बिका राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खांपें - बिका राठौड़
बीकानेर,किशनगढ़, ईडर ,विजयनगर, झाबुआ,अमझेरा,रतलाम,सीतामऊ तथा सैलाना राज्यों के शासक जोधपुर के राठौड़ वंस से ही निकालें हैं।
बिका राठौड़ - राव जोधाजी के पुत्र राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़ कहलाये हैं। बिका राठौड़ों को बीकावत राठौड़ भी कहा जाता है। राव बिकाजी; राव रिड़मालजी के पोते और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पड़ पोते थे। बीकानेर राजघराने के प्रतीक चिन्ह को ‘बेरीसाल कहा जाता था।
राव जोधाजी के पुत्र राव बिकाजी के वंशजों से निकली बिका राठौड़ों की खांपों की जानकारी से पहले राव बिकाजी के जीवन की कुछ खास जानकारियां जानना जरुरी है ताकि इतिहास को अछि तरह से समझ सकें।
राव बिकाजी [1485-1504] - राव बिकाजी का जन्म 5 अगस्त 1438 ई. को में जोधपुर में हुआ था। बीकाजी राव जोधाजी के पुत्र और राव रिड़मालजी के पोते तथा राव चूण्डाजी [चुंडाजी] मंडोर के पड़ पोते थे। राव रिड़मालजी को सादेजी और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] को रावल पुनपालदेजी के नाम से भीजनाजा था। राव जोधाजी की सांखली रानी नौरंगदे की कोख से पुत्र दो हुए थे राव बीदोजी और राव बीकोजी यानि ये दोनों भाई बीदोजी और बीकोजी दोनों भाई सांखला [परमारों की शाखा है] के भाणजे थे। आसोज सुदी 10, संवत 1522, सन 1465 को राव बीकाजी ने जोधपुर राज्य एक नया राज्य बनाने के लिए छोड़ दिया और मण्डोर पहुंचे। राव बीकाजी ने दस वर्ष तक भाटियों का मुकाबला किया मगर विजय हासिल न देख कर देसनोक में आये फिर देसनोक से चांदासर और चांदासर से कोडमदेसर आ गए।
जोधपुर से बीकानेर का का इतिहास –राव बिकाजी द्वारा जोधपुर राज्य का त्याग - राव बिकाजी के जोधपुर छोड़ने के पीछे तीन कहानियाँ प्रचलित है -
01 - एक तो यह कि, नापाजी साँखला जो कि राव बीदोजी और राव बीकाजी के मामा थे, उन्होंने जोधाजी से कहा था कि, आप भले ही राव सांतलजी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनादें लेकिन राव बीकाजी को कुछ सैनिक सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये क्योंकि राव बीकाजी एक महान वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते पर खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित सारुँडे का पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधलजी, रूपाजी, मांडलजी, नथुजी और नन्दाजी ये पाँच सरदार जो जोधाजी के सगे भाई थे साथ में नापाजी साँखला, बेला पडिहार, लाला लखनसिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहरसिंह बच्छावत, विक्रमसिंह पुरोहित, सालूजी राठी आदि कई लोगों ने राव बीकाजी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की।[सांखला - सांखला [परमारों (पंवार) की शाखा है] धरणीवराह पुराने किराडू का राजा था। धरणीवराह के अधीन मारवाड़ का क्षेत्र भी था। धरणीवराह का पुत्र वाहड़ था,तथा वाहड़ के दो पुत्र सोढ़ और वाघ थे। सोढ़ के वंशज सोढ़ा कहलाए। वाघ जैचन्द पड़ियार (परिहार) के हाथों युद्ध में मारा गया। वाघ का पुत्र वैरसी अपने पिता की मौत का बदला लेने की दृढ़ प्रतिज्ञ था। वाघ ओसियां सचियाय माता के मन्दिर गया। वहाँ सचियाय माता ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए तथा वरदान के रूप में शंख प्रदान किया। उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया, तभी से ये बैरसी के वंशज शंख प्राप्ति से सांखला कहलाने लगे।]
02 - बीकाने की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी यह प्रचलित है कि, एक दिन राव जोधाजी दरबार मे बैठे थे और राव बीकाजी दरबार मे देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल के कान मे धीर धीरे कूछ कहने लगे लगे, यह देख कर जोधाजी ने व्यँगय मे कहा “मालूम होता है कि, चाचा-भतीजा किसी नए राज्य को जितने करने की योजना बना रहे हैं। यही व्यंग राज जितने की प्रतिज्ञा बना।
इस पर राव बीकाजी और राव कांधलजी ने कहा कि यदि आप की कृप्या होगी तो यही होगा। और इसी के साथ ही चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ कर बहार चले आये और दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध मे एक लोक दोहा भी प्रचलित है - पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर।
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर।।
इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई।
03 - कहा ये भी जाता है कि, जोधपुर के राव जोधा जी का बड़ा पुत्र नीबाजी जोधाजी की हाडी राणी जसमादे के पुत्र थे । नीबाजी कि मृत्यु पिता कि विधमानता में ही हो गयी थी । जसमादे के दो पुत्र सांतल और सूजा थे बीका सांतल से बड़े थे। नीबाजी कि मृत्यु पिता कि विधमानता में ही हो गयी थी। नीबाजी की म्रत्यु हो जाने पर नीबाजी कि माँ ने षड्यंत्र रचते हुए [सौतिया डाह] बीकाजी कि अनुपस्थिती में जोधाजी को अपने पुत्र को राज देने के लिए कपटजाल में फंसाया। जोधाजी ने रानी के कपटजाल में आकर बीकाजी को बुलाया और कहा कि ''बाप के राज्य को पुत्र भोगे, यह कोई अचरज की बात नहीं है'' परन्तु जो नया राज्य कायम करें वही बेटों में मुख्या कहा जाता है । बीका! तुम साहसी हो जांगल देश पर अधिकार करो। उसके बाद जोधाजी कि गद्दी पर सांतलजी बैठे सांतल की म्रत्यु के बाद जब उसका पुत्र सूजाजी जोधपुर कि गद्दी पर बैठे तो बीकाजी ने सूजाजी पर आक्रमण किया।
कोडमदेसर - कांधलजी ने मंडोर से आकर राव जोधाजी को बताया कि, नरबद और सतावत शिशोदियों से मिले हुए हैं और शिशोदियों कि सेना मंडोर पहुँच चुकी है,इसलिए मंडोर के हालत ठीक नहीं है। मंडोर से दलबल सहित रवाना होकर राव जोधाजी कावनी गांव में अपनी माँ कोडमदेजी को हलकारा भेजकर बुलवाया। हलकारे को बोला कि, कोडमदेजी को रिड़मालजी कि मृत्यु के बारे में कुछ मत बताना। कावनी गांव में आने के बाद जब कोडमदेजी को अपने पति रिड़मालजी कि मृत्यु के बारे में पता चला तो, कोडमदेजी ने सती होने के लिए चिता तैयार करने का हुकम दिया और कोडमदेजी चिता में बैठ सती होगयी। कोडमदेजी जिस स्थान पर सती हुयी वंहा पास में एक तालाब बनवाया और तालाब के पास 1472-1504 ईस्वी के बीच भैरुंजी की मूर्ती स्थापित की जिसे वे जोधपुर से जांगल़ देश आये तब मंडोर से साथ लाये थे पास में ही एक गांव बसाया गया जिसका नाम कोडमदेसर रखा गया जो बीकानेर से 24 किलोमिटर दुरी पर है। तालाब किनारे राव बीकाजी द्वारा स्थापित भैरुंजी मूर्ती आज एक भव्य मंदिर ''कोडमदेसर भैरुंजी'' के नाम से प्रसिद्ध है, भैरव मंदिर के पास ही कोडमदेसर स्तंभ और रियासत कालीन किला है।
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| कोडमदेसर भैरव |
''कोडमदेसर भैरुंजी'' की माहिम इस प्रकार है -:
दोहा -:
मंडोवर तज माल़िया,हिव धर जंगल़ हाथ।
रहै इणी धर रीझियो,नितप्रत भैरवनाथ।।1।।
जाहर कोडांणो जगत,सधर धारी रह स्वान।
चावो है चहुंकूंट में,ठावो थल़वट थान।।2।।
सिध कामा करण सफल़,मामा सुण मतवाल़।
जसनामा कवियण जपै,सामा देख सचाल़।।3।।
सतधारी चामँड सुतन,पतधर विघन प्रजाल़।
मुणियो जस मत रै मुजब,नितप्रत निजर निहाल़।।4।।
जाहर कोडांणो जगत,सधर धारी रह स्वान।
चावो है चहुंकूंट में,ठावो थल़वट थान।।2।।
सिध कामा करण सफल़,मामा सुण मतवाल़।
जसनामा कवियण जपै,सामा देख सचाल़।।3।।
सतधारी चामँड सुतन,पतधर विघन प्रजाल़।
मुणियो जस मत रै मुजब,नितप्रत निजर निहाल़।।4।।
छंद -:
रोमकंदथपियो थल़ मांय अनुप्पम थांनग,छत्र मंडोवर छोड छती।
थल़वाट सबै हद थाट थपाड़िय,पाट जमाड़िय बीक पती।
दिगपाल़ दिहाड़िय ऊजल़ दीरघ,भाव उमाड़िय चाव भरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,कोडमदेसरनाथ करै।।1।।
प्रगल़ो हद नीर सरोवर पालर,तालर रै अधबीच तठै।
हरणी मन हेर फबै हरियाल़िय,जंगल़-मंगल़ कीध जठै।
वरदायक ऊपर पाल़ विराजिय,दूठ जितायक दीठ डरै।।।2।।
मन थाक अयो सरणै सँत माधव,आरत सारथ काज अखी।
सिंध जाय कड़ाव उठायर सांमथ,राज अड़ाव में लाज रखी।
'सर जैमल'में पड़ियो अज साबत,भाल़ थल़ीजन साख भरै।।।3।।
अगवांण दिपै धिन आयल रो इल़,मांण अपै मनपूर मही।
सबल़ापण आंण दफै कर संकट,लंब सुपांण रुखाल़ लही।
वरियांम बखांण बहै बसुधा बड,तीर समँदाय पार तरै।।।4।।
नर-नार अलेखत भेद बिनां निज,मांग सँपूरत सांम मढै।
कितरा कव जाप जस कायब,पंडत मत्र अलाप पढै।
नरपाल़ कितायक नाक नमै नित,धांम सिधेसर ध्यांन धरै।।5।।
सिंणगार सिंदूर सजै तन सुंदरसोरम माल़ ग्रिवाल़ सही।
डणकार सवांन चढै अरि दाबण,शूल़ करां अजरेल सही।
मनरा महरांण सदा रँग मांणण,झींटिय तेल फुलेल झरै।।।6।।
लहरां मँझ रास रचै लटियाल़क,रात उजाल़क रीझ रमै।
पद घूघर बाज छमाछम पावन,जोर घमाघम नाथ जमै।
डमकार डमाडम बाजिय डैरव,धूज धमाधम यूं धररै।।।7।।
मुख बांण सिरै मुझ आपण मातुल,दान विद्या रिझवार दहै।
इणभांत पढूं छँद आणददायक,कान करै कवि गीध कहै।
सुण साद सताबिय भीर सहायक,दोस दयाल़िय कीध दुरै।।।8।।
छप्पय नमो भैरवानाथ,जगत जाहर जस जांणै।
बंकै बीकानेर,कियो निवास कोडांणै।
जंगल़पत री जोय,वार करी के वारां।
उरड़ सरण तो आय,जोड़ हथ नमै हजारां।
तणकार स्वान तातो तुरत,भीर सिमरियां भैरवा।
रीझ नै सांम गिरधर रखै,मामा निसदिन मैरवा।।
थल़वाट सबै हद थाट थपाड़िय,पाट जमाड़िय बीक पती।
दिगपाल़ दिहाड़िय ऊजल़ दीरघ,भाव उमाड़िय चाव भरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,कोडमदेसरनाथ करै।।1।।
प्रगल़ो हद नीर सरोवर पालर,तालर रै अधबीच तठै।
हरणी मन हेर फबै हरियाल़िय,जंगल़-मंगल़ कीध जठै।
वरदायक ऊपर पाल़ विराजिय,दूठ जितायक दीठ डरै।।।2।।
मन थाक अयो सरणै सँत माधव,आरत सारथ काज अखी।
सिंध जाय कड़ाव उठायर सांमथ,राज अड़ाव में लाज रखी।
'सर जैमल'में पड़ियो अज साबत,भाल़ थल़ीजन साख भरै।।।3।।
अगवांण दिपै धिन आयल रो इल़,मांण अपै मनपूर मही।
सबल़ापण आंण दफै कर संकट,लंब सुपांण रुखाल़ लही।
वरियांम बखांण बहै बसुधा बड,तीर समँदाय पार तरै।।।4।।
नर-नार अलेखत भेद बिनां निज,मांग सँपूरत सांम मढै।
कितरा कव जाप जस कायब,पंडत मत्र अलाप पढै।
नरपाल़ कितायक नाक नमै नित,धांम सिधेसर ध्यांन धरै।।5।।
सिंणगार सिंदूर सजै तन सुंदरसोरम माल़ ग्रिवाल़ सही।
डणकार सवांन चढै अरि दाबण,शूल़ करां अजरेल सही।
मनरा महरांण सदा रँग मांणण,झींटिय तेल फुलेल झरै।।।6।।
लहरां मँझ रास रचै लटियाल़क,रात उजाल़क रीझ रमै।
पद घूघर बाज छमाछम पावन,जोर घमाघम नाथ जमै।
डमकार डमाडम बाजिय डैरव,धूज धमाधम यूं धररै।।।7।।
मुख बांण सिरै मुझ आपण मातुल,दान विद्या रिझवार दहै।
इणभांत पढूं छँद आणददायक,कान करै कवि गीध कहै।
सुण साद सताबिय भीर सहायक,दोस दयाल़िय कीध दुरै।।।8।।
छप्पय नमो भैरवानाथ,जगत जाहर जस जांणै।
बंकै बीकानेर,कियो निवास कोडांणै।
जंगल़पत री जोय,वार करी के वारां।
उरड़ सरण तो आय,जोड़ हथ नमै हजारां।
तणकार स्वान तातो तुरत,भीर सिमरियां भैरवा।
रीझ नै सांम गिरधर रखै,मामा निसदिन मैरवा।।
कोड़मदेसर में गढ़ का निर्माण - राव बीकाजी ने 1478 ई. में कोड़मदेसर में छोटा गढ़ [किले का निर्माण] का निर्माण कराया था। जब गढ़ बनवाना आरम्भ किया तो भाटियों ने उन पर आक्रमण मगर आक्रमण में भाटियों को ही हारना पड़ा। तब राव बीकाजी ने किसी अन्य सुरक्षित जगह पर गढ़ बनवाने की सोच अपने सहयोगियों से सलाह मसविरा किया तो सभी ने रातीघाटी पर गढ़ [किले का निर्माण] बनाने की बात कही। जब राव बीकाजी रातीघाटी की जमीन पर अपने साथियों के साथ खड़े होकर इधर उधर देख रहे थे उसी समय उनकी नजर वहां भेड़ चारा रहे एक गडरिये [रेवड़ के गुवाळ] पर पड़ी तो उन्होंने अपने पास बुलाया और उसे शुभ मानकर पूछा कि, हमें एक गढ़ बनवाना है बताओ कोनसी जगह बनावें तो उस गडरिये ने उस रातीघाटी की जमीन पर एक जगह की ओर इसारा करते हुए कहा कि, यह जगह ठीक है और उसने जमीन की महत्ता के बारे में बताया की इस जगह पर मेरी एक भेड़ ने बच्चे जन्म दिया और बच्चे खाने के लिए 7 सियारों ने भेड़ पर हमला किया लेकिन 3दिन तक भेड़ के साथ सियार लड़ाई करते रहे फिर भी भेड़ और उसके बचे को सियार कोई नुकसान नही पहुचा सके। उस गडरिये [रेवड़ के गुवाळ] का नाम था नेहरा और जाती से जाट था। नेहरा जाट ने यह भी शर्त राखी कि, उसके नाम को नगर के नाम के साथ जोड़ा जाए और राव बीकाजी ने इसे स्वीकार कर शहर का नाम [बीका+नेर] बीकानेर रखा।
जांगलू - तीन साल तक कोडमदेसर [बीकानेर से 24 किलोमिटर दुर] में रहने के बाद राव बिकाजी ने जंगलू की तरफ कूच किया। और और अपनी कुलदेवी ‘करणी माता’ के वरदान से अनेक छोटे-बड़े स्थानों स्थानीय जाटों एवं कबीलों को जीत कर ‘जांगल’ नामक इस प्राचीन क्षेत्र में सन् 1456 में राठौड़ राजवंश की नींव रखी और 1488 में उन्होंने बीकानेर शहर की नींव रखी और बीकानेर के पहले राव राजा बने। यह जांगलू गांव सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रानी अजयदेवी [दहियाणीजी] ने बसाया था और यहां सब से पहले महिपालजी सांखला के पुत्र रायसी रुण को छोड़कर यहां आये और यहां रहने लगे। रायसी ने कुछ समय बाद जांगलू पर हमला करके जांगलू के दहिया राजा की हत्या कर यहां अपना अधिकार जमा लिया। बाद में जब राव बीकाजी ने जब जांगलू पर हमला किया उस समय पूंगल के भाटियों ने बीकाजी का साथ दिया और जांगलू का यह इलाका राव बीका के आधीन आ गया और यहां के सांखले राठौड़ों के विश्वास पात्र बन गए।
बीकानेर – कहा जाता है कि,बीकाजी ने विक्रम संवत 1542 में वर्तमान लक्ष्मीनाथ मन्दिर के पास, बीकानेर के प्रथम किले की नींव रखी जिसका प्रवेशोत्सव संवत 1545, वैशाख सुदी 2, शनिवार को मनाया गया था आज भी इस किले के अवशेष देखे जा सकते हैं, इस संबंध में एक लोक-दोहा बहुत प्रचलित है -
‘पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर।
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ।।
प्राचीनकाल में बीकानेर रियासत जांगल प्रदेश या राती घाटी के नाम से जानी जाती थी। कामरान बाबर का पुत्र था जो दिल्ली का शासक बनना चाहता था। उसने दिल्ली पर अधिकार करने के लिए पहले राजस्थान को जीतने की योजना बनाई जिसके कारण बीकानेर के शासक जैतसी और कामरान की सेना के बीच बीकानेर की भूमि पर 26 अक्तूबर, 1534 ई. को घमासान युद्ध हुआ जिसे राती घाटी युद्ध के नाम से जाना जाता है जो भारतीय शौर्य की एक अमर गाथा भी है। नागौर, अजमेर और मुल्तान के मार्ग जहां पर मिलते है उस जगह को राति घाटी के नाम से जाना जाता है। बीकानेर के शासक जैतसी ने इसमें समस्त राजस्थान के शासकों का सहयोग लिया। जैतसी ने एक विशेषज्ञ रणनीति अपनाई। इसके अनुसार भैंसों तथा बैलों के सीगों पर मशालें बांधी गईं तथा उन्हें भारी संख्या में बीकानेर के जंगलों में बिखेर दिया गया। बीकानेर की जनता को भी अपना बहुमूल्य सामान लेकर शहर छोड़ने की आज्ञा दी। उसने अपनी सेना को भी छुपा दिया। कामरान की विशाल सेनाएं जब बीकानेर पहुंचीं तथा नगर को उजाड़ पाया, यह देख कामरान अति प्रसन्न हुआ। विजय का जश्न मनाया। परन्तु जैतसी ने उसी रात्रि कामरान की सेना पर आक्रमण कर दिया। पशुओं की सींगों पर बंधी हुई मशालों की रोशनी में यह भयंकर संघर्ष हुआ। कामरान की सेना में भगदड़ मच गई, भाग्य से कामरान बच निकला परन्तु उसका शिरस्त्राण वहीं गिर पड़ा। कामरान की सेना को महान क्षति हुई, अत: इस युद्ध को खानवा युद्ध की पराजय के प्रतिकार के रूप में लिया गया।
बीकानेर राज्य की सीमायें - बीकानेर [प्राचीन बीकानेर राज्य] का पुराना नाम जांगल देश था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था। बीकानेर के उत्तर में कुरु और मद्र देश थे। बीकानेर रियासत के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण, "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं।
प्राचीन बीकानेर राज्य के आसपास में जनपद - प्राचीन बीकानेर राज्य के उत्तर में 16 जनपद मेंसे मुख्य दो जनपद, कुरु देश [जनपद] और मद्र देश [जनपद] थे। जिनका लघु विवरण इसप्रकार है, कि पहला जनपद श्रीमद्भाग्वता एवं विष्णु पुराण में वर्णित ब्रह्माजी की वंशावली में जन्में राजा अजमीढ़ और अजमीढ़ की पीढ़ी में जन्में राजा कुरु जो महाभारत में कौरवों के पितामह थे जिनके नाम पर ''कुरु देश'' [जनपद] था। ''कुरु देश'' की राजधानी हस्तिनापुर [इंद्रप्रस्थ] थी। दूसरा जनपद महाभारत कालीन शक्तिशाली जनपद जो पांडवों की माँ और शल्य की बहन माद्री के नाम पर ''मद्र देश'' जिसके शासक राजा शल्य थे।
राव बीकाजी के आगमन के समय जाट उपमंडल - बीकाजी के आने से पहले समय बीकानेर की सिमा के पास मुख्य छह जाट उपमंडल थे ,राव बीकाजी के आगमन के समय इस क्षेत्र में बहुत से गांव जाट जाति के अधीन थे। उन मेंसे छह क्षेत्रों पर राव बीकाजी ने अपने चाचा कांधलजी के साथ मिलकर अपना अधिकार किया। उस समय बिकनेर मे रुनिया के बारह बास विख्यात थे जिनमे शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा आदि बारह गांव शामिल थे जिनमे ब्राह्मण समाज के सारस्वत और समाज जाट गोदारो का बोलबाला था।जिनका विवरण इस प्रकार है –
जांगलू - तीन साल तक कोडमदेसर [बीकानेर से 24 किलोमिटर दुर] में रहने के बाद राव बिकाजी ने जंगलू की तरफ कूच किया। और और अपनी कुलदेवी ‘करणी माता’ के वरदान से अनेक छोटे-बड़े स्थानों स्थानीय जाटों एवं कबीलों को जीत कर ‘जांगल’ नामक इस प्राचीन क्षेत्र में सन् 1456 में राठौड़ राजवंश की नींव रखी और 1488 में उन्होंने बीकानेर शहर की नींव रखी और बीकानेर के पहले राव राजा बने। यह जांगलू गांव सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रानी अजयदेवी [दहियाणीजी] ने बसाया था और यहां सब से पहले महिपालजी सांखला के पुत्र रायसी रुण को छोड़कर यहां आये और यहां रहने लगे। रायसी ने कुछ समय बाद जांगलू पर हमला करके जांगलू के दहिया राजा की हत्या कर यहां अपना अधिकार जमा लिया। बाद में जब राव बीकाजी ने जब जांगलू पर हमला किया उस समय पूंगल के भाटियों ने बीकाजी का साथ दिया और जांगलू का यह इलाका राव बीका के आधीन आ गया और यहां के सांखले राठौड़ों के विश्वास पात्र बन गए।
बीकानेर – कहा जाता है कि,बीकाजी ने विक्रम संवत 1542 में वर्तमान लक्ष्मीनाथ मन्दिर के पास, बीकानेर के प्रथम किले की नींव रखी जिसका प्रवेशोत्सव संवत 1545, वैशाख सुदी 2, शनिवार को मनाया गया था आज भी इस किले के अवशेष देखे जा सकते हैं, इस संबंध में एक लोक-दोहा बहुत प्रचलित है -
‘पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर।
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ।।
प्राचीनकाल में बीकानेर रियासत जांगल प्रदेश या राती घाटी के नाम से जानी जाती थी। कामरान बाबर का पुत्र था जो दिल्ली का शासक बनना चाहता था। उसने दिल्ली पर अधिकार करने के लिए पहले राजस्थान को जीतने की योजना बनाई जिसके कारण बीकानेर के शासक जैतसी और कामरान की सेना के बीच बीकानेर की भूमि पर 26 अक्तूबर, 1534 ई. को घमासान युद्ध हुआ जिसे राती घाटी युद्ध के नाम से जाना जाता है जो भारतीय शौर्य की एक अमर गाथा भी है। नागौर, अजमेर और मुल्तान के मार्ग जहां पर मिलते है उस जगह को राति घाटी के नाम से जाना जाता है। बीकानेर के शासक जैतसी ने इसमें समस्त राजस्थान के शासकों का सहयोग लिया। जैतसी ने एक विशेषज्ञ रणनीति अपनाई। इसके अनुसार भैंसों तथा बैलों के सीगों पर मशालें बांधी गईं तथा उन्हें भारी संख्या में बीकानेर के जंगलों में बिखेर दिया गया। बीकानेर की जनता को भी अपना बहुमूल्य सामान लेकर शहर छोड़ने की आज्ञा दी। उसने अपनी सेना को भी छुपा दिया। कामरान की विशाल सेनाएं जब बीकानेर पहुंचीं तथा नगर को उजाड़ पाया, यह देख कामरान अति प्रसन्न हुआ। विजय का जश्न मनाया। परन्तु जैतसी ने उसी रात्रि कामरान की सेना पर आक्रमण कर दिया। पशुओं की सींगों पर बंधी हुई मशालों की रोशनी में यह भयंकर संघर्ष हुआ। कामरान की सेना में भगदड़ मच गई, भाग्य से कामरान बच निकला परन्तु उसका शिरस्त्राण वहीं गिर पड़ा। कामरान की सेना को महान क्षति हुई, अत: इस युद्ध को खानवा युद्ध की पराजय के प्रतिकार के रूप में लिया गया।
बीकानेर राज्य की सीमायें - बीकानेर [प्राचीन बीकानेर राज्य] का पुराना नाम जांगल देश था। बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था। बीकानेर के उत्तर में कुरु और मद्र देश थे। बीकानेर रियासत के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण, "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं।
प्राचीन बीकानेर राज्य के आसपास में जनपद - प्राचीन बीकानेर राज्य के उत्तर में 16 जनपद मेंसे मुख्य दो जनपद, कुरु देश [जनपद] और मद्र देश [जनपद] थे। जिनका लघु विवरण इसप्रकार है, कि पहला जनपद श्रीमद्भाग्वता एवं विष्णु पुराण में वर्णित ब्रह्माजी की वंशावली में जन्में राजा अजमीढ़ और अजमीढ़ की पीढ़ी में जन्में राजा कुरु जो महाभारत में कौरवों के पितामह थे जिनके नाम पर ''कुरु देश'' [जनपद] था। ''कुरु देश'' की राजधानी हस्तिनापुर [इंद्रप्रस्थ] थी। दूसरा जनपद महाभारत कालीन शक्तिशाली जनपद जो पांडवों की माँ और शल्य की बहन माद्री के नाम पर ''मद्र देश'' जिसके शासक राजा शल्य थे।
राव बीकाजी के आगमन के समय जाट उपमंडल - बीकाजी के आने से पहले समय बीकानेर की सिमा के पास मुख्य छह जाट उपमंडल थे ,राव बीकाजी के आगमन के समय इस क्षेत्र में बहुत से गांव जाट जाति के अधीन थे। उन मेंसे छह क्षेत्रों पर राव बीकाजी ने अपने चाचा कांधलजी के साथ मिलकर अपना अधिकार किया। उस समय बिकनेर मे रुनिया के बारह बास विख्यात थे जिनमे शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा आदि बारह गांव शामिल थे जिनमे ब्राह्मण समाज के सारस्वत और समाज जाट गोदारो का बोलबाला था।जिनका विवरण इस प्रकार है –
01 - पुनिया जाट - कान्हा पुनिया इनका मुख्या था और लूद्दी [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, पुनिया जनपद में कुल 360 गाँव थे जिन में से
पुनिया जाटों के गांव
झांसल [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
भादरा [बहादुराण] [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
अजीतपुरा [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
सिधमुख [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
राजगढ़ [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
ददरेवा [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
सांखू [सांखू फोर्ट] [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
मरोदा [तहसील झुन्झुनू ,जिला झुन्झुनू,राजस्थान]
02 - बेनीवाल[भन्नीवाल] जाट - रायसल बेनीवाल इनका मुख्या था और रसलाणा [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, बेनीवाल पट्टी में कुल 360 गाँव थे जिन में से बेनीवाल जाटों के गांव
भूकरका [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
सोनरी [सोनड़ी] [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
मनोहरपुर[तहसील जींद(झींद), जिला जींद(झींद),हरियाणा]
कुई [खुइयां] [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
बायं[बाइ] [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
03 - जोइया [जोहया] जाट - शेरसिंह जोइया इनका मुख्या था और भुरूपाल इनकी राजधानी थी, जोइया जाटों के गांव जैतपुर, [तहसील झज्जर,जिला झज्जर,हरियाणा]
कुमाना [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
महाजन [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
पीपासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
उदासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
रंगमहल [तहसील सूरतगढ़ , जिला श्रीगंगानगर,राजस्थान]
04 - सिहाग[असाइच] जाट - चोखासिंह सिहाग इनका मुख्या था और सूई [तहसील लूणकरणसर जिला बीकानेर,राजस्थान] इनकी राजधानी थी,
पल्लू [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
रावतसर [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
बिरमसर [तहसील रतनगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
दांदुसर [तहसील बीकानेर,जिला बीकानेर,राजस्थान]
गन्धेली [गंधेली] [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
05 - सारण [सहारन] जाट - पुला सारण इनका मुख्या था और भाड़ंग [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, सारण (सारणौटी) में कुल360 गाँव थे जिन में से सारणजाटों के गांव इसप्रकार है -
भाडंग [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
खेजड़ा [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
फोगां [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
बुचावास [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
सूई [तहसील बवानी खेडा,जिला भिवानी,हरियाणा]
बन्धनाऊ[बंधनौ] [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
सिरसला [तहसील चूरू,जिला चूरू,राजस्थान]
सवाई [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
पूलासर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
हरदेसर [तहसील रतनगढ़,जिला चूरू,राजस्थान]
कालूसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
गाजूसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
सारायण [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
उदासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
धीरवास बड़ा [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
06 - गोदारा जाट - परम्परानुसार रुणिया के गोदारा शेखसर कि थाली से राजतिलक करके ही बीकानेर शासक को गद्दी पर बिठाते है, पाण्डु गोदाराइ नका मुख्या था और शेखसर [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, गोदारा पट्टी में कुल 360 गाँव थे जिन में से
पुंदरासर [जिला बीकानेर,राजस्थान]
गुसांईसर [बड़ा] [गुसाइना] [तहसील बीकानेर,जिला बीकानेर,राजस्थान]
घड़सीसर [जिला बीकानेर,राजस्थान]
गारबदेसर [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
रूणिया [जिला बीकानेर,राजस्थान]
कालू [जिला बीकानेर,राजस्थान]
लाघड़िया [तहसील डूंगरगढ़ , जिला बीकानेर,राजस्थान]
रासीसर[तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
लालेरा
कतरियासार
उपरोक्त्त में शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा आदि बारह गांव शामिल थे जिनमे सारस्वत और गोदारो का बोलबाला था।
पुनिया जाटों के गांव
झांसल [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
भादरा [बहादुराण] [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
अजीतपुरा [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
सिधमुख [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
राजगढ़ [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
ददरेवा [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
सांखू [सांखू फोर्ट] [तहसील राजगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
मरोदा [तहसील झुन्झुनू ,जिला झुन्झुनू,राजस्थान]
02 - बेनीवाल[भन्नीवाल] जाट - रायसल बेनीवाल इनका मुख्या था और रसलाणा [तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, बेनीवाल पट्टी में कुल 360 गाँव थे जिन में से बेनीवाल जाटों के गांव
भूकरका [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
सोनरी [सोनड़ी] [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
मनोहरपुर[तहसील जींद(झींद), जिला जींद(झींद),हरियाणा]
कुई [खुइयां] [तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
बायं[बाइ] [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
03 - जोइया [जोहया] जाट - शेरसिंह जोइया इनका मुख्या था और भुरूपाल इनकी राजधानी थी, जोइया जाटों के गांव जैतपुर, [तहसील झज्जर,जिला झज्जर,हरियाणा]
कुमाना [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
महाजन [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
पीपासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
उदासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
रंगमहल [तहसील सूरतगढ़ , जिला श्रीगंगानगर,राजस्थान]
04 - सिहाग[असाइच] जाट - चोखासिंह सिहाग इनका मुख्या था और सूई [तहसील लूणकरणसर जिला बीकानेर,राजस्थान] इनकी राजधानी थी,
पल्लू [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
रावतसर [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
बिरमसर [तहसील रतनगढ़ ,जिला चूरू,राजस्थान]
दांदुसर [तहसील बीकानेर,जिला बीकानेर,राजस्थान]
गन्धेली [गंधेली] [तहसील रावतसर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान]
05 - सारण [सहारन] जाट - पुला सारण इनका मुख्या था और भाड़ंग [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, सारण (सारणौटी) में कुल360 गाँव थे जिन में से सारणजाटों के गांव इसप्रकार है -
भाडंग [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
खेजड़ा [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
फोगां [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
बुचावास [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
सूई [तहसील बवानी खेडा,जिला भिवानी,हरियाणा]
बन्धनाऊ[बंधनौ] [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
सिरसला [तहसील चूरू,जिला चूरू,राजस्थान]
सवाई [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
पूलासर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
हरदेसर [तहसील रतनगढ़,जिला चूरू,राजस्थान]
कालूसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
गाजूसर [तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान]
सारायण [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
उदासर [तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
धीरवास बड़ा [तहसील तारानगर,जिला चूरू,राजस्थान]
06 - गोदारा जाट - परम्परानुसार रुणिया के गोदारा शेखसर कि थाली से राजतिलक करके ही बीकानेर शासक को गद्दी पर बिठाते है, पाण्डु गोदाराइ नका मुख्या था और शेखसर [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान] इनकी राजधानी थी, गोदारा पट्टी में कुल 360 गाँव थे जिन में से
पुंदरासर [जिला बीकानेर,राजस्थान]
गुसांईसर [बड़ा] [गुसाइना] [तहसील बीकानेर,जिला बीकानेर,राजस्थान]
घड़सीसर [जिला बीकानेर,राजस्थान]
गारबदेसर [तहसील लूणकरणसर, जिला बीकानेर,राजस्थान]
रूणिया [जिला बीकानेर,राजस्थान]
कालू [जिला बीकानेर,राजस्थान]
लाघड़िया [तहसील डूंगरगढ़ , जिला बीकानेर,राजस्थान]
रासीसर[तहसील नोखा, जिला बीकानेर,राजस्थान]
लालेरा
कतरियासार
उपरोक्त्त में शेरेरा, हेमेरा, बदा बास, राजेरा, आसेरा, भोजेरा आदि बारह गांव शामिल थे जिनमे सारस्वत और गोदारो का बोलबाला था।
शेखसर का इलाका पांडू गोदारा व भाडंग का इलाका पूला सारण के अधीन था। पांडू गोदारा व पूला सारण इन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। क्यों की कहा जाता है कि,एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया, उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया, लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश हो। इस सम्बन्ध में एक लोक दोहा प्रचलित है -
धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।
ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।
पूला सारण मद में छका हुआ था, उसने छड़ी से अपनी पत्नी मल्कि को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू गोदारा पर इतनी रिझाती है तो जा उसी के पास चली जा! पति की इस हरकत से मलकी मन ही मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी पूला सारण से बोलना बंद कर दिया और पांडू गोदारा को किसी अनुचर के मध्यम से आपबीती हकीकत कहलवाई।
[मल्कि गांव रसलाणा, तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान के रायसल बेनीवाल की पुत्री थी]
ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।
पूला सारण मद में छका हुआ था, उसने छड़ी से अपनी पत्नी मल्कि को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू गोदारा पर इतनी रिझाती है तो जा उसी के पास चली जा! पति की इस हरकत से मलकी मन ही मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी पूला सारण से बोलना बंद कर दिया और पांडू गोदारा को किसी अनुचर के मध्यम से आपबीती हकीकत कहलवाई।
[मल्कि गांव रसलाणा, तहसील भादरा, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान के रायसल बेनीवाल की पुत्री थी]
पांडू गोदारा ने पूला सारण की पत्नी मल्कि को लाने के लिए अपने पुत्र नकोदर को भेजा और नकोदर पूला की पत्नी मल्कि को विक्रम संवत 1545 में गांव धाणसिया तहसील नोहर, जिला हनुमानगढ़,राजस्थान से गणगौर के मगरिया में से मलकी को उठा लाया। मलकी को उठा ले जाने का जब पूला को पता चला तो उसने आस-पास के जाटों को साथ लेकर पांडू गोदारा पर चढ़ाई के लिए बुलाया मगर पांडू गोदारा द्वारा पहले ही राव बीकाजी की अधीनता स्वीकार कर अपनी सुरक्षा का वचन हासिल के चूका था जिस के चलते किसी की पांडू गोदारा पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं पड़ी तो, फिर भी पूला सारण सिवाणी के नरसिंह जाट से सहायता मांगी और नरसिंह जाट को साथ लेकर पांडू गोदारा पर आक्रमण कर दिया लेकिन जैसे ही बीकाजी को इसकी सूचना मिली बीकाजी ने नरसिंह जाट को भेंटवाले धोरे के पास गांव सोन पालसर तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान से उत्तर-पश्चिम और राजासर पंवारान तहसील सरदारशहर,जिला चूरू,राजस्थान से पश्चिम में 10 कि.मी.दुरी पर लड़ाई हुई और नरसिंह जाट भाग छूटा और उसने अपने ससुराल [ससुराल ढाका जाटों में था] सिद्धमुख के पास गाँव ढाका, जिला चूरू, राजस्थान में सरण ली बीकाजी ने पीछा किया और उसे घेर लिया और इस लड़ाई में नरसिंह जाट मारा गया। नरसिंह जाट के मरते ही अन्य जाट भाग खड़े हुए और पूला आदि कई जाटों ने बीकाजी से क्षमा याचना करते हुए उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में गाँव मलकीसर मलकी के नाम पर ही बसाया गया था, इस तरह बिना ज्यादा रक्त-पात बहाये राव बीकाजी ने जाटों के अधीन इस भूमि को अपने राज्य में मिला लिया और पांडू गोदारा को उसकी खैरख्वाही के बदले बीकाजी ने यह वचन दिया कि बीकानेर रियासत का जो भी राजा बनेगा उसका का राजतिलक पांडू गोदारा के ही वंशजों के हाथ से हुआ करेगा और यह प्रथा अब तक प्रचलित है।
राव बीकाजी के समय का ‘‘दंतालपत्र’- ताम्रपत्रों के कंठस्थ आशयों को ही ‘’दंतालपत्र’’ कहा जाता है । दंत्य-परंपरा जीवी होने के कारण उन दानपत्रों की संज्ञा दंताल पत्र है। यह मौखिक [जुबानी] साक्ष्य की परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित थी । दंताल पत्रों की यह कंठस्थ सनदें क्षेत्रीय एवं जातीय घटकों के इतिहासों के लिये महत्व के आधार स्रोत हैं।
बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना के उत्सव में चाहड़ नाम के बारहठ को खुंडिया गांव सहित सींगड़ी, नैणासर, खापरसर, खरतवास [खड़तवास] भींवासर, गोमटियो, गलगटी [गिलगरी], मदावास [मलवास], मेहरी [मिहेरी], धमेरी [धनेरी] तथा भालेरी [बालेरी] का बास ग्राम प्रदान कर अपना पोलपात्र नियत किया था। ये सब ही गांव थल प्रदेश में स्थित थे । इस दंताल पत्र का प्राप्त पाठ इस प्रकार है-
‘‘समप गांव सींगड़ी, दूवौ नैणासर दाखूं,
खापरसर खड़तबास, भलौ भींवासर भाखूं,
गोमटियौ कगलगटी, मझ मलवास मिहेरी,
बालेरी रो बास, धरा दस सहंस धनेरी,
सांसण गांव बारह सहित, मंझथळी सिर मंडियौ,
सुदातार बीक जोधै सुतन, खतरी समप्यौ खुंडियौ।
चाहड़ बारहठ का उत्तराधिकारी सीमा बारहठ और सीमा बारहठ का पुत्र दूदा बारहठ हुआ । दूदा का पुत्र महाराजा रायसिंह बीकानेर का कृपा पात्र प्रसिद्ध शंकर बारहठ हुआ ।शंकर पर महाराजा रायसिंह की बड़ी कृपा थी । रायसिंह ने शंकर को नागौर प्रांत की एक वर्ष की समस्त आय दान में दे दी थी । इस संबंध में चारण लोगों में प्रसिद्धि है कि रायसिंह ने शंकर बारहठ को सवा करोड़ का द्रव्ष्य दान में दिया था और उस राशि की पूर्ति में नागौर प्रांत की एक वर्ष की आमदनी दी गई थी । रायसिंह की उदारता और वदान्यता की अनेक कहानियां वृद्धजनों द्वारा सुनने को मिलती है । रायसिंह द्वारा शंकर को प्रदान दंतालपत्र की भाषा इस प्रकार है-
‘‘पातां लाख पसाव, कमंध सत सहस जु कीनां,
कमां सवा मुर कोड़, दुरस लख संकर दीना ।
सिंधुर दोय सहंस, अरध लख बाजी अप्पे,
सीरोही सुरताण दूद, अरबुद्ध समपे ।
जोधांण पार प्रतपै जदिन, सुजस जितै सस भांण रे,
सत पंच उदक दीनां सुपह, कारण जस कलियांण रै ।
बीकाजी अपनी कुलदेवी ‘करणी माता’ के वरदान से अनेक छोटे-बड़े स्थानों स्थानीय जाटों एवं कबीलों को जीत कर ‘जांगल’ नामक इस प्राचीन क्षेत्र में सन् 1456 में राठौड़ राजवंश की नींव रखी और राव जोधाजी के पांचवे पुत्र राव बीकाजी ने 1488 ई. में राती घाटी नामक स्थान पर बीकानेर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया और बीकानेर के पहले राव राजा बने। राव बीकाजी के पुत्र राव लूणकर्णजी ''कलियुग के कर्ण'' कहलाये हैं।
वर्तमान बीकानेर का पुराना नाम "जांगळ प्रदेश ", तथा "विक्रमाखण्ड", "विक्रम नगर" या " विक्रमपुरी" था। राव बिकाजी ने अपने राज्य का विस्तार जारी रखा और लगभग 3000 गावों का राज्य बना दिया। राव बीकाजी की मृत्यु 17 सितम्बर 1504 को हुयी थी। राव बीकाजी की सात शादियां हुयी थी, जिनमें से पूंगल के राव शेखाजी भाटी की पुत्री रंगकँवर भी थी।
राव बीकाजी की रानी थी। कहा जाता है कि, जब राव बीकाजी की शादी रंगकँवर के साथ हो रही थी उस समय रंगकँवर के पिताजी राव शेखाजी भाटी मुलतान की कैद में थे उस समय माँ करणी जी राव शेखाजी भाटी को मुलतान की कैद से छुड़ाकर लाई। तब राव शेखाजी भाटी तो अपनी पत्नी व पुत्र के साथ महल में चले गये व माँ करणी जी बाहर दरवाजे [पोळ] पर ही खाड़ी रही, जब अन्दर जाकर राव शेखाजी भाटी को ध्यान आया तो जल्दी से बाहर आये और देखा कि माँ करणी जी राव बीकाजी के चाचा रावत कांधलजी के साथ दरवाजे [पोळ] में विराजमान है और रावत कांधल जी से हंस हंसकर बाते कर रही है। शेखा ने माँ करणी जी से कहा, बाईसा आँगन में पधारो तो माँ करणी जी ने कहा अब नही ‘’अब तो राठौड़ घर आंगने अर भाटिया रे पोले’’। उस समय रावत कांधलजी ने राव शेखाजी भाटी को गले लगा लिया।
कांधलजी की मृत्यु के बाद परम्परा के नुसार राज और रावताई का टिका कांधलजी के बड़े पुत्र बाघजी या उनके पुत्र बणीरजी को मिलना चाहिए था लेकिन जोधाजी और बीकाजी कांधलजी की हत्या का बदला [बैर] लेने के बाद राजासर में राजसिंह के पास गए और उनको रावताई का टिका और पाग देकर द्रोणपुर पहुंचे तो जोधाजी ने बीकाजी से अपने लिए लाडनूं मांगलिया। बीकाजी ने जोधाजी को लाडनूं तो देदिया मगर बदले में राठौड़ों का राज चिन्ह मांग लिया। कांधलजी की मृत्यु के थोड़े दिनों बाद ही जोधाजी की मृत्यु के बाद जोधपुर और बीकानेर के भाइयों-भाइयों बिच राज चिन्ह को लेकर झगड़ा शुरू होगया तो बीकाजी ने अपने चाचा माण्डलजी,अपने भाई बीदाजी तथा बणीरजी, अरडकमलजी और राजसिंह से सहायता मांगी। बीकाजी की सहायता करने बीदाजी,बणीरजी, अरडकमलजी और राजसिंह सभी अपनी अपनी सेना लेकर बीकाजी की सहायता करने बीकानेर पहुंचे। भाइयों-भाइयों की इस लड़ाई में कांधलजी ने बीकानेर से पूर्व की तरफ का इलाका जीता जिसमें हांसी, हिसार, सिरसा, धमोरा, भट्टू, फातियाबाद और गड़ना ठिकाने थे।
राव बिकाजी - बीकानेर,किशनगढ़ ,ईडर ,विजयनगर ,झाबुआ,अमझेरा,रतलाम,सीतामऊ तथा,सैलाना राज्यों के शासक जोधपुर के राठौड़ वंस से ही निकालें हैं। राव जोधाजी के पुत्र राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़ कहलाये हैं। राव बीकाजी के दस पुत्र थे। राव बिकाजी के दस पुत्रों से पांच शाखाएं निकली घड़सिहोत बीका राठौड़, राजसिंहोत बीका राठौड़, मेघराजोत बीका राठौड़, बीसावत बीका राठौड़, केलणोत बीका राठौड़।
राव बिकाजी - बीकानेर,किशनगढ़ ,ईडर ,विजयनगर ,झाबुआ,अमझेरा,रतलाम,सीतामऊ तथा,सैलाना राज्यों के शासक जोधपुर के राठौड़ वंस से ही निकालें हैं। राव जोधाजी के पुत्र राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़ कहलाये हैं। राव बीकाजी के दस पुत्र थे। राव बिकाजी के दस पुत्रों से पांच शाखाएं निकली घड़सिहोत बीका राठौड़, राजसिंहोत बीका राठौड़, मेघराजोत बीका राठौड़, बीसावत बीका राठौड़, केलणोत बीका राठौड़।
01 - राव लूणकरनजी
02 - राव नरोजी
03 - राव घड़सीजी - राव घड़सीजी के वंशज घड़सिहोत बीका राठौड़ कहलाते है ।
04 - केलणजी - केलणजी के वंशज केलणोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। केलणजी के पुत्र
अमराजी के वंसज अमरावत बिका राठौड़ कहलाये हैं।
05 - मेघराजजी - मेघराजजी के वंशज मेघराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
06 - बीसाजी - बीसाजी के वंशज बीसावत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
07 - राव राजसिंह [राजोजी] - राव राजसिंह [राजोजी] के वंशज राजसिंहोत बीका राठौड़
कहलाये हैं।
08 – देवराजजी
09 - राजधरजी
10 - बिजयसिंह
राव बीकाजी के पुत्रों, पोतों और पड़ पोतों से बीका राठौड़ों की 24 मुख्य शाखाएँ निकली हैं जो इस प्रकार है -
01 - घड़सिहोत बीका राठौड़
02 - राजसिंहोत बीका राठौड़
03 - मेघराजोत बीका राठौड़
04 - बीसावत बीका राठौड़
05 - केलणोत बीका राठौड़
06 - अमरावत बिका राठौड़
07 - भीमराजोत बीका राठौड़
08 - बाघावत बीका राठौड़
09 - मालदेवोत बीका राठौड़
10 - श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका]
11 - माधोदासोत बीका राठौड़
12 - नारनोत बीका राठौड़
13 - रतनसिंहोत बीका राठौड़
14 - प्रतापसिहोत बीका राठौड़
15 - तेजसिहोत बीका राठौड़
16 - सूरजमलोत बीका राठौड़
17 - सूरजमलोत बीका राठौड़
18 - रामसिहोत बीका राठौड़
19 - नीबावत बीका राठौड़
20 - पृथ्वीराजोत बीका राठौड़
21 - अमरसिहोत बीका राठौड़
22 - गोपलदासोत बीका राठौड़
23 - किशनसिहोत बीका राठौड़
24 - राजवी बीका राठौड़
01 - घड़सिहोत बीका राठौड़
02 - राजसिंहोत बीका राठौड़
03 - मेघराजोत बीका राठौड़
04 - बीसावत बीका राठौड़
05 - केलणोत बीका राठौड़
06 - अमरावत बिका राठौड़
07 - भीमराजोत बीका राठौड़
08 - बाघावत बीका राठौड़
09 - मालदेवोत बीका राठौड़
10 - श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका]
11 - माधोदासोत बीका राठौड़
12 - नारनोत बीका राठौड़
13 - रतनसिंहोत बीका राठौड़
14 - प्रतापसिहोत बीका राठौड़
15 - तेजसिहोत बीका राठौड़
16 - सूरजमलोत बीका राठौड़
17 - सूरजमलोत बीका राठौड़
18 - रामसिहोत बीका राठौड़
19 - नीबावत बीका राठौड़
20 - पृथ्वीराजोत बीका राठौड़
21 - अमरसिहोत बीका राठौड़
22 - गोपलदासोत बीका राठौड़
23 - किशनसिहोत बीका राठौड़
24 - राजवी बीका राठौड़
उपरोक्त विवरण इसप्रकार है -
बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ध्यान रहे कि, [कहीं कहीं पीढ़ी क्रम में ''सादेजी - सादोजी - पुनपाळदेजी'' लिखा हुवा मिलता है जिसका मतलब है ''रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी - राव विरमजी [बीरमजी]
[रिड़मलजी [राव रणमलजी] को उपनाम ''सादेजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।
राव चूण्डाजी को उपनाम ''सादोजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।
राव विरमजी [बीरमजी] को उपनाम रावळ ''पुनपाळदेजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।]
ध्यान रहे कि, [कहीं कहीं पीढ़ी क्रम में ''सादेजी - सादोजी - पुनपाळदेजी'' लिखा हुवा मिलता है जिसका मतलब है ''रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी - राव विरमजी [बीरमजी]
[रिड़मलजी [राव रणमलजी] को उपनाम ''सादेजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।
राव चूण्डाजी को उपनाम ''सादोजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।
राव विरमजी [बीरमजी] को उपनाम रावळ ''पुनपाळदेजी'' के नाम से भी पुकारा जाता था ।]
ख्यात अनुसार बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-:
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा,
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी।
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
- राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र।
- राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी
संवत 1272-1292)]
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
वाजन राठौड़ कहलाये हैं।
03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले
गए और वंहा के पहले राव बनें।
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
01 - राव दूहड़जी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
12 - राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
03 - राव बेहड़जी [बेहरजी] [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
04 - राव पीथड़जी [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
05 - राव जुगलजी [जुगैलजी] [- के वंसज जोगवत राठौड़]
06 - राव डालूजी [---------------------]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
08 - उनड़जी [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
09 - सिशपलजी [- के वंसज सीरवी राठौड़]
10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान] [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-
01 - कानपालजी -
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -
01 - राव जालणसीजी
02 - राव भीमकरण
03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए -
01 - राव छाडाजी
02 - राव भाखरसिंह
03 - राव डूंगरसिंह
16 - राव छाडाजी - राव छाडाजी [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए -
01 - राव तीड़ाजी
02 - राव खोखरजी
03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
04 - राव सिहमलजी
05 - राव रुद्रपालजी
06 - राव खीपसजी
07 - राव कान्हड़जी -
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं।
राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।
राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
01 - रावल मल्लीनाथजी - [मालानी के संस्थापक]
02 - राव जैतमलजी - [गढ़ सिवाना]
03 - राव विरमजी [बीरमजी]
04 - राव सोहड़जी - के वंसज सोहड़ राठौड़
01 - राव चुण्डाजी
02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर,
देचू, सोमेसर]
03 - जैसिंघजी [जयसिंहजी] - जैसिंघजी के वंसज जयसिहोत[जैसिंघोत] राठौड़
04 - बीजाजी - बीजावत राठौड़
05 - गोगादेवजी - गोगादेवजी के वंसज गोगादे राठौड़ [केतु , तेना, सेखाला]
20 - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] के पुत्र राव चूण्डाजी थे। राव चूण्डाजी;राव सलखाजी के पोते और राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे। मंडोर जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर है। मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। मंडोर दुर्ग 783 ई0 तक परिहार शासकों के अधिकार में रहा। इसके बाद नाड़ोल के चौहान शासक रामपाल ने मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। 1227 ई0 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतनिश ने मंडोर पर अधिकार कर लिया। यद्यपि परिहार शासकों ने तुरकी आक्रांताओं का डट कर सामना किया पर अंतत: मंडोर तुर्कों के हाथ चला गया। लेकिन तुरकी आक्रमणकारी मंडोर को लम्बे समय तक अपने अधिकार में नही रख सके एंव दुर्ग पर पुन: प्रतिहारों का अधिकार हो गया। 1294 ई0 में फिरोज खिलजी ने परिहारों को पराजित कर मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया, परंतु 1395 ई0 में परिहारों की इंदा शाखा ने दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया और मंडोर गढ़ परिहार राजाओं का होगया । सन् 1395 में चुंडाजी राठौड़ की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला था तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौड़ शासकों का राज हो गया था। राव चूण्डाजी [1394 -1423] ने मंडोर पर राठौड़ राज कायम किया था। राव चूण्डाजी एक महत्वाकांक्षी शासक था। उन्होंने आस-पास के कई प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 1396 ई0 में गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने मंडोर पर आक्रमण किया। एक वर्ष के निरंत्तर घेरे के उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अधिकार करने में सफलता नही मिली और उसे विवश होकर घेरा उठाना पड़ा। 1453 ई0 में राव जोधाजी ने मंडोर के शासक बनें उन्होंने मरवाड़ की राजधानी मंडोर से स्थानान्तरित करके जोधपुर बनायीं जिसके कारण मंडोर दुर्ग धीरे-धीरे वीरान होकर खंडहर में तब्दील हो गया। राव विरमजी [बीरमजी] के छोटे पुत्र राव चुंडाजी थे। राव वीरम देव जी की मृत्यु होने के बाद राव चुंडाजी की माता मांगलियानी इन्हें लेकर अपने धर्म भाई आल्हो जी बारठ के पास कालाऊ गाँव में लेकर आगई वहीं राव चुंडा जी का पालन पोसण हुआ तथा आल्हा जी ने इन्हें युद्ध कला में निपुण किया था। राव चुंडाजी बड़े होने पर मल्लीनाथ जी के पास आगये तब इन्हें सलेडी गाँव की जागीर मिली। राव चुंडाजी ने अपनी शक्ति बढाई तथा नागोर के पास चुंडासर गाँव बसाया और इसे अपना शक्ति केंद्र बना कर पहले मण्डोर को विजय किया और मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद नागोर के नवाब जलालखां खोखर पर हमला कर उसे मार कर नागोर पर अधिकार करलिया फिर फलोदी पर अधिकार करलिया और वहां शासन करने लगे। जब केलन भाटी ने मुल्तान के नवाब फिरोज से फोज की सहायता लेकर राव चुंडा को परास्त करने की सोची मगर यह उसके बस की बात नहीं thee अतः धोखे से राव चुंडा को संधि के लिये बुलाया तथा राव चुंडा पर हमला कर दिया राव चुंडा तथा उनके साथी नागोर की रक्षा करते हुए गोगालाव नामक स्थान पर विक्रम सम्वत 1475 बैसाख बदी1 (15मार्च1423) को वीरगति को प्राप्त हुए। राव चुंडाजी के साथ राणी समंदरकंवर सांखली सती हुई।
01 - राव रिड़मलजी
02 - राव कानाजी [1423-1424] - के वंसज कानावत राठौड़
03 - राव सताजी [1424-1427] - के वंसज सतावत राठौड़
04 - राव अरड़कमलजी - के वंसज अरड़कमलोत राठौड़
05 - राव अर्जनजी - के वंसज अरजनोत राठौड़
06 - राव बिजाजी - के वंसज बीजावत राठौड़
07 - राव हरचनदेवी - के वंसज हरचंदजी राठौड़
08 - राव लूम्बेजी - के वंसज लुम्बावत राठौड़
09 - राव भीमजी - के वंसज भीमौत राठौड़
10 - राव सेसमलजी - के वंसज सेसमालोत राठौड़
11 - राव रणधीरजी - के वंसज रणधीरोत राठौड़
12 - राव पूनांजी - के वंसज पुनावत राठौड़ [खुदीयास ,जूंडा ]
13 - राव शिवराजजी - के वंसज सीवराजोत राठौड़
14 – राव रामाजी [रामदेवजी]
15 - राजकुमारी हंसादेवी - राजकुमारी हंसादेवी की शादी उदयपुर, राजस्थान [मेवाड़] के
सिसोदिया महाराणा लखासिंह [लाखाजी] के साथ हुयी थी। लखासिंह [लाखाजी] मेवाड़ के
तीसरे महाराणा थे। जो क्षेत्रसिंह के बेटे और हमीरसिंह के पोते थे।
21 - राव रिड़मलजी [1427-1438] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पुत्र राव रणमलजी [राव रिङमालजी] के वंसज रिड़मलोत राठौड़ [रिड़मालोत] राठौड़ कहलाये। राव रणमलजी [राव रिङमालजी];राव विरमजी [बीरमजी] के पोते और राव सलखाजी के पड़पोते थे। [1427-1438] के चौबीस पुत्र थे-
01 - राव अखैराजजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अखैराजजी के वंसज बागड़ी [बगड़ी]
राठौड़ कहलाये हैं।
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके रावतसर , बीसासर , बिलमु , सिकरोड़ी आदि ठिकाने थे।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
[रानीसगांव, आउवा ]
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
कहलाये हैं।
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
कहलाये हैं।
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
जैतमालोत राठौड़ कहलाये हैं।
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
अलाय [बीकानेर में] ठिकाना था ।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका चोटिला, आउ, करनू, बरजानसर,बूंगड़ी आदि ठिकाने थे।
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मूंजासर, चाखु, भेड़, उदातठिकाने थे।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनके ठिकाने मूडी, काननों, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुर, कीतनोद, चांदसमा,
मुड़ाडो, जाजोलाई आदि थे।
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका अलाय मुख्य ठिकाना था।
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मुख्य ठीकाने [हरखावत], [नाथूसर]आदि थे।
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
कहलाये हैं। जो बीकानेर ठीकाने से सम्बन्ध रखतें हैं।
17 - वेराजी - राव रणमलजी के पुत्र राव वेराजी के वंसज वेरावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं।
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
कहलाये हैं।
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
कहलाये हैं।
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
कहलाये हैं।
22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव जोधाजी के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये।राव जोधाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे।[1453 ई.-1489 ई.] राव जोधाजी का जन्म 1415 में दुङ्लो [Dunlo]गांव में हुवा था। राव जोधाजी नें सोजत को 1455, और 1459,में दो बार जीता था। राव जोधाजी राव रिड़मालजी के बेटे और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते तथा राव विरमजी के पड़पोते थे। जोधपुर शहर का नाम इन्हीं के नाम पर रखा हुवा है, राव जोधाजी ने अपनी राजधानी जोधपुर को 1459 में बनायीं थी।
राव जोधाजी की मत्यु 1488.में हुयी थी। राव जोधाजी [जोधपुर] की दूसरी जाती में भी शादियां हुयथी मगर जो राजपूत समाज में हुयी वो जालोर के सोनिगरा चौहान खीमा संतावत की बेटी से हुयी थी जिस से राव जोधाजी [जोधपुर] के सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए जिनमें से तीन पुत्र यानि राव बिकाजी, बीदोजी और राव दूदाजी को छोड़कर बाकि तेरह पुत्रों के वंसज जोधा राठौड़ कहलाते हैं। राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़,राव बीदोजी [बीदाजी] के वंसज बीदावत राठौड़ और राव दूदाजी के वंसज मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
राव जोधाजी [जोधपुर] सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए थे -
01 - राव सातलजी - [1489 ई.-1492 ई.]
02 - राव सुजाजी
03 - राव नींबाजी
04 - करमसीजी - करमसोत राठौड़ [खींवसर, पांचोड़ी,नागदी , हलधानी, धणारी, सोयल , आचीणा,
भोजावास, उमरलाई , चटालियो , उस्तरा, खारी, हरिमो ] राव मालदेवजी के
देवलोक होने के बाद जब उनके वंशजो में गद्दी पर बैठने को लेकर आपसी झगड़े में
जुल्मों के कारण दीवान करमसी बिलाड़ा छोड़कर अपने सब आदमियों के साथ
गोड़वाड़ की जारहे थे कि,31मार्च1526 को [आसोज सुद 11 संवत् 1627]
सोजत से दुशमनों ने आकर ढोसी के पास घेर लिया । राव करमसीजी ढोसी के युद्ध
में लड़ कर काम आये............करमसी का बेटा रूहितास जो उस वक्त सिर्फ 11
बरस का था भाग कर गांव सथलोणे में एक सुनार के घर सात महीने तक रहा फिर
जब सभी कैदी छूट करसोजत से बिलाड़े में आये । उन्हें जब पता चला तो रूहितास
को सथलांणे से बुलाया फिर जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंहजी को बादशाह की
तरफ से आईजी के केसर और छत्र के वास्ते मिले 125/रूपये और उन्होंने आधा
जोड़ और एक बेरा भेंट किया । इससे रूहितास की दीवानी खूब चमकी । फिर जब
महाराज श्री सूरसिंघजी पाट बैठे तो उन्होंने भी 125/- जोड़ और बेरे वगैरे भेंट
किये ।
05 - बणवीरजी - बनविरोत राठौड़
06 - जसवंतसिंह - जसूत राठौड़
07 - कुंम्पाजी पावत - कुंम्पापावत राठौड़
08 - चाँदरावजी -
09 - राव बिकाजी - [1485 ई.-1504 ई.] बिका राठौड़
10 - बीदोजी - बीदावत राठौड़ [बीदासर , जाखासर ]
11 - जोगाजी - राव जोगाजी के पुत्र हुए राव खंगारजी, खंगारजी के वंसज खंगारोत राठौड़ कहलाये हैं ।
[खारिया, जालसू]
12 - भारमलजी - भारमलोत राठौड़ [मांगल्या , बड़गरा , खंडवा -मध्यप्रदेश]
13 - राव दूदाजी [1495 ई.-1525 ई.] - मेड़तिया राठौड़
14 - राव वरसिंह [बारसिंह] - वरसिंगहोत राठौड़, राव वरसिंह [बारसिंह] मेड़ता के पहले राव थे।
15 - शिवराज - शिवराजोत राठौड़
16 - सामंतसिंह -
16 - सामंतसिंह -
17 - राजकुमारी बीड़कँवर - बीड़कँवर की शादी मेवाड़ के महाराणा रायमलसिंह के साथ हुयी जो
मेवाड़ सातवें महाराणा थे । बीड़कँवर को रानी श्रीनगरदेवी मेवाड़ के नाम
से भी जाना जाता है
18 - राजकुमारी बृजकंवर - बृजकंवर की शादी मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह [प्रथम] के साथ हुयी
जो मेवाड़ आठवें महाराणा थे ।23 - राव बिकाजी - [1485 ई.-1504 ई.] - राव बीकाजी के दस पुत्र थे जिनका का विवरण इस प्रकार है -
01 - राव लूणकरनजी - [13.1.1505] से [14.7.1526] रानी रंगकँवर की कोख से बीकाजी के दो पुत्र हुए राव लूणकरनजी और राव घड़सीजी । राव लूणकरनजी का जन्म, 12 जनवरी 1470 को हुवा था। राव लूणकरनजी अपने पिता राव बीकाजी के बाद बीकानेर के तीसरे राव राजा के रूप में बीकानेर की गद्दी पर बैठे थे। ''कलयुग के कर्ण'' के नाम से जाने जानेवाले राव लूणकरनजी ने नारनौल [हरियाणा] के नबाब शेख अबीमीरा के साथ 31 मार्च 1526 को ढोसी [तहसील खेतड़ी जिला झुंझुनू, राजस्थान] का युद्ध जीता। ढोसी खेतड़ी से 27 किमी.,ढोसी नारनौल से 14 .5 किमी. की दूरी पर है । राव लूणकरनजी ने नारनौल में चामुण्डा देवी मन्दिर बनवाया था।राव लूणकरनजी सावन बदी 4 विक्रम सम्वत 1583 [31 मार्च 1526] को ढोसी के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
02 - राव नरोजी - [17.9.1504] से [13.1.1505] - राव नरोजी बिकसजी के बाद बीकानेर के दूसरे राव राजा बनें थे। राव नरोजी बीकानेर के दूसरे राव राजा बनें थे। राव नरोजी का जन्म 20 अक्टूबर 1468 को हुवा था और मृत्यु 13 जनवरी 1505 को हुयी थी।
राव नरोजी ने ही सारंग खां को मौत के घाट उतरा था जिसका संक्षिप्त विवरण इसप्रकार है -
जब द्रोणपुर में राव जोधाजी, बीकाजी, बीदाजी, बरजांगजी और माण्डलजी ने दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी की सेना से युद्ध करने व उसके हिसार सूबेदार सारंग खां को मरने की योजना बनाकर द्रोणपुर से हिसार की तरफ निकले, उसी समय साहवा में अड़कमलजी,अबजितजी,राजसी और जगजीत जी भी अपने पिता कांधलजी की हत्या का बदला लेने के लिए तैयार बैठे थे। राव जोधाजी, बीकाजी, बीदाजी, बरजांगजी और माण्डलजी ने साहवा पहुँच कर अपने परिवार के सदस्यों अड़कमलजी,अबजितजी,राजसी और जगजीत के साथ मिलकर शोक मनाया और उसके बाद सभी हिसार की तरफ रवाना होगये। जब दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी को इस बात का पता चला तो उसनें सूबेदार सारंग खां के नेतृत्व एक बड़ी पैदल और अश्वरोही सेना राठोड़ों से मुकाबला करने के लिए रवाना करदी। हिसार के पास झांसल में दोनों सेनाओं का आपस में भयंकर युद्ध हुवा जिसमे सारंग खां बीकाजी के बड़े पुत्र नारोजी के हातों मारा गया। सारंग खां के मरते ही दिल्ली के सुल्तान की सेना लड़ाई का मैदान छोड़कर भाग गयी। कांधलजी की हत्या का बदला [बैर] लेने के बाद जोधाजी और बीकाजी राजासर में राजसिंह के पास गए और उनको रावताई का टिका और पग देकर द्रोणपुर होते हुए जोधपुर चले गए।
04 - केलणजी - केलणजी के वंशज केलणोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। केलणजी के पुत्र
अमराजी के वंसज अमरावत बिका राठौड़ कहलाये हैं।केलणजी का पुत्र हुवा अमराजी, अमराजी के वंसज अमरावत बिका राठौड़ कहलाये हैं।
05 - मेघराजजी - मेघराजजी के वंशज मेघराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
06 - बीसाजी - बीसाजी के वंशज बीसावत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
07 - राव राजसिंह [राजोजी] - राव राजसिंह [राजोजी] के वंशज राजसिंहोत बीका राठौड़
कहलाये हैं।राव बीका के पुत्र राजसी अपने पिता से नाराज होकर आजीवन बीदावतों के पास राजलदेसर में रहे थे और वंही उनकी मृत्यु हुयी थी।
08 - देवराजजी
09 - राजधरजी
10 - बिजयसिंह
राव बीकाजी के पुत्रों, पोतों और पड़ पोतों से बीका राठौड़ों की 24 मुख्य शाखाएँ निकली हैं जो इस प्रकार है -
01 - घड़सिहोत बीका राठौड़
02 - राजसिंहोत बीका राठौड़
02 - राजसिंहोत बीका राठौड़
03 - मेघराजोत बीका राठौड़
04 - बीसावत बीका राठौड़
05 - केलणोत बीका राठौड़
05 - केलणोत बीका राठौड़
06 - अमरावत बिका राठौड़
07 - भीमराजोत बीका राठौड़
08 - बाघावत बीका राठौड़
09 - मालदेवोत बीका राठौड़
10 - श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका]
11 - माधोदासोत बीका राठौड़
12 - नारनोत बीका राठौड़
13 - रतनसिंहोत बीका राठौड़
14 - प्रतापसिहोत बीका राठौड़
15 - तेजसिहोत बीका राठौड़
16 - सूरजमलोत बीका राठौड़
17 - सूरजमलोत बीका राठौड़
18 - रामसिहोत बीका राठौड़
19 - नीबावत बीका राठौड़
20 - पृथ्वीराजोत बीका राठौड़
21 - अमरसिहोत बीका राठौड़
22 - गोपलदासोत बीका राठौड़
23 - किशनसिहोत बीका राठौड़
24 - राजवी बीका राठौड़
01 - घड़सिहोत बीका राठौड़ - राव बीकाजी के पुत्र राव घड़सीजी के वंशज घड़सिहोत बीका राठौड़ कहलाते है । घड़सीजी ने घड़सीसर और अड़सीसर दो गांव बसाये घड़सीसर और अड़सीसर। वर्तमान में गांव घड़सीसर जिला बीकानेर, राजस्थान और गांव अड़सीसर, तहसील सरदारशहर, जिला चूरू, राजस्थान में स्थित है। इनकी जागीर घड़सीसर और गारबदेसर थी, घड़सीजी के वंसज घड़सिहोत बीका राठौड़ कहलाते है।
घड़सी के दो पुत्र थे-
01 - देवीसिंह - घड़सीजी के बड़े पुत्र देवीसिंह को गारबदेसर ठिकाना मिला।
02 - डूंगर सिंह - घड़सीजी के छोटे पुत्र डूंगर सिंह को घड़सीसर मिला।
गारबदेसर व घड़सीसर दोनों ही इकलड़ी ताजीम वाले ठिकाने थे ।
घड़सिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव घड़सीजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - राजसिंहोत बीका राठौड़ - राव बीकाजी के पुत्र राजसिंह के वंशज राजसिंहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। राव बीका के पुत्र राजसिंह अपने पिता से नाराज होकर आजीवन बीदावतों के पास राजलदेसर में रहे थे और वंही उनकी मृत्यु हुयी थी। राजसिंह;राव जोधाजी के पोते और रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
राजसिंहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राजसिंह - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - मेघराजोत बीका राठौड़ - राव बीकाजी के पुत्र मेघराजजी के वंशज मेघराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। मेघराजजी;राव जोधाजी के पोते और रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
मेघराजोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मेघराजजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - बीसावत बीका राठौड़ - राव बीकाजी के पुत्र बीसाजी के वंशज बीसावत बीका राठौड़ कहलाये हैं।बीसाजी;;राव जोधाजी के पोते और रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
बीसावत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बीसाजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05 - केलणोत बीका राठौड़ - राव बीकाजी के पुत्र केलणजी के वंशज केलणोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। केलणजी;राव जोधाजी के पोते और रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।केलणोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
केलणजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06 - अमरावत बिका राठौड़ - केलणजी के पुत्र अमराजी के वंसज अमरावत बिका राठौड़ कहलाये हैं। अमराजी; राव बीकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।अमरावत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अमराजी - केलणजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07 - भीमराजोत बीका राठौड़ - जैतसिंह के दुसरे पुत्र भीमराजजी के वंशज भीमराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। राजपुरा के बिका राठौड़ इन्ही के वंसज हैं। भीमराजजी; राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
भीमराजोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
भीमराजजी - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - बाघावत बीका राठौड़ - ठाकुरसी के पुत्र बाघसिंह के वंशज बाघावत बीका राठौड़ कहलाये हैं। जैतपुर के बिका राठौड़ इन्ही के वंसज हैं। बाघसिंह;राव जैतसिंह के पोते और राव लूणकरनजी के पड़ पोते थे।
बाघावत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बाघसिंह - ठाकुरसी - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09 - मालदेवोत बीका राठौड़ - राव जैतसिंह के पुत्र मालदेवजी के वंसज मालदेवोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
मालदेवोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मालदेवजी - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका] - राव जैतसिंह के पुत्र श्रीरंगजी के वंसज श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका] कहलाये हैं। श्रीरंगजी का भूकरका मुख्य ठिकाना था,जिसमें 28 में गांव थे। इसके अलावा सिधमुख, बायं, जसाना, बिरकाली, अजीतपुरा, शिमला और रासलाना आदि ठिकाने थे।
श्रंगोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
श्रंगोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
श्रीरंगजी - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11 - माधोदासोत बीका राठौड़ - मानसिंह के पुत्र माधोदासजी के वंशज माधोदासोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। मानसिंह राव जैतसिंह के पुत्र थे।
माधोदासोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
माधोदासजी - मानसिंह - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
12 - नारनोत बीका राठौड़ - बैरसी के पुत्र नारणजी के वंशज नारनोत बीका राठौड़ कहलाते है।बैरसी राव लूँणकरणजी के पुत्र थे। नारनोत बीका राठौड़ों के बीकानेर रियासत में मगरासर मैणसर, तेणसर,तेणदेसर, कातर,बड़ी आदि मुख्या ठिकाने थे। इन में से मगरासर दोलड़ी ताजीमवाला ठिकाना था।नारणजी के तीन पुत्र हुए-
माधोदासोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
माधोदासजी - मानसिंह - राव जैतसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
12 - नारनोत बीका राठौड़ - बैरसी के पुत्र नारणजी के वंशज नारनोत बीका राठौड़ कहलाते है।बैरसी राव लूँणकरणजी के पुत्र थे। नारनोत बीका राठौड़ों के बीकानेर रियासत में मगरासर मैणसर, तेणसर,तेणदेसर, कातर,बड़ी आदि मुख्या ठिकाने थे। इन में से मगरासर दोलड़ी ताजीमवाला ठिकाना था।नारणजी के तीन पुत्र हुए-
01 - बलभद्रजी
02 - भोपत
03 - जैमलजीजी
नारणजी के इन तीनों पुत्रों से नारनोत बीका राठौड़ों कि तीन उप शाखाएं निकली है जो
इस प्रकार है -
01 - बलभद्रोत नारनोत बीका राठौड़ - नारणजी के पुत्र बलभद्रजी के वंसज बलभद्रोत
नारनोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना महदसर था।
02 - भोपपोत नारनोत बीका राठौड़ - नारणजी के पुत्र भोपतजी के वंसज भोपपोत
नारनोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। वंशजों का मुख्य ठिकाना मगरासर था।
03 - जैमलोत नारनोत बीका राठौड़ - नारणजी के पुत्र जैमलजी के वंसज जैमलोत
नारनोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।वंशजों का मुख्य ठिकाने तेणदेसर और कातर
था।
नारनोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नारणजी - बैरसी - राव लूँणकरणजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13 - रतनसिंहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र रतनसिंह के वंसज रतनसिंहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।रतनसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
13 - रतनसिंहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र रतनसिंह के वंसज रतनसिंहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।रतनसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
रतनसिंहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रतनसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - प्रतापसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।प्रतापसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
14 - प्रतापसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र प्रतापसिंह के वंसज प्रतापसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।प्रतापसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
प्रतापसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
प्रतापसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - तेजसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र तेजसिंह के वंसज तेजसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।तेजसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
15 - तेजसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र तेजसिंह के वंसज तेजसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।तेजसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
तेजसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
तेजसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
16 - सूरजमलोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र सूरजमलजी के वंसज सूरजमलोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।सूरजमलजी;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
16 - सूरजमलोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र सूरजमलजी के वंसज सूरजमलोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।सूरजमलजी;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
सूरजमलोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सूरजमलजी - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
17 - सूरजमलोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र करमसिंह [करमजी] के वंसज करमसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।करमसिंह [करमजी];राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
17 - सूरजमलोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र करमसिंह [करमजी] के वंसज करमसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।करमसिंह [करमजी];राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
करमसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
करमसिंह [करमजी] - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
18 - रामसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।रामसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
रामसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
18 - रामसिहोत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र रामसिंह के वंसज रामसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।रामसिंह;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
रामसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामसिंह - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
19 - नीबावत बीका राठौड़ - राव लूणकरनजी के पुत्र नीबाजी के वंसज नीबावत बीका राठौड़ कहलाये हैं।नीबाजी;राव बिकाजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
नीबावत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नीबाजी - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
20 - पृथ्वीराजोत बीका राठौड़ - राव कल्याणसिंह [राव कल्याणमलजी] के पुत्र पृथ्वीसिंह के वंसज पृथ्वीराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। पृथ्वीसिंह;राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
नीबावत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
नीबाजी - राव लूणकरनजी - राव बिकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
20 - पृथ्वीराजोत बीका राठौड़ - राव कल्याणसिंह [राव कल्याणमलजी] के पुत्र पृथ्वीसिंह के वंसज पृथ्वीराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। पृथ्वीसिंह;राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
पृथ्वीसिंह बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
पृथ्वीसिंह -राव कल्याणमलजी [राव कल्याणसिंह] - राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी - राव बीकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
21 - अमरसिहोत बीका राठौड़ - राव कल्याणसिंह [राव कल्याणमलजी] के पुत्र अमरसिंह [अमरोजी] के वंसज अमरसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।अमरसिंह [अमरोजी] ;राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
अमरसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
अमरसिंह [अमरोजी] -राव कल्याणमलजी [राव कल्याणसिंह] - राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी - राव बीकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
22 - गोपलदासोत बीका राठौड़ - राव कल्याणसिंह [राव कल्याणमलजी] के पुत्र गोपालदासजी के वंसज गोपलदासोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।गोपालदासजी;राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
गोपलदासोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
गोपालदासजी - राव कल्याणमलजी [राव कल्याणसिंह] - राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी - राव बीकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
23 - किशनसिहोत बीका राठौड़ - राव कल्याणसिंह [राव कल्याणमलजी] के पुत्र किशनसिंह के वंसज किशनसिहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।किशनसिंह;राव लूणकरनजी के पोते और राव बिकाजी के पड़ पोते थे।
किशनसिहोत बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
किशनसिंह - राव कल्याणमलजी [राव कल्याणसिंह] - राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी - राव बीकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
24 - राजवी बीका राठौड़ - बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह के छोटे पुत्र आनंदसिंह के चरों पुत्रों अमरसिंह, गजसिंह, तारासिंह, गुदड़सिंह के वंसज राजवी बीका राठौड़ कहलाये हैं।
आनंदसिंह;करणसिंह के पोते और सुरसिंह [सूरतसिंह] के पड़ पोते थे।
राजवी बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राजवी बिका राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
आनंदसिंह - अनूपसिंह - करणसिंह - सुरसिंह [सूरतसिंह] - रायसिंह - राव कल्याणमलजी [राव कल्याणसिंह] - राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी - राव बीकाजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
प्राचीन राज्य बीकानेर का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है -
राव बिकाजी - बीकानेर, किशनगढ़ , ईडर , विजयनगर , झाबुआ, अमझेरा, रतलाम, सीतामऊ तथा सैलाना राज्यों के शासक जोधपुर के राठौड़ वंस से ही निकालें हैं। राव जोधाजी के पुत्र राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़ कहलाये हैं। राव बीकाजी के दस पुत्र थे। राव बिकाजी के दस पुत्रों से पांच शाखाएं निकली घड़सिहोत बीका राठौड़, राजसिंहोत बीका राठौड़, मेघराजोत बीका राठौड़, बीसावत बीका राठौड़, केलणोत बीका राठौड़।
01 - राव लूणकरनजी
02 - राव नरोजी
03 - राव घड़सीजी - के वंशज घड़सिहोत बीका राठौड़ कहलाते है ।
04 - केलणजी - के वंशज केलणोत बीका राठौड़ कहलाये हैं। केलणजी के पुत्र अमराजी के
वंसज अमरावत बिका राठौड़ कहलाये हैं।
05 - मेघराजजी - के वंशज मेघराजोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
06 - बीसाजी - के वंशज बीसावत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
07 - राव राजसिंह [राजोजी] - के वंशज राजसिंहोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
08 – देवराजजी
09 - राजधरजी
10 - बिजयसिंह
राव लूणकरनजी - बीकाजी के पुत्र राव लूणकरनजी के के तीन पुत्री और दस पुत्र थे -
01 - राव जैतसिंह
02 - रतनसिंह - के वंशज 13रतनसिंहहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
03 - प्रतापसिंह - के वंशज 14प्रतापसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
04 – राव बैरसीसिंह
05 - तेजसिंह - के वंशज 15तेजसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
06 - सूरजमलजी - के वंशज 16सूरजमलोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
07 - करमसिंह [करमजी] - के वंशज 17करमसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
08 - रामसिंह - के वंशज 18रामसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
09 - नीबाजी - के वंशज 19नीबावत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
10 – रूपसिंह
11 - अपुर्वाकंव र[बालाबाई] - अपुर्वाकंव र[बालाबाई] की शादी आमेर के सातवें राजा
चन्द्रसेनजी कच्छावा [राजावत] के पुत्र पृथ्वीसिंह के साथ हुयी थी।
12 - जतनकंवर - जतनकंवर की शादी ध्रांगध्रा [गुजरात] के चौबीसवें राजा रायधरजी झाला
के पुत्र राणोजी के साथ उनकी आठवीं पत्नी के रूप में हुयी थी।
13 - अमृतकँवर - अमृतकँवर की शादी जैसलमेर के [राजस्थान ] के उन्नीसवें राजा रावल
जैतसिंह [तृतीय] भाटी [यदुवंशी] के पुत्र महारावल लूणकरनजी के साथ हुयी थी।
राव जैतसिंह - राव लूणकरणजी के पुत्र और बीकाजी के पोते राव जैतसिंह थे। राव
जैतसिंह के एक पुत्री और पंद्रह पुत्र हुए –
01 - राव कल्याणसिंह - राव जैतसिंह के पुत्र राव कल्याणमलजी के एक पुत्री और बारह पुत्र थे -
01 - रायसिंह - राव कल्याणसिंह के पुत्र रायसिंह के दो पुत्री और पांच पुत्र थे -
01 - दलपतसिंह
02 - सूरतसिंह [सुरसिंह] - राव रायसिंह के पुत्र सूरतसिंह
[सुरसिंह] के तीन पुत्र हुए -
01 - करणसिंह - सूरतसिंह [सुरसिंह] के पुत्र करणसिंह के दस
पुत्र हुए -
01 - अनोपसिंह - जन्म रानी कमलाकंवर की
कोख से।
02 - केशरीसिंह - जन्म रानी करुणाकंवर की
कोख से।
03 - पदमसिंह - जन्म रानी सरूपकँवर की
कोख से।
04 - मोहनसिंह - जन्म रानी अजबकँवर की
कोख से।
05 - अजबसिंह
06 - उदयसिंह
07 - मदनसिंह
08 - अमरसिंह
09 - देवीसिंह
10 - मालिदासजी [बरमलीदासजी]- जन्म रूपवती
खवासी की कोख से।
02 - छतरसालसिंह
03 - अर्जुनजी
03 - भोपतसिंह
04 - हनवंतसिंह
05 - किशनसिंह
06 - देवकंवर - देवकंवर की शादी ध्रांगध्रा [गुजरात] के सत्ताइसवें राजा
मानसिंह झाला के पुत्र राजा रायधरजी झाला के साथ उनकी दूसरी
पत्नी के रूप में हुयी थी।
07 - फूलकँवर - फूलकँवर की शादी जैसलमेर [राजस्थान] के तेबीसवें
राजा महारावल हरराज भाटी [यदुवंशी] के पुत्र भीमसिंह के साथ
हुयी थी।
02 - रामसिंह
03 - पृथ्वीराजसिंह - के वंशज प्रथ्विराजोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
04 - सुरतानजी [सुल्तानसिंह]
05 - भाणजी
06 - अमरसिंह [अमरोजी] - के वंशज अमरसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
07 - गोपालदासजी - के वंशज 22गोपलदासोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
08 - राघवदासजी
09 - डूंगरसिंह
10 - भाखरसिंह
11 - भगवानदासजी
12 - किशनसिंह - के वंशज किशनसिहोत बीका राठौड़ कहलायें हैं।
13 - ज्ञानकँवर - ज्ञानकँवर की शादी जैसलमेर के [राजस्थान ] के महारावल मालदेवजी
भाटी [यदुवंशी] के पुत्र हरराज के साथ उनकी दूसरी पत्नी के रूप में हुयी थी।
02 - भीमराजजी - जैतसिंह के दुसरे पुत्र भीमराजजी के वंशज भीमराजोत बीका राठौड़
कहलाये हैं। राजपुरा के बिका राठौड़ जैतसिंह के दुसरे पुत्र भीमराजजी के
वंसज हैं।
03 - ठाकुरसी - जैतपुर के बिका राठौड़ इन्ही के वंसज हैं। जैतसी के पुत्र ठाकुरसी के पुत्र हुये
बाघसिंह, बाघसिंहके वंशज 8बाघावत बीका राठौड़ कहलाये हैं
04 - मालदेवजी - मालदेवजी के वंसज 9मालदेवोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
05 - कान्हसिंह –
06 - श्रीरंगजी - श्रीरंगजी के वंसज 10श्रंगोत बीका राठौड़ [सिरंगोत बीका] कहलाये हैं।श्रीरंगजी
का भूकरका मुख्य ठिकाना था,जिसमें 28 में गांव थे। इसके अलावा सिधमुख,
बायं,जसाना, बिरकाली, अजीतपुरा, शिमला और रासलाना आदि ठिकाने थे।
07 - सुरजनसिंह – सुरजनसर के बिका राठौड़ इन्ही के वंसज हैं।
08 - करमसेनजी -
09 - पूरणमलजी -
10 - अचलदासजी
11 - मानसिंह - मानसिंह के पुत्र माधोदासजी के वंशज 11माधोदासोत बीका राठौड़ कहलाये हैं।
12 - भोजराजजी
13 - तिलकसिंह [टिकासिंह]
14 - श्योसिंह -
15 - यशपालसिंह
16 - राजकंवर - राजकंवर की शादी जैसलमेर [राजस्थान] के महारावल लूणकरणजी भाटी [यदुवंशी] के पुत्र महारावल मालदेवजी के साथ उनकी दूसरी पत्नी के रूप में हुयी थी।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।


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