बीदावत राठौड़
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - बीदावत राठौड़
बीदावत राठौड़ - जोधपुर के राव जोधाजी के दो पुत्री और सोलह पुत्र थे उनमें से राव बीदोजी [राव बीदाजी] के वंसज बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। राव बीदोजी राव जोधाजी के पुत्र और राव रिड़मालजी के पोते तथा राव चूण्डाजी [चुंडाजी] मंडोर के पड़ पोते थे। राव रिड़मालजी को सादेजी और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] को रावल पुनपालदेजी के नाम से भीजनाजा था। राव जोधाजी की सांखली रानी नौरंगदे की कोख से पुत्र दो हुए थे राव बीदोजी और राव बीकोजी यानि ये दोनों भाई बीदोजी और बीकोजी दोनों भाई सांखला [परमारों की शाखा है] के भाणजे थे।
राजपुताना इतिहास - राठौड़ो की सम्पूर्ण खापे - बीदावत राठौड़
बीदावत राठौड़ - जोधपुर के राव जोधाजी के दो पुत्री और सोलह पुत्र थे उनमें से राव बीदोजी [राव बीदाजी] के वंसज बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। राव बीदोजी राव जोधाजी के पुत्र और राव रिड़मालजी के पोते तथा राव चूण्डाजी [चुंडाजी] मंडोर के पड़ पोते थे। राव रिड़मालजी को सादेजी और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] को रावल पुनपालदेजी के नाम से भीजनाजा था। राव जोधाजी की सांखली रानी नौरंगदे की कोख से पुत्र दो हुए थे राव बीदोजी और राव बीकोजी यानि ये दोनों भाई बीदोजी और बीकोजी दोनों भाई सांखला [परमारों की शाखा है] के भाणजे थे।
राव बीदोजी का जन्म माघ शुक्ला नवमी संवत् 1449 को हुआ था। जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र व बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी के छोटे भाई थे। महारानी नौरंगदे की कोख से राव बीदाजी का जन्म ऐसे समय हुआ जब राव जोधाजी अपना समस्त राज-पाट खोकर कोडमदेसर के पास कावनी नामक गांव में संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। ऐसे में राव बीदाजी का बाल्यकाल संघर्षपूर्ण बीता। इसी काल में बीदाजी घुड़सवारी व अस्त्र शस्त्र विद्या में दक्ष हुए।
राव जोधाजी द्वारा मोहिलवाटी [द्रोणपुर] पर अधिकार -
राजस्थान राज्य के चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील में बसा वर्तमान का यह ताल छापर कस्बा और इसके आस-पास का क्षेत्र प्राचीन समय में का मोहिलवाटी कहलाता था। जिसकी राजधानी द्रोणपुर थी। अन्य राज्यों की तरह द्रोणपुर पर भी बीतते समय के साथ भिन्न-भिन्न राज परिवारों के अनेक राजाओं ने राज किया और द्रोणपुर राज्य का नाम बार-बार उस पर राज करने वाले राजाओं के अनुरूप बदलता रहा है।
रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम के समय में यह द्रोणपुर का भू-भाग ''मरूकान्तार'' के नाम से जाना जाता था तथा महाभारत काल में यह भू-भाग ''जांगल प्रदेश'' का एक अंग हुवा करता था। आज भी यहाँ पर अवशेष के रूप में विद्यमान द्रोणाचंल पर्वत, अश्वत्थामा की गुफा, द्रोणपुर के खण्डर एवं शिला लेख इस बात की सत्यता सिध्द करते हैं।
इस भू-भाग का नाम छापर [ताल छापर] क्यों पड़ा ? इसके बारे में कोई ठोस व प्रमाणित प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है,कि यहाँ कि भूमि क्षारीय होने के कारण इस भू-भाग को शायद ''क्षारपुर'' कहा जाने लगा जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर छापर हो गया। इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि महाभारत काल में यह भू-भाग छापर के नाम से प्रसिध्द था। हस्तिनापुर नरेश महाराजा धृतराष्ट्र ने कौरवों और पाण्डवों को धनुर्विद्या में प्रशिक्षित करने के फलस्वरूप गुरू दक्षिणा में यह छापर प्रदेश गुरू द्रोणाचार्य को उपहार स्वरूप भेंट किया था, उस समय ''छापर प्रदेश'' में द्रोणपुर [छापर], लाडनूँ व किरातावाटी तीन मुख्यालय सहित ''छापर प्रदेश'' में 1440 गाँव थे।
रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम के समय में यह द्रोणपुर का भू-भाग ''मरूकान्तार'' के नाम से जाना जाता था तथा महाभारत काल में यह भू-भाग ''जांगल प्रदेश'' का एक अंग हुवा करता था। आज भी यहाँ पर अवशेष के रूप में विद्यमान द्रोणाचंल पर्वत, अश्वत्थामा की गुफा, द्रोणपुर के खण्डर एवं शिला लेख इस बात की सत्यता सिध्द करते हैं।
इस भू-भाग का नाम छापर [ताल छापर] क्यों पड़ा ? इसके बारे में कोई ठोस व प्रमाणित प्रमाण नहीं मिलते हैं, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है,कि यहाँ कि भूमि क्षारीय होने के कारण इस भू-भाग को शायद ''क्षारपुर'' कहा जाने लगा जो कालान्तर में अपभ्रंश होकर छापर हो गया। इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि महाभारत काल में यह भू-भाग छापर के नाम से प्रसिध्द था। हस्तिनापुर नरेश महाराजा धृतराष्ट्र ने कौरवों और पाण्डवों को धनुर्विद्या में प्रशिक्षित करने के फलस्वरूप गुरू दक्षिणा में यह छापर प्रदेश गुरू द्रोणाचार्य को उपहार स्वरूप भेंट किया था, उस समय ''छापर प्रदेश'' में द्रोणपुर [छापर], लाडनूँ व किरातावाटी तीन मुख्यालय सहित ''छापर प्रदेश'' में 1440 गाँव थे।
द्रोणाचार्य के पश्चात् छापर प्रदेश पर शिशुपाल के पुत्र पंवार डाहलिया ने अधिकार कर लिया था, इसके बाद नागौर के बागड़ियों ने डाहलियों को पराजित कर छापर प्रदेश को अपने अधिकार में ले लिया और अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
द्रोणाचार्य के पश्चात् द्रोणपुर राज्य पर शिशुपाल के पुत्र पंवार डाहलिया ने अधिकार कर लिया था, उसके बाद पंवार डाहलिया को नागौर के बागड़ियों ने पराजित कर द्रोणपुर राज्य पर अधिकार कर लिया और अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
[डाहलिया पंवार - पंवार (परमार) राजवंश की 35 शाखाओं में शामिल एक शाखा है,जो शिशुपाल के पुत्र डाहलिया के वंसज हैं]
[डाहलिया पंवार - पंवार (परमार) राजवंश की 35 शाखाओं में शामिल एक शाखा है,जो शिशुपाल के पुत्र डाहलिया के वंसज हैं]
नागौर के बागड़ियों को पराजित कर राणा सुरजन [मौहिल चौहान] का मोहिल नामक पुत्र द्रोणपुर राज्य का राजा बना।
[मौहिल - मौहिल चौहान राजपूत वंस की एक शाखा हैं जो माणिकदेवजी [लाखनदेवजी] के चौबीस पुत्रों से निकली चौबीस शाखाओं में से एक शाखाहै।]
थोड़े समय के उपरांत ही राणा सुरजन और उसके पुत्र मोहिल में आपसी मतभेद हो गया। तब मोहिल ने अपने पिता राणा सुरजन को संदेशा भेजा की,द्रोणपुर राज्य के पास पड़ी समतल भूमि पर आसानी से कब्जा किया जासकता है। मोहिल ने 17000 सैनिकों के साथ द्रोणपुर पर आक्रमण कर दिया उस समय बागड़ियों के पास मात्र 5000 सैनिक थे इसलिए वे मोहिल से पराजित हो गए और द्रोणपुर पर मोहिल का अधिकार हो गया। मोहिल की विजयश्री के पश्चात् द्रोणपुर का नाम बदलकर ''मोहिलवाटी'' रखा दिया गया।
सम्वत1522 - में पहली बार राव जोधाजी और मोहिलवाटी के शासक राणा अजरतमल के बिच लाडनू से लगभग दो कोस पश्चिम में गणेड गॉंव के पास युद्ध हुवा जिसमें राणा अजरतमल मारा गया। राव जोधाजी ने अपने पुत्र जोगाजी को मौहिलवाटी का राज काज सौंप कर मंडोर चले गए, लेकिन कुंवर जोगाजी मौहिलों के हस्तक्षेप का सामना नहीं कर सके, 4-5 महिनों बाद में मोहिलों ने पुन: इस पर अपना अधिकार कर लिया। और राणा अजरतमल का पुत्र मेघा मोहिल वाटी का राजा बन गया।
राणा मेघा की शादी राव कांधलजी की पुत्री के साथ हुयी थी। राणा मेघा की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बरसल द्रोणपुर की गद्दी पर बैठा। विक्रम सम्वत 1531 [सन1474 ई.] जब राव जोधाजी ने दुबारा द्रोणपुर पर हमला किया तो राणा बरसल और उसका भाई राणा नरबद बिना युद्ध किये ही अपने मामा बाघसिंह [राव कांधलजी के बड़े पुत्र] को साथ लेकर दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी के पास सहायता के लिए चले गए और द्रोणपुर पर राव जोधाजी व राव बिदाजी का अधिकार हो गया।
तात्कालीन मौहिल (चौहान) राजा बरसल [वैरसल] की सेना को परास्त कर राव जोधाजी ने अपने पुत्र बीदाजी को वहां से बुलाकर सम्वत् 1532 में द्रोणपुर (गोपालपुरा) की गद्दी पर बैठाया गया। उस समय बीदाजी ने गोडवाड़ और मालवा की बागडोर संभाल रखी थी। अन्त में बिदाजी ने द्रौणपुर (छापर) पर अपना स्थायी अधिकार कर लिया। राव बीदाजी ने अपने राज्य का विस्तार कर लाडनूं, छापर, पडि़हारा, सुजानगढ़ व रतनगढ़ का क्षेत्र अपने अधीन कर लिया और यह इलाका ''बीदावाटी'' कहलाने लगा। द्रोणपुर को राव बीदाजी ने बीदावाटी की राजधानी बनाया। इस खुशी में राव जोधाजी ने चतुराई से अपने पुत्र बीदोजी से ‘‘लाडनूँ’’ का परगना मांग लिया। भोजन पर बैठे जोधाजी का हठ देखकर बीदोजी की मॉं ने ‘‘लाडनूँ’’ थाल में परोस देने का आग्रह किया। तब से लाडनूँ जोंधपुर राज्य का अंग बना।
इस प्रकार लाडनूँ को जोधपुर राज्य का अंग बनाने के बाद भी राव जोधाजी ने समय समय पर मोहिल सरदारों को लाडनूँ के प्रशासक नियुक्त करते रहे और 1540 में राव जयसिंह को लाडनूँ का प्रशासक नियुक्त किया जिन्होनें 1544 में सोमर के पुत्र कवी जस्सुदान को 1500 बीघा जमीन खेती के लिए और 12 बीघा जमील बसने के लिए प्रदान की। जिसका ताम्रपत्र आज भी जस्सुदान के वन्सजो के पास है।
राव जयसिंह के समय की एक घटना है कि,एक बार एक जोइया सरदार ने दिल्ली के बादशाह को डोळा भेजा जो लाडनूँ से होकर गुजर रहा था। जोइयानी राव जयसिंह की बहादुरी से प्रभावित होकर राव जयसिंह को समर्पित होगयी और राव जयसिंह से विवाह कर लिया जिस के कारण दिल्ली का बादशाह बहुत नाराज हुवा और लाडनूँ पर हमला कर दिया। अंत में राव जयसिंह और जोइयानी को इस्लाम धर्म काबुल कर पीछा छुड़ाना पड़ा। राव जयसिंह की मर्त्यु के बाद उनको लाडनूँ की हदीरा मस्जिद में दफना दिया गया।
दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी ने हिसार के सूबेदार सारंगखां को पांच हजार सैनिको के साथ राव बिदाजी पर हमला करने का हुक्म दिया। हिसार के सूबेदार सारंगखां ने बिदाजी पर हमला कर दिया मगर मोहिल और शाही सयुंक्त सेना के सामने बीदाजी नहीं टिक सके और अपने काका कांधलजी और भाई बीकाजी के पास चले गए, परिणाम यह रहा कि' राणा बरसल का द्रोणपुर पर कब्ज़ा कायम रहा।
अपने भाई बीदाजी के अनुरोध पर राव बीकाजी ने बिकसी नामक पुरोहित को अपने पिता राव जोधाजी के पास यह सन्देश देकर भेजा कि वे बीदाजी को वापिस द्रोणपुर दिलवाने के लिए राणा बरसल पर हमला करे मगर राव जोधाजी ने दो बार तो बीदाजी कि सहायता करि थी मगर तीसरी बार बीकाजी और बीदाजी को सहायता देने से इन्कार कर दिया।
[मौहिल - मौहिल चौहान राजपूत वंस की एक शाखा हैं जो माणिकदेवजी [लाखनदेवजी] के चौबीस पुत्रों से निकली चौबीस शाखाओं में से एक शाखाहै।]
थोड़े समय के उपरांत ही राणा सुरजन और उसके पुत्र मोहिल में आपसी मतभेद हो गया। तब मोहिल ने अपने पिता राणा सुरजन को संदेशा भेजा की,द्रोणपुर राज्य के पास पड़ी समतल भूमि पर आसानी से कब्जा किया जासकता है। मोहिल ने 17000 सैनिकों के साथ द्रोणपुर पर आक्रमण कर दिया उस समय बागड़ियों के पास मात्र 5000 सैनिक थे इसलिए वे मोहिल से पराजित हो गए और द्रोणपुर पर मोहिल का अधिकार हो गया। मोहिल की विजयश्री के पश्चात् द्रोणपुर का नाम बदलकर ''मोहिलवाटी'' रखा दिया गया।
सम्वत1522 - में पहली बार राव जोधाजी और मोहिलवाटी के शासक राणा अजरतमल के बिच लाडनू से लगभग दो कोस पश्चिम में गणेड गॉंव के पास युद्ध हुवा जिसमें राणा अजरतमल मारा गया। राव जोधाजी ने अपने पुत्र जोगाजी को मौहिलवाटी का राज काज सौंप कर मंडोर चले गए, लेकिन कुंवर जोगाजी मौहिलों के हस्तक्षेप का सामना नहीं कर सके, 4-5 महिनों बाद में मोहिलों ने पुन: इस पर अपना अधिकार कर लिया। और राणा अजरतमल का पुत्र मेघा मोहिल वाटी का राजा बन गया।
राणा मेघा की शादी राव कांधलजी की पुत्री के साथ हुयी थी। राणा मेघा की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बरसल द्रोणपुर की गद्दी पर बैठा। विक्रम सम्वत 1531 [सन1474 ई.] जब राव जोधाजी ने दुबारा द्रोणपुर पर हमला किया तो राणा बरसल और उसका भाई राणा नरबद बिना युद्ध किये ही अपने मामा बाघसिंह [राव कांधलजी के बड़े पुत्र] को साथ लेकर दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी के पास सहायता के लिए चले गए और द्रोणपुर पर राव जोधाजी व राव बिदाजी का अधिकार हो गया।
तात्कालीन मौहिल (चौहान) राजा बरसल [वैरसल] की सेना को परास्त कर राव जोधाजी ने अपने पुत्र बीदाजी को वहां से बुलाकर सम्वत् 1532 में द्रोणपुर (गोपालपुरा) की गद्दी पर बैठाया गया। उस समय बीदाजी ने गोडवाड़ और मालवा की बागडोर संभाल रखी थी। अन्त में बिदाजी ने द्रौणपुर (छापर) पर अपना स्थायी अधिकार कर लिया। राव बीदाजी ने अपने राज्य का विस्तार कर लाडनूं, छापर, पडि़हारा, सुजानगढ़ व रतनगढ़ का क्षेत्र अपने अधीन कर लिया और यह इलाका ''बीदावाटी'' कहलाने लगा। द्रोणपुर को राव बीदाजी ने बीदावाटी की राजधानी बनाया। इस खुशी में राव जोधाजी ने चतुराई से अपने पुत्र बीदोजी से ‘‘लाडनूँ’’ का परगना मांग लिया। भोजन पर बैठे जोधाजी का हठ देखकर बीदोजी की मॉं ने ‘‘लाडनूँ’’ थाल में परोस देने का आग्रह किया। तब से लाडनूँ जोंधपुर राज्य का अंग बना।
इस प्रकार लाडनूँ को जोधपुर राज्य का अंग बनाने के बाद भी राव जोधाजी ने समय समय पर मोहिल सरदारों को लाडनूँ के प्रशासक नियुक्त करते रहे और 1540 में राव जयसिंह को लाडनूँ का प्रशासक नियुक्त किया जिन्होनें 1544 में सोमर के पुत्र कवी जस्सुदान को 1500 बीघा जमीन खेती के लिए और 12 बीघा जमील बसने के लिए प्रदान की। जिसका ताम्रपत्र आज भी जस्सुदान के वन्सजो के पास है।
राव जयसिंह के समय की एक घटना है कि,एक बार एक जोइया सरदार ने दिल्ली के बादशाह को डोळा भेजा जो लाडनूँ से होकर गुजर रहा था। जोइयानी राव जयसिंह की बहादुरी से प्रभावित होकर राव जयसिंह को समर्पित होगयी और राव जयसिंह से विवाह कर लिया जिस के कारण दिल्ली का बादशाह बहुत नाराज हुवा और लाडनूँ पर हमला कर दिया। अंत में राव जयसिंह और जोइयानी को इस्लाम धर्म काबुल कर पीछा छुड़ाना पड़ा। राव जयसिंह की मर्त्यु के बाद उनको लाडनूँ की हदीरा मस्जिद में दफना दिया गया।
दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी ने हिसार के सूबेदार सारंगखां को पांच हजार सैनिको के साथ राव बिदाजी पर हमला करने का हुक्म दिया। हिसार के सूबेदार सारंगखां ने बिदाजी पर हमला कर दिया मगर मोहिल और शाही सयुंक्त सेना के सामने बीदाजी नहीं टिक सके और अपने काका कांधलजी और भाई बीकाजी के पास चले गए, परिणाम यह रहा कि' राणा बरसल का द्रोणपुर पर कब्ज़ा कायम रहा।
अपने भाई बीदाजी के अनुरोध पर राव बीकाजी ने बिकसी नामक पुरोहित को अपने पिता राव जोधाजी के पास यह सन्देश देकर भेजा कि वे बीदाजी को वापिस द्रोणपुर दिलवाने के लिए राणा बरसल पर हमला करे मगर राव जोधाजी ने दो बार तो बीदाजी कि सहायता करि थी मगर तीसरी बार बीकाजी और बीदाजी को सहायता देने से इन्कार कर दिया।
राव कांधलजी द्वारा बीदाजी और बीकाजी के साथ मिलकर द्रोणपुर पर हमला -
राव जोधाजी द्वारा बीकाजी और बीदाजी को सहायता देने से इन्कार करने पर राव कांधलजी अपने दोहिते मोहिल राणा बरसल और बाघा के खिलाफ सेना का नेतृत्व करने को तैयार होगये क्योंकि, राव कांधलजी का एक ही सपना था सम्पूर्ण मरूभूमी पर राठौड़ राजवंश का झंडा लहराता रहे।
राव कांधलजी व बीकाजी ने बेलजी पड़िहार और बिकसी पुरोहित सहित बहुत से विश्वासपात्र लोगों को किले में छोड़ा और अपने साथ बीदाजी ,मंडलाजी, नापाजी सांखला, शेखाजी भाटी और उन के पुत्र हरुजी,युगलजी और 6000 राठौड़ी सेना लेकर युद्ध के लिए रावण हो गए। इसके अलावा सीहाणा के जोइया मलिक भी अपने 2000 सैनिक लेकर राव कांधलजी और बीकाजी कि सेना में शामिल हो गये इस प्रकार 8000 सैनिक हो गये। पहला पड़ाव नापासर में रखा और बीकाजी के साले हरुजी भाटी को देशनोक काणीजी के पास युद्ध कि आज्ञा के लिए भेजा।
तब करणीजी ने कहा कांधलजी का पुत्र बाघजी अपने बाप से भी बड़ा बहादुर है, उसको अपनी और मिलाये बिना हमला मत करना,यह समाचार हरुजी भाटी ने कांधलजी, बीकाजी और बीदाजी को दिया।
तब कांधलजी, बीकाजी और बीदाजी ने एक जल के पेड़ के निचे डेरा दाल दिया और एक गुप्तचर बाघजी के पास भेजकर मिलने के लिए बुलाया। तब बाघजी मिलने के लिए आये और बीकाजी ने बाघजी से कहा वह रे !बाघा ''काका कांधलजी तो ऐसे हैं कि, इतना बड़ा राज्य जीतकर भी खुद राजा न बन कर मुझे राजा बनाया'' और तुम पुत्र होकर अपने भाइयों के साथ बहुत बुरा कर रहे हो; इतना बड़ा अपना ही इलाका मोहिलों को दिलवा रहे हो। बाघाजी यह सुनकर सहमति देकर वापिस चले गए।
युद्ध शुरू हुवा राठौड़ी सेना दो भागों में बनती गयी,सेना के एक दस्ते का नेतृत्व राव कांधलजी ने संभाला दूसरे दस्ते का नेतृत्व राव बीकाजी ने ने संभाला। बड़ा घमासान युद्ध हुवा इस युद्ध में बीकाजी और बीदाजी तो अपने राज्य के लिए लड़ रहे थे मगर राव कंडालजी को न तो राज का लालच, न मुकुट कि अभिलाष बस वे तो अपने वंश कि आन बान कायम रखने के लिए अपने प्राणो को हथेली पर रखकर शाही और मोहिल सयुंक्त सेना का संहार कर रहे थे। मौत नजदीक देख सूबेदार सारंगखां घायल होकर दिल्ली भाग गया और दिल्ली पहुंचकर बोला -:
''शुक्र है खुदा का जिवग्या''आप गया मैं दौड़।
बला या आफत है,बूढ़ा यह राठौड़ ।।
द्रोणपुर का यह युद्ध विक्रम सम्वत 1545 में लड़ा गया उस समय राव कांधलजी कि उम्र 72 वर्ष कि थी। मोहिल राणा बरसल और उसका भाई राणा नरबद मरे गए। राव कांधलजी ने सभी भाई,भतीजो,शेखाजी भाटी और उनके दोनों पुत्रों तथा नापाजी सांखला सहित सभी वीरों को शाबासी दी और बीकाजी कि तरफ इसरा कर शाबास रे भतीजा ''बिदा बांका'' तब से आज भी बीदावत राठौड़ों को ''बांका'' शब्द से शुशोभित करतें हैं।
द्रोणपुर युद्ध के बाद ठिकानो का बंटवारा इस प्रकार किया -
बीकाजी ने ने राव कांधलजी से कहा आप ही सब कुछ करो,जो करोगे वो सब को मंजूर होगा तब राव कांधलजी के कहा कि,माडलजी को जोधपुर व उनके साथ रुपोजी, नाथूजी, बीदाजी कि मोहिलवाटी रहेगी,और बीकाजी आप अपने ससुराल वाले पूंगल के भाटियों पर नजर रखना तब बीकाजी ने सुझाव दिया कि,भटनेर आपके पोते खेतसिंह को पूरी तरह से दे दिया जाय। तब सभी ने अर्ज किया कि,हिसार के इलाके में बहलोल लोदी का जोर है और द्रोणपुर युद्ध मैं हरने के बाद उसके दिल में खर है सो यह इलाका आप ले लीजिये, तब राव कांधलजी ने ठीक है ये इलाका मैं देख लूंगा।
राव बीदोजी ने वि.स. 1568 में [1488ई.]अपने नाम से नया नगर बीदासर नगर बसाया। राव बीदाजी के आठ रानियां, 12 पुत्र और तीन पुत्रियां थी। बीदासर वर्तमान राजस्थान के राज्य के जिले चूरू में स्थित है। बीदासर को बाद में राव गोपालदासजी ने 1599ई. में बीकानेर राज्य में विलय कर दिया। जब सूरतसिंह बीकानेर के महाराजा बनें तो उन्होंने प्रजा का शोषण करना शुरू कर दिया और सूरत सिंह के शोषण से तंग आकर सन 1801ई. में बीदावत राठौड़ों ने बीकानेर राज्य से विद्रोह कर जोधपुर राज्य में शामिल होने का निर्णय किया, लेकिन ठिकाना बीदासर के उम्मेदसिंह ने सभी को बीकानेर राज्य के साथ जुड़े रहने के लिए राजी कर लिया।
तब करणीजी ने कहा कांधलजी का पुत्र बाघजी अपने बाप से भी बड़ा बहादुर है, उसको अपनी और मिलाये बिना हमला मत करना,यह समाचार हरुजी भाटी ने कांधलजी, बीकाजी और बीदाजी को दिया।
तब कांधलजी, बीकाजी और बीदाजी ने एक जल के पेड़ के निचे डेरा दाल दिया और एक गुप्तचर बाघजी के पास भेजकर मिलने के लिए बुलाया। तब बाघजी मिलने के लिए आये और बीकाजी ने बाघजी से कहा वह रे !बाघा ''काका कांधलजी तो ऐसे हैं कि, इतना बड़ा राज्य जीतकर भी खुद राजा न बन कर मुझे राजा बनाया'' और तुम पुत्र होकर अपने भाइयों के साथ बहुत बुरा कर रहे हो; इतना बड़ा अपना ही इलाका मोहिलों को दिलवा रहे हो। बाघाजी यह सुनकर सहमति देकर वापिस चले गए।
युद्ध शुरू हुवा राठौड़ी सेना दो भागों में बनती गयी,सेना के एक दस्ते का नेतृत्व राव कांधलजी ने संभाला दूसरे दस्ते का नेतृत्व राव बीकाजी ने ने संभाला। बड़ा घमासान युद्ध हुवा इस युद्ध में बीकाजी और बीदाजी तो अपने राज्य के लिए लड़ रहे थे मगर राव कंडालजी को न तो राज का लालच, न मुकुट कि अभिलाष बस वे तो अपने वंश कि आन बान कायम रखने के लिए अपने प्राणो को हथेली पर रखकर शाही और मोहिल सयुंक्त सेना का संहार कर रहे थे। मौत नजदीक देख सूबेदार सारंगखां घायल होकर दिल्ली भाग गया और दिल्ली पहुंचकर बोला -:
''शुक्र है खुदा का जिवग्या''आप गया मैं दौड़।
बला या आफत है,बूढ़ा यह राठौड़ ।।
द्रोणपुर का यह युद्ध विक्रम सम्वत 1545 में लड़ा गया उस समय राव कांधलजी कि उम्र 72 वर्ष कि थी। मोहिल राणा बरसल और उसका भाई राणा नरबद मरे गए। राव कांधलजी ने सभी भाई,भतीजो,शेखाजी भाटी और उनके दोनों पुत्रों तथा नापाजी सांखला सहित सभी वीरों को शाबासी दी और बीकाजी कि तरफ इसरा कर शाबास रे भतीजा ''बिदा बांका'' तब से आज भी बीदावत राठौड़ों को ''बांका'' शब्द से शुशोभित करतें हैं।
द्रोणपुर युद्ध के बाद ठिकानो का बंटवारा इस प्रकार किया -
बीकाजी ने ने राव कांधलजी से कहा आप ही सब कुछ करो,जो करोगे वो सब को मंजूर होगा तब राव कांधलजी के कहा कि,माडलजी को जोधपुर व उनके साथ रुपोजी, नाथूजी, बीदाजी कि मोहिलवाटी रहेगी,और बीकाजी आप अपने ससुराल वाले पूंगल के भाटियों पर नजर रखना तब बीकाजी ने सुझाव दिया कि,भटनेर आपके पोते खेतसिंह को पूरी तरह से दे दिया जाय। तब सभी ने अर्ज किया कि,हिसार के इलाके में बहलोल लोदी का जोर है और द्रोणपुर युद्ध मैं हरने के बाद उसके दिल में खर है सो यह इलाका आप ले लीजिये, तब राव कांधलजी ने ठीक है ये इलाका मैं देख लूंगा।
राव बीदोजी ने वि.स. 1568 में [1488ई.]अपने नाम से नया नगर बीदासर नगर बसाया। राव बीदाजी के आठ रानियां, 12 पुत्र और तीन पुत्रियां थी। बीदासर वर्तमान राजस्थान के राज्य के जिले चूरू में स्थित है। बीदासर को बाद में राव गोपालदासजी ने 1599ई. में बीकानेर राज्य में विलय कर दिया। जब सूरतसिंह बीकानेर के महाराजा बनें तो उन्होंने प्रजा का शोषण करना शुरू कर दिया और सूरत सिंह के शोषण से तंग आकर सन 1801ई. में बीदावत राठौड़ों ने बीकानेर राज्य से विद्रोह कर जोधपुर राज्य में शामिल होने का निर्णय किया, लेकिन ठिकाना बीदासर के उम्मेदसिंह ने सभी को बीकानेर राज्य के साथ जुड़े रहने के लिए राजी कर लिया।
बीदासर ठिकाने के ठाकुर का यह पारम्परिक दायित्व था, कि वह सभी बीदावत सरदारों से लगानवसूल कर बीकानेर राज्य में जमा करावें। जब डूँगरसिंह बीकानेर के महाराजा बने तो उन्होंने बीदासर ठिकाने से वसूले जानेवाले लगान की राशि 51 हजार रूपये से बढा कर 87 हजार रूपये कर दी। यह बढ़ोतरी हद से ज्यादा थी, इस कारण बीदासर के ठाकुर बहादुरसिंह नेतृत्व में बीदासर के राजपूत सरदार बड़ी संख्या में अपने साथ राशन और कपड़े थैलों में भरकर बीदासर के गढ़ में एकत्र हुए और संगठित होकर बीकानेर महाराजा डूँगरसिंह का विरोध करने लगे।
बीदावत राठौड़ो की खांपों [शाखा और उप शाखाओं] का विवरण इस प्रकार है –:
जोधपुर के राव जोधाजी के पुत्र राव बीदोजी के वंसज बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव बीदोजी की शादी प्रभातकंवार के साथ 1494 में हुयी थी,जो खंडेला के राव राजा रणमलजी शेखावत [निर्बाण] की पुत्री थी। राव बीदोजी के नौ पुत्र हुए -
01- राव उदयकरणजी -
02 - संसारचन्द्रजी
03 – हराजी [हरजी]
04 – भीवराज [भीमजी]
05 - शिवचंद्रजी
06 – डूंगरसिंह
07 – अर्जुनसिंह
08 - भोजराजजी
09 - राव बैरसलजी - बैरसलजी का उप नाम फूलणी भी था।
राव बीदोजी के पुत्रों से सात शाखाएं व पोते और पड़ पोतों तथा उनके अन्य वंशजों से सभी मुख्य ------ शाखाएं निकली हैं जो इस प्रकार है -:
बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-:
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
19 - राव विरमजी [बीरमजी] [1374-1383] - राव वीरामजी के पांच पुत्र थे -
01 - राव चुण्डाजी
02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर,
02 - संसारचन्द्रजी
03 – हराजी [हरजी]
04 – भीवराज [भीमजी]
05 - शिवचंद्रजी
06 – डूंगरसिंह
07 – अर्जुनसिंह
08 - भोजराजजी
09 - राव बैरसलजी - बैरसलजी का उप नाम फूलणी भी था।
बीदावत राठौड़ो की खांपों [शाखा और उप शाखाओं] का विवरण इस प्रकार है –:
राव बीदोजी के पुत्रों से छह शाखाएं व पोते और पड़ पोतों तथा उनके अन्य वंशजों से सभी मुख्य 22 शाखाएं निकली हैं जो इस प्रकार है -:
01 - उदयकरणोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र राव उदयकरणजी के वंसज उदयकरणोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।राव उदयकरणजी;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
राव उदयकरणजी को द्रोणपुर और पड़िहारा ठिकाना मिला था मगर 1526 में बीकानेर के राजा जैतसिंह द्वारा राव उदयकरणजी को निष्कासित कर दिया गया। राव उदयकरणजी को निष्कासित करने के बाद उनका भाई संसारचन्द्रजी पड़िहारा की गद्दी पर बैठे। राव उदयकरणजी के पुत्र हुवा राव कल्याणदासजी। कल्याणदासजी ने बीकानेर के राव लूणकरणजी के साथ युद्ध भी किया मगर फिर भी अपना राज्य खो दिया था। उदयकरणोत बीदावत राठौड़ों का ठिकाना जोधपुर जिले में गांव भिदासी और बीकानेर जिले में जाखासर, धकलो , अगनउ, उन आदि है।
उदयकरणोत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव उदयकरणजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - हरावत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र हराजी [हरजी] के वंशज हरावत बीदावत राठौड़ कहलाये है।हराजी [हरजी];जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे। जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के पुत्र राव बिदा ने राजस्थान के जांगलू प्रदेश के एक हिस्से में आधिपत्य कर बिदासर नगर की स्थापना कर अपनी राजधानी बनाया । राव बिदा के प्रतापी पुत्रों में से एक हरोजी हुए जिन्हें आपने पिता की मृत्यु उपरांत पेतृक राज्य से 12 गांवों की ताजिमी जागीर मिली। हरोजी ने अपनी इन बारह गांवों की जागीर पर सुचारू शासन व्यवस्था चलाने हेतु हरासर नामक गांव की सन1548में स्थापना कर यहाँ एक किले का निर्माण कराया । हरासर गांव सरदारशहर -अजमेर मेगा हाइवे पर स्थित है जो पड़ीहारा गांव से 6 की.मी की दूरी पर स्थित है। देश के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर धाम सालासर से हरासर गांव की दूरी 24 की.मी है । हरोजी के वंशज हरासर के अलावा रूखासर, घोरडा, अरणवोल्यां, बासी, भानीसर आदि विभिन्न गावों मे आबाद है।
हरावत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव हराजी [हरजी] - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - भीँवराजोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र राव भीवराज [भीमजी] के वंसज भीँवराजोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव भीवराज [भीमजी];जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
भीँवराजोत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बीदावत राठौड़ो की खांपों [शाखा और उप शाखाओं] का विवरण इस प्रकार है –:
जोधपुर के राव जोधाजी के पुत्र राव बीदोजी के वंसज बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव बीदोजी की शादी प्रभातकंवार के साथ 1494 में हुयी थी,जो खंडेला के राव राजा रणमलजी शेखावत [निर्बाण] की पुत्री थी। राव बीदोजी के नौ पुत्र हुए -
01- राव उदयकरणजी -
02 - संसारचन्द्रजी
03 – हराजी [हरजी]
04 – भीवराज [भीमजी]
05 - शिवचंद्रजी
06 – डूंगरसिंह
07 – अर्जुनसिंह
08 - भोजराजजी
09 - राव बैरसलजी - बैरसलजी का उप नाम फूलणी भी था।
राव बीदोजी के पुत्रों से सात शाखाएं व पोते और पड़ पोतों तथा उनके अन्य वंशजों से सभी मुख्य ------ शाखाएं निकली हैं जो इस प्रकार है -:
बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
ख्यात अनुसार बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है-:
01 - महाराजा यशोविग्रह जी - (कन्नौज राज्य के राजा)
यशोविग्रह जी राजा धर्मविम्भ के पुत्र और राजा श्री पुंज के पोते थे जो दानेसरा [दानेश्वरा] शाखा से थे क्योकि धर्मविम्भ के वंसज दानेसरा [दानेश्वरा] नमक जगह पर रहने से '' दानेसरा [दानेश्वरा]''उनका यह नाम पड़ा है।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
02- महाराजा महीचंद्र जी - भारतीय इतिहास में महीचन्द्र को महीतलजी या महियालजी भी कहा जाता है।
03 - महाराजा चन्द्रदेव जी - चन्द्रदेव महीचन्द्र के बेटे थे। चंद्रदेव को चन्द्रादित्य के नाम से भी जाता चन्द्रदेव यशोविग्रहजी के पोते थे। कन्नौज में गुर्जर-प्रतिहारों के बाद, चन्द्रदेव ने गहड़वाल वंश की स्थापना कर 1080 से 1100 ई. तक शासन किया। चन्द्रदेवजी का पुत्र हुवा मदनपालजी [मदन चन्द्र] । चँद्रदेव ने विक्रमी 1146 से 1160 तक वाराणसी अयोध्या पर शासन किया इनके समय के चार शिलालेखोँ मेँ यशोविग्रह स चँद्रदेव तक का वँशक्रम मिलता है ।
04- महाराजराजा मदनपालजी [मदन चन्द्र] (1154)
मदनपाल के पिता का नाम चंद्रदेव था।
05 - महाराज राजा गोविन्द्रजी [1114 से 1154 ई.] - गोविंदचंद्र के पिता का नाम मदनपाल [मदन चन्द्र] और माता का नामरल्हादेवी था। गहड़वाल शासक था, पिता के बाद गोविंदचंद्र उत्तराधिकारी बना। गोविंदचंद्र को अश्वपति, नरपति, गजपति, राजतरायाधिपति की उपाधियाँ थी। गोविंदचंद्र की चार पत्नियां थी –
01 - नयांअकेलीदेवी
02 - गोसललदेवी
03 - कुमारदेवी
04 - वसंतादेवी
गोविंदचंद्र गहड़वाल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था। 'कृत्यकल्पतरु' का लेखक लक्ष्मीधर इसका मंत्री था। गोविन्द चन्द्र ने अपने राज्य की सीमा को उत्तर प्रदेश से आगे मगध तक विस्तृत करके मालवा को भी जीत लिया था। उसके विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज थी। 1104 से 1114 ई. तक तथा उसके बाद राजा के रूप में 1154 ई. तक एक विशाल राज्य पर शासन किया जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार का अधिकांश भाग शामिल था।उसने अपनी राजधानी कन्नौज का पूर्व गौरव कुछ सीमा तक पुन: स्थापित किया। गोविन्द चन्द्र का पौत्र राजा जयचन्द्र [जो जयचन्द के नाम से विख्यात हुवा है] जिसकी सुन्दर पुत्री संयोगिता को अजमेर का चौहान राजा पृथ्वीराज अपहृत कर ले गया था। इस कांड से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जब तुर्कों ने पृथ्वीराज पर हमला किया, उस समय जयचन्द ने उसकी किसी भी प्रकार से सहायता नहीं की। 1192 ई. में तराइन (तरावड़ी) के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द को भी हराया और मार डाला। तुर्कों ने उसकी राजधानी कन्नौज को खूब लूटा और नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
06- महाराज राजा विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] (1162) - विजयचन्द्रजी [जयचंदजी] के पिता का नाम गोविंदचंद्र था। विजयचंद्र का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री “सुंदरी” से हुवा था, जिस से एक पुत्र का जन्म हुवा जयचंद्र जिसे जयचंद्र राठौरड़ के नाम से भी जाना जाता है। विजय चन्द्र ने 1155 से 1170 ई.तक शासन करने के बाद अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र जयचंद को कन्नौज के शासक के रूप में उत्तराधिकारी बना दिया था और राज्य की देख-रेख का पूरा भर जयचंद को सौंपदिया था। जयचंद का शासनकल 1170 से 1794 ई. रह है।
विजयचंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। जयचंद्र का जन्म दिल्ली के राजा अनंगपाल तोमर की पुत्री “सुंदरी” की कोख से हुआ था।
07 - महाराज राजा जयचन्द जी [जयचंद्र] (कन्नौज उत्तर प्रदेश 1193) - जयचन्द जी [जयचंद्र] के पिता का नाम विजय चन्द्र था। जयचन्द का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 1226 आषाढ शुक्ल 6 ई.स. 1170जून) को हुआ। जयचन्द ने पुष्कर तीर्थ में उसने वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे ‘दळ-पंगुळ' भी कहा जाता है। जयचन्द युद्धप्रिय होने के कारण यवनों का नाश करने वाला कहा है जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा। उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द के एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि॰सं॰ 1250(ई.स. 1194) को हुआ था। जयचन्द कन्नौज के राठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे। उसके साथ ही गहड़वाल वंश का अंत हो गया।
[दिल्ली के अनंगपाल के दो बेटियां थीं ‘’सुंदरी’’ और ‘’कमला’’ सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसकी कोख से राठौङ राजा जयचंद का जन्म हुवा। दूसरी कन्या "कमला" का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर के साथ हुआ, जिनके पुत्र का जन्म हुवा “पृथ्वीराज” जिसे पृथ्वीराज चौहान अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' के नाम से जाना जाता है। अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद ले लिया, जिससे अजमेर और दिल्ली का राज एक हो गया था। अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द दोनों रिस्ते में मौसेरे भाई थे। मगर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता जो रिस्ते में पृथ्वीराज के भतीजी लगती थी, फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़कर संयोगिता का हरण करके उसके साथ शादी रचाई थी जिस से दोनों में दुश्मनी बनगयी थी।]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
[जिस स्थल पर जयचंद्र और मुहम्मद ग़ोरी की सेनाओं में वह निर्णायक युद्ध हुआ था, उसे 'चंद्रवार' कहा गया है । यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जो अब आगरा ज़िला में फीरोजाबाद के निकट एक छोटे गाँव के रूप में स्थित है । ऐसा कहा जाता है कि उसे चौहान राजा चंद्रसेन ने 11वीं शती में बसाया था । उसे पहले 'चंदवाड़ा' कहा जाता था; बाद में वह 'चंदवार' कहा जाने लगा। चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल के शासनकाल में महमूद ग़ज़नवी ने वहाँ आक्रमण किया था; किंतु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। बाद में मुहम्मद ग़ोरी की सेना विजयी हुई थी। चंदवार के राजाओं ने यहाँ पर एक दुर्ग बनवाया था; और भवनों एवं मंदिरों का निर्माण कराया था। इस स्थान के चारों ओर कई मीलों तक इसके ध्वंसावशेष दिखलाई देते थे।]
कन्नौज के राजा जयचंद्र एक पुत्रि और तीन पुत्र थे -
01 - संयोगिता [पुत्रि] - राजकुमारी संयोगिता की शादी राजा पृथ्वीराज चौहान [तृतीय] [अजमेर और दिल्ली का राजा ]
02 –वरदायीसेनजी - कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र वरदायीसेनजी; वरदायीसेनजी के पुत्र सेतरामजी; सेतरामजीके पुत्र के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा है।
03 - राजा जयपाल – राजा जयपाल ने बाद में राणा की उपाधि धारण की थी तथा राजा जयपाल को राणा चंचलदेव के नाम से भी जाना जाता है। राजा जयपाल के एक पुत्र हुवा गूगल देवजी। राणा गूगलदेव अलीराजपुर चले गए और वहां के चौथे राजा बनें।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
01 - राजा केशरदेवजी [केशरदेवजी को जोबट राज्य मिला]
02 - राजा कृष्णदेव [कृष्णदेव को अलीराजपुर राज्य मिला]
01 - राजा केशरदेवजी - राणा राजा केशरदेवजी जोबट के पहले राव थे जो अलीराजपुर के राणा गूगलदेवजी के छोटे भाई थे। राजा केशरदेवजी ने जोबत(Jobat) रियासत [राज्य] [14 जनवरी1464 AD को] स्थापित किया। राणा राजा केशरदेवजी के एक पुत्र हुवा,
राणा सबतसिँह । राजा केशरदेवजी के पुत्र राणा सबतसिँह की म्रत्यु 16 अप्रैल 1864 को हुयी थी।
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
- राणा रणजीतसिंह - [जोबट 1864 -1874] राणा सबतसिँह का पुत्र पुत्र।
- राणा सरूपसिंह - [जोबट 1874 -1897] राणा रणजीतसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा इंद्रजीतसिंह [जोबट 1897 - 1916] राणा सरूपसिंह का पुत्र पुत्र।
- राणा आनंददेव[1437/1440 ]-अलीराजपुर के 1437 में पहले राणा राजा और संस्थापक।
- राणा प्रतापदेव [अलीराजपुरके दूसरे राजा]
- राणा चंचलदेव [अलीराजपुरके तीसरे राजा]
- राणा गूगलदेव [अलीराजपुर के चौथे राजा]
- राणा बच्छराजदेव
- राणा दीपदेव
- राणा पहड़देव [प्रथम]
- राणा उदयदेव
- राणा पहड़देव [द्वितीय] शासनकाल 1765, म्रत्यु 1765 में]
- राणा रायसिंह [शासनकाल लगभग 1650 में ]
[वर्तमान में जोबट भारत देश के राज्य मध्यप्रदेश में स्थित है]
08 – बरदायीसेन - बरदायीसेन के पिता का नाम राजा जयचन्द था।
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
09 - राव राजा सेतरामजी - सेतरामजी के पिता का नाम बरदायीसेन था। सेतरामजी को उप नाम ''सेतरावा'' के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज के शासक जयचंद से नाराज होकर उनके भतीजों राव सीहाजी एवं सेतरामजी ने कन्नौज से मारवाड़ की ओर प्रस्थान किया। बीच रास्ते में हुए युद्ध में सेतरामजी वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। जिस स्थान पर सेतरामजी ने वीरगति प्राप्त की, उस स्थान का नाम सेतरावा रखा गया। वर्तमान में सेतरावा राजस्थान के जोधपुर जिला में शेरगढ़ तहसील में स्थित एक कस्बा है।सेतरावा कस्बा जोधपुर-जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 114 पर जोधपुर से 105 किलोमीटर एवं जैसलमेर से 183 किमी की दूरी पर स्थित है। फलोदी-रामजी की गोल मेगा हाइवे भी कस्बे से होकर गुजरता है। राव सीहाजी ने पाली को अपनी कर्म स्थली बनाया। उनके वंशज राव जोधाजी ने जोधपुर की स्थापना की थी। स्पष्ट है कि सेतरावा कस्बे की स्थापना जोधपुर से भी बहुत पहले हो गई थी।
राव सेतराम जी के आठ पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र राव सीहाजी थे। राव सेतरामजी की चार शादियां हुयी थी, जिन में से रानी सोनेकँवर की कोख से सीहाजी [शेओजी] का जन्म हुवा था।
प्रचलित दोहा -
सौ कुँवर सेतराम के सतरावा धडके सहास।
गुणचासा सिंहा बड़े, सिंहा बड़े पचास।।
बारह सो के बानवे पाली कियो प्रवेश।
सीहा कनवज छोड़ न आया मुरधर देश।।
चेतराम सम्राट के, पुत्र अस्ट महावीर ।
जिसमे सिहों जेस्ठ सूत, महारथी रणधीर।।
राव सेतरामजी के पुत्र हुवा सीहाजी [शेओजी] जिनसे राजस्थान में राठौड़ वंश का विकास व विस्तार हुवा । वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं । [वैसे तो अयोध्या व दूसरी जगहों से भी से भी राठौड़ों का निकास हुआ है, मगर राजस्थान में जो राठौड़ हैं, वें कन्नौजया राठौड़ सिया जी(सीहा जी) के वंसज हैं]
10 - राव राजा सीहाजी [शेओजी] - (बिट्टू गांव पाली, राजस्थान 1273) - राजा सीहाजी [शेओजी] के पिता का नाम सेतराम जी था। राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठौड़ दानेसरा [दानेश्वरा] खांप के राठौड़ थे। राठौङ कुल में जन्मे राव सीहा जी मारवाड़ में आने वाले राठौङ वंश के मूल पुरुष थे। राजा सीहाजी [शेओजी] पाली के पहले राव थे [1226-1273] राजा सीहाजी [शेओजी] कन्नौज के राजा जयचंद पोते थे। जब राव राजा सीहाजी [शेओजी] पाली आये उस समय पाली में पल्लीवाल ब्राह्मण राजा ‘’जसोधर’’ का राज था, मगर उस राजा को मेर और मीणा जाती के राजा आये दिन परेशान करते थे । जिसके चलते ब्राह्मण राजा ने राव राजा सीहाजी [शेओजी] से मदद मांगी ,पर एक राजा होने के नाते वे जानते थे की इन राजपूतों को नोकरी पर रखकर नहीं अपितु राज में भगीदारी देकर दुश्मनों का सफाया किया जा सकता है। दानेसरा शाखा के महाराजा जयचन्द जी का शहाबुदीन के साथ सम्वत 1268 के लगभग युद्ध होने पर जब कनौज छूट गया।कनौज के पतन के बाद राव सीहा ने द्वारिका दरसण (तीर्थ) के लिए अपने दो सो आदमीयों के साथ लगभग 1268 के आस पास मारवाड़ में प्रवेश किया। उस मारवाड़ की जनता मीणों, मेरों आदि की लूटपाट से पीड़ित थी इस लिए उन्होंने अपने हाथ से राजतिलक कर सदा के लिए राज देकर अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा की राव राजा सीहाजी [शेओजी] को सौंपदी। और आराम से रहने लगे, राव शेओजी पाली के मालिक बनकर राव की पदवी धारण की।
राव शेओजी की बहुतसी शादियां हुयी जिन में कुछ राजपूत समाज से बहार भी हुयी मगर राजपूत समाज में जो शादी हुयी सिहाजी की शादी गुजरात राज्य के गांव अन्हिलवाड़ा [पाटन] के राजा शासक जय सिंहसोलंकी की पुत्री पार्वतीकँवर के साथ हुयी थी यानि गुजरात के अन्हिलवाड़ा पाटन के राजा भीमदेव [द्वितीय] की बहन सोलंकी रानी पार्वती से हुयी थी । पाली व भीनमाल में राठौड़ राज्य स्थापित करने के बाद सिहा जी ने खेड़ पर आक्रमण कर विजय कर लिया| इसी दौरान शाही सेना ने अचानक पाली पर हमला कर लूटपाट शुरू करदी, हमले की सूचना मिलते ही सिहा जी पाली से 18 KM दूर बिठू गावं में शाही सेना के खिलाफ आ डटे, और मुस्लिम सेना को खधेड दिया ।अंत में राव सिहाजी 1273 ई.सं में मुसलमानों से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वि. सं. 1330 कार्तिक कृष्ण दवादशी सोमवार को करीब 80 वर्ष की उमर में सिहा जी स्वर्गवास हुआ व उनकी सोलंकी रानी पार्वती इनके साथ सती हुई। पाली के ब्राह्मणों की सहायता करने के लिए पाली पर आक्रमण कर ने वाले मीणा को मार भगाया तथा पाली पर अधिकार कर वहा शांति स्थापित की इसी प्रकार उनके योग्य पुत्रो ने ईडर व् सोरास्ट्र पर भी अधिकार करके मारवाड़ में राठौङ राज्य की शुभारम्भ किया। मारवाड़ के राठौङ उन्ही के वंशज है।
राव शेओजी की म्रत्यु 1273 में हुयी ,सोलंकी रानी पार्वतीकँवर से राव शेओजी के सोलंकी रानी पार्वती से तीन पुत्र हुए -
01 - राव अस्थानजी – [राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी
संवत 1272-1292)]
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
02 - राव उजाजी [अज्यरावजी,अजाजी] - राव उजाजी [अज्यरावजी] के वंसज बाढेल या
वाजन राठौड़ कहलाये हैं।
03 - राव शोनिंगजी [सोनमजी] - एड्ररेचा राव शोनिंगजी छोटे बेटे थे,1257 में इडर चले
गए और वंहा के पहले राव बनें।
11 - राव अस्थानजी - राव राजा सीहाजी [शेओजी] की रानी पाटन के शासक राजा जयसिंह सोलंकी की पुत्री की कोख से बड़े पुत्र राव आस्थानजी का जनम हुवा।[राव आस्थान जी पिता के बाद मारवाड़ के शासक बने।(ईस्वी संवत 1272-1292)]राव राजा सीहाजी [शेओजी] के पुत्र राव अस्थानजी के आठ पुत्र थे –
01 - राव दूहड़जी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
02 - राव धांधलजी
03 - राव हरकाजी उर्फ [हापाजी,हरखाजी,हरदकजी]
04 - राव पोहड़जी [पोहरदजी उर्फ राव भूपसुजी]
05 - राव जैतमालजी
06 - राव आसलजी
07 - राव चाचिगजी
08 - राव जोपसिंहजी
12 - राव दूहड़जी [1292 -1309 ई.] - राव अस्थानजी के पुत्र और राव सीहाजी [शेओजी] के पोते राव दूहड़जी का शासनकाल 1292 से 1309 तक रहा है । राव दूहड़जी राव सीहाजी [शेओजी] के पोते और राव सेतराम के पड़ पोते थे। राव दूहड़जी 1292 से 1309, तक खेड़ के राव थे। राव दूहड़जी कामारवाड़ पर अधिकार के लिए राव सिंधल के साथ झगड़ा भी हुआ था। राव राजा दूहड़ जी ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी कुलदेवी 'नागणेची ' ('नागणेची का पूर्व नाम 'चकेश्वरी ' रहा है) को प्रतिष्ठापित किया। धुहड़ जी प्रतिहारो से युद्ध करते हुवे वि.सं. 1366 को वीर गति को प्राप्त हुये थे । राव दूहड़जी के दस पुत्र हुए -
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
01 - राव रायपालजी - [रायपालोत राठौड़ ]
02 - राव किरतपालजी [खेतपालजी] [- के वंसज खेतपालोत राठौड़]
03 - राव बेहड़जी [बेहरजी] [- के वंसज बेहरड़ राठौड़ ]
04 - राव पीथड़जी [- के वंसज पीथड़ राठौड़ ]
05 - राव जुगलजी [जुगैलजी] [- के वंसज जोगवत राठौड़]
06 - राव डालूजी [---------------------]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
07 - राव बेगरजी [- के वंसज बेगड़ राठौड़ ]
08 - उनड़जी [- के वंसज उनड़ राठौड़ ]
09 - सिशपलजी [- के वंसज सीरवी राठौड़]
10 – चांदपालजी [आई जी माता के दीवान] [- के वंसज सीरवी राठौड़]
13 - राव रायपालजी - [1309-1313 ई.] - राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र थे, राव रायपालजी राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़ पोते थे। राव रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए थे-
01 - कानपालजी -
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - [थांथी राठौड़]
04 - सुंडाजी - [सुंडा राठौड़ ]
05– लाखणजी - [लखा राठौड़[ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
06 - डांगीजी - [डांगी या डागिया - डांगी के वंशज ढोलि हुए राठौड़]
07 - मोहणजी - [मुहणोत राठौड़]
08 - जांझणजी - [जांझनिया [जांझणिया] राठौड़ ]
09 - जोगोजी - [जोगावत राठौड़]
10 - महीपालजी [मापाजी] - [मापावत [महीपाल] राठौड़ ]
11 - शिवराजजी - [शिवराजोत राठौड़]
12 - लूकाजी - [लूका राठौड़ ]
13 - हथुड़जी - [हथूड़ीया राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - रांदोंजी [रंधौजी] - [रांदा राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
15 - राजोजी [राजगजी] - [राजग राठौड़ [ये जोधपुर के इतिहास में नहीं है]
14 - कानपालजी – [1313-1323 ई.] राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -
01 - राव जालणसीजी
02 - राव भीमकरण
03 - राव विजयपाल
15 - राव जालणसीजी - [1323-1328 ई.] के तीन पुत्र हुए -
01 - राव छाडाजी
02 - राव भाखरसिंह
03 - राव डूंगरसिंह
16 - राव छाडाजी - राव छाडाजी [1328-1344 ई.] के सात पुत्र हुए -
01 - राव तीड़ाजी
02 - राव खोखरजी
03 - राव बांदरजी [राव वनरोजी]
04 - राव सिहमलजी
05 - राव रुद्रपालजी
06 - राव खीपसजी
07 - राव कान्हड़जी -
17 – राव तीड़ाजी [1344-1357 ई.] - राव तीड़ाजी के एक पुत्र हुवा राव सलखाजी –
18 - राव सलखाजी – [1357- 1374 ई.] राव सलखाजी के वंसज सलखावत राठौड़ कहलाते हैं।
राव सलखाजी;राव तीड़ाजी [टीडाजी] के पुत्र और राव छाडाजी के पड़ पोते थे।
राव सलखाजी के चार पुत्र हुए -
01 - रावल मल्लीनाथजी - [मालानी के संस्थापक]
02 - राव जैतमलजी - [गढ़ सिवाना]
03 - राव विरमजी [बीरमजी]
04 - राव सोहड़जी - के वंसज सोहड़ राठौड़
01 - राव चुण्डाजी
02 - देवराजजी - देवराजजी के वंसज देवराजोत राठौड़ [सेतरावा , सुवलिया]
देवराजजी के पुत्र हुए चाड़देवजी, चाड़देवजी के वंसज चाड़देवोत राठौड़ [गिलाकौर,
देचू, सोमेसर]
03 - जैसिंघजी [जयसिंहजी] - जैसिंघजी के वंसज जयसिहोत[जैसिंघोत] राठौड़
04 - बीजाजी - बीजावत राठौड़
05 - गोगादेवजी - गोगादेवजी के वंसज गोगादे राठौड़ [केतु , तेना, सेखाला]
20 - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] के पुत्र राव चूण्डाजी थे। राव चूण्डाजी;राव सलखाजी के पोते और राव तीड़ाजी के पड़ पोते थे। मंडोर जोधपुर रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दूरी पर है। मण्डोर का प्राचीन नाम ’माण्डवपुर था। यह पुराने समय में मारवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। मंडोर दुर्ग 783 ई0 तक परिहार शासकों के अधिकार में रहा। इसके बाद नाड़ोल के चौहान शासक रामपाल ने मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। 1227 ई0 में गुलाम वंश के शासक इल्तुतनिश ने मंडोर पर अधिकार कर लिया। यद्यपि परिहार शासकों ने तुरकी आक्रांताओं का डट कर सामना किया पर अंतत: मंडोर तुर्कों के हाथ चला गया। लेकिन तुरकी आक्रमणकारी मंडोर को लम्बे समय तक अपने अधिकार में नही रख सके एंव दुर्ग पर पुन: प्रतिहारों का अधिकार हो गया। 1294 ई0 में फिरोज खिलजी ने परिहारों को पराजित कर मंडोर दुर्ग पर अधिकार कर लिया, परंतु 1395 ई0 में परिहारों की इंदा शाखा ने दुर्ग पर पुन: अधिकार कर लिया और मंडोर गढ़ परिहार राजाओं का होगया । सन् 1395 में चुंडाजी राठौड़ की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हे दहेज में मिला था तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौड़ शासकों का राज हो गया था। राव चूण्डाजी [1394 -1423] ने मंडोर पर राठौड़ राज कायम किया था। राव चूण्डाजी एक महत्वाकांक्षी शासक था। उन्होंने आस-पास के कई प्रदेशों को अपने अधिकार में कर लिया। 1396 ई0 में गुजरात के फौजदार जफर खाँ ने मंडोर पर आक्रमण किया। एक वर्ष के निरंत्तर घेरे के उपरांत भी जफर खाँ को मंडोर पर अधिकार करने में सफलता नही मिली और उसे विवश होकर घेरा उठाना पड़ा। 1453 ई0 में राव जोधाजी ने मंडोर के शासक बनें उन्होंने मरवाड़ की राजधानी मंडोर से स्थानान्तरित करके जोधपुर बनायीं जिसके कारण मंडोर दुर्ग धीरे-धीरे वीरान होकर खंडहर में तब्दील हो गया। राव विरमजी [बीरमजी] के छोटे पुत्र राव चुंडाजी थे। राव वीरम देव जी की मृत्यु होने के बाद राव चुंडाजी की माता मांगलियानी इन्हें लेकर अपने धर्म भाई आल्हो जी बारठ के पास कालाऊ गाँव में लेकर आगई वहीं राव चुंडा जी का पालन पोसण हुआ तथा आल्हा जी ने इन्हें युद्ध कला में निपुण किया था। राव चुंडाजी बड़े होने पर मल्लीनाथ जी के पास आगये तब इन्हें सलेडी गाँव की जागीर मिली। राव चुंडाजी ने अपनी शक्ति बढाई तथा नागोर के पास चुंडासर गाँव बसाया और इसे अपना शक्ति केंद्र बना कर पहले मण्डोर को विजय किया और मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद नागोर के नवाब जलालखां खोखर पर हमला कर उसे मार कर नागोर पर अधिकार करलिया फिर फलोदी पर अधिकार करलिया और वहां शासन करने लगे। जब केलन भाटी ने मुल्तान के नवाब फिरोज से फोज की सहायता लेकर राव चुंडा को परास्त करने की सोची मगर यह उसके बस की बात नहीं thee अतः धोखे से राव चुंडा को संधि के लिये बुलाया तथा राव चुंडा पर हमला कर दिया राव चुंडा तथा उनके साथी नागोर की रक्षा करते हुए गोगालाव नामक स्थान पर विक्रम सम्वत 1475 बैसाख बदी1 (15मार्च1423) को वीरगति को प्राप्त हुए। राव चुंडाजी के साथ राणी समंदरकंवर सांखली सती हुई।
01 - राव रिड़मलजी
02 - राव कानाजी [1423-1424] - के वंसज कानावत राठौड़
03 - राव सताजी [1424-1427] - के वंसज सतावत राठौड़
04 - राव अरड़कमलजी - के वंसज अरड़कमलोत राठौड़
05 - राव अर्जनजी - के वंसज अरजनोत राठौड़
06 - राव बिजाजी - के वंसज बीजावत राठौड़
07 - राव हरचनदेवी - के वंसज हरचंदजी राठौड़
08 - राव लूम्बेजी - के वंसज लुम्बावत राठौड़
09 - राव भीमजी - के वंसज भीमौत राठौड़
10 - राव सेसमलजी - के वंसज सेसमालोत राठौड़
11 - राव रणधीरजी - के वंसज रणधीरोत राठौड़
12 - राव पूनांजी - के वंसज पुनावत राठौड़ [खुदीयास ,जूंडा ]
13 - राव शिवराजजी - के वंसज सीवराजोत राठौड़
14 – राव रामाजी [रामदेवजी]
15 - राजकुमारी हंसादेवी - राजकुमारी हंसादेवी की शादी उदयपुर, राजस्थान [मेवाड़] के
सिसोदिया महाराणा लखासिंह [लाखाजी] के साथ हुयी थी। लखासिंह [लाखाजी] मेवाड़ के
तीसरे महाराणा थे। जो क्षेत्रसिंह के बेटे और हमीरसिंह के पोते थे।
21 - राव रिड़मलजी [1427-1438] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पुत्र राव रणमलजी [राव रिङमालजी] के वंसज रिड़मलोत राठौड़ [रिड़मालोत] राठौड़ कहलाये। राव रणमलजी [राव रिङमालजी];राव विरमजी [बीरमजी] के पोते और राव सलखाजी के पड़पोते थे। [1427-1438] के चौबीस पुत्र थे-
01 - राव अखैराजजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अखैराजजी के वंसज बागड़ी [बगड़ी]
राठौड़ कहलाये हैं।
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
02 - राव जोधाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जोधाजी के वंसज जोधा राठौड़ कहलाये हैं।
03 - कांधलजी - राव रणमलजी के पुत्र राव कांधलजी के वंसज कांधलोत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके रावतसर , बीसासर , बिलमु , सिकरोड़ी आदि ठिकाने थे।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
04 - चाँपाजी [चाँपोजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव चाँपाजी [चाँपोजी] के वंसज
चम्पावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका कापरड़ा ठिकाना था।
05 - लाखोजी - रणमलजी के पुत्र राव लाखोजी के वंसज लखावत राठौड़ कहलाये हैं।
[रानीसगांव, आउवा ]
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
06 – भाखरसीजी - राव रणमलजी के पुत्र राव भाखरसीजी के वंसज भाखरोत राठौड़
कहलाये हैं।
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
07 - डूंगरसिंहजी - राव रणमलजी के पुत्र राव डूंगरसिंहजी के वंसज डूंगरोत राठौड़
कहलाये हैं।
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
08 – जैतमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जैतमालजी के वंसज जैतमालजी
जैतमालोत राठौड़ कहलाये हैं।
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
09 - मंडलोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मंडलोजी मंडलावत राठौड़ कहलाये हैं। इनका
अलाय [बीकानेर में] ठिकाना था ।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
10 - पातोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव पातोजी के वंसज पातावत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका चोटिला, आउ, करनू, बरजानसर,बूंगड़ी आदि ठिकाने थे।
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
11 - रूपजी - राव रणमलजी के पुत्र राव के वंसज रूपजी के वंसज रुपावत राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मूंजासर, चाखु, भेड़, उदातठिकाने थे।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
12 - करणजी - राव रणमलजी के पुत्र राव करणजी के वंसज करणोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनके ठिकाने मूडी, काननों, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुर, कीतनोद, चांदसमा,
मुड़ाडो, जाजोलाई आदि थे।
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
13 - सानडाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव सानडाजी के वंसज सांडावत राठौड़ कहलाये
हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
14 - मांडोजी - राव रणमलजी के पुत्र राव मांडोजी के वंसज मांडनोत राठौड़ कहलाये हैं।
इनका अलाय मुख्य ठिकाना था।
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
15 - नाथूजी - राव रणमलजी के पुत्र राव नाथूजी के वंसज नाथावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं। इनके मुख्य ठीकाने [हरखावत], [नाथूसर]आदि थे।
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
16 - उदाजी [उडाजी] - राव रणमलजी के पुत्र राव उदाजी के वंसज उदावत[उडा] राठौड़
कहलाये हैं। जो बीकानेर ठीकाने से सम्बन्ध रखतें हैं।
17 - वेराजी - राव रणमलजी के पुत्र राव वेराजी के वंसज वेरावत राठौड़ राठौड़ कहलाये
हैं।
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
18 - हापाजी - राव रणमलजी के पुत्र राव हापाजी के वंसज हापावत राठौड़ [रिड़मलोत]
कहलाये हैं।
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
19 - अडवालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव अडवालजी के वंसज अडवालोत राठौड़
कहलाये हैं।
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
20 - सांवरजी - सांवरजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
21 - जगमालजी - राव रणमलजी के पुत्र राव जगमालजी के वंसज जगमलोत राठौड़
कहलाये हैं।
22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - सगताजी - सगताजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
23 - गोयन्दजी - गोयन्दजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
24 - करमचंदजी - करमचंदजी राव रणमलजी के पुत्र थे।
22 - राव जोधाजी - रणमलजी [राव रिङमालजी] के पुत्र राव जोधाजी के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये।राव जोधाजी;राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते और राव विरमजी [बीरमजी] के पड़ पोते थे।[1453 ई.-1489 ई.] राव जोधाजी का जन्म 1415 में दुङ्लो [Dunlo]गांव में हुवा था। राव जोधाजी नें सोजत को 1455, और 1459,में दो बार जीता था। राव जोधाजी राव रिड़मालजी के बेटे और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] के पोते तथा राव विरमजी के पड़पोते थे। जोधपुर शहर का नाम इन्हीं के नाम पर रखा हुवा है, राव जोधाजी ने अपनी राजधानी जोधपुर को 1459 में बनायीं थी।
राव जोधाजी की मत्यु 1488.में हुयी थी। राव जोधाजी [जोधपुर] की दूसरी जाती में भी शादियां हुयथी मगर जो राजपूत समाज में हुयी वो जालोर के सोनिगरा चौहान खीमा संतावत की बेटी से हुयी थी जिस से राव जोधाजी [जोधपुर] के सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए जिनमें से तीन पुत्र यानि राव बिकाजी, बीदोजी और राव दूदाजी को छोड़कर बाकि तेरह पुत्रों के वंसज जोधा राठौड़ कहलाते हैं। राव बिकाजी के वंसज बिका राठौड़,राव बीदोजी [बीदाजी] के वंसज बीदावत राठौड़ और राव दूदाजी के वंसज मेड़तिया राठौड़ कहलाये हैं।
राव जोधाजी [जोधपुर] सोलह पुत्र और दो बेटियां हुए थे -
01 - राव सातलजी - [1489 ई.-1492 ई.]
02 - राव सुजाजी
03 - राव नींबाजी
04 - करमसीजी - करमसोत राठौड़ [खींवसर, पांचोड़ी,नागदी , हलधानी, धणारी, सोयल , आचीणा,
भोजावास, उमरलाई , चटालियो , उस्तरा, खारी, हरिमो ] राव मालदेवजी के
देवलोक होने के बाद जब उनके वंशजो में गद्दी पर बैठने को लेकर आपसी झगड़े में
जुल्मों के कारण दीवान करमसी बिलाड़ा छोड़कर अपने सब आदमियों के साथ
गोड़वाड़ की जारहे थे कि,31मार्च1526 को [आसोज सुद 11 संवत् 1627]
सोजत से दुशमनों ने आकर ढोसी के पास घेर लिया । राव करमसीजी ढोसी के युद्ध
में लड़ कर काम आये............करमसी का बेटा रूहितास जो उस वक्त सिर्फ 11
बरस का था भाग कर गांव सथलोणे में एक सुनार के घर सात महीने तक रहा फिर
जब सभी कैदी छूट करसोजत से बिलाड़े में आये । उन्हें जब पता चला तो रूहितास
को सथलांणे से बुलाया फिर जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंहजी को बादशाह की
तरफ से आईजी के केसर और छत्र के वास्ते मिले 125/रूपये और उन्होंने आधा
जोड़ और एक बेरा भेंट किया । इससे रूहितास की दीवानी खूब चमकी । फिर जब
महाराज श्री सूरसिंघजी पाट बैठे तो उन्होंने भी 125/- जोड़ और बेरे वगैरे भेंट
किये ।
05 - बणवीरजी - बनविरोत राठौड़
06 - जसवंतसिंह - जसूत राठौड़
07 - कुंम्पाजी पावत - कुंम्पापावत राठौड़
08 - चाँदरावजी -
09 - राव बिकाजी - [1485 ई.-1504 ई.] बिका राठौड़
10 - बीदोजी - बीदावत राठौड़ [बीदासर , जाखासर ]
11 - जोगाजी - राव जोगाजी के पुत्र हुए राव खंगारजी, खंगारजी के वंसज खंगारोत राठौड़ कहलाये हैं ।
[खारिया, जालसू]
12 - भारमलजी - भारमलोत राठौड़ [मांगल्या , बड़गरा , खंडवा -मध्यप्रदेश]
13 - राव दूदाजी [1495 ई.-1525 ई.] - मेड़तिया राठौड़
14 - राव वरसिंह [बारसिंह] - वरसिंगहोत राठौड़, राव वरसिंह [बारसिंह] मेड़ता के पहले राव थे।
15 - शिवराज - शिवराजोत राठौड़
16 - सामंतसिंह -
16 - सामंतसिंह -
17 - राजकुमारी बीड़कँवर - बीड़कँवर की शादी मेवाड़ के महाराणा रायमलसिंह के साथ हुयी जो
मेवाड़ सातवें महाराणा थे । बीड़कँवर को रानी श्रीनगरदेवी मेवाड़ के नाम
से भी जाना जाता है
18 - राजकुमारी बृजकंवर - बृजकंवर की शादी मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह [प्रथम] के साथ हुयी
जो मेवाड़ आठवें महाराणा थे।
23 - बीदोजी - बीदावत राठौड़ [बीदासर , जाखासर] राव बीदोजी का जन्म माघ शुक्ला नवमी संवत् 1449 को हुआ था। जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र व बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी के छोटे भाई थे। महारानी नौरंगदे की कोख से राव बीदाजी का जन्म ऐसे समय हुआ जब राव जोधाजी अपना समस्त राज-पाट खोकर कोडमदेसर के पास कावनी नामक गांव में संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। ऐसे में राव बीदाजी का बाल्यकाल संघर्षपूर्ण बीता। इसी काल में बीदाजी घुड़सवारी व अस्त्र शस्त्र विद्या में दक्ष हुए। राव बीदोजी राव जोधाजी के पुत्र और राव रिड़मालजी के पोते तथा राव चूण्डाजी [चुंडाजी] मंडोर के पड़ पोते थे। राव रिड़मालजी को सादेजी और राव चूण्डाजी [चुंडाजी] को रावल पुनपालदेजी के नाम से भीजनाजा था। राव जोधाजी की सांखली रानी नौरंगदे की कोख से पुत्र दो हुए थे राव बीदोजी और राव बीकोजी यानि ये दोनों भाई बीदोजी और बीकोजी दोनों भाई सांखला [परमारों की शाखा है] के भाणजे थे। बीदाजी ने कई युद्धों में जबरदस्त वीरता दिखाई थी इसलिए उन्हें “राजा” की पदवी दी गयी थी। राव बीदोजी की शादी प्रभातकंवार के साथ 1494 में हुयी थी, जो खंडेला के राव राजा रणमलजी शेखावत [निर्बाण] की पुत्री थी। राव बीदोजी के नौ पुत्र हुए -
01- राव उदयकरणजी - 02 - संसारचन्द्रजी
03 – हराजी [हरजी]
04 – भीवराज [भीमजी]
05 - शिवचंद्रजी
06 – डूंगरसिंह
07 – अर्जुनसिंह
08 - भोजराजजी
09 - राव बैरसलजी - बैरसलजी का उप नाम फूलणी भी था।
बीदावत राठौड़ो की खांपों [शाखा और उप शाखाओं] का विवरण इस प्रकार है –:
राव बीदोजी के पुत्रों से छह शाखाएं व पोते और पड़ पोतों तथा उनके अन्य वंशजों से सभी मुख्य 22 शाखाएं निकली हैं जो इस प्रकार है -:
01 - उदयकरणोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र राव उदयकरणजी के वंसज उदयकरणोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।राव उदयकरणजी;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
राव उदयकरणजी को द्रोणपुर और पड़िहारा ठिकाना मिला था मगर 1526 में बीकानेर के राजा जैतसिंह द्वारा राव उदयकरणजी को निष्कासित कर दिया गया। राव उदयकरणजी को निष्कासित करने के बाद उनका भाई संसारचन्द्रजी पड़िहारा की गद्दी पर बैठे। राव उदयकरणजी के पुत्र हुवा राव कल्याणदासजी। कल्याणदासजी ने बीकानेर के राव लूणकरणजी के साथ युद्ध भी किया मगर फिर भी अपना राज्य खो दिया था। उदयकरणोत बीदावत राठौड़ों का ठिकाना जोधपुर जिले में गांव भिदासी और बीकानेर जिले में जाखासर, धकलो , अगनउ, उन आदि है।
उदयकरणोत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव उदयकरणजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
02 - हरावत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र हराजी [हरजी] के वंशज हरावत बीदावत राठौड़ कहलाये है।हराजी [हरजी];जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे। जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के पुत्र राव बिदा ने राजस्थान के जांगलू प्रदेश के एक हिस्से में आधिपत्य कर बिदासर नगर की स्थापना कर अपनी राजधानी बनाया । राव बिदा के प्रतापी पुत्रों में से एक हरोजी हुए जिन्हें आपने पिता की मृत्यु उपरांत पेतृक राज्य से 12 गांवों की ताजिमी जागीर मिली। हरोजी ने अपनी इन बारह गांवों की जागीर पर सुचारू शासन व्यवस्था चलाने हेतु हरासर नामक गांव की सन1548में स्थापना कर यहाँ एक किले का निर्माण कराया । हरासर गांव सरदारशहर -अजमेर मेगा हाइवे पर स्थित है जो पड़ीहारा गांव से 6 की.मी की दूरी पर स्थित है। देश के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर धाम सालासर से हरासर गांव की दूरी 24 की.मी है । हरोजी के वंशज हरासर के अलावा रूखासर, घोरडा, अरणवोल्यां, बासी, भानीसर आदि विभिन्न गावों मे आबाद है।
हरावत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव हराजी [हरजी] - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
03 - भीँवराजोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र राव भीवराज [भीमजी] के वंसज भीँवराजोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव भीवराज [भीमजी];जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
भीँवराजोत बीदावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव भीवराज [भीमजी]- राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
04 - डूंगरसिहोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र डूंगरसिंह के वंसज डूंगरसिहोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव डूंगरसिंह;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
डूंगरसिहोत बीदावतराठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव
डूंगरसिंह - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
05 - भोजराजोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र भोजराजजी के वंसज भोजराजोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव भोजराजजी;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
भोजराजोत बीदावतराठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
भोजराजजी- राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
06 - बैरसलोत बीदावत राठौड़ - राव बीदोजी के पुत्र राव बैरसलजी के वंसज बैरसलोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव बैरसलजी;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पोते और राव रिड़मलजी [राव रणमलजी] के पड़ पोते थे।
बैरसलोत बीदावतराठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
बैरसलजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
बैरसलजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
07 - रासावत बीदावत राठौड़ - राव अर्जुनजी के पुत्र राव रासावतजी के वंसज रासावत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। राव रासावतजी;जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र राव बीदोजी के पोते और राव जोधाजी के पड़ पोते थे।
बैरसलोत बीदावतराठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव रासावतजी - राव अर्जुनजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - साँगावत बिदा राठौड़ - संसारचन्द्रजी के पुत्र सांगासिंह [सांगाजी] के नौ पुत्र साँगावत बिदा राठौड़ कहलाये हैं। सांगासिंह [सांगाजी] को उप नाम सूरावतजी के नाम से भी जाना जाता था।
[ध्यान रहे सांगासिंह [सांगाजी] के इन नौ पुत्रों के वंसज साँगावत बिदा राठौड़ न कहलाकर इन सभी से अलग-अलग शाखाएँ निकली है।]
साँगावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09 - गोपालदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र गोपालदासजी के वंशज गोपालदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। गोपालदासजी ;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे।
गोपालदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - धनावत बीदावत राठौड़ - राममलजी के पुत्र राव धनावतजी के वंशज धनावत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।राव धनावतजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे। रामपालजी को उप नाम राममलजी कहकर भी पुकारा जाता था।
धनावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव धनावतजी - राममलजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11 - सांवलदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र सांवलदासजी के वंशज सांवलदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है।सांवलदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी
के पड़ पोते थे।
सांवलदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सांवलदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
12 - सीहावत [सिन्हावत] बीदावत राठौड़ - राव सांगाजी के पुत्र सिन्हाजी के वंशज सीहावत (सिन्हावत) बीदावत राठौड़ कहलाते हैं, इन्हे सिन्हावत के नाम से जाना जाता है क्योकि राव सांगाजी के पुत्र सीहा का मूल नाम सिन्हा था मगर बोलचाल की भाषा मेँ सीहा बोलते थे। गोपालपुरा में इनकी जागीर थी।
सीहावत [सिन्हावत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सिन्हाजी [सीहा] - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13 - रामदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र रामदासजी के वंशज रामदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। रामदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे।
रामदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - जालपदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र जलपदासजी के वंशज जालपदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये है। जलपदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव लोहा था।
जालपदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जलपदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - खंगारोत बीदावत राठौड़ - जालपदासजी के पुत्र राव खंगारजी के वंसज खंगारोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। इनके लोहा खुडी, कनवारी [दोलड़ी ताजीम]हामूसर [सादी ताजीमी] गोरीसर आदी ठिकाने थे।राव खंगारजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
खंगारोत बीदावत राठौड़ों की दो उप शाखाएँ [खाँपे] हैं -
01 - किशनदासोत खंगारोत राठौड़ - राव खंगारजी के पुत्र राव किशनदासजी के वंशज
किशनदासोत खँगारोत राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव खुड़ी था।
02 - मानसिँहोत खँगारोत राठौड़ - किशनदासजी के तीन पुत्र हुए -
01 - मानसिंह - मानसिंह के वंसज मानसिँहोत खँगारोत राठौड़ कहलाये हैं।
ठिकाना गांव गोरीसर।
02 - श्यामसिँह - ठिकाना गांव गोरीसर।
03 - उदसिँह (उदयसिँह) - ठिकाना गांवगोरीसर।
खंगारोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव खंगारजी - जालपदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
16 - धेनावत बीदावत राठौड़ - राव रायमलजी के पुत्र राव धेनाजी के वंसज धेनावत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। राव धेनाजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे। धेनावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव धेनाजी - राव रायमलजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
17 - दयालदासोत बीदावत राठौड़ - राव रायमलजी के पुत्र दयालदासजी के वंशज दयालदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये है। दयालदासजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
दयालदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
दयालदासजी - राव रायमलजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
18 - पृथ्वीराजोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह के पुत्र पृथ्वीसिँह के वंशज पृथ्वीराजोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी पृथ्वीराजसिंह रायसिंह के समय गुजरात की में लड़ाई में काम आये। ईनका हरासर दोलड़ी ताजमी व सारोठीया सादी ताजमी ठिकाना था। पृथ्वीसिँह; पृथ्वीराजसिंह;ठिकाना गांव पड़िहारा के राजा गोपालदासजी के पोते और ठिकाना गांव पड़िहारा के सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे।
पृथ्वीराजोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
पृथ्वीसिँह - जसवंतसिंह - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
19 - मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह के पुत्र मनोहरदासजी के वंशज मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं।मनोहरदासजी; गोपालदासजी के पोते और सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे। ईनका ठिकाना गांव साँडवा था। साँडवा उस समय बाघावास के नाम से जाना जाता था। मनोहर दासजी के पुत्र रूपसिंह ने गोपी गोदारा को मारकर बाघावास पर अधिकार किया तब से यह गांव साँडवा कहा जाने लगा। इनके मुख्या ठिकाने जालोड़ (मारवाड़) सांडवा (दोलड़ी ताजीम) पड़ीहारा (इकलड़ी ताजीम ) कक्कू , पातलीसर, बीनादेसर (सादी ताजीम) आदी ठिकाने थे। मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ों की की 6 उप खाँपे हैँ -
01 - मूणदासोत
02 - माहीदासोत
03 - देई दासोत
04 - जगमालोत
05 - डूँगरसिँहोत
06 - मालदेवोत
मनोहरदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मनोहरदासजी - जसवंतसिंह -गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
20 - स्यामदासोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह जी के पुत्र स्यामदासजी के वंशज स्यामदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
स्यामदासजी;गोपालदासजी के पोते और सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे।
स्यामदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
स्यामदासजी - जसवंतसिंह -गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
21 - तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ - गोपालदासजी के पुत्र तेजसिंह के वंसज तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।
गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
तेजसिंह;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
तेजसिंह को ठिकाना गांव चाड़वास मिला था। तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ों के ठिकाना गांव चाहड़वास, गोपालपूरा मलसीसर (इकलड़ी ताजीम) जोगलिया, नोसरिया, मालासर, बडावर [सादी ताजीम] आदी ठिकाने थे ।तेजसिंह के दो पुत्र थे -
01 - चन्द्रभाणजी
02 - रामचंन्द्रजी
तेजसिंह के इन दो पुत्रों पोतों से से तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ों की तीन उप शाखाओं का
निकास हुवा है -:
01 - चन्द्रभाणोत बीदावत राठौड़ - तेजसिंह के पुत्र चन्द्रभाणजी के वंसज चन्द्रभाणोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। चन्द्रभाणजी को ठिकाना गांव गोपालपुरा मिला था।
02 - रामचन्द्रोत बीदावत राठौड़ - तेजसिंह के पुत्र रामचंन्द्रजी के वंसज रामचन्द्रोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। रामचंन्द्रजी को ठिकाना गांव चाडवास मिला था।
03 - भागचन्द्रोत बीदावत राठौड़ - रामचंन्द्रजी के पुत्र भागचन्दजी के वंसज भागचन्द्रोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं।भागचन्दजी को ठिकाना गांव मलसीसर मिला था।
तेजसिँहोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
तेजसिंह - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
22 - केशोदासोत बीदावत राठौड़ - गोपालदासजी के पुत्र केशोदासजी के वंसज केशोदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। बिदावतों में केशोदासोत बीदावत खांप टिकाई[पाटवी] है।
सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
गोपालदासजी के पुत्र केसोदासजी को ठिकाना गांव बीदासर मिला था। केशोदासजी के वंसज केशोदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। बिदावतों में केशोदासोत बीदावत खांप टिकाई[पाटवी] है। केशोदासजी के दो पुत्र थे -
01 - गोविन्द दासजी
02 - नथराजजी
केशोदासजी के पुत्र गोविन्द दासजी से केशोदासोत बीदावत राठौड़ एक उप शाखा का निकास हुवा है -:
गोविन्ददासोत बीदावत राठौड़ - केशोदासजी के पुत्र गोविन्द दासजी के वंसज गोविन्ददासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।इन के ठिकाने गांव बीदासर,चारले और बोथवास आदि थे। गोविन्द दासजी के दो पुत्र थे -:
01 - अचलदासजी [1625-1635] - अचलदासजी के वंसज बनाता, भोजासर, मोटासर,
दुसारण और कुछ लोग बीदासर में भी बस्ते हैं।
02 - मानसिंह [1635-1641] -
गोविन्द दासजी के पुत्र मानसिंह के दो पुत्र थे-
01-धनराजसिंह
02-मालदेवसिंह
धनराजसिंह [1641-1669] - धनराजसिंह का पुत्र हुवा जयसिंह[1669-1681] जयसिंह के दो पुत्र हुए-:
01- कुशालसिंह - के एक पुत्र हुवा केसरीसिंह,केसरीसिंह अपने चाचा दौलतसिंह के गोद
गए।
02 -दौलतसिंह [1681-1706] - दौलतसिंह के पास 1682 में 15 गांव थे। दौलतसिंह
के कोई पुत्र नहीं था इसलिए इन्होनें अपने बड़े भाई कुशालसिंह के पुत्र केसरीसिंह को
गोद लिया। दौलतसिंह ने बीकानेर महाराजा के साथ अनेक युद्धों में भाग लिया था।
दौलतसिंह की म्रत्यु 1706 में हुयी थी। केसरीसिंह की म्रत्यु 1727 में हुयी उस
समय जालमसिंह गर्भ में थे, और केसरीसिंह के मरणोपरांत उनकी रानी चैनकंवर
[भटियाणीजी] ने जालमसिंह को जन्म दिया था।
जालमसिंह [1727-1805] ठिकाना बीदासर - जालमसिंह ने लगभग 26 लड़ाइयों में भाग लिया था, जालमसिंह की पहली शादी संखलिजी से दूसरी शादी सोंनगरीजी के साथ।जालमसिंह के दो पुत्र थे -
01 - उम्मेदसिंह
02 - अजीतसिंह
अजीतसिंह - अजीतसिंह का जन्म 1758 हुवा और म्रत्यु 1782 में गायों की रक्षा करते हुए। अजीतसिंह के पुत्र हुए मोहब्बतसिंह।
केशोदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
केशोदासजी - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
बैरसलोत बीदावतराठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव रासावतजी - राव अर्जुनजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
08 - साँगावत बिदा राठौड़ - संसारचन्द्रजी के पुत्र सांगासिंह [सांगाजी] के नौ पुत्र साँगावत बिदा राठौड़ कहलाये हैं। सांगासिंह [सांगाजी] को उप नाम सूरावतजी के नाम से भी जाना जाता था।
[ध्यान रहे सांगासिंह [सांगाजी] के इन नौ पुत्रों के वंसज साँगावत बिदा राठौड़ न कहलाकर इन सभी से अलग-अलग शाखाएँ निकली है।]
साँगावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
09 - गोपालदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र गोपालदासजी के वंशज गोपालदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। गोपालदासजी ;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे।
गोपालदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
10 - धनावत बीदावत राठौड़ - राममलजी के पुत्र राव धनावतजी के वंशज धनावत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।राव धनावतजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे। रामपालजी को उप नाम राममलजी कहकर भी पुकारा जाता था।
धनावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव धनावतजी - राममलजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
11 - सांवलदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र सांवलदासजी के वंशज सांवलदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है।सांवलदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी
के पड़ पोते थे।
सांवलदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सांवलदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
12 - सीहावत [सिन्हावत] बीदावत राठौड़ - राव सांगाजी के पुत्र सिन्हाजी के वंशज सीहावत (सिन्हावत) बीदावत राठौड़ कहलाते हैं, इन्हे सिन्हावत के नाम से जाना जाता है क्योकि राव सांगाजी के पुत्र सीहा का मूल नाम सिन्हा था मगर बोलचाल की भाषा मेँ सीहा बोलते थे। गोपालपुरा में इनकी जागीर थी।
सीहावत [सिन्हावत] राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
सिन्हाजी [सीहा] - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
13 - रामदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र रामदासजी के वंशज रामदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। रामदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे।
रामदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
रामदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
14 - जालपदासोत बीदावत राठौड़ - सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र जलपदासजी के वंशज जालपदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये है। जलपदासजी;संसारचन्द्रजी के पोते और राव बीदोजी के पड़ पोते थे। इनका ठिकाना गांव लोहा था।
जालपदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
जलपदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
15 - खंगारोत बीदावत राठौड़ - जालपदासजी के पुत्र राव खंगारजी के वंसज खंगारोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। इनके लोहा खुडी, कनवारी [दोलड़ी ताजीम]हामूसर [सादी ताजीमी] गोरीसर आदी ठिकाने थे।राव खंगारजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
खंगारोत बीदावत राठौड़ों की दो उप शाखाएँ [खाँपे] हैं -
01 - किशनदासोत खंगारोत राठौड़ - राव खंगारजी के पुत्र राव किशनदासजी के वंशज
किशनदासोत खँगारोत राठौड़ कहलाये हैं। इनका ठिकाना गांव खुड़ी था।
02 - मानसिँहोत खँगारोत राठौड़ - किशनदासजी के तीन पुत्र हुए -
01 - मानसिंह - मानसिंह के वंसज मानसिँहोत खँगारोत राठौड़ कहलाये हैं।
ठिकाना गांव गोरीसर।
02 - श्यामसिँह - ठिकाना गांव गोरीसर।
03 - उदसिँह (उदयसिँह) - ठिकाना गांवगोरीसर।
खंगारोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव खंगारजी - जालपदासजी - सांगासिंह [सांगाजी]- संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
16 - धेनावत बीदावत राठौड़ - राव रायमलजी के पुत्र राव धेनाजी के वंसज धेनावत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। राव धेनाजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे। धेनावत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
राव धेनाजी - राव रायमलजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
17 - दयालदासोत बीदावत राठौड़ - राव रायमलजी के पुत्र दयालदासजी के वंशज दयालदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये है। दयालदासजी;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
दयालदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
दयालदासजी - राव रायमलजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
18 - पृथ्वीराजोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह के पुत्र पृथ्वीसिँह के वंशज पृथ्वीराजोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी पृथ्वीराजसिंह रायसिंह के समय गुजरात की में लड़ाई में काम आये। ईनका हरासर दोलड़ी ताजमी व सारोठीया सादी ताजमी ठिकाना था। पृथ्वीसिँह; पृथ्वीराजसिंह;ठिकाना गांव पड़िहारा के राजा गोपालदासजी के पोते और ठिकाना गांव पड़िहारा के सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे।
पृथ्वीराजोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
पृथ्वीसिँह - जसवंतसिंह - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
19 - मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह के पुत्र मनोहरदासजी के वंशज मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते हैं।मनोहरदासजी; गोपालदासजी के पोते और सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे। ईनका ठिकाना गांव साँडवा था। साँडवा उस समय बाघावास के नाम से जाना जाता था। मनोहर दासजी के पुत्र रूपसिंह ने गोपी गोदारा को मारकर बाघावास पर अधिकार किया तब से यह गांव साँडवा कहा जाने लगा। इनके मुख्या ठिकाने जालोड़ (मारवाड़) सांडवा (दोलड़ी ताजीम) पड़ीहारा (इकलड़ी ताजीम ) कक्कू , पातलीसर, बीनादेसर (सादी ताजीम) आदी ठिकाने थे। मनोहरदासोत बीदावत राठौड़ों की की 6 उप खाँपे हैँ -
01 - मूणदासोत
02 - माहीदासोत
03 - देई दासोत
04 - जगमालोत
05 - डूँगरसिँहोत
06 - मालदेवोत
मनोहरदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
मनोहरदासजी - जसवंतसिंह -गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
20 - स्यामदासोत बीदावत राठौड़ - जसवंतसिंह जी के पुत्र स्यामदासजी के वंशज स्यामदासोत बीदावत राठौड़ कहलाते है। गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
स्यामदासजी;गोपालदासजी के पोते और सांगासिंह [सांगाजी] के पड़ पोते थे।
स्यामदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
स्यामदासजी - जसवंतसिंह -गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
21 - तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ - गोपालदासजी के पुत्र तेजसिंह के वंसज तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।
गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-:
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
तेजसिंह;सांगासिंह [सांगाजी] के पोते और संसारचन्द्रजी के पड़ पोते थे।
तेजसिंह को ठिकाना गांव चाड़वास मिला था। तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ों के ठिकाना गांव चाहड़वास, गोपालपूरा मलसीसर (इकलड़ी ताजीम) जोगलिया, नोसरिया, मालासर, बडावर [सादी ताजीम] आदी ठिकाने थे ।तेजसिंह के दो पुत्र थे -
01 - चन्द्रभाणजी
02 - रामचंन्द्रजी
तेजसिंह के इन दो पुत्रों पोतों से से तेजसिँहोत बीदावत राठौड़ों की तीन उप शाखाओं का
निकास हुवा है -:
01 - चन्द्रभाणोत बीदावत राठौड़ - तेजसिंह के पुत्र चन्द्रभाणजी के वंसज चन्द्रभाणोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। चन्द्रभाणजी को ठिकाना गांव गोपालपुरा मिला था।
02 - रामचन्द्रोत बीदावत राठौड़ - तेजसिंह के पुत्र रामचंन्द्रजी के वंसज रामचन्द्रोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं। रामचंन्द्रजी को ठिकाना गांव चाडवास मिला था।
03 - भागचन्द्रोत बीदावत राठौड़ - रामचंन्द्रजी के पुत्र भागचन्दजी के वंसज भागचन्द्रोत
बीदावत राठौड़ कहलाते हैं।भागचन्दजी को ठिकाना गांव मलसीसर मिला था।
तेजसिँहोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
तेजसिंह - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
22 - केशोदासोत बीदावत राठौड़ - गोपालदासजी के पुत्र केशोदासजी के वंसज केशोदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। बिदावतों में केशोदासोत बीदावत खांप टिकाई[पाटवी] है।
सांगासिंह [सांगाजी] के पुत्र गोपालदासजी के तीन पुत्र हुए-
01 - जसवंतसिंह
02 - तेजसिंह
03 – केसोदासजी
गोपालदासजी के पुत्र केसोदासजी को ठिकाना गांव बीदासर मिला था। केशोदासजी के वंसज केशोदासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं। बिदावतों में केशोदासोत बीदावत खांप टिकाई[पाटवी] है। केशोदासजी के दो पुत्र थे -
01 - गोविन्द दासजी
02 - नथराजजी
केशोदासजी के पुत्र गोविन्द दासजी से केशोदासोत बीदावत राठौड़ एक उप शाखा का निकास हुवा है -:
गोविन्ददासोत बीदावत राठौड़ - केशोदासजी के पुत्र गोविन्द दासजी के वंसज गोविन्ददासोत बीदावत राठौड़ कहलाये हैं।इन के ठिकाने गांव बीदासर,चारले और बोथवास आदि थे। गोविन्द दासजी के दो पुत्र थे -:
01 - अचलदासजी [1625-1635] - अचलदासजी के वंसज बनाता, भोजासर, मोटासर,
दुसारण और कुछ लोग बीदासर में भी बस्ते हैं।
02 - मानसिंह [1635-1641] -
गोविन्द दासजी के पुत्र मानसिंह के दो पुत्र थे-
01-धनराजसिंह
02-मालदेवसिंह
धनराजसिंह [1641-1669] - धनराजसिंह का पुत्र हुवा जयसिंह[1669-1681] जयसिंह के दो पुत्र हुए-:
01- कुशालसिंह - के एक पुत्र हुवा केसरीसिंह,केसरीसिंह अपने चाचा दौलतसिंह के गोद
गए।
02 -दौलतसिंह [1681-1706] - दौलतसिंह के पास 1682 में 15 गांव थे। दौलतसिंह
के कोई पुत्र नहीं था इसलिए इन्होनें अपने बड़े भाई कुशालसिंह के पुत्र केसरीसिंह को
गोद लिया। दौलतसिंह ने बीकानेर महाराजा के साथ अनेक युद्धों में भाग लिया था।
दौलतसिंह की म्रत्यु 1706 में हुयी थी। केसरीसिंह की म्रत्यु 1727 में हुयी उस
समय जालमसिंह गर्भ में थे, और केसरीसिंह के मरणोपरांत उनकी रानी चैनकंवर
[भटियाणीजी] ने जालमसिंह को जन्म दिया था।
जालमसिंह [1727-1805] ठिकाना बीदासर - जालमसिंह ने लगभग 26 लड़ाइयों में भाग लिया था, जालमसिंह की पहली शादी संखलिजी से दूसरी शादी सोंनगरीजी के साथ।जालमसिंह के दो पुत्र थे -
01 - उम्मेदसिंह
02 - अजीतसिंह
अजीतसिंह - अजीतसिंह का जन्म 1758 हुवा और म्रत्यु 1782 में गायों की रक्षा करते हुए। अजीतसिंह के पुत्र हुए मोहब्बतसिंह।
केशोदासोत राठौड़ों का पीढी क्रम ईस प्रकार है -:
केशोदासजी - गोपालदासजी - सांगासिंह [सांगाजी] - संसारचन्द्रजी - राव बीदोजी - राव जोधाजी - रिड़मलजी [राव रणमलजी] - राव चूण्डाजी [चुंडाजी] - राव विरमजी [बीरमजी] - राव सलखाजी - राव तीड़ाजी - राव छाडाजी - राव जालणसीजी - कानपालजी - राव रायपालजी - राव दूहड़जी - राव अस्थानजी – राव सीहाजी [शेओजी] - राव सेतरामजी- बरदायीसेनजी - जयचन्दजी - विजयचन्द्रजी - गोविन्द्रजी - मदनपालजी[मदनचन्द्रजी] - चन्द्रदेवजी - महीचंद्रजी - यशोविग्रहजी - धर्मविम्भ - राजा श्री पुंज।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 3313
।।इति।।