर ने मेड़तो से छीन के सार्दुल पंवार को दे दिया था।
    राव भोपतजी ने दो विवाह किए को पहला रुकमावती देवड़ा सिरोही से और दूसरा विवाह अजब दे सोनगरा से रावजी भोपत सिंह के चार संताने थी -
    01 - राव मुकुंद दास जी
    02 - राव रामचंद्रसिंहजी
    03 - राव रघुनाथ
    04 - कुंवर सालम दास

    1. राव मुकुंददास जी - यह अपने पिता के बाद भूवाल के स्वामी हुए इन्होंने अपने पिता का बैर सार्दुल पंवार को मार के लिए और इन्ही के समय दिल्ली की सही सेना ने भुवाल पे हमला किया और नष्ट कर दिया इस युद्ध में राव मुकुंद दास वीरता से लड़ते हुए कम आए इनके बड़े पौत्र मालवा में आए और अपने नाम से कोरगढ़ की स्थापना की बाद में सीतामऊ के राजा ने उन्हे खेजडीय की जागीर दे कर अपना प्रथम ताजीम जागीरदार बनाया कुशाल सिंह सीतामऊ के राजा के रिश्ते में काका लगते थे राव भोपत जी के बड़े बेटे के ताजीम ठिकाने । (यह सभी ठिकाने मध्यप्रदेश में आज भी कायम है)
    1. खेजडिया सीतामऊ रियासत का ताज़मी 12 गांवो का ठिकाना इन्हे दीवान की उपाधि थी
    2. गुणदी शंकर देवास राज्य का ताज़मी 12 गांवो का ठिकाना इस ठिकाने को सोना निवेश नगारबन्द व राजेश्री ठिकाने की उपाधि थी
    3. बाजखेड़ी द्वितीय श्रेणी का ठिकाना

    2. रामचंद्रसिंहजी - राव भोपत जी के दूसरे बेटे थे रामचंद्र जी को राबडियावास की जागीर मिली इनके आठ पुत्र हुए जिनमे पांच का वंश चला बड़े बेटे के दूसरे पुत्र अभयराज के वंशज बरखेड़ा कलां में कायम हे यह ठिकाना 24 गांवो का हे यह ठिकाना केलुखेड़ा , कोठड़ा , कसेर , का पटावी ठिकाना हे यह सभी ठिकाने मध्यप्रदेश में कायम हे , रामचद्र जी के बाकी बेटे के ठिकाने जाजोता , दसुक , पांडरवाडा जो राजस्थान के किशनगढ़ तहसील में कायम हे
    3. रघुनाथ जी - भोपत जी के तीसरे बेटे थे इन्हे पालड़ीभोपतोतान गांव की जागीर मिली थी , इनके वंशजों के ठीकानें मुख्य रूप से किशनगढ़ में ही कायम हे जिसमे नरैना ठिकाना किशनगढ़ स्टेट का ताजीम ठिकाना था जिन्हें उमराव की उपाधि थी इसके अलावा भादून , खेरिया , मानपुरा ठिकाने भी हे

    4. कुंवर सालम दास - यह राव भोपत जी के चौथे पुत्र थे इनके वंशज भी किशनगढ़ रियासत में कायम हे

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  7. विक्रमादित जोधा ठिकाणा झाक जालोर
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  8. शाजापुर जिले के गांव सुनेरा के राठौर राजपूत के बारे में कोई जानकारी दे सकता है,, जो मुसलमान हुए हैं 8982443632 पर संपर्क करे

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  9. खुदाबख्श के पिता बारे में बताए ठिकाना शाजापुर जिला सुनेरा गांव हमे राठौर ही कहते हे अभी भी गांव में

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